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Vishnu Chalisa In Hindi

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विष्णु चालीसा हिंदी अर्थ सहित | Vishnu Chalisa In Hindi

हिन्दू पंचांग के अनुसार सप्ताह का एक एक दिन किसी देवी या देवता को समर्पित है। भगवान श्री विष्णु की पूजा के लिए गुरुवार का दिन समर्पित है। सृष्टि का पालनकर्ता भगवान श्री हरी विष्णु (Vishnu Chalisa In Hindi) की पूजा गुरुवार को की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु जी की पूजा और स्तुति करना अत्यंत ही शुभ और मंगलकारी होता है।

गुरुवार के दिन श्री विष्णु की पूजा स्तुति के अलावा विष्णु चालीसा (Vishnu Chalisa In Hindi) का पाठ भी कर सकते है। मान्यता है कि एकादशी के दिन विष्णु चालीसा का पाठ करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार विष्णु चालीसा का पाठ नियमित करने से हर तरह के कष्टों से छुटकारा मिल जाता है।

विष्णु पुराण की शिक्षाओं पर आधारित श्री विष्णु चालीसा में कुल 40 छंद हैं। विष्णु चालीसा (Vishnu Chalisa In Hindi) में भगवान श्री विष्णु की महिमा, गुण और कृपा का वर्णन है। इसका पाठ करने पर मनुष्य के मन और आत्मा को शुद्ध किया जाता है।

 

विष्णु चालीसा पाठ की विधि:-

विष्णु चालीसा (Vishnu Chalisa In Hindi) का पाठ करने के लिए प्रातःकाल जल्दी उठ कर स्नानादि से निवृत्त होकर साफ पीले रंग के वस्त्र धारण करें। उसके बाद मंदिर या पूजा घर में आसन लगाकर भगवान विष्णु की प्रतीमा के सामने दीपक जला कर मन में संकल्प करें। फिर विष्णु चालीसा का पाठ आरंभ कर सकते है।

विष्णु चालीसा (Vishnu Chalisa In Hindi) का पाठ करते समय आपके मन में एकाग्रता होनी चाहिए। पाठ समाप्त होती ही भगवान विष्णु को पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं और भोग में तुलसी का पत्ता रखे। क्योकि भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी के पत्ते के बिना पूजा अधूरी मानी जाती है।

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|| विष्णु चालीसा ||

दोहा

विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय ।
कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय ॥

अर्थ:
हे सृष्टि के पालनकर्ता श्री हरी विष्णु!! आप अपने भक्त के मन को पहचानिए। आज आपका सेवक विष्णु चालीसा के माध्यम से आपका वर्णन कर रहा हैं, कृपा करके ज्ञान दीजिए।

।। चौपाई ।।

नमो विष्णु भगवान खरारी, कष्ट नशावन अखिल बिहारी ।
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी, त्रिभुवन फैल रही उजियारी ॥

अर्थ:
सभी कष्टों व दुखो का नाश करने वाले और सभी का उद्धार करने वाले भगवान विष्णु को मेरा नमन हैं। है विष्णु आप संपूर्ण सृष्टि में सबसे शक्तिशाली हैं और आपकी उन्नति तीनों लोकों में व्याप्त हो रही हैं।

सुन्दर रूप मनोहर सूरत, सरल स्वभाव मोहनी मूरत ।
तन पर पीताम्बर अति सोहत, बैजन्ती माला मन मोहत ॥

अर्थ:
है भगवान विष्णु आपका रूप मन को मोह लेने वाला हैं और आपका स्वभाव सरल हैं। आपने तन पर पीले रंग के वस्त्र पहने हुए हैं और गले में बैजंती की माला सुशोभित हैं।

शंख चक्र कर गदा विराजे, देखत दैत्य असुर दल भाजे ।
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे, काम क्रोध मद लोभ न छाजे ॥

अर्थ:
आपके हाथों में शंख, सुदर्शन चक्र, गदा सुशोभित हैं यह देख दानवो में भय व्याप्त रहता हैं। आप से ही सृष्टि में सत्य, धर्म इत्यादि की विजय होती हैं, और आप ही काम, मद, क्रोध, लोभ आदि का नाश करता हैं।

सन्तभक्त सज्जन मनरंजन, दनुज असुर दुष्टन दल गंजन ।
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन, दोष मिटाय करत जन सज्जन ॥

अर्थ:
है श्री हरी आप ही ऋषि-मुनि, सज्जन मनुष्यों की रक्षा करते हो और उनके मन को आनंदित करते हो। आप ही सुख प्रदान करने वाले हैं और आप ही हम सभी के कष्टों को हरने वाले हैं।

पाप काट भव सिन्धु उतारण, कष्ट नाशकर भक्त उबारण ।
करत अनेक रूप प्रभु धारण, केवल आप भक्ति के कारण ॥

अर्थ:
है विष्णु आप ही भक्तों के पापों को नाश कर उद्धार करते हैं और भव सागर पार करवाते हैं। पृथ्वी पर धर्म की रक्षा के लिए और भक्तों का उद्धार करने के लिए आप ही समय-समय पर अवतार लेते हैं।

धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा, तब तुम रूप राम का धारा ।
भार उतार असुर दल मारा, रावण आदिक को संहारा ॥

अर्थ:
पृथ्वी पर जब राक्षसों का अत्याचार बढ़ गया और भक्तों ने आपको पुकारा तो आप श्रीराम के रूप में अवतरित हुए। रावण का सेना के साथ नाश कर दिया और धरती को मुक्त किया।

आप वाराह रूप बनाया, हिरण्याक्ष को मार गिराया ।
धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया, चौदह रतनन को निकलाया ॥

अर्थ:
हे श्री हरी पृथ्वी को समुंद्र में डुबो देने के कारण वराह रूप धारण कर पृथ्वी की रक्षा की और हिरण्याक्ष राक्षस का वध किया। मत्स्य रूप में आकर कल्प से चौदह रत्नों को निकालकर अपनी महिमा दिखाई।

अमिलख असुरन द्वन्द मचाया, रूप मोहनी आप दिखाया ।
देवन को अमृत पान कराया, असुरन को छवि से बहलाया ॥

अर्थ:
समुंद्र मंथन के समय जब अमृतपान के लिए असुरों द्वारा उत्पाद मचाया तब आपने मोहिनी रूप धरा। इस रूप में आपने असुरों को अपने रूप में बहलाकर रखा और देवताओं को अमृत पिलाया था।

कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया, मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया ।
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया, भस्मासुर को रूप दिखाया ॥

अर्थ:
है विष्णु आपने कुर्म अवतार धारण करके मंदराचल पर्वत का भार उठाया। भस्मासुर को दिए वरदान से भगवान शिव जब परेशान थे तब आप ने ही एक स्त्री रूप धरकर भस्मासुर का वध किया।

वेदन को जब असुर डुबाया, कर प्रबन्ध उन्हें ढुढवाया ।
मोहित बनकर खलहि नचाया, उसही कर से भस्म कराया ॥

अर्थ:
है विष्णु अपने ही जब ब्रह्मा से वेदों को चुराकर राक्षसों द्वारा समुंद्र में डुबो दिया गया तब हयग्रीव अवतार धरके आप ही वेदों को पुनः लेकर आये। भस्मासुर को आपने स्त्री रूप में आपने नृत्य किया और उसी के वरदान से उसे भस्म कर दिया।

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असुर जलन्धर अति बलदाई, शंकर से उन कीन्ह लड़ाई ।
हार पार शिव सकल बनाई, कीन सती से छल खल जाई ॥

अर्थ:
एक बार जलंधर राक्षस और भगवान शिव के बिच भयंकर युद्ध हुआ। लेकिन जलंधर की पत्नी वृंदा के तप के कारण भगवन शिव जलंधर को पराजित नही कर सके तब माता सती भी परेशान हो उठी।

सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी, बतलाई सब विपत कहानी ।
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी, वृन्दा की सब सुरति भुलानी ॥

अर्थ:
है भगवान विष्णु तब माता सती ने आपको ही बुलाया और सभी समस्या आपको ही बताई। माता सती के कहने पर आपने ही वृंदा की तपस्या का भंग किया था।

देखत तीन दनुज शैतानी, वृन्दा आय तुम्हें लपटानी ।
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी, हना असुर उर शिव शैतानी ॥

अर्थ:
हे श्री हरी जब वृंदा ने आपको देखा वह भ्रम में पड़ गई और तपस्या छोड़कर आपके पास आ गई थी। वृंदा के स्पर्श से आपने गलती भी मानी और उन्हें सदैव अपने साथ तुलसी के रूप में पूजने का वरदान दिया था। तब जलंधर का वध भगवान शिव ने कर दिया।

तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे, हिरणाकुश आदिक खल मारे ।
गणिका और अजामिल तारे, बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे ॥

अर्थ:
हे भगवान विष्णु आप ही ने नरसिंह अवतार धरके हिरन्यकश्यप का वध करके अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की थी। आपने ही भक्त इत्यादि का उद्धार करके भव सागर पार लगाया हैं।

हरहु सकल संताप हमारे, कृपा करहु हरि सिरजन हारे ।
देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे, दीन बन्धु भक्तन हितकारे ॥

अर्थ:
हे भगवन श्री हरी कृपया हमारे दुखों का भी अंत कीजिए हम पर अपनी कृपा दृष्टि राखए। आप ही याचकों, निर्धनों, भक्तों के लिए शुभ फल देने वाले मैं प्रतिदिन आपके दर्शन करता हूँ।

चाहता आपका सेवक दर्शन, करहु दया अपनी मधुसूदन ।
जानूं नहीं योग्य जब पूजन, होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन ॥

अर्थ:
हे भगवान विष्णु आपका भक्त आपके दर्शन करना चाहता हैं और आपसे अपने ऊपर कृपा रखने की याचना करता हैं। मैं नादान हूँ प्रभु पूजा, तप-यज्ञ के बारे में नही जानता, मैं केवल आपका ही नाम जपता हूँ।

शीलदया सन्तोष सुलक्षण, विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण ।
करहुं आपका किस विधि पूजन, कुमति विलोक होत दुख भीषण ॥

अर्थ:
है प्रभु मुजपर अपनी दया दिखाइए व्रत विधि के बारे में मुझे पता नही हैं। मैं अज्ञानी कैसे आपका व्रत, पूजा विधि के अनुरूप पूजन करूँ, अज्ञानता में मुझसे कोई भूल ना हो अन्यथा इसका दुःख बहुत भीषण होगा।

करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण, कौन भांति मैं करहु समर्पण ।
सुर मुनि करत सदा सेवकाई, हर्षित रहत परम गति पाई ॥

अर्थ:
मैं भगवान विष्णु को विधिपूर्वक प्रणाम करता हूँ, आपको अपने आपको संपूर्ण समर्पण करता हूँ। ऋषि-मुनियों, देवताओं आदि ने सदैव ही आपकी सेवा करके परम हर्ष को प्राप्त किया हैं।

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दीन दुखिन पर सदा सहाई, निज जन जान लेव अपनाई ।
पाप दोष संताप नशाओ, भव बन्धन से मुक्त कराओ ॥

अर्थ:
है भगवान विष्णु आपने सदा दीन, दुखियों पर अपनी कृपा दृष्टि रखकर उन्हें अपना बनाया हैं। आप ही हम पाप, दोष को दूर करने वाले हो और हमे सांसारिक बंधनों से मुक्त करके उद्धार करने वाले हो।

सुत सम्पति दे सुख उपजाओ, निज चरनन का दास बनाओ ।
निगम सदा ये विनय सुनावै, पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै ॥

अर्थ:
आप ने ही हमे संतान, संपत्ति आदि देकर सुखदिया है, और अपने चरणों का दास बनाकर हमे मुक्त कीजिए। भक्ति के मार्ग में सदा ही सभी से प्रार्थना करता हैं कि जो कोई भी यह विष्णु चालीसा पढ़ता हैं या दूसरों को सुनाता हैं, वह सदैव सुख पाता हैं।

॥ इति श्री विष्णु चालीसा सम्पूर्णम ॥

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