Sunderkand Lyrics in Hindi
सम्पूर्ण सुन्दरकाण्ड पाठ हिंदी लिरिक्स में – Sunderkand Lyrics in Hindi
सुन्दरकाण्ड पाठ (Sunderkand Lyrics in Hindi) मूलतः महर्षि वाल्मीकि रचित रामायण, गोस्वामी तुलसीदास कृत श्री रामचरितमानस और अन्य भाषाओं के रामायण का एक काण्ड (सोपान) है। सम्पूर्ण सुन्दरकाण्ड पाठ में कुल 60 दोहे, 59 चौपाई और 3 छन्द है। सुन्दरकाण्ड पाठ का रामायण में विशेष महत्व रहा है। अंजनी पुत्र हनुमान जी द्वारा किये गये भगवान श्री राम के महान कार्य का सुन्दरकाण्ड पाठ में वर्णन मिलता है।
सुन्दरकाण्ड पाठ (Sunderkand Lyrics in Hindi) के 60 दोहों में मुख्य घटनाक्रम हनुमान जी का लंका की ओर प्रस्थान करना, विभीषण से भेंट होना, सीता से भेंट करके उन्हें श्री राम की मुद्रिका देना, रावण पुत्र अक्षय कुमार का वध करना, लंका दहन करना और लंका से वापस आना। रामायण कथा मर्यादा पुरषोतम भगवान श्रीराम के गुणों और उनके उद्देश्य एवं लक्ष्य को दर्शाती है, और सुंदरकांड पाठ एकमात्र ऐसा अध्याय है, जहा सिर्फ श्री राम भक्त हनुमान की शक्ति और विजय की गाथा का वर्णन किया गया है।
सम्पूर्ण सुन्दरकाण्ड (Sunderkand Lyrics in Hindi) का पाठ करने से आत्मबल, आध्यात्म बल और मानसिक बल की प्राप्ति होती है। आप में हर परिस्तिथि से लड ने की क्षमता प्राप्त होती है, इसलिए आप को सुन्दरकाण्ड पाठ करना चाहिए। सुंदरकांड का पाठ मंगलवार या शनिवार को करने से जीवन की सभी बाधाओं का नाश होता है, और धन, संपत्ति, सुख, वैभव आदि प्राप्त होता है।
सम्पूर्ण सुन्दरकाण्ड पाठ हिंदी pdf
श्री रामचरितमानस–सुन्दरकाण्ड पाठ
।।आसन।।
कथा प्रारम्भ होत है। सुनहुँ वीर हनुमान।।
राम लखन जानकी। करहुँ सदा कल्याण।।
॥श्लोक॥
शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं।
ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्॥
रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं।
वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम्॥१॥
नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये
सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा॥
भक्तिं प्रयच्छ रघुपुंगव निर्भरां मे।
कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च॥२॥
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं।
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्॥
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं।
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥३॥
॥चौपाई 1॥
जामवंत के बचन सुहाए। सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥
तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई। सहि दुख कंद मूल फल खाई॥
जब लगि आवौं सीतहि देखी। होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी॥
यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा। चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा॥
सिंधु तीर एक भूधर सुंदर। कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर॥
बार-बार रघुबीर सँभारी। तरकेउ पवनतनय बल भारी॥
जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता। चलेउ सो गा पाताल तुरंता॥
जिमि अमोघ रघुपति कर बाना। एही भाँति चलेउ हनुमाना॥
जलनिधि रघुपति दूत बिचारी। तैं मैनाक होहि श्रम हारी॥
(Sunderkand Lyrics in Hindi)
॥दोहा 1॥
हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम।
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम॥
॥चौपाई 2॥
जात पवनसुत देवन्ह देखा। जानैं कहुँ बल बुद्धि बिसेषा॥
सुरसा नाम अहिन्ह कै माता। पठइन्हि आइ कही तेहिं बाता॥
आजु सुरन्ह मोहि दीन्ह अहारा। सुनत बचन कह पवनकुमारा॥
राम काजु करि फिरि मैं आवौं। सीता कइ सुधि प्रभुहि सुनावौं॥
तब तव बदन पैठिहउँ आई। सत्य कहउँ मोहि जान दे माई॥
कवनेहुँ जतन देइ नहिं जाना। ग्रससि न मोहि कहेउ हनुमाना॥
जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा। कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा॥
सोरह जोजन मुख तेहिं ठयऊ। तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ॥
जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा। तासु दून कपि रूप देखावा॥
सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा। अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा॥
बदन पइठि पुनि बाहेर आवा। मागा बिदा ताहि सिरु नावा॥
मोहि सुरन्ह जेहि लागि पठावा। बुधि बल मरमु तोर मैं पावा॥
॥दोहा 2॥
राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान।
आसिष देइ गई सो हरषि चलेउ हनुमान॥
॥चौपाई 3॥
निसिचरि एक सिंधु महुँ रहई। करि माया नभु के खग गहई॥
जीव जंतु जे गगन उड़ाहीं। जल बिलोकि तिन्ह कै परिछाहीं॥
गहइ छाहँ सक सो न उड़ाई। एहि बिधि सदा गगनचर खाई॥
सोइ छल हनूमान कहँ कीन्हा। तासु कपटु कपि तुरतहिं चीन्हा॥
ताहि मारि मारुतसुत बीरा। बारिधि पार गयउ मतिधीरा॥
तहाँ जाइ देखी बन सोभा। गुंजत चंचरीक मधु लोभा॥
नाना तरु फल फूल सुहाए। खग मृग बृंद देखि मन भाए॥
सैल बिसाल देखि एक आगें। ता पर धाइ चढ़ेउ भय त्यागें॥
उमा न कछु कपि कै अधिकाई। प्रभु प्रताप जो कालहि खाई॥
गिरि पर चढ़ि लंका तेहिं देखी। कहि न जाइ अति दुर्ग बिसेषी॥
अति उतंग जलनिधि चहु पासा। कनक कोट कर परम प्रकासा॥
॥छन्द 1॥
कनक कोटि बिचित्र मनि कृत सुंदरायतना घना।
चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीथीं चारु पुर बहु बिधि बना॥
गज बाजि खच्चर निकर पदचर रथ बरूथन्हि को गनै।
बहुरूप निसिचर जूथ अतिबल सेन बरनत नहिं बनै॥१॥
बन बाग उपबन बाटिका सर कूप बापीं सोहहीं।
नर नाग सुर गंधर्ब कन्या रूप मुनि मन मोहहीं॥
कहुँ माल देह बिसाल सैल समान अतिबल गर्जहीं।
नाना अखारेन्ह भिरहिं बहुबिधि एक एकन्ह तर्जहीं॥२॥
करि जतन भट कोटिन्ह बिकट तन नगर चहुँ दिसि रच्छहीं।
कहुँ महिष मानुष धेनु खर अज खल निसाचर भच्छहीं॥
एहि लागि तुलसीदास इन्ह की कथा कछु एक है कही।
रघुबीर सर तीरथ सरीरन्हि त्यागि गति पैहहिं सही॥३॥
॥दोहा 3॥
पुर रखवारे देखि बहु कपि मन कीन्ह बिचार।
अति लघु रूप धरों निसि नगर करौं पइसार॥
॥चौपाई 4॥
मसक समान रूप कपि धरी। लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी॥
नाम लंकिनी एक निसिचरी। सो कह चलेसि मोहि निंदरी॥
जानेहि नहीं मरमु सठ मोरा। मोर अहार जहाँ लगि चोरा॥
मुठिका एक महा कपि हनी। रुधिर बमत धरनीं ढनमनी॥
पुनि संभारि उठी सो लंका। जोरि पानि कर बिनय ससंका॥
जब रावनहि ब्रह्म बर दीन्हा। चलत बिरंच कहा मोहि चीन्हा॥
बिकल होसि तैं कपि कें मारे। तब जानेसु निसिचर संघारे॥
तात मोर अति पुन्य बहूता। देखेउँ नयन राम कर दूता॥
॥दोहा 4॥
तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग।
तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग॥
॥चौपाई 5॥
प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कोसलपुर राजा॥
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई॥
गरुड़ सुमेरु रेनु सम ताही। राम कृपा करि चितवा जाही॥
अति लघु रूप धरेउ हनुमाना। पैठा नगर सुमिरि भगवाना॥
मंदिर मंदिर प्रति करि सोधा। देखे जहँ तहँ अगनित जोधा॥
गयउ दसानन मंदिर माहीं। अति बिचित्र कहि जात सो नाहीं॥
सयन किएँ देखा कपि तेही। मंदिर महुँ न दीखि बैदेही॥
भवन एक पुनि दीख सुहावा। हरि मंदिर तहँ भिन्न बनावा॥
॥दोहा 5॥
रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ।
नव तुलसिका बृंद तहँ देखि हरष कपिराई॥
॥चौपाई 6॥
लंका निसिचर निकर निवासा। इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा॥
मन महुँ तरक करैं कपि लागा। तेहीं समय बिभीषनु जागा॥
राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा। हृदयँ हरष कपि सज्जन चीन्हा॥
एहि सन सठि करिहउँ पहिचानी। साधु ते होइ न कारज हानी॥
बिप्र रूप धरि बचन सुनाए। सुनत बिभीषन उठि तहँ आए॥
करि प्रनाम पूँछी कुसलाई। बिप्र कहहु निज कथा बुझाई॥
की तुम्ह हरि दासन्ह महँ कोई। मोरें हृदय प्रीति अति होई॥
की तुम्ह रामु दीन अनुरागी। आयहु मोहि करन बड़भागी॥
॥दोहा 6॥
तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम।
सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्राम॥
(Sunderkand Lyrics in Hindi)
॥चौपाई 7॥
सुनहु पवनसुत रहनि हमारी। जिमि दसनन्हि महुँ जीभ बिचारी॥
तात कबहुँ मोहि जानि अनाथा। करिहहिं कृपा भानुकुल नाथा॥
तामस तनु कछु साधन नाहीं। प्रीत न पद सरोज मन माहीं॥
अब मोहि भा भरोस हनुमंता। बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता॥
जौं रघुबीर अनुग्रह कीन्हा। तौ तुम्ह मोहि दरसु हठि दीन्हा॥
सुनहु बिभीषन प्रभु कै रीती। करहिं सदा सेवक पर प्रीति॥
कहहु कवन मैं परम कुलीना। कपि चंचल सबहीं बिधि हीना॥
प्रात लेइ जो नाम हमारा। तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा॥
॥दोहा 7॥
अस मैं अधम सखा सुनु मोहू पर रघुबीर।
कीन्हीं कृपा सुमिरि गुन भरे बिलोचन नीर॥
॥चौपाई 8॥
जानतहूँ अस स्वामि बिसारी। फिरहिं ते काहे न होहिं दुखारी॥
एहि बिधि कहत राम गुन ग्रामा। पावा अनिर्बाच्य बिश्रामा॥
पुनि सब कथा बिभीषन कही। जेहि बिधि जनकसुता तहँ रही॥
तब हनुमंत कहा सुनु भ्राता। देखी चहउँ जानकी माता॥
जुगुति बिभीषन सकल सुनाई। चलेउ पवन सुत बिदा कराई॥
करि सोइ रूप गयउ पुनि तहवाँ। बन असोक सीता रह जहवाँ॥
देखि मनहि महुँ कीन्ह प्रनामा। बैठेहिं बीति जात निसि जामा॥
कृस तनु सीस जटा एक बेनी। जपति हृदयँ रघुपति गुन श्रेनी॥
॥दोहा 8॥
निज पद नयन दिएँ मन राम पद कमल लीन।
परम दुखी भा पवनसुत देखि जानकी दीन॥
॥चौपाई 9॥
तरु पल्लव महँ रहा लुकाई। करइ बिचार करौं का भाई॥
तेहि अवसर रावनु तहँ आवा। संग नारि बहु किएँ बनावा॥
बहु बिधि खल सीतहि समुझावा। साम दान भय भेद देखावा॥
कह रावनु सुनु सुमुखि सयानी। मंदोदरी आदि सब रानी॥
तव अनुचरीं करउँ पन मोरा। एक बार बिलोकु मम ओरा॥
तृन धरि ओट कहति बैदेही। सुमिरि अवधपति परम सनेही॥
सुनु दसमुख खद्योत प्रकासा। कबहुँ कि नलिनी करइ बिकासा॥
अस मन समुझु कहति जानकी। खल सुधि नहिं रघुबीर बान की॥
सठ सूनें हरि आनेहि मोही। अधम निलज्ज लाज नहिं तोही॥
॥दोहा 9॥
आपुहि सुनि खद्योत सम रामहि भानु समान।
परुष बचन सुनि काढ़ि असि बोला अति खिसिआन॥
॥चौपाई 10॥
सीता तैं मम कृत अपमाना।। कटिहउँ तव सिर कठिन कृपाना॥
नाहिं त सपदि मानु मम बानी। सुमुखि होति न त जीवन हानी॥
स्याम सरोज दाम सम सुंदर। प्रभु भुज करि कर सम दसकंधर॥
सो भुज कंठ कि तव असि घोरा। सुनु सठ अस प्रवान पन मोरा॥
चंद्रहास हरु मम परितापं। रघुपति बिरह अनल संजातं॥
सीतल निसित बहसि बर धारा। कह सीता हरु मम दुख भारा॥
सुनत बचन पुनि मारन धावा। मयतनयाँ कहि नीति बुझावा॥
कहेसि सकल निसिचरिन्ह बोलाई। सीतहि बहु बिधि त्रासहु जाई॥
मास दिवस महुँ कहा न माना। तौ मैं मारबि काढ़ि कृपाना॥
(Sunderkand Lyrics in Hindi)
॥दोहा 10॥
भवन गयउ दसकंधर इहाँ पिसाचिनि बृंद।
सीतहि त्रास देखावहिं धरहिं रूप बहु मंद॥
॥चौपाई 11॥
त्रिजटा नाम राच्छसी एका। राम चरन रति निपुन बिबेका॥
सबन्हौ बोलि सुनाएसि सपना। सीतहि सेइ करहु हित अपना॥
सपनें बानर लंका जारी। जातुधान सेना सब मारी॥
खर आरूढ़ नगन दससीसा। मुंडित सिर खंडित भुज बीसा॥
एहि बिधि सो दच्छिन दिसि जाई। लंका मनहुँ बिभीषन पाई॥
नगर फिरी रघुबीर दोहाई। तब प्रभु सीता बोलि पठाई॥
यह सपना मैं कहउँ पुकारी। होइहि सत्य गएँ दिन चारी॥
तासु बचन सुनि ते सब डरीं। जनकसुता के चरनन्हि परीं॥
॥दोहा 11॥
जहँ तहँ गईं सकल तब सीता कर मन सोच।
मास दिवस बीतें मोहि मारिहि निसिचर पोच॥
॥चौपाई 12॥
त्रिजटा सन बोलीं कर जोरी। मातु बिपति संगिनि तैं मोरी॥
तजौं देह करु बेगि उपाई। दुसह बिरहु अब नहिं सहि जाई॥
आनि काठ रचु चिता बनाई। मातु अनल पुनि देहि लगाई॥
सत्य करहि मम प्रीति सयानी। सुनै को श्रवन सूल सम बानी॥
सुनत बचन पद गहि समुझाएसि। प्रभु प्रताप बल सुजसु सुनाएसि॥
निसि न अनल मिल सुनु सुकुमारी। अस कहि सो निज भवन सिधारी॥
कह सीता बिधि भा प्रतिकूला। मिलिहि न पावक मिटिहि न सूला॥
देखिअत प्रगट गगन अंगारा। अवनि न आवत एकउ तारा॥
पावकमय ससि स्रवत न आगी। मानहुँ मोहि जानि हतभागी॥
सुनहि बिनय मम बिटप असोका। सत्य नाम करु हरु मम सोका॥
नूतन किसलय अनल समाना। देहि अगिनि जनि करहि निदाना॥
देखि परम बिरहाकुल सीता। सो छन कपिहि कलप सम बीता॥
॥सोरठा 12॥
कपि करि हृदयँ बिचार दीन्हि मुद्रिका डारि तब।
जनु असोक अंगार दीन्ह हरषि उठि कर गहेउ॥
॥चौपाई 13॥
तब देखी मुद्रिका मनोहर। राम नाम अंकित अति सुंदर॥
चकित चितव मुदरी पहिचानी। हरष बिषाद हृदयँ अकुलानी॥
जीति को सकइ अजय रघुराई। माया तें असि रचि नहिं जाई॥
सीता मन बिचार कर नाना। मधुर बचन बोलेउ हनुमाना॥
रामचंद्र गुन बरनैं लागा। सुनतहिं सीता कर दुख भागा॥
लागीं सुनैं श्रवन मन लाई। आदिहु तें सब कथा सुनाई॥
श्रवनामृत जेहिं कथा सुहाई। कही सो प्रगट होति किन भाई॥
तब हनुमंत निकट चलि गयऊ। फिरि बैठीं मन बिसमय भयऊ॥
राम दूत मैं मातु जानकी। सत्य सपथ करुनानिधान की॥
यह मुद्रिका मातु मैं आनी। दीन्हि राम तुम्ह कहँ सहिदानी॥
नर बानरहि संग कहु कैसें। कही कथा भइ संगति जैसें॥
(Sunderkand Lyrics in Hindi)
॥दोहा 13॥
कपि के बचन सप्रेम सुनि उपजा मन बिस्वास।
जाना मन क्रम बचन यह कृपासिंधु कर दास॥
॥चौपाई 14॥
हरिजन जानि प्रीति अति गाढ़ी। सजल नयन पुलकावलि बाढ़ी॥
बूड़त बिरह जलधि हनुमाना। भयहु तात मो कहुँ जलजाना॥
अब कहु कुसल जाउँ बलिहारी। अनुज सहित सुख भवन खरारी॥
कोमलचित कृपाल रघुराई। कपि केहि हेतु धरी निठुराई॥
सहज बानि सेवक सुखदायक। कबहुँक सुरति करत रघुनायक॥
कबहुँ नयन मम सीतल ताता। होइहहिं निरखि स्याम मृदु गाता॥
बचनु न आव नयन भरे बारी। अहह नाथ हौं निपट बिसारी॥
देखि परम बिरहाकुल सीता। बोला कपि मृदु बचन बिनीता॥
मातु कुसल प्रभु अनुज समेता। तव दुख दुखी सुकृपा निकेता॥
जनि जननी मानह जियँ ऊना। तुम्ह ते प्रेमु राम कें दूना॥
॥दोहा 14॥
रघुपति कर संदेसु अब सुनु जननी धरि धीर।
अस कहि कपि गदगद भयउ भरे बिलोचन नीर॥
॥चौपाई 15॥
कहेउ राम बियोग तव सीता। मो कहुँ सकल भए बिपरीता॥
नव तरु किसलय मनहुँ कृसानू। कालनिसा सम निसि ससि भानू॥
कुबलय बिपिन कुंत बन सरिसा। बारिद तपत तेल जनु बरिसा॥
जे हित रहे करत तेइ पीरा। उरग स्वास सम त्रिबिध समीरा॥
कहेहू तें कछु दुख घटि होई। काहि कहौं यह जान न कोई॥
तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा। जानत प्रिया एकु मनु मोरा॥
सो मनु सदा रहत तोहि पाहीं। जानु प्रीति रसु एतनेहि माहीं॥
प्रभु संदेसु सुनत बैदेही। मगन प्रेम तन सुधि नहिं तेही॥
कह कपि हृदयँ धीर धरु माता। सुमिरु राम सेवक सुखदाता॥
उर आनहु रघुपति प्रभुताई। सुनि मम बचन तजहु कदराई॥
॥दोहा 15॥
निसिचर निकर पतंग सम रघुपति बान कृसानु।
जननी हृदयँ धीर धरु जरे निसाचर जानु॥
॥चौपाई 16॥
जौं रघुबीर होति सुधि पाई। करते नहिं बिलंबु रघुराई॥
राम बान रबि उएँ जानकी। तम बरुथ कहँ जातुधान की॥
अबहिं मातु मैं जाउँ लवाई। प्रभु आयुस नहिं राम दोहाई॥
कछुक दिवस जननी धरु धीरा। कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा॥
निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं। तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं॥
हैं सुत कपि सब तुम्हहि समाना। जातुधान अति भट बलवाना॥
मोरें हृदय परम संदेहा। सुनि कपि प्रगट कीन्हि निज देहा॥
कनक भूधराकार सरीरा। समर भयंकर अतिबल बीरा॥
सीता मन भरोस तब भयऊ। पुनि लघु रूप पवनसुत लयऊ॥
॥दोहा 16॥
सुनु माता साखामृग नहिं बल बुद्धि बिसाल।
प्रभु प्रताप तें गरुड़हि खाइ परम लघु ब्याल॥
॥चौपाई 17॥
मन संतोष सुनत कपि बानी। भगति प्रताप तेज बल सानी॥
आसिष दीन्हि राम प्रिय जाना। होहु तात बल सील निधाना॥
अजर अमर गुननिधि सुत होहू। करहुँ बहुत रघुनायक छोहू॥
करहुँ कृपा प्रभु अस सुनि काना। निर्भर प्रेम मगन हनुमाना॥
बार बार नाएसि पद सीसा। बोला बचन जोरि कर कीसा॥
अब कृतकृत्य भयउँ मैं माता। आसिष तव अमोघ बिख्याता॥
सुनहु मातु मोहि अतिसय भूखा। लागि देखि सुंदर फल रूखा॥
सुनु सुत करहिं बिपिन रखवारी। परम सुभट रजनीचर भारी॥
तिन्ह कर भय माता मोहि नाहीं। जौं तुम्ह सुख मानहु मन माहीं॥
॥दोहा 17॥
देखि बुद्धि बल निपुन कपि कहेउ जानकीं जाहु।
रघुपति चरन हृदयँ धरि तात मधुर फल खाहु॥
॥चौपाई 18॥
चलेउ नाइ सिरु पैठेउ बागा। फल खाएसि तरु तोरैं लागा॥
रहे तहाँ बहु भट रखवारे। कछु मारेसि कछु जाइ पुकारे॥
नाथ एक आवा कपि भारी। तेहिं असोक बाटिका उजारी॥
खाएसि फल अरु बिटप उपारे। रच्छक मर्दि मर्दि महि डारे॥
सुनि रावन पठए भट नाना। तिन्हहि देखि गर्जेउ हनुमाना॥
सब रजनीचर कपि संघारे। गए पुकारत कछु अधमारे॥
पुनि पठयउ तेहिं अच्छकुमारा। चला संग लै सुभट अपारा॥
आवत देखि बिटप गहि तर्जा। ताहि निपाति महाधुनि गर्जा॥
॥दोहा 18॥
कछु मारेसि कछु मर्देसि कछु मिलएसि धरि धूरि।
कछु पुनि जाइ पुकारे प्रभु मर्कट बल भूरि॥
॥चौपाई 19॥
सुनि सुत बध लंकेस रिसाना। पठएसि मेघनाद बलवाना॥
मारसि जनि सुत बाँधेसु ताही। देखिअ कपिहि कहाँ कर आही॥
चला इंद्रजित अतुलित जोधा। बंधु निधन सुनि उपजा क्रोधा॥
कपि देखा दारुन भट आवा। कटकटाइ गर्जा अरु धावा॥
अति बिसाल तरु एक उपारा। बिरथ कीन्ह लंकेस कुमारा॥
रहे महाभट ताके संगा। गहि गहि कपि मर्दई निज अंगा॥
तिन्हहि निपाति ताहि सन बाजा। भिरे जुगल मानहुँ गजराजा॥
मुठिका मारि चढ़ा तरु जाई। ताहि एक छन मुरुछा आई॥
उठि बहोरि कीन्हिसि बहु माया। जीति न जाइ प्रभंजन जाया॥
॥दोहा 19॥
ब्रह्म अस्त्र तेहि साँधा कपि मन कीन्ह बिचार।
जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार॥
॥चौपाई 20॥
ब्रह्मबान कपि कहुँ तेहिं मारा। परतिहुँ बार कटकु संघारा॥
तेहिं देखा कपि मुरुछित भयऊ। नागपास बाँधेसि लै गयऊ॥
जासु नाम जपि सुनहु भवानी। भव बंधन काटहिं नर ग्यानी॥
तासु दूत कि बंध तरु आवा। प्रभु कारज लगि कपिहिं बँधावा॥
कपि बंधन सुनि निसिचर धाए। कौतुक लागि सभाँ सब आए॥
दसमुख सभा दीखि कपि जाई। कहि न जाइ कछु अति प्रभुताई॥
कर जोरें सुर दिसिप बिनीता। भृकुटि बिलोकत सकल सभीता॥
देखि प्रताप न कपि मन संका। जिमि अहिगन महुँ गरुड़ असंका॥
॥दोहा 20॥
कपिहि बिलोकि दसानन बिहसा कहि दुर्बाद।
सुत बध सुरति कीन्हि पुनि उपजा हृदयँ बिसाद॥
॥चौपाई 21॥
कह लंकेस कवन तैं कीसा। केहि कें बल घालेहि बन खीसा॥
की धौं श्रवन सुनेहि नहिं मोही। देखउँ अति असंक सठ तोही॥
मारे निसिचर केहिं अपराधा। कहु सठ तोहि न प्रान कइ बाधा॥
सुनु रावन ब्रह्मांड निकाया। पाइ जासु बल बिरचति माया॥
जाकें बल बिरंचि हरि ईसा। पालत सृजत हरत दससीसा॥
जा बल सीस धरत सहसानन। अंडकोस समेत गिरि कानन॥
धरइ जो बिबिध देह सुरत्राता। तुम्ह से सठन्ह सिखावनु दाता॥
हर कोदंड कठिन जेहिं भंजा। तेहि समेत नृप दल मद गंजा॥
खर दूषन त्रिसिरा अरु बाली। बधे सकल अतुलित बलसाली॥
॥दोहा 21॥
जाके बल लवलेस तें जितेहु चराचर झारि।
तास दूत मैं जा करि हरि आनेहु प्रिय नारि॥
॥चौपाई 22॥
जानउँ मैं तुम्हारि प्रभुताई। सहसबाहु सन परी लराई॥
समर बालि सन करि जसु पावा। सुनि कपि बचन बिहसि बिहरावा॥
खायउँ फल प्रभु लागी भूँखा। कपि सुभाव तें तोरेउँ रूखा॥
सब कें देह परम प्रिय स्वामी। मारहिं मोहि कुमारग गामी॥
जिन्ह मोहि मारा ते मैं मारे। तेहि पर बाँधेउँ तनयँ तुम्हारे॥
मोहि न कछु बाँधे कइ लाजा। कीन्ह चहउँ निज प्रभु कर काजा॥
बिनती करउँ जोरि कर रावन। सुनहु मान तजि मोर सिखावन॥
देखहु तुम्ह निज कुलहि बिचारी। भ्रम तजि भजहु भगत भय हारी॥
जाकें डर अति काल डेराई। जो सुर असुर चराचर खाई॥
तासों बयरु कबहुँ नहिं कीजै। मोरे कहें जानकी दीजै॥
॥दोहा 22॥
प्रनतपाल रघुनायक करुना सिंधु खरारि।
गएँ सरन प्रभु राखिहैं तव अपराध बिसारि॥
॥चौपाई 23॥
राम चरन पंकज उर धरहू। लंका अचल राजु तुम्ह करहू॥
रिषि पुलस्ति जसु बिमल मयंका। तेहि ससि महुँ जनि होहु कलंका॥
राम नाम बिनु गिरा न सोहा। देखु बिचारि त्यागि मद मोहा॥
बसन हीन नहिं सोह सुरारी। सब भूषन भूषित बर नारी॥
राम बिमुख संपति प्रभुताई। जाइ रही पाई बिनु पाई॥
सजल मूल जिन्ह सरितन्ह नाहीं। बरषि गएँ पुनि तबहिं सुखाहीं॥
सुनु दसकंठ कहउँ पन रोपी। बिमुख राम त्राता नहिं कोपी॥
संकर सहस बिष्नु अज तोही। सकहिं न राखि राम कर द्रोही॥
॥दोहा 23॥
मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान।
भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान॥
॥चौपाई 24॥
जदपि कही कपि अति हित बानी। भगति बिबेक बिरति नय सानी॥
बोला बिहसि महा अभिमानी। मिला हमहि कपि गुर बड़ ग्यानी॥
मृत्यु निकट आई खल तोही। लागेसि अधम सिखावन मोही॥
उलटा होइहि कह हनुमाना। मतिभ्रम तोर प्रगट मैं जाना॥
सुनि कपि बचन बहुत खिसिआना। बेगि न हरहु मूढ़ कर प्राना॥
सुनत निसाचर मारन धाए। सचिवन्ह सहित बिभीषनु आए॥
नाइ सीस करि बिनय बहूता। नीति बिरोध न मारिअ दूता॥
आन दंड कछु करिअ गोसाँई। सबहीं कहा मंत्र भल भाई॥
सुनत बिहसि बोला दसकंधर। अंग भंग करि पठइअ बंदर॥
॥दोहा 24॥
कपि कें ममता पूँछ पर सबहि कहउँ समुझाइ।
तेल बोरि पट बाँधि पुनि पावक देहु लगाइ॥
॥चौपाई 25॥
पूँछहीन बानर तहँ जाइहि। तब सठ निज नाथहि लइ आइहि॥
जिन्ह कै कीन्हिसि बहुत बड़ाई। देखउ मैं तिन्ह कै प्रभुताई॥
बचन सुनत कपि मन मुसुकाना। भइ सहाय सारद मैं जाना॥
जातुधान सुनि रावन बचना। लागे रचैं मूढ़ सोइ रचना॥
रहा न नगर बसन घृत तेला। बाढ़ी पूँछ कीन्ह कपि खेला॥
कौतुक कहँ आए पुरबासी। मारहिं चरन करहिं बहु हाँसी॥
बाजहिं ढोल देहिं सब तारी। नगर फेरि पुनि पूँछ प्रजारी॥
पावक जरत देखि हनुमंता। भयउ परम लघुरूप तुरंता॥
निबुकि चढ़ेउ कप कनक अटारीं। भईं सभीत निसाचर नारीं॥
॥दोहा 25॥
हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।
अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास॥
॥चौपाई 26॥
देह बिसाल परम हरुआई। मंदिर तें मंदिर चढ़ धाई॥
जरइ नगर भा लोग बिहाला। झपट लपट बहु कोटि कराला॥
तात मातु हा सुनिअ पुकारा। एहिं अवसर को हमहि उबारा॥
हम जो कहा यह कपि नहिं होई। बानर रूप धरें सुर कोई॥
साधु अवग्या कर फलु ऐसा। जरइ नगर अनाथ कर जैसा॥
जारा नगरु निमिष एक माहीं। एक बिभीषन कर गृह नाहीं॥
ताकर दूत अनल जेहिं सिरिजा। जरा न सो तेहि कारन गिरिजा॥
उलटि पलटि लंका सब जारी। कूदि परा पुनि सिंधु मझारी॥
॥दोहा 26॥
पूँछ बुझाइ खोइ श्रम धरि लघु रूप बहोरि।
जनकसुता कें आगें ठाढ़ भयउ कर जोरि॥
सारे संकट हर लेते हैं बजरंग बली, यहां पढ़ें- “हनुमान चालीसा”
॥चौपाई 27॥
मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा। जैसें रघुनायक मोहि दीन्हा॥
चूड़ामनि उतारि तब दयऊ। हरष समेत पवनसुत लयऊ॥
कहेहु तात अस मोर प्रनामा। सब प्रकार प्रभु पूरनकामा॥
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ सम संकट भारी॥
तात सक्रसुत कथा सनाएहु। बान प्रताप प्रभुहि समुझाएहु॥
मास दिवस महुँ नाथु न आवा। तौ पुनि मोहि जिअत नहिं पावा॥
कहु कपि केहि बिधि राखौं प्राना। तुम्हहू तात कहत अब जाना॥
तोहि देखि सीतलि भइ छाती। पुनि मो कहुँ सोइ दिनु सो राती॥
॥दोहा 27॥
जनकसुतहि समुझाइ करि बहु बिधि धीरजु दीन्ह।
चरन कमल सिरु नाइ कपि गवनु राम पहिं कीन्ह॥
॥चौपाई 28॥
चलत महाधुनि गर्जेसि भारी। गर्भ स्रवहिं सुनि निसिचर नारी॥
नाघि सिंधु एहि पारहि आवा। सबद किलिकिला कपिन्ह सुनावा॥
हरषे सब बिलोकि हनुमाना। नूतन जन्म कपिन्ह तब जाना॥
मुख प्रसन्न तन तेज बिराजा। कीन्हेसि रामचंद्र कर काजा॥
मिले सकल अति भए सुखारी। तलफत मीन पाव जिमि बारी॥
चले हरषि रघुनायक पासा। पूँछत कहत नवल इतिहासा॥
तब मधुबन भीतर सब आए। अंगद संमत मधु फल खाए॥
रखवारे जब बरजन लागे। मुष्टि प्रहार हनत सब भागे॥
॥दोहा 28॥
जाइ पुकारे ते सब बन उजार जुबराज।
सुनि सुग्रीव हरष कपि करि आए प्रभु काज॥
॥चौपाई 29॥
जौं न होति सीता सुधि पाई। मधुबन के फल सकहिं कि काई॥
एहि बिधि मन बिचार कर राजा। आइ गए कपि सहित समाजा॥
आइ सबन्हि नावा पद सीसा। मिलेउ सबन्हि अति प्रेम कपीसा॥
पूँछी कुसल कुसल पद देखी। राम कृपाँ भा काजु बिसेषी॥
नाथ काजु कीन्हेउ हनुमाना। राखे सकल कपिन्ह के प्राना॥
सुनि सुग्रीव बहुरि तेहि मिलेऊ। कपिन्ह सहित रघुपति पहिं चलेऊ॥
राम कपिन्ह जब आवत देखा। किएँ काजु मन हरष बिसेषा॥
फटिक सिला बैठे द्वौ भाई। परे सकल कपि चरनन्हि जाई॥
॥दोहा 29॥
प्रीति सहित सब भेंटे रघुपति करुना पुंज।
पूछी कुसल नाथ अब कुसल देखि पद कंज॥
॥चौपाई 30॥
जामवंत कह सुनु रघुराया। जा पर नाथ करहु तुम्ह दाया॥
ताहि सदा सुभ कुसल निरंतर। सुर नर मुनि प्रसन्न ता ऊपर॥
सोइ बिजई बिनई गुन सागर। तासु सुजसु त्रैलोक उजागर॥
प्रभु कीं कृपा भयउ सबु काजू। जन्म हमार सुफल भा आजू॥
नाथ पवनसुत कीन्हि जो करनी। सहसहुँ मुख न जाइ सो बरनी॥
पवनतनय के चरित सुहाए। जामवंत रघुपतिहि सुनाए॥
सुनत कृपानिधि मन अति भाए। पुनि हनुमान हरषि हियँ लाए॥
कहहु तात केहि भाँति जानकी। रहति करति रच्छा स्वप्रान की॥
॥दोहा 30॥
नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट॥
॥चौपाई 31॥
चलत मोहि चूड़ामनि दीन्हीं। रघुपति हृदयँ लाइ सोइ लीन्ही॥
नाथ जुगल लोचन भरि बारी। बचन कहे कछु जनककुमारी॥
अनुज समेत गहेहु प्रभु चरना। दीन बंधु प्रनतारति हरना॥
मन क्रम बचन चरन अनुरागी। केहिं अपराध नाथ हौं त्यागी॥
अवगुन एक मोर मैं माना। बिछुरत प्रान न कीन्ह पयाना॥
नाथ सो नयनन्हि को अपराधा। निसरत प्रान करहिं हठि बाधा॥
बिरह अगिनि तनु तूल समीरा। स्वास जरइ छन माहिं सरीरा॥
नयन स्रवहिं जलु निज हित लागी। जरैं न पाव देह बिरहागी॥
सीता कै अति बिपति बिसाला। बिनहिं कहें भलि दीनदयाला॥
॥दोहा 31॥
निमिष निमिष करुनानिधि जाहिं कलप सम बीति।
बेगि चलिअ प्रभु आनिअ भुज बल खल दल जीति॥
॥चौपाई 32॥
सुनि सीता दुख प्रभु सुख अयना। भरि आए जल राजिव नयना॥
बचन कायँ मन मम गति जाही। सपनेहुँ बूझिअ बिपति कि ताही॥
कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई। जब तव सुमिरन भजन न होई॥
केतिक बात प्रभु जातुधान की। रिपुहि जीति आनिबी जानकी॥
सुनु कपि तोहि समान उपकारी। नहिं कोउ सुर नर मुनि तनुधारी॥
प्रति उपकार करौं का तोरा। सनमुख होइ न सकत मन मोरा॥
सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं। देखेउँ करि बिचार मन माहीं॥
पुनि पुनि कपिहि चितव सुरत्राता। लोचन नीर पुलक अति गाता॥
॥दोहा 32॥
सुनि प्रभु बचन बिलोकि मुख गात हरषि हनुमंत।
चरन परेउ प्रेमाकुल त्राहि त्राहि भगवंत॥
॥चौपाई॥
बार बार प्रभु चहइ उठावा। प्रेम मगन तेहि उठब न भावा॥
प्रभु कर पंकज कपि कें सीसा। सुमिरि सो दसा मगन गौरीसा॥
सावधान मन करि पुनि संकर। लागे कहन कथा अति सुंदर॥
कपि उठाई प्रभु हृदयँ लगावा। कर गहि परम निकट बैठावा॥
कहु कपि रावन पालित लंका। केहि बिधि दहेउ दुर्ग अति बंका॥
प्रभु प्रसन्न जाना हनुमाना। बोला बचन बिगत अभिमाना॥
साखामग कै बड़ि मनुसाई। साखा तें साखा पर जाई॥
नाघि सिंधु हाटकपुर जारा। निसिचर गन बधि बिपिन उजारा॥
सो सब तव प्रताप रघुराई। नाथ न कछू मोरि प्रभुताई॥
॥दोहा 33॥
ता कहुँ प्रभु कछु अगम नहिं जा पर तुम्ह अनुकूल।
तव प्रभावँ बड़वानलहि जारि सकइ खलु तूल॥
॥चौपाई 33॥
नाथ भगति अति सुखदायनी। देहु कृपा करि अनपायनी॥
सुनि प्रभु परम सरल कपि बानी। एवमस्तु तब कहेउ भवानी॥
उमा राम सुभाउ जेहिं जाना। ताहि भजनु तजि भाव न आना॥
यह संबाद जासु उर आवा। रघुपति चरन भगति सोइ पावा॥
सुनि प्रभु बचन कहहिं कपि बृंदा। जय जय जय कृपाल सुखकंदा॥
तब रघुपति कपिपतिहि बोलावा। कहा चलैं कर करहु बनावा॥
अब बिलंबु केह कारन कीजे। तुरंत कपिन्ह कहँ आयसु दीजे॥
कौतुक देखि सुमन बहु बरषी। नभ तें भवन चले सुर हरषी॥
॥दोहा 34॥
कपिपति बेगि बोलाए आए जूथप जूथ।
नाना बरन अतुल बल बानर भालु बरूथ॥
॥चौपाई 34॥
प्रभु पद पंकज नावहिं सीसा। गर्जहिं भालु महाबल कीसा॥
देखी राम सकल कपि सेना। चितइ कृपा करि राजिव नैना॥
राम कृपा बल पाइ कपिंदा। भए पच्छजुत मनहुँ गिरिंदा॥
हरषि राम तब कीन्ह पयाना। सगुन भए सुंदर सुभ नाना॥
जासु सकल मंगलमय कीती। तासु पयान सगुन यह नीती॥
प्रभु पयान जाना बैदेहीं। फरकि बाम अँग जनु कहि देहीं॥
जोइ जोइ सगुन जानकिहि होई। असगुन भयउ रावनहिं सोई॥
चला कटकु को बरनैं पारा। गर्जहिं बानर भालु अपारा॥
नख आयुध गिरि पादपधारी। चले गगन महि इच्छाचारी॥
केहरिनाद भालु कपि करहीं। डगमगाहिं दिग्गज चिक्करहीं॥
॥छन्द 2॥
चिक्करहिं दिग्गज डोल महि गिरि लोल सागर खरभरे।
मन हरष सभ गंधर्ब सुर मुनि नाग किंनर दुख टरे॥
कटकटहिं मर्कट बिकट भट बहु कोटि कोटिन्ह धावहीं।
जय राम प्रबल प्रताप कोसलनाथ गुन गन गावहीं॥१॥
सहि सक न भार उदार अहिपति बार बारहिं मोहई।
गह दसन पुनि पुनि कमठ पृष्ठ कठोर सो किमि सोहई॥
रघुबीर रुचिर प्रयान प्रस्थिति जानि परम सुहावनी।
जनु कमठ खर्पर सर्पराज सो लिखत अबिचल पावनी॥२॥
॥दोहा 35॥
एहि बिधि जाइ कृपानिधि उतरे सागर तीर।
जहँ तहँ लागे खान फल भालु बिपुल कपि बीर॥
॥चौपाई 35॥
उहाँ निसाचर रहहिं ससंका। जब तें जारि गयउ कपि लंका॥
निज निज गृहँ सब करहिं बिचारा। नहिं निसिचर कुल केर उबारा॥
जासु दूत बल बरनि न जाई। तेहि आएँ पुर कवन भलाई॥
दूतिन्ह सन सुनि पुरजन बानी। मंदोदरी अधिक अकुलानी॥
रहसि जोरि कर पति पग लागी। बोली बचन नीति रस पागी॥
कंत करष हरि सन परिहरहू। मोर कहा अति हित हियँ धरहू॥
समुझत जासु दूत कइ करनी। स्रवहिं गर्भ रजनीचर घरनी॥
तासु नारि निज सचिव बोलाई। पठवहु कंत जो चहहु भलाई॥
तव कुल कमल बिपिन दुखदाई। सीता सीत निसा सम आई॥
सुनहु नाथ सीता बिनु दीन्हें। हित न तुम्हार संभु अज कीन्हें॥
॥दोहा 36॥
राम बान अहि गन सरिस निकर निसाचर भेक।
जब लगि ग्रसत न तब लगि जतनु करहु तजि टेक॥
॥चौपाई 36॥
श्रवन सुनी सठ ता करि बानी। बिहसा जगत बिदित अभिमानी॥
सभय सुभाउ नारि कर साचा। मंगल महुँ भय मन अति काचा॥
जौं आवइ मर्कट कटकाई। जिअहिं बिचारे निसिचर खाई॥
कंपहिं लोकप जाकीं त्रासा। तासु नारि सभीत बड़ि हासा॥
अस कहि बिहसि ताहि उर लाई। चलेउ सभाँ ममता अधिकाई॥
फमंदोदरी हृदयँ कर चिंता। भयउ कंत पर बिधि बिपरीता॥
बैठेउ सभाँ खबरि असि पाई। सिंधु पार सेना सब आई॥
बूझेसि सचिव उचित मत कहहू। ते सब हँसे मष्ट करि रहहू॥
जितेहु सुरासुर तब श्रम नाहीं। नर बानर केहि लेखे माहीं॥
॥दोहा 37॥
सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस।
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास॥
॥चौपाई 37॥
सोइ रावन कहुँ बनी सहाई। अस्तुति करहिं सुनाइ सुनाई॥
अवसर जानि बिभीषनु आवा। भ्राता चरन सीसु तेहिं नावा॥
पुनि सिरु नाइ बैठ निज आसन। बोला बचन पाइ अनुसासन॥
जौ कृपाल पूँछिहु मोहि बाता। मति अनुरूप कहउँ हित ताता॥
जो आपन चाहै कल्याना। सुजसु सुमति सुभ गति सुख नाना॥
सो परनारि लिलार गोसाईं। तजउ चउथि के चंद कि नाईं॥
चौदह भुवन एक पति होई। भूत द्रोह तिष्टइ नहिं सोई॥
गुन सागर नागर नर जोऊ। अलप लोभ भल कहइ न कोऊ॥
॥दोहा 38॥
काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ।
सब परिहरि रघुबीरहि भजहु भजहिं जेहि संत॥
॥चौपाई 38॥
तात राम नहिं नर भूपाला। भुवनेस्वर कालहु कर काला॥
ब्रह्म अनामय अज भगवंता। ब्यापक अजित अनादि अनंता॥
गो द्विज धेनु देव हितकारी। कृपा सिंधु मानुष तनुधारी॥
जन रंजन भंजन खल ब्राता। बेद धर्म रच्छक सुनु भ्राता॥
ताहि बयरु तजि नाइअ माथा। प्रनतारति भंजन रघुनाथा॥
देहु नाथ प्रभु कहुँ बैदेही। भजहु राम बिनु हेतु सनेही॥
सरन गएँ प्रभु ताहु न त्यागा। बिस्व द्रोह कृत अघ जेहि लागा॥
जासु नाम त्रय ताप नसावन। सोइ प्रभु प्रगट समुझु जियँ रावन॥
॥दोहा 39॥
बार बार पद लागउँ बिनय करउँ दससीस।
परिहरि मान मोह मद भजहु कोसलाधीस॥(क)॥
मुनि पुलस्ति निज सिष्य सन कहि पठई यह बात।
तुरत सो मैं प्रभु सन कही पाइ सुअवसरु तात॥(ख)॥
॥चौपाई 39॥
माल्यवंत अति सचिव सयाना। तासु बचन सुनि अति सुख माना॥
तात अनुज तव नीति बिभूषन। सो उर धरहु जो कहत बिभीषन॥
रिपु उतकरष कहत सठ दोऊ। दूरि न करहु इहाँ हइ कोऊ॥
माल्यवंत गह गयउ बहोरी। कहइ बिभीषनु पुनि कर जोरी॥
सुमति कुमति सब कें उर रहहीं। नाथ पुरान निगम अस कहहीं॥
जहाँ सुमति तहँ संपति नाना। जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना॥
तव उर कुमति बसी बिपरीता। हित अनहित मानहु रिपु प्रीता॥
कालराति निसिचर कुल केरी। तेहि सीता पर प्रीति घनेरी॥
॥दोहा 40॥
तात चरन गहि मागउँ राखहु मोर दुलार।
सीता देहु राम कहुँ अहित न होइ तुम्हारा॥
॥चौपाई 40॥
बुध पुरान श्रुति संमत बानी। कही बिभीषन नीति बखानी॥
सुनत दसानन उठा रिसाई। खल तोहिं निकट मृत्यु अब आई॥
जिअसि सदा सठ मोर जिआवा। रिपु कर पच्छ मूढ़ तोहि भावा॥
कहसि न खल अस को जग माहीं। भुज बल जाहि जिता मैं नाहीं॥
मम पुर बसि तपसिन्ह पर प्रीती। सठ मिलु जाइ तिन्हहि कहु नीती॥
अस कहि कीन्हेसि चरन प्रहारा। अनुज गहे पद बारहिं बारा॥
उमा संत कइ इहइ बड़ाई। मंद करत जो करइ भलाई॥
तुम्ह पितु सरिस भलेहिं मोहि मारा। रामु भजें हित नाथ तुम्हारा॥
सचिव संग लै नभ पथ गयऊ। सबहि सुनाइ कहत अस भयऊ॥
॥दोहा 41॥
रामु सत्यसंकल्प प्रभु सभा कालबस तोरि।
मैं रघुबीर सरन अब जाउँ देहु जनि खोरि॥
॥चौपाई 41॥
अस कहि चला बिभीषनु जबहीं। आयू हीन भए सब तबहीं॥
साधु अवग्या तुरत भवानी। कर कल्यान अखिल कै हानी॥
रावन जबहिं बिभीषन त्यागा। भयउ बिभव बिनु तबहिं अभागा॥
चलेउ हरषि रघुनायक पाहीं। करत मनोरथ बहु मन माहीं॥
देखिहउँ जाइ चरन जलजाता। अरुन मृदुल सेवक सुखदाता॥
जे पद परसि तरी रिषनारी। दंडक कानन पावनकारी॥
जे पद जनकसुताँ उर लाए। कपट कुरंग संग धर धाए॥
हर उर सर सरोज पद जेई। अहोभाग्य मैं देखिहउँ तेई॥
॥दोहा 42॥
जिन्ह पायन्ह के पादुकन्हि भरतु रहे मन लाइ।
ते पद आजु बिलोकिहउँ इन्ह नयनन्हि अब जाइ॥
॥चौपाई 42॥
ऐहि बिधि करत सप्रेम बिचारा। आयउ सपदि सिंदु एहिं पारा॥
कपिन्ह बिभीषनु आवत देखा। जाना कोउ रिपु दूत बिसेषा॥
ताहि राखि कपीस पहिं आए। समाचार सब ताहि सुनाए॥
कह सुग्रीव सुनहु रघुराई। आवा मिलन दसानन भाई॥
कह प्रभु सखा बूझिए काहा। कहइ कपीस सुनहु नरनाहा॥
जानि न जाइ निसाचर माया। कामरूप केहि कारन आया॥
भेद हमार लेन सठ आवा। राखिअ बाँधि मोहि अस भावा॥
सखा नीति तुम्ह नीकि बिचारी। मम पन सरनागत भयहारी॥
सुनि प्रभु बचन हरष हनुमाना। सरनागत बच्छल भगवाना॥
॥दोहा 43॥
सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि।
ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकत हानि॥
॥चौपाई 43॥
कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू। आएँ सरन तजउँ नहिं ताहू॥
सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं। जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं॥
पापवंत कर सहज सुभाऊ। भजनु मोर तेहि भाव न काऊ॥
जौं पै दुष्ट हृदय सोइ होई। मोरें सनमुख आव कि सोई॥
निर्मल मन जन सो मोहि पावा। मोहि कपट छल छिद्र न भावा॥
भेद लेन पठवा दससीसा। तबहुँ न कछु भय हानि कपीसा॥
जग महुँ सखा निसाचर जेते। लछिमनु हनइ निमिष महुँ तेते॥
जौं सभीत आवा सरनाईं। रखिहउँ ताहि प्रान की नाईं॥
॥दोहा 44॥
उभय भाँति तेहि आनहु हँसि कह कृपानिकेत।
जय कृपाल कहि कपि चले अंगद हनू समेत॥
॥चौपाई 44॥
सादर तेहि आगें करि बानर। चले जहाँ रघुपति करुनाकर॥
दूरिहि ते देखे द्वौ भ्राता। नयनानंद दान के दाता॥
बहुरि राम छबिधाम बिलोकी। रहेउ ठटुकि एकटक पल रोकी॥
भुज प्रलंब कंजारुन लोचन। स्यामल गात प्रनत भय मोचन॥
सघ कंध आयत उर सोहा। आनन अमित मदन मन मोहा॥
नयन नीर पुलकित अति गाता। मन धरि धीर कही मृदु बाता॥
नाथ दसानन कर मैं भ्राता। निसिचर बंस जनम सुरत्राता॥
सहज पापप्रिय तामस देहा। जथा उलूकहि तम पर नेहा॥
॥दोहा 45॥
श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर।
त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर॥
॥चौपाई 45॥
अस कहि करत दंडवत देखा। तुरत उठे प्रभु हरष बिसेषा॥
दीन बचन सुनि प्रभु मन भावा। भुज बिसाल गहि हृदयँ लगावा॥
अनुज सहित मिलि ढिग बैठारी। बोले बचन भगत भय हारी॥
कहु लंकेस सहित परिवारा। कुसल कुठाहर बास तुम्हारा॥
खल मंडली बसहु दिनु राती। सखा धरम निबहइ केहि भाँती॥
मैं जानउँ तुम्हारि सब रीती। अति नय निपुन न भाव अनीती॥
बरु भल बास नरक कर ताता। दुष्ट संग जनि देइ बिधाता॥
अब पद देखि कुसल रघुराया। जौं तुम्ह कीन्हि जानि जन दाया॥
॥दोहा 46॥
तब लगि कुसल न जीव कहुँ सपनेहुँ मन बिश्राम।
जब लगि भजत न राम कहुँ सोक धाम तजि काम॥
॥चौपाई 46॥
तब लगि हृदयँ बसत खल नाना। लोभ मोह मच्छर मद माना॥
जब लगि उर न बसत रघुनाथा। धरें चाप सायक कटि भाथा॥
ममता तरुन तमी अँधिआरी। राग द्वेष उलूक सुखकारी॥
तब लगि बसति जीव मन माहीं। जब लगि प्रभु प्रताप रबि नाहीं॥
अब मैं कुसल मिटे भय भारे। देखि राम पद कमल तुम्हारे॥
तुम्ह कृपाल जा पर अनुकूला। ताहि न ब्याप त्रिबिध भव सूला॥
मैं निसिचर अति अधम सुभाऊ। सुभ आचरनु कीन्ह नहिं काऊ॥
जासु रूप मुनि ध्यान न आवा। तेहिं प्रभु हरषि हृदयँ मोहि लावा॥
॥दोहा 47॥
अहोभाग्य मम अमित अति राम कृपा सुख पुंज।
देखेउँ नयन बिरंचि सिव सेब्य जुगल पद कंज॥
॥चौपाई 47॥
सुनहु सखा निज कहउँ सुभाऊ। जान भुसुंडि संभु गिरिजाऊ॥
जौं नर होइ चराचर द्रोही। आवै सभय सरन तकि मोही॥
तजि मद मोह कपट छल नाना। करउँ सद्य तेहि साधु समाना॥
जननी जनक बंधु सुत दारा। तनु धनु भवन सुहृद परिवारा॥
सब कै ममता ताग बटोरी। मम पद मनहि बाँध बरि डोरी॥
समदरसी इच्छा कछु नाहीं। हरष सोक भय नहिं मन माहीं॥
अस सज्जन मम उर बस कैसें। लोभी हृदयँ बसइ धनु जैसें॥
तुम्ह सारिखे संत प्रिय मोरें। धरउँ देह नहिं आन निहोरें॥
॥दोहा 48॥
सगुन उपासक परहित निरत नीति दृढ़ नेम।
ते नर प्रान समान मम जिन्ह कें द्विज पद प्रेम॥
॥चौपाई 48॥
सुनु लंकेस सकल गुन तोरें। तातें तुम्ह अतिसय प्रिय मोरें॥
राम बचन सुनि बानर जूथा। सकल कहहिं जय कृपा बरूथा॥
सुनत बिभीषनु प्रभु कै बानी। नहिं अघात श्रवनामृत जानी॥
पद अंबुज गहि बारहिं बारा। हृदयँ समात न प्रेमु अपारा॥
सुनहु देव सचराचर स्वामी। प्रनतपाल उर अंतरजामी॥
उर कछु प्रथम बासना रही। प्रभु पद प्रीति सरित सो बही॥
अब कृपाल निज भगति पावनी। देहु सदा सिव मन भावनी॥
एवमस्तु कहि प्रभु रनधीरा। मागा तुरत सिंधु कर नीरा॥
दपि सखा तव इच्छा नहीं। मोर दरसु अमोघ जग माहीं॥
अस कहि राम तिलक तेहि सारा। सुमन बृष्टि नभ भई अपारा॥
॥दोहा 49॥
रावन क्रोध अनल निज स्वास समीर प्रचंड।
जरत बिभीषनु राखेउ दीन्हेउ राजु अखंड॥(क)॥
जो संपति सिव रावनहि दीन्हि दिएँ दस माथ।
सोइ संपदा बिभीषनहि सकुचि दीन्हि रघुनाथ॥(ख)॥
॥चौपाई 49॥
अस प्रभु छाड़ि भजहिं जे आना। ते नर पसु बिनु पूँछ बिषाना॥
निज जन जानि ताहि अपनावा। प्रभु सुभाव कपि कुल मन भावा॥
पुनि सर्बग्य सर्ब उर बासी। सर्बरूप सब रहित उदासी॥
बोले बचन नीति प्रतिपालक। कारन मनुज दनुज कुल घालक॥
सुनु कपीस लंकापति बीरा। केहि बिधि तरिअ जलधि गंभीरा॥
संकुल मकर उरग झष जाती। अति अगाध दुस्तर सब भाँति॥
कह लंकेस सुनहु रघुनायक। कोटि सिंधु सोषक तव सायक॥
जद्यपि तदपि नीति असि गाई। बिनय करिअ सागर सन जाई॥
॥दोहा 50॥
प्रभु तुम्हार कुलगुर जलधि कहिहि उपाय बिचारि।
बिनु प्रयास सागर तरिहि सकल भालु कपि धारि॥
॥चौपाई 50॥
सखा कही तुम्ह नीति उपाई। करिअ दैव जौं होइ सहाई॥
मंत्र न यह लछिमन मन भावा। राम बचन सुनि अति दुख पावा॥
नाथ दैव कर कवन भरोसा। सोषिअ सिंधु करिअ मन रोसा॥
कादर मन कहुँ एक अधारा। दैव दैव आलसी पुकारा॥
सुनत बिहसि बोले रघुबीरा। ऐसेहिं करब धरहु मन धीरा॥
अस कहि प्रभु अनुजहि समुझाई। सिंधु समीप गए रघुराई॥
प्रथम प्रनाम कीन्ह सिरु नाई। बैठे पुनि तट दर्भ डसाई॥
जबहिं बिभीषन प्रभु पहिं आए। पाछें रावन दूत पठाए॥
॥दोहा 51॥
सकल चरित तिन्ह देखे धरें कपट कपि देह।
प्रभु गुन हृदयँ सराहहिं सरनागत पर नेह॥
॥चौपाई 51॥
प्रगट बखानहिं राम सुभाऊ। अति सप्रेम गा बिसरि दुराऊ॥
रिपु के दूत कपिन्ह तब जाने। सकल बाँधि कपीस पहिं आने॥
कह सुग्रीव सुनहु सब बानर। अंग भंग करि पठवहु निसिचर॥
सुनि सुग्रीव बचन कपि धाए। बाँधि कटक चहु पास फिराए॥
बहु प्रकार मारन कपि लागे। दीन पुकारत तदपि न त्यागे॥
जो हमार हर नासा काना। तेहि कोसलाधीस कै आना॥
सुनि लछिमन सब निकट बोलाए। दया लागि हँसि तुरत छोड़ाए॥
रावन कर दीजहु यह पाती। लछिमन बचन बाचु कुलघाती॥
॥दोहा 52॥
कहेहु मुखागर मूढ़ सन मम संदेसु उदार।
सीता देइ मिलहु न त आवा कालु तुम्हार॥
॥चौपाई 52॥
तुरत नाइ लछिमन पद माथा। चले दूत बरनत गुन गाथा॥
कहत राम जसु लंकाँ आए। रावन चरन सीस तिन्ह नाए॥
बिहसि दसानन पूँछी बाता। कहसि न सुक आपनि कुसलाता॥
पुन कहु खबरि बिभीषन केरी। जाहि मृत्यु आई अति नेरी॥
करत राज लंका सठ त्यागी। होइहि जव कर कीट अभागी॥
पुनि कहु भालु कीस कटकाई। कठिन काल प्रेरित चलि आई॥
जिन्ह के जीवन कर रखवारा। भयउ मृदुल चित सिंधु बिचारा॥
कहु तपसिन्ह कै बात बहोरी। जिन्ह के हृदयँ त्रास अति मोरी॥
॥दोहा 53॥
की भइ भेंट कि फिरि गए श्रवन सुजसु सुनि मोर।
कहसि न रिपु दल तेज बल बहुत चकित चित तोर॥
॥चौपाई 53॥
नाथ कृपा करि पूँछेहु जैसें। मानहु कहा क्रोध तजि तैसें॥
मिला जाइ जब अनुज तुम्हारा। जातहिं राम तिलक तेहि सारा॥
रावन दूत हमहि सुनि काना। कपिन्ह बाँधि दीन्हें दुख नाना॥
श्रवन नासिका काटैं लागे। राम सपथ दीन्हें हम त्यागे॥
पूँछिहु नाथ राम कटकाई। बदन कोटि सत बरनि न जाई॥
नाना बरन भालु कपि धारी। बिकटानन बिसाल भयकारी॥
जेहिं पुर दहेउ हतेउ सुत तोरा। सकल कपिन्ह महँ तेहि बलु थोरा॥
अमित नाम भट कठिन कराला। अमित नाग बल बिपुल बिसाला॥
॥दोहा 54॥
द्विबिद मयंद नील नल अंगद गद बिकटासि।
दधिमुख केहरि निसठ सठ जामवंत बलरासि॥
॥चौपाई 54॥
ए कपि सब सुग्रीव समाना। इन्ह सम कोटिन्ह गनइ को नाना॥
राम कृपाँ अतुलित बल तिन्हहीं। तृन समान त्रैलोकहि गनहीं॥
अस मैं सुना श्रवन दसकंधर। पदुम अठारह जूथप बंदर॥
नाथ कटक महँ सो कपि नाहीं। जो न तुम्हहि जीतै रन माहीं॥
परम क्रोध मीजहिं सब हाथा। आयसु पै न देहिं रघुनाथा॥
सोषहिं सिंधु सहित झष ब्याला। पूरहिं न त भरि कुधर बिसाला॥
मर्दि गर्द मिलवहिं दससीसा। ऐसेइ बचन कहहिं सब कीसा॥
गर्जहिं तर्जहिं सहज असंका। मानहुँ ग्रसन चहत हहिं लंका॥
॥दोहा 55॥
सहज सूर कपि भालु सब पुनि सिर पर प्रभु राम।
रावन काल कोटि कहुँ जीति सकहिं संग्राम॥
॥चौपाई 55॥
राम तेज बल बुधि बिपुलाई। सेष सहस सत सकहिं न गाई॥
सक सर एक सोषि सत सागर। तव भ्रातहि पूँछेउ नय नागर॥
तासु बचन सुनि सागर पाहीं। मागत पंथ कृपा मन माहीं॥
सुनत बचन बिहसा दससीसा। जौं असि मति सहाय कृत कीसा॥
सहज भीरु कर बचन दृढ़ाई। सागर सन ठानी मचलाई॥
मूढ़ मृषा का करसि बड़ाई। रिपु बल बुद्धि थाह मैं पाई॥
सचिव सभीत बिभीषन जाकें। बिजय बिभूति कहाँ जग ताकें॥
सुनि खल बचन दूत रिस बाढ़ी। समय बिचारि पत्रिका काढ़ी॥
रामानुज दीन्हीं यह पाती। नाथ बचाइ जुड़ावहु छाती॥
बिहसि बाम कर लीन्हीं रावन। सचिव बोलि सठ लाग बचावन॥
॥दोहा 56॥
बातन्ह मनहि रिझाइ सठ जनि घालसि कुल खीस।
राम बिरोध न उबरसि सरन बिष्नु अज ईस॥(क)॥
की तजि मान अनुज इव प्रभु पद पंकज भृंग।
होहि कि राम सरानल खल कुल सहित पतंग॥(ख)॥
॥चौपाई 56॥
सुनत सभय मन मुख मुसुकाई। कहत दसानन सबहि सुनाई॥
भूमि परा कर गहत अकासा। लघु तापस कर बाग बिलासा॥
कह सुक नाथ सत्य सब बानी। समुझहु छाड़ि प्रकृति अभिमानी॥
सुनहु बचन मम परिहरि क्रोधा। नाथ राम सन तजहु बिरोधा॥
अति कोमल रघुबीर सुभाऊ। जद्यपि अखिल लोक कर राऊ॥
मिलत कृपा तुम्ह पर प्रभु करिही। उर अपराध न एकउ धरिही॥
जनकसुता रघुनाथहि दीजे। एतना कहा मोर प्रभु कीजे॥
जब तेहिं कहा देन बैदेही। चरन प्रहार कीन्ह सठ तेही॥
नाइ चरन सिरु चला सो तहाँ। कृपासिंधु रघुनायक जहाँ॥
करि प्रनामु निज कथा सुनाई। राम कृपाँ आपनि गति पाई॥
रिषि अगस्ति कीं साप भवानी। राछस भयउ रहा मुनि ग्यानी॥
बंदि राम पद बारहिं बारा। मुनि निज आश्रम कहुँ पगु धारा॥
॥दोहा 57॥
बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति।
बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति॥
॥चौपाई 57॥
लछिमन बान सरासन आनू। सोषौं बारिधि बिसिख कृसानु॥
सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीति। सहज कृपन सन सुंदर नीति॥
ममता रत सन ग्यान कहानी। अति लोभी सन बिरति बखानी॥
क्रोधिहि सम कामिहि हरिकथा। ऊसर बीज बएँ फल जथा॥
अस कहि रघुपति चाप चढ़ावा। यह मत लछिमन के मन भावा॥
संधानेउ प्रभु बिसिख कराला। उठी उदधि उर अंतर ज्वाला॥
मकर उरग झष गन अकुलाने। जरत जंतु जलनिधि जब जाने॥
कनक थार भरि मनि गन नाना। बिप्र रूप आयउ तजि माना॥
॥दोहा 58॥
काटेहिं पइ कदरी फरइ कोटि जतन कोउ सींच।
बिनय न मान खगेस सुनु डाटेहिं पइ नव नीच॥
॥चौपाई 58॥
सभय सिंधु गहि पद प्रभु केरे। छमहु नाथ सब अवगुन मेरे॥
गगन समीर अनल जल धरनी। इन्ह कइ नाथ सहज जड़ करनी॥
तव प्रेरित मायाँ उपजाए। सृष्टि हेतु सब ग्रंथनि गाए॥
प्रभु आयसु जेहि कहँ जस अहई। सो तेहि भाँति रहें सुख लहई॥
प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं॥
ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी॥
प्रभु प्रताप मैं जाब सुखाई। उतरिहि कटकु न मोरि बड़ाई॥
प्रभु अग्या अपेल श्रुति गाई। करौं सो बेगि जो तुम्हहि सोहाई॥
॥दोहा 59॥
सुनत बिनीत बचन अति कह कृपाल मुसुकाइ।
जेहि बिधि उतरै कपि कटकु तात सो कहहु उपाइ॥
॥चौपाई 59॥
नाथ नील नल कपि द्वौ भाई। लरिकाईं रिषि आसिष पाई॥
तिन्ह कें परस किएँ गिरि भारे। तरिहहिं जलधि प्रताप तुम्हारे॥
मैं पुनि उर धरि प्रभु प्रभुताई। करिहउँ बल अनुमान सहाई॥
एहि बिधि नाथ पयोधि बँधाइअ। जेहिं यह सुजसु लोक तिहुँ गाइअ॥
एहि सर मम उत्तर तट बासी। हतहु नाथ खल नर अघ रासी॥
सुनि कृपाल सागर मन पीरा। तुरतहिं हरी राम रनधीरा॥
देखि राम बल पौरुष भारी। हरषि पयोनिधि भयउ सुखारी॥
सकल चरित कहि प्रभुहि सुनावा। चरन बंदि पाथोधि सिधावा॥
॥छन्द 3॥
निज भवन गवनेउ सिंधु श्रीरघुपतिहि यह मत भायऊ।
यह चरित कलि मल हर जथामति दास तुलसी गायऊ॥
सुख भवन संसय समन दवन बिषाद रघुपति गुन गना।
तजि सकल आस भरोस गावहि सुनहि संतत सठ मना॥
॥दोहा 60॥
सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान।
सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान॥
इति सुन्दरकाण्ड समाप्त
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Shri Sunderkand Lyrics in English
॥ Shalok ॥
Shaantan shaashvatamaprameyamanaghan nirvaanashaantipradan.
Brahmaashambhuphaneendrasevyamanishan vedaantavedyan vibhum.
Raamaakhyan jagadeeshvaran suragurun maayaamanushyan harin.
Vandehan karunaakaran raghuvaran bhoopaalachoodaamanim ॥1॥
Naanya sprha raghupate hrdayesmadeeye.
Satyan vadaami ch bhavaanakhilaantaraatma.
Bhaktin prayachchh raghupungav nirbharaan me.
Kaamaadidosharahitan kuru maanasan ch ॥2॥
Atulitabaladhaaman hemashailaabhadehan.
Danujavanakrshaanun gyaaninaamagraganyam.
Sakalagunanidhaanan vaanaraanaamadheeshan.
॥ Chopai ॥
Jaamavant ke bachan suhae. suni hanumant hrday ati bhae.
Tab lagi mohi parikhehu tumh bhaee. sahi dukh kand mool phal khaee.
Jab lagi aavaun seetahi dekhee. hoihi kaaju mohi harash biseshee.
Yah kahi nai sabanhi kahun maatha. chaleu harashi hiyan dhari raghunaatha.
Sindhu teer ek bhoodhar sundar. kautuk koodi chadheu ta oopar.
Baar-baar raghubeer sanbhaaree. tarakeu pavanatanay bal bhaaree.
Jehin giri charan dei hanumanta. chaleu so ga paataal turanta.
Jimi amogh raghupati kar baana. ehee bhaanti chaleu hanumaana.
Jalanidhi raghupati doot bichaaree. tain mainaak hohi shram haaree.
॥ Doha – 1 ॥
Hanumaan tehi parasa kar puni keenh pranaam ।
Raam kaaju keenhe binu mohi kahaa bishraam ॥
॥Chopai॥
Jaat pavansut devanh dekha । Jaanai kahu bal buddhi bisesha ॥
Surasa naam ahinh kai maata । Pathainhi aai kahi tehi baata ॥
Aaju suranh mohi deenh ahaara । Sunat bachan kah pavankumaara ॥
Raam kaaju kari phiri mai aavau । Sita kai sudhi prabhuhi sunaavau ॥
Tab tav badan paithihau aai । Satya kahau mohi jaan de maai ॥
Kavanehu jatan dei nahi jaana । Grasai na mohi kaheu Hanumaana॥
Jojan bhari tehi badanu pasaara । Kapi tanu keenh dugun Bistaaraa॥
Sorah jojan mukh tehi thayau । Turat pavan sut battis bhayau ॥
Jas jas surasa badanu badhaava । Taasu doon kapi roop dekhaava ॥
Sat jojan tehi aanan keenha । Ati laghu roop pavanasut leenha ॥
Badan paithi puni baaher aava । Maaga bida taahi siru naava ॥
Mohi suranh jehi laagi pathaava । Buddhi bal maramu tor mai paava॥
॥ Doha – 2 ॥
Raam kaaju sabu karihahu tumh bal buddhi nidhaan।
Aasish dei gai so harashi chaleu Hanumaan ॥
॥Chopai॥
Nisichari ek sindhu mahu rahai ।Kari maaya nabhu ke khag gahai॥
Jeev jantu je gagan udaahi ।Jal biloki tinh kai parichhahi ॥
Gahai chhah sak so na udaai ।Ehi bidhi sada gaganchar khaai ॥
Soi chhal Hanumaan kah keenha।Taasu kapatu kapi turatahi cheena॥
Taahi maari maarut sut beera।Baaridhi paar gayau matidheera॥
Taha jaai dekhi ban sobha।Gunjat chanchareek madhu lobha॥
Naana taru phal phool suhaae।Khag mrug brund dekhi man bhaae॥
Sail bisaal dekhi ek aage । Taa par dhaai chadheu bhay tyaage ॥
Uma na kachhu kapi kai adhikaai । Prabhu prataap jo kaalahi khaai ॥
Giri par chadhi Lanka tehi dekhi। Kahi na jaai ati durg biseshi ॥
Ati utang jalanidhi chahu paasa।
Kanak kot kar param prakaasa॥
॥ Chhand ॥
Kanak kot bichitra mani । Krut sundaraayatana Ghana॥
Chauhatt hatt subatt beethee Chaaru pur bahu bidhi bana॥
Gaj baaji khachchar nikar Padchar rath baroothanhi ko ganai।
Bahuroop nisichar jooth atibal Sen baranat nahin banai ॥1॥
Ban bag ujpaban baatika। Sar koop baapee sohahi॥
Nar naag sur gandharb kanya। Roop muni man mohahee॥
Kahu maal deh bisaal sai l Samaan atibal garjahi॥
Naana akhaarenh bhirhi bahubidhi Ek ekanh tarjahee ॥ 2॥
Kari jatan bhat kotinh bikat Tan nagar chahu disi rachchhahee॥
Kahu mahish maanush dhenu khar Ajakhal nishaachar bhachchhahi॥
Ehi laagi Tulasidaas inh kee Katha kachhu ek hai kahee ।
Raghubeer sar teerath sareeranhi Tyaagi gati paihahi sahee॥
॥ Doha – 3 ॥
Pur rakhavaare dekhi bahu kapi man keenh bichaar।
Ati laghu roop dharau nisi nagar karau paisaar ॥
॥Chopai॥
Masak samaan roop kapi charee । Lankahi chaleu sumiri naraharee॥
Naam Lankinee ek nisicharee । So kah chalesi mohi nindaree ॥
Jaanehi nahee maramu sath mora। Mor ahar jahaa lagi chora ॥
Muthika ek maha kapi hanee । Rudhir bamat dharanee dhanamanee ॥
Puni sambhari uthee so Lanka । Jori paani kar binay sasanka ॥
Jab Ravanahi brahm bar deenha । Chalat biranchi kaha mohi cheenha ॥
Bikal hosi tai kapi ke mare । Tab jaanesu nisichar sanghare ॥
Taat mor ati punya bahoota । Dekheu nayan Raam kar doota ॥
॥ Doha – 4 ॥
Taat swarg apabarg sukh dharia tula ek ang ।
Tool na taahi sakal mili jo such lav satsang ॥
॥Chopai॥
Prabisi nagar keeje sab kaaja । Hriday rakhi kosalapur raja ॥
Garal sudha ripu karahi mitaai । Gopad sindhu anal sitalaai ॥
Garud sumeru renu sam taahi । Raam krupa kari chitava jaahi ॥
Ati laghu roop dhareu Hamumaana । Paitha ngar sumiri bhagawana ॥
Mandir mandir prati kari sodha । Dekhe jah tah aganit jodha ॥
Gayau dasaanan mandir maahee । Ati bichitra kahi jaat so naahee ॥
Sayan kie dekha kapi tehee । Mandir mahu na deekhi baidehee ॥
Bhavan ek puni deekh suhaava । Hari mandir tah bhinna banaava ॥
॥ Doha – 5 ॥
Raamaayudh ankit gruh sobha barani na jaai ।
Nav tulsika brund tah dekhi harash kapiraai॥
॥Chopai॥
Lanka nisichar nikar nivaasa । Iha kaha sajjan kar baasa ॥
Man mahu tarak karai kapi laaga । Tehi samay ।Bibheeshanu jaaga ॥
Raam raam tehi sumiran keenha । Hriday harash kapi sajjan cheenha ॥
Ehi san hathi karihau pahichaanee ।
Saadhu te hoi na kaaraj haanee ॥
Bipra roop dhari bachan sunaae । Sunat Bibheeshan uthi tah aae ॥
Kari pranaam poonchee kusalaai । Bipra kahahu nij katha buzaai ॥
Kee tumh hari daasanh mah koi । More hriday preeti ati hoi ॥
Kee tumh raamu deen anuraagee । Aayahu mohi karan badbhaagee ॥
॥ Doha – 6 ॥
Tab Hanumant kahee sab Raam katha nij naam ।
Sunat jugal tan pulak man magan sumiri gun graam॥
॥Chopai॥
Sunahu pavansut rahani hamaaree । Jimi dasananhi mahu jeebh bichaaree ॥
Taat kabahu mohi jaani anaatha । Karihahi krupa bhaanukul naatha ॥
Taamas tanu kachu saadhan naahee ।
Preeti na pad saroj man maahee ॥
Ab mohi bha bharos Hanumanta ।
Binu harikrupa milahi nahi santa ॥
Jau Rabhubeer anugrah keenha । Tau tumh mohi darasu hathi deenha ॥
Sunahu Bibheeshan prabhu kai reetee । Karahi sada sevak par preetee ॥
Kahahu kavan mai param kuleena । Kapi chanchal sabahee bidhi heena ॥
Praat lei jo naam hamaara । Tehi din taahi na milai ahaara ॥
॥ Doha – 7 ॥
As mai adham sakha sunu mohu par Rabhubeer ।
Keenhee krupa sumiri gun bhare bilochan neer ॥
॥Chopai॥
Jaanatahoo as swami bisaaree ।
Phirhi te kaahe na hohi dukharee ॥
Ehi bidhi kahat Raam gun graama ।
Paava anirbachya bishraama ॥
Puni sab katha Bibheeshan kahi ।
Jehi bidhi Janakasuta tah rahee ॥
Tab Hanumant kaha sunu bhraata ।
Dekhi chahau Jaanaki Maata ॥
Juguti Bibheeshan sakal sunaai । Chaleu pavansut bida karaai ॥
Kari soi roop gayau puni tahava ।
Ban Asok Sita rah jahava ॥
Dekhi manahi mahu keenh pranaama । Baithehi beeti jaat nisi jaama ॥
Krus tanu sees jata ek benee ।
Japati hraday Raghupati gun shrenee ॥
॥ Doha – 8 ॥
Nij pad nayan die man Raam pad kamal leen ।
Param dukhee bha pavansut dekhi Jaanakee deen ॥
॥Chopai॥
Taru pallav mahu rahaa lukaai ।
Karai bichaar karau kaa bhai ॥
Tehi avasar Raavanu tah aava । Sang naari bahu kie banaava ॥
Bahu bidhi khal Sitahi samuzaava । Saam daam bhay bhed dekhaava ॥
Kah Ravanu sunu sumukhi sayaanee । Mandodari aadi sab raanee ॥
Tav anucharee karau pan mora । Ek baar bilku mam ora ॥
Trun dhari ot kahati baidehee । Sumiri avadhapati param sanehe ॥
Sunu dasamukh khadyot prakasa । Kabahu ki nalinee karai bikaasa ॥
As man samuzu kahati Jaanakee । Khal sudhi nahi Rabhubeer baan kee ॥
Sath soone hari aanehi mohee । Adham nilajj laaj nahi tohee ॥
॥ Doha – 9 ॥
Aapuhi suni khadyot sam Ramahi bhaanu samaan ।
Parush bachan suni kaadhi asi bola ati khisiaan ॥
॥Chopai॥
Sita tai mam krut apamaanaa ।
Katihau tav sir kathin krupaanaa ॥
Naahi ta sapadi maanu mam baanee ।
Sumukhi hoti na ta jeevan haanee ॥
Syaam saroj daam sam sundar ।
Prabhu bhuj kari kar sam dasakandhar ॥
So bhuj kanth ki tav asi ghora ।
Sunu sath as pravaan pan mora ॥
Chandrahaas haru mam paritaapam ।
Rathupati birah anal sanjaatam ॥
Sital nisit bahasi bar dhaara ।
Kah Sita haru mam dukh bhaara ॥
Sunat bachan puni maaran dhaava । Mayatanaya kahi neeti buzaava ॥
Kahsi sakal nisicharanhi bolaai । Sitahi bahu bidhi traasahu jaai ॥
Maas divas mahu kahaa na maana । Tau mai maarabi kaadhi krupaana ॥
॥ Doha – 10 ॥
Bhavan gayau daskandhar iha pisaachini brund ।
Sitahi traas dekhaavahi dharahi roop bahu mand॥
॥Chopai॥
Trijata naam rachchhasi eka। Raam charan rati nipun bibeka॥
Sabanhau boli sunaaesi sapana । Sitahi sei karahu hit apana ॥
Sapane baanar Lanka jaari । Jaatudhaan sena sab maaree॥
Khar aarudh nagan dasaseesa। Mundit sir khandit bhuj beesa॥
Ehi bidhi so dachchhin disi jaai। Lanka manahu Bibheeshan paai॥
Nagar phiri Rabhubeer dohaai। Tab prabhu Sita boli pathaai॥
Yah sapana mai kahau pukaaree। Hoihi satya gae din chaaree॥
Taasu bachan suni te sab daree। Janaksuta ke charananhi paree॥
॥ Doha – 11 ॥
Jah tah gai sakal tab Sita kar man soch।
Maas divas beete mohi maarihi nisichar poch॥
॥Chopai॥
Trijata san bolee kar joree । Maatu bipati sangini tai more ॥
Tajau deh karu begi upaai। Dusah birahu ab nahi sahi jaai॥
Aani kaath rachu chita banaai । Maatu anal puni dehi lagaai॥
Satya karahi mam preeti sayaanee । Sunai ko Shravan sool sam baanee ॥
Sunat bachan pad gahi samuzaaesi। Prabhu prataap bal sujasu sunaaesi॥
Nisi na anal mil sunu sukumaaree। As kah so nij bhavan sidhaaree॥
Kah Sita bidhi bha pratikula। Milihi na paavak mitihi na soola॥
Dekhiat pragat gagan angaara। Avani na aavat ekau taara॥
Paavakmay sasi sravat na aagee। Maanahu mohi jaani hatabhaagee॥
Sunahi binay mam bitap asoka। Satya naam karu haru mam soka॥
Nootan kisalay anal samaana। Dehi agini jani karahi nidaana॥
Dekhi param birahaakul sita। So chhan kapihi kalap sam beeta॥
॥ Doha – 12 ॥
Kapi kari hriday bichaar deenhi mudrika daari tab।
Janu asok angaar deenh harashi uthi kar gaheu॥
॥Chopai॥
Tab dekhee mudrika manohar । Raam naam ankit ati sundar ॥
Chakit chitav mudaree pahichanee ।
Harash bishaad hriday akulaanee॥
Jeeti ko sakai ajay Raghuraai।
Maaya te asi rachi nahi jaai॥
Sita man bichaar kar nana।
Madhur bachan boleu Hanumaana॥
Raamchandra gun baranai laaga। Sunatahi Sita kar bukh bhaaga॥
Laagee sunai shravan man laai। Aadihu te sab katha sunaai॥
Shravanaamrut jehi katha suhaai। Kahi so pragat hoti kin bhaai॥
Tab Hunamant nikat chali gayau। Phiri baithee man bisamay bhayau॥
Raam doot mai maatu Jaanakee। Satya sapath karunaanidhaan kee ॥
Yah mudrika maatu mai aanee। Deenhi Raam tumh kah sahidaanee॥
Nar baanarahi sang kahu kaise।
Kahi katha bhai sangati jaise॥
॥ Doha – 13 ॥
Kapi ke bachan saprem suni upaja man biswaas।
Jaana man kram bachan yah krupaasindhu kar daas॥
॥Chopai॥
Harijan jaani preeti ati gaadhee।
Sajal nayan pulakaavali baadhee॥
Budat birah jaladhi Hanumaana।
Bhayahu taat mo kahu jalajaana॥
Ab kahu kusal jaau balihaaree।
Anuj sahit such bhavan kharaaree॥
Komalchit krupaal Raghuraai। Kapi kehi hetu dharee nithuraai॥
Sahaj baani sevak sukhdaayak।
Kabahuk surati karat Raghunaayak॥
Kabahu nayan mam Sital taata।
Hoihahi nirakhi syaam mrudu gaata॥
Bachanu na aav nayan bhare baaree। Ahah naath hau nipat bisaree॥
Dekhi param birahaakul Sita। Bola kapi mrudu bachan bineeta॥
Maatu kusal prabhu anuj sameta। Tav dukh dukhi sukrupa niketa॥
Jani jananee maanahu jiy oona। Tumh te premu raam ke doona॥
॥ Doha – 14 ॥
Raghupati kar sandesu ab sunu jananee dhari dheer।
As kahi kapi gadagad bhayau bhare bilochan neer॥
॥Chopai॥
Kaheu Raam biyog tav Sita। Mo kahu sakal bhae bipareeta॥
Nav taru kisalay manahu krusaanu। Kaalanisa sam nisi sasi bhaanoo॥
Kubalay bipin kunt ban sarisa। Baarid tapat tel janu barisa॥
Je hit rahe karat tei peera। Urag swaas sam tribidh sameera॥
Kahehoo te kachoo dukh ghati hoi। Kaahi kahau yah jaan na koi॥
Tatva prem kar mam aru tora। Jaant priya eku manu mora॥
So manu sada rahat tohi paahee। Jaanu preeti rasu etanehi maahee॥
Prabhu sandesu sunat baidehee। Magan prem tan sudhi nahi tehee॥
Kah kapi hriday dheer dharu maata। Sumiru Raam sevak sukhdaata॥
Ur aanahu Raghupati prabhutaai। Sun imam bachan tajahu kadaraai॥
॥Doha – 15 ॥
Nisichar nikar patang sam Raghupati baan krusanu।
Jananee hriday dheer dharu jare nisaachar jaanu॥
॥Chopai॥
Jau Raghubeer hoti sudhi paai।
Karate nahi bilambu Raghuraai॥
Raam baan rabi ue Jaanakee।
Tam barooth kah jaatudhaan kee॥
Abahi maatu mai jaau lavaai।
Prabhu aayasu nahi Raam dohaai॥
Kachhuk divas jananee dharu dheera।
Kapinh sahit aihahi Rabhubeera॥
Nisichar maari tohi lai jaihahi।
Tihu pur Naaradaadi jasu gaihahi॥
Hai sut kapi sab tumhahi samaana।
Jatudhaan ati bhat balawaana॥
More hriday param sandeha।
Suni kapi pragat keenhi nij deha॥
Kanak bhudharaakaar sareera।
Samar bhayankar atibal beera॥
Sita man bharos tab bhayaoo। Puni laghu roop pavanasut layaoo॥
॥ Doha – 16 ॥
Sunu maata saakhaamrug nahi bal buddhi bisaal।
Prabhu prataap te garudahi khaai param laghu byaal॥
॥Chopai॥
Man santosh sunat kapi baanee। Bhagati prataap tej bal saanee॥
Aashish deenhi raampriy jaana। Hohu taat bal seel nidhaana॥
Ajar amar gunanidhi sut hohu। Karahu bahut Raghunaayak chhohoo॥
Karahu krupa prabhu as suni kaana। Nirbhar prem magan Hanumaana॥
Baar baar naaesi pad seesa। Bola bachan jori kar keesa॥
Ab krutkrutya bhayau mai maata। Aasish tav amogh bikhyaata॥
Sunahu maatu mohi atisay bhookha। Laagi dekhi sundar phal rookha॥
Sunu sut karahi bipin rakhawaaree। Param subhat rajaneechar bhaaree॥
Tinh kar bhay maata mohi naahee। Jau tumh such maanahu man maahee॥
॥ Doha – 17 ॥
Dekhi buddhi bal nipun kapi kaheu Jaankee jaahu।
Raghupati charan hriday dhari taat madhur phal khaahu॥
॥Chopai॥
Chaleu naai siru paitheu baaga। Phal khaaesi taru torai laaga॥
Rahe taha bahu bhat rakhawaare। Kachhu maaresi kachhu jaai pukaare॥
Naath ek aava kapi bhaaree । Tehi Asok baatika ujaaree॥
Khaaesi phal aru bitap upaare। Rachchhak mardi mardi mahi dare॥
Suni Raavan pathae bhat nana। Tinhahi dekhi garjeu Hanumaana॥
Sab rajanichar kapi sanghaare। Gae pukaarat kachhu adhamaare॥
Puni pathayau tehi achchhakumaara। Chala sang lai subhat apaara॥
Aavat dekhi bitap gahi tarja।
Taahi nipaati mahaadhuni garja॥
॥ Doha – 18 ॥
Kachhu maaresi kachhu mardesi kachhu milaesi dhari dhoori।
Kachu puni jaai pukaare prabhu markat bal bhori॥
॥Chopai॥
Suni sutabadh Lankes risaana।
Pathaesi Meghanaad balawaana॥
Maarasi jani sut baandhesu taahee।
Dekhia kapihi kahaa kar aahee॥
Chala Indrajit atulit jodha।
Bandhu nidhan suni upaja krodha॥
Kapi dekha daarun bhat aava।
Katakataai garja aru dhaava॥
Ati bisaal taru ek upaara।
Birath keenh Lankes kumara॥
Rahe mahaabhat taake sanga।
Gahi gahi kapi mardai nij anga॥
Tinhahi nipaati taahi san baaja।
Bhire jugal maanahu gajaraaja॥
Muthika maari chadha taru jaai। Taahi ek chhan muruchha aai॥
Uthi bahori keenhisi bahu maaya। Jeeti na jaai prabhanjan jaaya॥
॥ Doha – 19 ॥
Brahm astra tehi saandha kapi man keenh bichaar।
Jau na brahmasar maanau mahima mitai apaar॥
॥Chopai॥
Brahmabaan kapi kahu tehi maara।
Paratihu baar kataku sanghaara॥
Tehi dekha kapi muruchhit bhayau। Naagpaas baandhesi lai gayau॥
Jaasu naam japi sunahu bhavaanee।
Bhav bandhan kaatahi nar gyaanee॥
Taasu doot ki bandh taru aava। Prabhu kaaraj lagi kapihi bandhava॥
Kapibandhan suni nisichar dhaae। Kautuk laagi sabha sab aae॥
Dasamukh sabha deekhi kapi jaai। Kahi na jaai kachhu ati prabhutaai॥
Kar jore sur disip bineeta। Bhrukuti bilokat sakal sabheeta॥
Dekhi prataap na kapi man sanka।
Jimi ahigan mahu garud asanka॥
॥ Doha – 20 ॥
Kapihi biloki dasaanan bihasa kahi durbaad।
Sutabadh surati keenhi puni upaja hriday bishaad॥
॥Chopai॥
Kah Lankes kavan tai keesa।
Kehi ke bal ghalehi ban kheesa॥
Kee dhau Shravan sunehi nahi mohee।
Dekhau ati asank sath tohee॥
Maare nisichar kehi aparaadha।
Kahu sath tohi na praan kai baadha॥
Sunu Raavan brahmaand nikaaya।
Paai jaasu bal birachati maaya॥
Jaake bal biranchi hari isa। Paalat srujat harat dasaseesa॥
Jaa bal sees dharat sahasaanan। Andakos samet giri kaanan॥
Dharat jo bibidh deh suratraata। Tumh se sathanh sikhaavanu data॥
Har kodand kathin jehi bhanja। Tehi samet nrup dal mad ganja॥
Khar dushan trisira aru baalee। Badhe sakal atulit balasaalee॥
॥ Doha – 21 ॥
Jaake bal lavales te jitehu charaachar zaari।
Taasu doot mai jaa kari hari aanehu priy naari॥
॥Chopai॥
Jaanau mai tumhaari prabhutaai। Sahasabaahu san paree laraai॥
Samar baali san kari jasu paava। Suni kapi bachan bihasi biharaava॥
Khayau phal prabhu laagi bhookha।
Kapi subhaav te toreu rookha॥
Sab ke deh param priy swaamee।
Maarahi mohi kumaarag gaamee॥
Jinh mohi maara te mai mare।
Tehi par bandheu tanay tumhaare॥
Binati karau jori kar raavan।
Sunahu maan taji mor sikhaavan॥
Dekhahu tumh nij kulahi bichaaree।
Bhram taji bhajahu bhagat bhay haaree॥
Jaake dar ati kaal deraai।
Jo sur asur charaachar khaai॥
Taaso bayaru kabahu nahi keejai । More kahe Jaanakee deejay॥
॥ Doha – 22 ॥
Pranatapaal Raghunaayak karuna Sindhu kharaari।
Gae saran prabhu raakhihai tav aparaadh bisaari॥
॥Chopai॥
Raam charan Pankaj ur dharahoo।
Lanka achal raaju tumh karahoo॥
Rishi pulasti jasu bimal mayanka।
Tehi sasi mahu jani hohu kalanka॥
Raam naam binu gira na soha।
Dekhu bichari tyagi mad moha॥
Basan heen nahi soh suraree।
Sab bhushan bhushit bar naaree॥
Raam bimukh sampati prabhutaai । Jaai rahi paai binu paai ॥
Sajal mool jinh saritanh nahi । Barashi gae puni tabahi sukhahee ॥
Sunu dasakanth kahau pan ropee । Bimukh Raam traata nahi kopee ॥
Sankar sahas bishnu aj tohee । Sakahi na raakhi raam kar drohee ॥
॥ Doha – 23 ॥
Mohmool bahu sool prad tyagahu tam abhimaan।
Bhajahu Raam Raghunaayak krupa sindhu Bhagawaan ॥
॥Chopai॥
Jadapi kahee kapi ati hit baanee। Bhagati bibek birati nay saanee ॥
Bola bihasi maha abhimaanee। Mila hahahi kapi gur bad gyanee॥
Mrutyu nikat aai khal tohee। Laagesi adham sikhaavan mohee॥
Ulata hoihi kah Hanumaana। Matibhram tor pragat mai jaana॥
Suni kapi bachan bahut khisiaana। Begi na harahu moodh kar praana॥
Sunat nisaachar maaran dhaae। Sachivanh sahit Bibheeshanu aae॥
Naai sees kari binay bahoota। Neeti birodh na maaria doota॥
Aan dand kachhu karia gosaai। Sabahee kahaa mantra bhal bhai॥
Sunat bihasi bola daskandhar । Ang bhang kari pathaia Bandar ॥
॥ Doha – 24 ॥
kapi ke mamata poonch par sabahi kahau samuzaai।
Tel bori pat baandhi puni paavak dehu lagaai ॥
॥Chopai॥
Poonchh-heen baanar tah jaaehi। Tab sath nij naathhi lai aaihi ॥
Jinh kai keenhisi bahut badaai। Dekhu mai tinh kai prabhutaai ॥
Bachan sunat kapi man musukaana।
Bhai sahaay saarad mai jaana ॥
Jaatudhaan suni Raavan bachana।
Laage rachai moodh soi rachana॥
Raha na nagar basan ghrut tela।
Baadhee poonch keenh kapi khela॥
Kautik kah aae purbaasee।
Maarahi charan karahi bahu haasee॥
Baajahi dhol dehi sab taaree ।
Nagar pheri puni poonch prajaaree॥
Paavak jaat dekhi Hanumanta। Bhayau param lafghuroop turanta॥
Nibuki chadheu kapi kanak ataaree । Bhai sabheet nisaachar naaree ॥
॥ Doha – 25 ॥
Hari prerit tehi avasar chale marut unachaas।
Attahaas kari garja kapi badhi laag akaas॥
॥Chopai॥
Deh bisaal param haruaai।
Mandir te mandir chadh dhaai॥
Jarai nagar bha log bihaala।
Zapat lapat bahu koti karaala॥
Taat maatu haa sunia pukaara।
Ehi avasar ko hamahi ubaara॥
Ham jo kaha yah kapi nahi hoi।
Baanar roop dhare sur koi ॥
Saadhu avagya kar phalu aisa।
Jarai nagar anaath kar jaisa॥
Jaara nagaru nimish ek maahee।
Ek Bibheeshan kar bruh naahee ॥
Taa kar doot anal jehi sirija ।
Jaraa na so tehi kaaran girija ॥
Ulati palati Lanka sab Jaaree ।
Koodi para puni sindhu mazaaree ॥
॥ Doha – 26 ॥
Poonch buzaai khoi shram dhari laghu roop bahori।
Janaksuta ke aage thaadh bhayau kar jori ॥
॥Chopai॥
Maatu mohi deeje kachhu cheenha ।
Jaise Raghunaayak mohi deenha ॥
Choodamani utaari tab dayaoo ।
Harash samet pavanasut layaoo ॥
Kahehu taat as mor pranaama।
Sab prakaar prabhu pooranakaama॥
Deen dayaal biridu sambhaaree।
Harahu naath mam sankat bhaaree॥
Taat sakrasut katha sunaaehu। Baan prataap prabhuhi samuzaehu॥
Maas divas mahu naath na aava।
Tau puni mohi jiat nahi paava॥
Kahu kapi kehi bidhi rakhau praana।
Tumhahoo Taat kahat ab jaana॥
Tohi dekhi seetali bhai chhatee। Puni mo kahu soi dinu so raatee॥
॥ Doha – 27 ॥
Janakasutahi samuzaai kari bahu bidhi dheeraju deenh।
Charan kamal siru naai kapi gavanu Raam pahi keenh ॥
॥Chopai॥
Chalat mahaadhuni garjesi bhaaree ।
Garbh stravahi suni nisichar naaree ॥
Naaghi sindhu ehi paarahi aava ।
Sabad kilikila kapinh sunaava ॥
Harashe sab biloki Hanumaana । Nutan janm kapinh tab jaana ॥
Mukh prasanna tan tej biraaja ।
Keenhesi raamachandra kar kaaja ॥
Mile sakal ati bhae sukhaaree ।
Talafat meen paav jimi baaree ॥
Chale harashi Raghunaayak paasa । Poonchhat kahat naval itihaasa ॥
Tab madhuban bheetar sab aae। Angad sammat madhu phal khaae॥
Rakhawaare jab barajan laage। Mushti prahaar hanta sab bhaage ॥
॥ Doha – 28 ॥
Jaai pukaare te sab ban ujaar jubaraaj ।
Suni Sugreev harash kapi kari aae prabhu kaaj ॥
॥Chopai॥
Jau na hoti sita sudhi paai । Madhuban ke fal sakahi ki khaai ॥
Ehi bidhi man bichaar kar raja । Aai gae kapi sahit samaaja ॥
Aai sabanhi naava pad seesa । Mileu sabanhi ati prem kapeesa॥
Poonchhee kusal kusal pad dekhee। Raam krupa bhaa kaaju biseshee ॥
Naath kaaju keenheu Hanumaana । Raakhe sakal kapinh ke praana ॥
Suni Sugreev bahuri tehi mileu । Kapinh sahit Raghupati pahi chaleoo॥
Raam kapinh jab aavat dekha । Kie kaaju man harash bisesha ॥
Fatik sila baithe dwau bhaai । Pare sakal kapi charanhi jaai ॥
॥ Doha – 29 ॥
Preeti sahit sab bhete Raghupati karuna punj।
Poonchhee kusal naath ab kusal dekhi pad kanj॥
॥Chopai॥
Jaamvant kah sunu Raghuraaya ।
Jaa par naath karahu tumh daaya ॥
Taahi sada subh kusal nirantar ।
Sur nar muni prasannata upar ॥
Soi bijai binai gun saagar ।
Taasu sujasu trailok ujaagar ॥
Prabhu kee krupa bhayau sabu kaaju ।
Janma hamaar safal bhaa aaju ॥
Naath pavansut keenhi jo karanee । Sahasahu much na jaai so baranee ॥
Pavantanay ke charit suhaae ।
Jaamavant Raghupatihi sunaae ॥
Sunat krupaanidhi man ati bhaae । Puni Hanumaan harashi hiy laae ॥
Kahahu taat kehi bhaanti Jaanakee ।
Rahati karati rachchha swapraan kee ॥
॥ Doha – 30 ॥
Naam paaharu divas nisi dhyaan tumhaar kapaat।
Lochan nij pad jantrit jaahi praan kehi baat ॥
॥Chopai॥
Chalat mohi choodaamani deenhee ।
Raghupati hriday laai soi leenhee ॥
Naath jugal lochan bhari baree ।
Bachan kahe kachhu Janakkumari॥
Anuj samet gahehu prabhu charana ।
Deen bandhu pranataarati harana ॥
Man kram bachan charan anuraagee ।
Kehi aparaadh naath hau tyaagee ॥
Avagun ek mor mai maana ।
Bichhurat praan na keenh payaana ॥
Naath so nayananhi ko aparaadha । Nisarat praan karahi hathi baadha ॥
Birah agini tanu tool sameera ।
Swaas jarai chhan maahi sareera ॥
Nayan stravahi jalu nij hit laagee ।
Jarai na paav deh birahaagee ॥
Sita kai ati bipati bisaala । Binahi kahe bhali deendayaala ॥
॥ Doha – 31 ॥
Ninish nimish karunaanidhi jaahi kalap sam beeti।
Begi chalia prabhu aania bhuj bal khal dal jeeti ॥
॥Chopai॥
Suni Sita dookh prabhu sukh ayana। Bhari aae jal raajiv nayana ॥
Bachan kaay man mam gati jaahee । Sapanehu boozia bipati ki taahee ॥
Kah Hanumant bipati prabhu soi। Jab tav sumiran bhajan na hoi ॥
Ketik baat prabu jaatudhaan kee । Ripuhi jeeti aanibee jaankee ॥
Sunu kapi tohi samaan upakaaree । Nahi kou sur nar muni tanudhaaree ॥
Prati upakaar karau kaa tora। Sanmukh hoi na sakat man mora ॥
Sunu sut tohi urin mai naahee । Dekheu kari bichaar man maahee ॥
Puni puni kapihi chitav surtraata । Lochan neer pulak ati gaata ॥
॥ Doha – 32 ॥
Suni prabhu bachan biloki mukh gaat harashi Hanumant।
Charan pareu premaakul traahi traahi bhagavant ॥
॥Chopai॥
Baar baar prabhu chahai uthaava ।
Prem magan tehi uthab na bhaava ॥
Prabhu kar pankaj kapi ke seesa ।
Sumiri so dasa magan gaureesa ॥
Saavadhaan man kari puni sankar ।
Laage kahan katha ati sundar ॥
Kapi uthaai prabhu hriday lagaava ।
Kar gahi param nikat baithaava ॥
Kahu kapi Raavan paalit Lanka ।
Kehi bidhi daheu durg a ti banka ॥
Prabhu prasanna jaana Hanumaana ।
Bola bachan bigat abhimaana ॥
Saakhaamrug kai badi manusaai । Saakha te saakha par jaai ॥
Naaghi sindhu haatkapur jaara । Nisichar gan badhi bipin ujaara ॥
So sab tav prataap Raghuraai ।
Naath na kachoo mori prabhutaai ॥
॥ Doha – 33 ॥
Taa kahu prabhu kachhu agam nahi jaa par tumh anukool।
Tav prabhaav badavaanalahi jaari sakai khalu tool॥
॥Chopai॥
Naath bhagati ati sukhadaayanee । Dehu krupa kari anapaayanee ॥
Suni prabhu param saral kapi baanee ।
Evamastu tab kaheu bhavaanee ॥
Uma Raam subhaau jehi jaana ।
Taahi bhajanu taji bhaav na aana ॥
Yah sambaad jaasu ur aava ।
Raghupati charan bhagati soi paava ॥
Suni prabhu bachan kahahi kapibrunda ।
Jay Jay Jay krupaal sukhkanda ॥
Tab Raghupati kapipatihi bolaava ।
Kaha chalai kar karahu banaava ॥
Ab bilambu kehi kaaran keeje ।
Turat kapinh kahu aayasu deeje ॥
Kautuk dekhi suman bahu barashi ।
Nabh te bhavan chale sur harashee ॥
॥ Doha – 34 ॥
Kapipati begi bolaae aae juthap jooth ।
Naana baran atul bal baanar bhaalu barooth ॥
॥Chopai॥
Prabhu pad pankaj naavahi seesa ।
Garjahi bhaalu mahaabal keesa ॥
Dekhi Raam sakal kapi sena ।
Chitai krupa kari Raajiv naina ॥
Raam krupa bal paai kapinda ।
Bhae pachchhajut manahu girinda ॥
Harashi Raam tab keenh payaana ।
Sagun bhae sundar subh nana ॥
Jaasu sakal mangalamay keetee ।
Taasu payaan sagun yah neetee ॥
Prabhu payaan jaana baidehee ।
Faraki baam ang janu kahi dehee ॥
Joi joi sagun jaanakihi hoi ।
Asagun bhayau Raavanahi soi ॥
Chala kataku ko baranai paara ।
Garjahi baanar bhaalu apaara ॥
Nakh aayudh giri paadapadhaaree ।
Chale gagan mahi ichchhachaaree ॥
Ke harinaad bhaalu kapi karahee ।
Dagamagaahi diggaj chikkarahee ॥
॥ Chhand ॥
Chikkarahi diggaj dol Mahi giri lol saagar kharabhare ।
Man harash sabh gandharb sur Muni naag kinnar dukh tare ॥
Katakatahi markat bikat bhat Bahu koti kotinh dhaavahee ।
Jay Raam prabal prataap Kosalnaath gun gan gaavahee ॥1॥
Sahi sak na bhaar udaar Ahipati baar baarhi mohai ॥
Gah dasan puni puni Kamath Prushth kathor so kimi sohai ॥
Rabhubeer ruchir prayaan prasthiti Jaani param suhaavanee ।
Janu kamath kharpar sarparaaj so Likhat abichal paavanee ॥2॥
॥Doha – 35 ॥
Ehi bidhi jaai krupaanidhi utare saagar teer।
Jah tah laage khaan fal bhaalu bipul kapi beer॥
॥Chopai॥
Uhaa nisaachar rahahi sasanka।
Jab te jaari gayau kapi Lanka ॥
Nij nij gruh sab karahi bichaara ।
Nahi nisichar kul ker ubaara ॥
Jaasu doot bal barani na jaai ।
Tehi aae pur kavan bhalaai ॥
Dutinh san suni purajan baanee ।
Mandodaree adhik akulaanee ॥
Rahasi jori kar pati pag laagee ।
Boli bachan neeti ras paagee ॥
Kant karash hari san pariharahoo ।
Mor kahaa ati hit hiy dharahoo ॥
Samuzat jaasu doot kai karanee ।
Stravahi garbh rajaneechar gharanee ॥
Taasu naari nij sachiv bolaai ।
Pathavahu kant jo chahahu bhalaai ॥
Tav kul kamal bipin dukhadaai ।
Sita Sit nisa sam aai ॥
Sunahu naath sita binu deenhe ।
Hit na tumhaar sambhu aj keenhe ॥
॥Doha – 36 ॥
Raam baan ahi gan saris nikar nisaachar bheka ।
Jab lagi grasat na tab lagi jatanu karahu taji tek ॥
॥Chopai॥
Shravan sunee sath taa kari baanee ।
Bihasa jagat bidit abhimanee ॥
Sabhay Subhaau naari kar saacha ।
Mangal mahu bhay man ati kaacha ॥
Jau aavai markat katakaai ।
Jiahi bichaare nisichar khaai ॥
Kampahi lokap jaakee traasa।
Taasu naari sabheet badi haasa॥
As kahi bihasi taahi ur laai ।
Chaleu sabha mamata adhikaai॥
Mandodari hriday kar chinta । Bhayau kant par bidhi bipareeta ॥
Baitheu sabha khabari asi paai ।
Sindhu paar sena sab aai ॥
Buzesi sachiv uchit mat kahahoo ।
Te sab hanse masht kari rahahoo ॥
Jitehu suraasur tab shram naahee ।
Nar Baanar kehi lekhe maahee ॥
॥ Doha – 37 ॥
Sachib baid gur teeni jau priy bolahi bhay aas ।
Raaj dharm tan teeni kar hoi begihee naas ॥
॥Chopai॥
Soi Raavan kahu bane sahaai ।
Astuti karahi sunaai sunaai ॥
Avasar jaani Bibheeshanu aava ।
Bhrata charan seesu tehi naava ॥
Puni siru naai baith nij aasan ।
Bola bachan paai anusaasan ॥
Jo krupaal poonchhihu mohi baata ।
Mati anuroop kahau hit taata ॥
Jo aapan chaahai kalyaana ।
Sujasu sumati subh gati such nana ॥
So parnaari lilaar gosaai ।
Tajau chauthi ke chand ki naai ॥
Chaudah bhuvan ek pati hoi ।
Bhootadroh tishtai nahi soi ॥
Gun saagar naagar nar jou ।
Alap lobh bhal kahai na kou ॥
॥Doha – 38 ॥
Kaam krodh mad lobh sab nath narak ke panth ।
Sab parihari Raghubeerahi bhajahu bhajau jehi sant॥
॥Chopai॥
Taat Raam nahi nar bhoopaala ।
Bhuvaneshwar kaalahu kar kaala ॥
Brahm anaamay aj bhagavanta ।
Byapak ajit anaadi ananta ॥
Go dwij dhenu dev hitakaaree ।
Krupa sindhu manush tanudhaaree ॥
Jan ranjan bhanjan khal braata ।
Bed dharm rachchhak sunu bhrata ॥
Tohi bayaru taji naaia maatha ।
Pranataarati bhanjan Raghunaatha ॥
Dehu naath prabhu kahu baidehee ।
Bhajahu Raam binu hetu sanehee ॥
Saran gae prabhu taahu na tyaaga ।
Biswa droh krut agh jehi laaga ॥
Jaasu naam tray taap nasavan ।
Soi prabhu pragat samuzu jiy Raavan॥
॥ Doha –39 ॥
Baar baar pad laagau binay karau dasasees ।
Parihari maan moh mad bhajahu kosalaadhees ॥
Muni pulasti nij sisya san kahi pathai yah baat ।
Turat so mai prabhu san kahee paai suavasaru taat॥
॥Chopai॥
Malyavant ati sachiv sayaana ।
Taasu bachan suni ati such maana ॥
Taat anuj tav neeti Bibheeshan ।
So ur dharahu jo kahat Bibheeshan ॥
Ripu utakarash kahat sath dou ।
Doori na karahu iha hai kou ॥
Malyavant gruh gayau bahoree ।
Kahai Bibheeshan puni kar joree ॥
Sumati kumati sab ke ur rahahee ।
Naath puran nigam as kahahee ॥
Jaha sumati tah sampati nana ।
Jaha kumati tah bipati nidaana ॥
Tav ur kumati basi bipareeta ।
Hit anahit maanahu ripu preeta ॥
Kaalraati nisichar kul keree ।
Tehi Sita par preeti ghaneree ॥
॥ Doha – 40 ॥
Taat charan gahi maagau raakhahu mor dulaar।
Sita dehu Raam kahu ahit na hoi tumhaar ॥
॥Chopai॥
Budh puraan shruti sammat baanee ।
Kahi Bibheeshan neeti bakhanee ॥
Sunat dasaanan utha risaai ।
Khal tohi nikat mrutyu ab aai ॥
Jiasi sada sath mor jiaava ।
Ripu kar pachchha moodh tohi bhaava ॥
Kahasi na khal as ko jag maahee ।
Bhuj bal jaahi jita mai naahee ॥
Mam pur basi tapasinh par preetee ।
Sath milu jaai tinhahi kahu neetee ॥
As kahi keenhesi charan prahaara ।
Anuj gahe pad baarahi baara ॥
Uma sant kai ihai badaai ।
Mand karat jo karai bhalaai ॥
Tumh pit saris bhalehi mohi maara ।
Raamu bhaje hit naath tumhaara ॥
Sachiv sang lai nabh path gayhaoo ।
Sabahi sunaai kahat as bhayaoo ॥
॥ Doha – 41 ॥
Raam satyasankalp prabhu sabha kaalbas tori ।
Mai Raghubeer saran ab jaau dehu jani khori ॥
॥Chopai॥
As kahi chala Bibheeshan jabahee ।
Aayuheen bhae sab tabahee ॥
Saadhu avagya turat bhavaanee ।
Kar kalyaan akhil kai haanee ॥
Raavan jabahi Bibheeshan tyaaga ।
Bhayau bibhav binu tabahi abhaaga ॥
Chaleu harashi Raghunaayak paahee ।
Karat manorath bahu man maahee ॥
Dekhihau jaai charan jalajaata ।
Arun mrudul sevak sukhadaata ॥
Je pad parasi taree rishinaaree ।
Dandak Kaanan paavanakaaree ॥
Je pad Janakasuta ur laae ।
Kapat kurang sang dhar dhaae ॥
Har ur sar saroj pad jei ।
Ahobhagya mai dekhihau tei ॥
॥ Doha – 42 ॥
Jinh paayanh ke paadukanhi bharatu rahe man laai।
Te pad aaju bilokihau inh nayananhi ab jaai ॥
॥Chopai॥
Ehi bidhi karat saprem bichaara।
Aayau sapadi sindhu ehi paara ॥
Kapinh Bibheeshan aavat dekha ।
Jaana kou ripu doot bisesha ॥
Taahi raakhi kapees pahi aae ।
Samaachaar sab taahi sunaae ॥
Kah Sugreev sunahu Raghuraai ।
Aava Milan dasaanan bhaai ॥
Kah prabhu sakha booziai kaaha ।
Kahai kapees sunahu naranaaha ॥
Jaani na jaai nisaachar maaya ।
Kaamroop kehi kaaran aaya ॥
Bhed Hamaar len sath aava ।
Raakhia bandhi mohi as bhaava ॥
Sakha neeti tumh neeki bichaaree ।
Mam pan saranaagat bhayahaaree ॥
Suni prabhu bachan harash Hanumaana ।
Saranaagat bachchhal bhagawaana ॥
॥ Doha – 43 ॥
Saranaagat kahu je tajahi nij anahit anumaanee ।
Te nar paavar paapamay tinhahee bilokat haanee ॥
॥Chopai॥
Koti bipra badh laagahi jaahoo ।
Aae saran tajau nahi taahoo ॥
Sanamukh hoi jeev mohi jabahee ।
Janm koti agh naasahi tabahee ॥
Paapavant kar sahaj subhaoo ।
Bhajanu mor tehi bhaav na kaaoo ॥
Jau pai dusht hriday soi hoi ।
More sanamukh aav ki soi ॥
Nirmal man jan so mohi paava ।
Mohi kapat chhal chhidra na bhaava ॥
Bhed len pathava dasaseesa ।
Tabahu na kachu bhay haani kapeesa ॥
Jag mahu sakha nisaachar jet e ।
Lachhimanu hanai nimish mahu te te॥
Jau sabheet aava saranaai ।
Rakhihau taahi praan kee naai ॥
॥ Doha – 44 ॥
Ubhay bhaanti tehi aanahu hasi kah krupaaniket ।
Jay krupaal kahi kapi chale angad Hanoo samet ॥
॥Chopai॥
Saadar tehi aage kari baanar ।
Chale jaha Raghupati karunaakar ॥
Doorihi te dekhe dwau bhraata ।
Nayanaanand daan ke data ॥
Bhuj pralamb kanjaarun lochan ।
Syaamal gaat pranat bhay mochan ॥
Singh kandh aayat ur soha ।
Aanan amit madan man moha ॥
Nayan neer pulakit ati gaata ।
Man dhari dheer kahee mrudu baata ॥
Naath dasaanan kar mai bhraata ।
Nisichar bans janam suratraata ॥
Sahaj paapapriy taamas deha ।
Jatha ulukahi tam par neha ॥
॥ Doha – 45 ॥
Shravan sujasu suni aayau prabhu bhanjan bhav bheer।
Traahi traahi aarati haran saran sukhad Rabhubeer ॥
॥Chopai॥
As kahi karat dandavat dekha ।
Turat uthe prabhu harash bisesha ॥
Deen bachan suni prabhu man bhaava ।
Bhuj bisaal gahi hriday lagaava ॥
Anuj sahit mili dhig baithaaree।
Bole bachan bhagat bhayaharree ॥
Kahu Lankes sahit parivaara ।
Kusal kuthaahar baas tumhaara ॥
Khal mandalee basahu dinu raatee ।
Sakha dharam nibahai kehi bhaantee ॥
Mai jaanau tumhaari sab reetee ।
Ati nay nipun na bhaav aneetee ॥
Baru bhal baas narak kar taata ।
Dusht sang jani dei bidhaata ॥
Ab pad dekhi kusal Raghuraaya ।
Jau tumh keenhi jaani jan daaya ॥
॥ Doha – 46 ॥
Tab lagi kusal na jeev kahu sapane hu man bishraam।
Jab lagi bhajat na Raam kahu sok dhaam taji kaam ॥
॥Chopai॥
Tab lagi hriday basat khal nana ।
Lobh moh machchhar mad maana ॥
Jab lagi ur na basat Raghunaatha।
Dhare chaap saayak kati bhaatha ॥
Mamata tarun tamee adhiaaree ।
Raag dvesh ulook sukhakaaree ॥
Tab lagi basati jeev man maahee ।
Jab lagi prabhu prataap rabi naahee ॥
Ab mai kusal mite bhay bhaare ।
Dekhi Raam pad kamal tumhaare ॥
Tumh krupaal jaa par anukoola ।
Taahi na byaap tribidh bhav soola ॥
Mai nisichar ati adham subhaaoo ।
Subh aacharanu keenh nahi kaaoo ॥
Jaasu roop muni dhyaan na aava ।
Tehi prabhu harashi hriday mohi lava॥
॥ Doha – 47 ॥
Ahobhagya mama amita ati rama krpa sukha punja।
Dekhe’um nayana biranci siva sebya jugala pada kanja॥
॥Chopai॥
Sunahu sakha nija kaha’um subha’u. Jana bhusundi sambhu girija’u॥
Jaum nara ho’i caracara drohi. Avai sabhaya sarana taki mohi॥
Taji mada moha kapata chala nana.
Kara’um sadya tehi sadhu samana॥
Janani janaka bandhu suta dara.
Tanu dhanu bhavana suhrda parivara॥
Saba kai mamata taga batori. Mama pada manahi bamdha bari dori॥
Samadarasi iccha kachu nahim.
Harasa soka bhaya nahim mana mahim॥
Asa sajjana mama ura basa kaisem.
Lobhi hrdayam basa’i dhanu jaisem॥
Tumha sarikhe santa priya morem.
Dhara’um deha nahim ana nihorem॥
॥ Doha – 48 ॥
Sagun upaasak parahit nirat neeti dradh nem।
Te nar praan samaan mam jinh ke dvij pad prem॥
॥Chopai॥
Sunu Lankesh sakal gun tore ।
Taate tumh atisay priy more ॥
Raam bachan suni baanar jootha ।
Sakal kahahi jay krupa barootha ॥
Sunat Bibheeshanu prabhu kai baanee ।
Nahi aghaat shravanaamrut jaanee ॥
Pad Ambuj gahi baarahi baara ।
Hriday samaat na premu apaara ॥
Sunahu dev sacharaachar swamee ।
Pranatapaal ur antarajaamee ॥
Ur kachhu pratham baasana rahee ।
Prabhu pad preeti sarit so bahee ॥
Ab krupaal nij bhagat paavanee ।
Dehu sada siv man bhaavanee ॥
Evamastu kahi prabhu ranadheera ।
Maaga turat sindhu kar neera ॥
Jadapi sakha tav ichchha naahee ।
Mor darasu amogh jag maahee ॥
As kahi Raam tilak tehi saara ।
Suman brushti nabh bhai apaara ॥
॥Doha – 49 ॥
Raavan krodh anal nij svaas sameer prachand ।
Jarat Bibheeshan raakheu
deenheu raaju akhand ॥
Jo sampati siv ravanahi deenhi die das math ।
Soi sampada Bibheeshanhi sakuchi deenhi Raghunaath ॥
॥Chopai॥
As prabhu chhadi bhajahi je aana ।
Te nar pasu binu poonch bishaata ॥
Nij jan jaani taahi apanaava ।
Prabhu subhaav kapi kul man bhaava ॥
Puni sarbagya sarb ur baasee ।
Sarbaroop sab rahit udaasee ॥
Bole bachan neeti pratipaalak ।
Kaaran manuj danuj kul ghaalk ॥
Sunu kapees Lankaapati bera ।
Kehi bidhi taria jaladhi gambheera ॥
Sankul maker urag zash jaatee ।
Ati agaadh duster sab bhaantee ॥
Kah Lankesh sunahu Raghunaayak ।
Koti sindhu soshak tav saayak ॥
Jadyapi tadapi neeti asi gaai ।
Binay karia saagar san jaai ॥
॥ Doha – 50 ॥
Prabhu tumhaar kulagur jaladhi kahihi upaay bichaari।
Binu prayaas saagar tarihi sakal bhaalu kapi dhaari ॥
॥Chopai॥
Sakha kahee tumh neeki upaai ।
Karia daiv jau hoi sahaai ॥
Mantra na yah lachhiman man bhaava ।
Raam bachan suni ati dookh paava ॥
Naath daiv kar kavan bharosa ।
Soshia sindhu karia man rosa ॥
Kaadar man kahu ek adhara ।
Daiv daiv aalasee pukaara ॥
Sunat bihasi bole raghubeera ।
Aisehi karab dharahu man dheera ॥
As kahi prabhu anujahi samuzaai ।
Sindhu sameep gae Raghuraai ॥
Pratham pranaam keenh siru naai ।
Baithe puni tat darbh dasaai ॥
Jabahi bibheeshan prabhu pahi aae ।
Paachhe raavan doot pathaae ॥
॥ Doha – 51 ॥
Sakal charit tinh dekhe dhare kapat kapi deh ।
Prabhu gun hriday saraahahi sarnaagat par neh॥
॥Chopai॥
Pragat bakhaanahi Raam subhaaoo।
Ati saprem gaa bisari duraaoo ॥
Ripu ke doot kapinh tab jaane ।
Sakal baandhi kapees pahi aane ॥
Kah Sugreev sunahu sab baanar ।
Ang bhang kari pathavahu nisichar॥
Suni Sugreev bachan kapi dhaae ।
Deen pukaarat tadapi na tyaage ॥
Jo hamaar har naasa kaana ।
Tehi kosalaadhees kai aana ॥
Suni lachhiman sab nikat bolaae ।
Daya laagi hasi turat chhodaae ॥
Raavan kar deejahu yah paatee ।
Lachhiman bachan baachu kulaghaatee॥
॥ Doha – 52 ॥
kahehu mukhaagar moodh san mam sandesu udaar ।
Sita dei milahu na ta aava kaalu tumhaar ॥
॥Chopai॥
Turat naai lachhiman pad maatha ।
Chale doot baranat gun gaatha ॥
Kahat Raam jasu Lanka aae ।
Raavan charan sees tinh naae ॥
Bihasi dasaanan poonchhee baata ।
Kahasi na suk aapani kusalaata ॥
Puni kahu khabari Bibheeshan keree।
Jaahi mryutu aai ati neree ॥
Karat raaj Lanka sath tyaagee ।
Hoihi jav kar keet abhaagee ॥
Puni kahu bhaalu kees katakaai ।
Kathin kaal prerit chali aai ॥
Jinh ke jeevan kar rakhavaara ।
Bhayau mrudul chit sindhu bichaara ॥
Kahu tapasinh kai baat bahoree ।
Jinh ke hriday traas ati moree ॥
॥ Doha – 53 ॥
Kee bhai bhet ki firi gae shravan sujasu suni mor ।
Kahasi na ripu dal tej bal bahut chakit chit tor ॥
॥Chopai॥
Naath krupa kari poonchhehu jaise ।
Maanahu kahaa krodh taji taise ॥
Mila jaai jab anuj tumhaara ।
Jaatahi raam tilak tehi saara ॥
Raavan doot hamahi suni kaana ।
Kapinh baandhi deenhe dukh nana ॥
Shravan naasika kaatai laage ।
Raam sapath deenhe ham tyaage ॥
Poonchhehu naath Raam katakaai ।
Badan koti sat barani na jaai ॥
Naana baran bhaalu kapi dhaaree ।
Bikataanan bisaal bhayakaaree ॥
Jehi pur daheu hateu sut tora ।
Sakal kapinh mah tehi balu thora॥
Amit naam bhat kathin karaala ।
Amit naag bal bipul bisaala ॥
॥ Doha – 54 ॥
Dwibid mayank neel nal angad gad bikataasi ।
Dadhi mukh kehari nisath sat jaamavant balaraasi ॥
॥Chopai॥
E kapi sab Sugreev samaana ।
Inh sam kotinh ganai ko nana ॥
Raam krupa atulit bal tinhahee ।
Trun samaan trailokahi ganahee ॥
As mai suna shravan dasakandhar ।
Padum atharah juthap Bandar ॥
Naath katak mah so kapi naahee ।
Jo na tumhahi jetai ran maahee ॥
Param krodh meejahi sab haatha ।
Aayasu pain a dehi raghunaatha ॥
Soshahi sindhu sahit zash byaala ।
Poorahi na ta bhari kudhar bisaala ॥
Mardi gard milavahi dasaseesa ।
Aisei bachan kahahi sab keesa ॥
Garjahi tarjahi sahaj asanka ।
Maanahu grasan chahat hahi Lanka ॥
॥ Doha – 55 ॥
Sahaj soor kapi bhaalu sab puni sir par prabhu Raam ।
Raavan kaal koti kahu jeeti sakahi sangraam ॥
॥Chopai॥
Raam tej bal budhi bipulaai ।
Sesh sahas sat sakahi na gaai ॥
Sak sar ek soshi sat saagar ।
Tav bhraatahi poonchheu nay naagar ॥
Taasu bachan sni saagar paahee ।
Maagat panth krupa man maahee ॥
Sunat bachan bihasa dasaseesa ।
Jau asi mati sahaay krut keesa ॥
Sahaj bheeru kar bachan dhradhaai।
Saagar san thaanee machalaai ॥
Moodh mrusha kaa karasi badai ।
Ripu bal buddhi thaah mai paai ॥
Sachiv sabheet Bibheeshan jaake ।
Bijay bibhooti kahaa jag take ॥
Suni khal bachan doot ris baadhee ।
Samay bichaari patrika kaadhee ॥
Raamaanuj deenhee yah paatee ।
Nath bachaai judaavahu chhatee ॥
Bihasi baam kar leenhee Raavan ।
Sachiv boli sath laag bachaavan ॥
॥ Doha – 56 ॥
Baatanh manahi rizaai sath jani ghaalasi kul khees ।
Raam birodh na ubarasi saran bishnu aj is ॥
Kee taji maan anuj iv prabhu pad pankaj bhrung ।
Hohi ki Raam saraanal khal kul sahit patang ॥
॥Chopai॥
Sunat sabhay man much musukaai ।
Kahat dasaanan sabahi sunaai ॥
Bhoomi para kar gahat akaasa।
Laghu taapas kr bag bilaasa ॥
Kah suk naath satya sb baanee ।
Samuzahu chhadi prakruti abhimaanee ॥
Sunau bachan mam parihari krodha ।
Naath Raam san tajahu birodha ॥
Ati komal Raghubeer subhaaoo ।
Jadhyapi akhil lok kar raaoo ॥
Milat krupa tumh par prabhu karihee ।
Ur aparaadh na ekau dharihee ॥
Janaksuta Raghenaathhi deeje ।
Etana kaha mor prabhu keeje ॥
Jab tehi kahaa den baidehee ।
Charan prahaar keenh sath tejee ॥
Naai charan siru chala so tahaa।
Krujpasindhu Raghunaayak jahaa ॥
Kari pranaam nij katha sunaai ।
Raam krupa aapani gati paai ॥
Rishi agasti kee saap bhavaanee ।
Raachhas bhayau raha muni gyaanee ॥
Bandi Raam pad baarahi baara ।
Muni nij aashram kahu pagu dhaara ॥
॥ Doha – 57 ॥
Binay na maanat jaladhi jad gae teeni din beeti ।
Bole Raam sakop tab bhay binu hoi na preeti ॥
॥Chopai॥
Lachhiman baan saraasan aanu ।
Soshau baaridhi bisikh krusaanoo ॥
Sath san binay kutil san preetee ।
Sahaj krupan san sundar neetee ॥
Mamata rat san gyaan kahaanee ।
Ati lobhee san birati bakhaanee ॥
Krodhihi sam kaamihi harikatha ।
Oosar beej bae fal jatha ॥
As kahi Raghupati chhap chadhaava ।
Yah mat lachhiman ke man bhaava ॥
Sandhaaneu prabhu bisikh karaala ।
Uthi udadhi ur antar jwaala ॥
Makar urag zash gan akulaane ।
Jarat jantu jalanidhi jab jaane ॥
Kanak thaar bhari mani gan nana ।
Bipra roop aayau taji maana ॥
॥ Doha – 58 ॥
Kaatehin Pai Kadaree Phari Koti Jatan Kou Seench।
Binay Na Maan Khages Sunu Daatehin Pai Nav Neech॥
॥Chopai॥
Sabhay Sindhu Gahi Pad Prabhu Kere.
Chhamahu Naath Sab Avagun Mere॥
Gagan Sameer Anal Jal Dharanee. Inh Kai Naath Sahaj Jad Karanee॥
Tav Prerit Maayaan Upajae.
Srshti Hetu Sab Granthani Gae॥
Prabhu Aayasu Jehi Kahan Jas Ahee.
So Tehi Bhaanti Rahen Sukh Lahee॥
Prabhu Bhal Keenh Mohi Sikh Deenheen.
Marajaada Puni Tumharee Keenheen॥
Dhol Gavaanr Soodr Pasu Naaree.
Sakal Taadana Ke Adhikaaree॥
Prabhu Prataap Main Jaab Sukhaee.
Utarihi Kataku Na Mori Badaee॥
Prabhu Agya Apel Shruti Gaee.
Karaun So Begi Jo Tumhahi Sohaee॥
॥ Doha – 59 ॥
Sunat Bineet Bachan Ati Kah Krpaal Musukai।
Jehi Bidhi Utarai Kapi Kataku Taat So Kahahu Upai॥
॥Chopai॥
Naath Neel Nal Kapi Dvau Bhaee.
Larikaeen Rishi Aasish Paee॥
Tinh Ken Paras Kien Giri Bhaare.
Tarihahin Jaladhi Prataap Tumhaare॥
Main Puni Ur Dhari Prabhu Prabhutaee. Karihun Bal Anumaan Sahaee॥
Ehi Bidhi Naath Payodhi Bandhai.
Jehin Yah Sujasu Lok Tihun Gai॥
Ehi Sar Mam Uttar Tat Baasee.
Hatahu Naath Khal Nar Agh Raasee॥
Suni Krpaal Saagar Man Peera.
Turatahin Haree Raam Ranadheera॥
Dekhi Raam Bal Paurush Bhaaree.
Harashi Payonidhi Bhayu Sukhaaree॥
Sakal Charit Kahi Prabhuhi Sunaava.
Charan Bandi Paathodhi Sidhaava॥
॥ Chhand ॥
Nij Bhavan Gavaneu Sindhu Shreeraghupatihi Yah Mat Bhaayoo।
Yah Charit Kali Mal Har Jathaamati Daas Tulasee Gaayoo॥
Sukh Bhavan Sansay Saman
Davan Bishaad Raghupati Gun Gana।
Taji Sakal Aas Bharos Gaavahi Sunahi Santat Sath Mana॥
॥ Doha – 60 ॥
Sakal sumangal daayak Raghunaayak gun gaan ।
Saadar sunahi te tarahi bhav sindhu bina jalajaan ॥
eti sundarkaand samaapt
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