Ram Raksha Stotra Lyrics in Hindi – राम रक्षा स्तोत्र
श्री राम रक्षा स्तोत्र अर्थ सहित हिंदी में
Ram Raksha Stotra Lyrics
श्री राम रक्षा स्तोत्र (Ram Raksha Stotra Lyrics) महर्षि बुध कौशिक ऋषि द्वारा रचित श्री राम का स्तुति गान है। राम रक्षा स्तोत्र (Ram Raksha Stotra Lyrics) का पाठ सभी प्रकार की बाधाओं से रक्षा के लिए किया जाता है। श्रद्धा और भक्ति से श्री रक्षा स्तोत्र का पाठ करने से भगवान श्री राम की कृपा से पुरे संसार में कोई ऐसा कार्य नहीं हे, जो सम्पूर्ण न हो सकता हो।
श्रीराम रक्षा स्तोत्र (Ram Raksha Stotra Lyrics) का पाठ करने से श्रीराम हमेशा प्रसन्न रहते हैं और सदैव पाठ करने वाले की रक्षा करते हैं। आवश्यक नहीं है कि राम रक्षा स्तोत्र (Ram Raksha Stotra Lyrics) केवल संकट के समय पढ़ा जाए। भगवान श्री राम का आशीर्वाद पाने के लिए इसे सामान्य परिस्थिति में भी पाठ किया जा सकता है।
श्रीराम रक्षा स्तोत्र (Ram Raksha Stotra Lyrics) का पाठ नवरात्री में नौ दिन प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में श्रद्धा पूर्वक करने से राम रक्षा कवच सिद्ध हो जाता है। श्रीराम रक्षा स्तोत्र (Ram Raksha Stotra Lyrics) का पाठ एकाग्र चित से प्रतिदिन 11 बार करना चाहिए। भगवान श्री राम के चरणों में जीतनी अधिक भक्ति होगी उतना ही अधिक फल प्राप्त होगा।
यहां एक क्लिक में पढ़िए ~ कालिदासकृत रघुवंशम् महाकाव्य प्रथमः सर्गः
॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम् ॥
॥ अथ ध्यानम् ॥
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्मासनस्थं ।
पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ॥
वामाङ्कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं ।
नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम् ॥
अर्थ:
जो धनुष-बाण धारण किए हुए हैं,बद्द पद्मासन की मुद्रा में प्रकाशमान हैं और पीतांबर पहने हुए हैं, जिनके ज्योतिर्मय नेत्र नए कमल दल के समान स्पर्धा करते हैं, जो बाएँ ओर स्थित सीताजी के मुख कमल से मिले हुए हैं- उन आजानु बाहु, मेघश्याम,विभिन्न अलंकारों से विभूषित तथा जटाधारी श्रीराम का ध्यान करें।
महाकाल की उज्जैन नगरी में स्थित महाकाल लोक के बारे में जानकारी
॥ इति ध्यानम् ॥
चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥१॥
अर्थ:
श्री रघुनाथजी का चरित्र सौ करोड़ विस्तार वाला हैं। उसका एक-एक अक्षर महा पापो को नष्ट करने वाला है।
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् ।
जानकीलक्ष्मणॊपेतं जटामुकुटमण्डितम् ॥२॥
अर्थ:
नीले कमल के श्याम वर्ण वाले, कमलनेत्र वाले, जटाओं के मुकुट से सुशोभित, जानकी तथा लक्ष्मण सहित ऐसे भगवान श्री राम का स्मरण करके,
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम् ।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥३॥
अर्थ:
जो अजन्मा एवं सर्वव्यापक, हाथों में खड्ग, तुणीर, धनुष-बाण धारण किए राक्षसों के संहार तथा अपनी लीलाओं से जगत रक्षा हेतु अवतीर्ण श्रीराम का स्मरण करके,
रामरक्षां पठॆत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।
शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥
अर्थ:
मैं सर्वकामप्रद और पापों को नष्ट करने वाले राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करता हूँ | राघव मेरे सिर की और दशरथ के पुत्र मेरे ललाट की रक्षा करें।
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥
अर्थ:
कौशल्या नंदन मेरे नेत्रों की, विश्वामित्र के प्रिय मेरे कानों की, यज्ञरक्षक मेरे घ्राण की और सुमित्रा के वत्सल मेरे मुख की रक्षा करें।
जिव्हां विद्दानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित: ।
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥६॥
अर्थ:
मेरी जिह्वा की विधानिधि रक्षा करें, कंठ की भरत-वंदित, कंधों की दिव्यायुध और भुजाओं की महादेवजी का धनुष तोड़ने वाले भगवान श्रीराम रक्षा करें।
करौ सीतापति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित् ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥
अर्थ:
मेरे हाथों की सीता पति श्रीराम रक्षा करें, हृदय की जमदग्नि ऋषि के पुत्र (परशुराम) को जीतने वाले, मध्य भाग की खर (नाम के राक्षस) के वधकर्ता और नाभि की जांबवान के आश्रयदाता रक्षा करें।
सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु: ।
ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत् ॥८॥
अर्थ:
मेरे कमर की सुग्रीव के स्वामी, हडियों की हनुमान के प्रभु और रानों की राक्षस कुल का विनाश करने वाले रघुश्रेष्ठ रक्षा करें।
जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्घे दशमुखान्तक: ।
पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोSखिलं वपु: ॥९॥
अर्थ:
मेरे जानुओं की सेतुकृत, जंघाओं की दशानन वधकर्ता, चरणों की विभीषण को ऐश्वर्य प्रदान करने वाले और सम्पूर्ण शरीर की श्रीराम रक्षा करें।
एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठॆत् ।
स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥१०॥
अर्थ:
शुभ कार्य करने वाला जो भक्त भक्ति एवं श्रद्धा के साथ रामबल से संयुक्त होकर इस स्तोत्र का पाठ करता हैं, वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान, विजयी और विनयशील हो जाता हैं।
पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्मचारिण: ।
न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥
अर्थ:
जो जीव पाताल, पृथ्वी और आकाश में विचरते रहते हैं अथवा छद्दम वेश में घूमते रहते हैं , वे राम नामों से सुरक्षित मनुष्य को देख भी नहीं पाते।
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन् ।
नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥
अर्थ:
राम, रामभद्र तथा रामचंद्र आदि नामों का स्मरण करने वाला रामभक्त पापों से लिप्त नहीं होता. इतना ही नहीं, वह अवश्य ही भोग और मोक्ष दोनों को प्राप्त करता है।
जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् ।
य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्द्दय: ॥१३॥
अर्थ:
जो संसार पर विजय करने वाले मंत्र राम-नाम से सुरक्षित इस स्तोत्र को कंठस्थ कर लेता हैं, उसे सम्पूर्ण सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं।
वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् ।
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥१४॥
अर्थ:
जो मनुष्य वज्रपंजर नामक इस राम कवच का स्मरण करता हैं, उसकी आज्ञा का कहीं भी उल्लंघन नहीं होता तथा उसे सदैव विजय और मंगल की ही प्राप्ति होती हैं।
आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: ।
तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥
अर्थ:
भगवान् शंकर ने स्वप्न में इस रामरक्षा स्तोत्र का आदेश बुध कौशिक ऋषि को दिया था, उन्होंने प्रातः काल जागने पर उसे वैसा ही लिख दिया।
आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम् ।
अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान् स न: प्रभु: ॥१६॥
अर्थ:
जो कल्प वृक्षों के बगीचे के समान विश्राम देने वाले हैं, जो समस्त विपत्तियों को दूर करने वाले हैं, और जो तीनो लोकों में सुंदर हैं, वही श्रीमान राम हमारे प्रभु हैं।
तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥
अर्थ:
जो युवा,सुन्दर, सुकुमार,महाबली और कमल (पुण्डरीक) के समान विशाल नेत्रों वाले हैं, मुनियों की तरह वस्त्र एवं काले मृग का चर्म धारण करते हैं।
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फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥
अर्थ:
जो फल और कंद का आहार ग्रहण करते हैं, जो संयमी , तपस्वी एवं ब्रह्रमचारी हैं , वे दशरथ के पुत्र राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करें।
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् ।
रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥१९॥
अर्थ:
ऐसे महाबली – रघुश्रेष्ठ मर्यादा पुरूषोतम भगवान श्री राम समस्त प्राणियों के शरणदाता, सभी धनुर्धारियों में सर्वश्रेष्ठ और राक्षसों के कुलों का समूल नाश करने में समर्थ हमारी रक्षा करें।
आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्ग सङिगनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पथि सदैव गच्छताम् ॥२०॥
अर्थ:
संघान किए धनुष धारण किए, बाण का स्पर्श कर रहे, अक्षय बाणों से युक्त तुणीर लिए हुए राम और लक्ष्मण मेरी हमारी रक्षा करने के लिए मेरे आगे चलें।
संनद्ध: कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन्मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥२१॥
अर्थ:
हमेशा तत्पर, कवचधारी, हाथ में खडग, धनुष-बाण तथा युवावस्था वाले भगवान श्री राम सहित लक्ष्मण आगे-आगे चलकर हमारी रक्षा करें।
रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥२२॥
अर्थ:
भगवान का कथन है की श्रीराम, दाशरथी, शूर, लक्ष्मनाचुर, बली, काकुत्स्थ , पुरुष, पूर्ण, कौसल्येय, रघुतम,
वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: ।
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ॥२३॥
अर्थ:
वेदान्त्वेघ, यज्ञेश,पुराण पुरूषोतम , जानकी वल्लभ, श्रीमान और अप्रमेय पराक्रम आदि नामों का,
इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्भक्त: श्रद्धयान्वित: ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥
अर्थ:
नियमित श्रद्धापूर्वक जप करने वाले को निश्चित रूप से अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक फल प्राप्त होता हैं।
रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम् ।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥२५॥
अर्थ:
दूर्वादल के समान श्याम वर्ण, कमल-नयन एवं पीतांबरधारी श्रीराम की उपरोक्त दिव्य नामों से स्तुति करने वाला संसार के चक्र में नहीं पड़ता।
रामं लक्ष्मण पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम् ।
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम् ।
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम् ।
वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥२६॥
अर्थ:
लक्ष्मण जी के पूर्वज , सीताजी के पति, काकुत्स्थ, कुल-नंदन, करुणा के सागर , गुण-निधान , विप्र भक्त, परम धार्मिक , राजराजेश्वर, सत्यनिष्ठ, दशरथ के पुत्र, श्याम और शांत मूर्ति, सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर, रघुकुल तिलक , राघव एवं रावण के शत्रु भगवान् श्री राम की मैं वंदना करता हूँ।
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥
अर्थ:
राम, रामभद्र, रामचंद्र, विधात स्वरूप , रघुनाथ, प्रभु एवं सीताजी के स्वामी की मैं वंदना करता हूँ।
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम ।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम ।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥
अर्थ:
हे रघुनन्दन श्रीराम ! हे भरत के अग्रज भगवान् राम! हे रणधीर, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ! आप मुझे शरण दीजिए।
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥
अर्थ:
मैं एकाग्र मन से श्री रामचंद्रजी के चरणों का स्मरण और वाणी से गुणगान करता हूँ, वाणी द्धारा और पूरी श्रद्धा के साथ भगवान श्री रामचन्द्र के चरणों को प्रणाम करता हुआ मैं उनके चरणों की शरण रज लेता हूँ।
माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: ।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥
अर्थ:
श्री राम मेरे माता, मेरे पिता , मेरे स्वामी और मेरे सखा हैं। इस प्रकार दयालु श्रीराम मेरे सर्वस्व हैं। श्री राम सिवा में किसी दुसरे को नहीं जानता।
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मजा ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम् ॥३१॥
अर्थ:
जिनके दाईं और लक्ष्मण जी, बाईं और जानकी जी और सामने हनुमान ही विराजमान हैं, मैं उन्ही रघुनाथ जी की वंदना करता हूँ।
लोकाभिरामं रनरङ्गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् ।
कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥
अर्थ:
मैं सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर तथा रणक्रीड़ा में धीर, कमलनेत्र, रघुवंश नायक, करुणा की मूर्ति और करुणा के भण्डार की श्रीराम की शरण में हूँ।
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥
अर्थ:
जिनकी गति मन के समान और वेग वायु के समान (अत्यंत तेज) है, जो परम जितेन्द्रिय एवं बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, मैं उन पवन-नंदन वानारग्रगण्य श्रीराम दूत की शरण लेता हूँ।
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम् ।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥३४॥
अर्थ:
मैं कवितामयी डाली पर बैठकर, मधुर अक्षरों वाले ‘राम-राम’ के मधुर नाम को कूजते हुए वाल्मीकि रुपी कोयल की वंदना करता हूँ।
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम् ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥३५॥
अर्थ:
मैं इस संसार के प्रिय एवं सुन्दर उन भगवान् राम को बार-बार नमन करता हूँ, जो सभी आपदाओं को दूर करने वाले तथा सुख-सम्पति प्रदान करने वाले हैं।
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम् ।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥३६॥
अर्थ:
‘राम-राम’ का जप करने से मनुष्य के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं। वह समस्त सुख-सम्पति तथा ऐश्वर्य प्राप्त कर लेता हैं। राम-राम की गर्जना से यमदूत सदा भयभीत रहते हैं।
रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे ।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम् ।
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥
अर्थ:
राजाओं में श्रेष्ठ श्रीराम सदा विजय को प्राप्त करते हैं। मैं लक्ष्मीपति भगवान श्रीराम का भजन करता हूँ। सम्पूर्ण राक्षस सेना का नाश करने वाले श्रीराम को मैं नमस्कार करता हूँ। श्रीराम के समान अन्य कोई आश्रयदाता नहीं। मैं उन शरणागत वत्सल का दास हूँ। मैं हमेशा श्रीराम मैं ही लीन रहूँ। हे श्रीराम! आप मेरा उद्धार करें।
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥
अर्थ:
शिव ने पार्वतीजी से कहा! हे सुमुखी ! राम- नाम ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ के समान हैं। मैं सदा राम का स्तवन करता हूँ और राम-नाम में ही रमण करता हूँ।
इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम् ॥
॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥
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Ram Raksha Stotra Lyrics in English
॥ Rama Raksha Stotram Dhyanam ॥
dhyayedajanubahum dhrtasaradhanusam baddhapadmasanastham
pitam vaso vasanam navakamaladalaspardhinetram prasannam |
vamankarudhasitamukhakamalamilallocanam niradabham
nanalankaradiptam dadhatamurujatamandalam ramacandram ||
॥ iti dhyanam ॥
caritam raghunathasya satakoti pravistaram |
ekaikamaksaram pumsam mahapatakanasanam || 1 ||
dhyatva nilotpalasyamam ramam rajivalocanam |
janakilaksmanopetam jatamakutamanditam || 2 ||
sasitunadhanurbanapanim naktancarantakam |
svalilaya jagatratum avirbhutam ajam vibhum || 3 ||
ramaraksam pathetprajnah papaghnim sarvakamadam |
siro me raghavah patu phalam dasarathatmajah || 4 ||
kausalyeyo drsau patu visvamitrapriyah sruti |
ghranam patu makhatrata mukham saumitrivatsalah || 5 ||
jihvam vidyanidhih patu kantham bharatavanditah |
skandhau divyayudhah patu bhujau bhagnesakarmukah || 6 ||
karau sitapatih patu hrdayam jamadagnyajit |
madhyam patu kharadhvamsi nabhim jambavadasrayah || 7 ||
sugrivesah katim patu sakthini hanumatprabhuh |
uru raghuttamah patu raksahkulavinasakrt || 8 ||
januni setukrtpatu janghe dasamukhantakah |
padau vibhisanasridah patu ramo:’khilam vapuh || 9 ||
etam ramabalopetam raksam yah sukrti pathet |
sa cirayuh sukhi putri vijayi vinayi bhavet || 10 ||
patalabhutalavyomacarinaschadmacarinah |
na drastumapi saktaste raksitam ramanamabhih || 11 ||
rameti ramabhadreti ramacandreti va smaran |
naro na lipyate papaih bhuktim muktim ca vindati || 12 ||
jagajjaitraikamantrena ramanamnabhiraksitam |
yah kanthe dharayettasya karasthah sarvasiddhayah || 13 ||
vajrapanjaranamedam yo ramakavacam smaret |
avyahatajnah sarvatra labhate jayamangalam || 14 ||
adistavanyatha svapne ramaraksamimam harah |
tatha likhitavanpratah prabuddho budhakausikah || 15 ||
aramah kalpavrksanam viramah sakalapadam |
abhiramastrilokanam ramah sriman sa nah prabhuh || 16 ||
tarunau rupasampannau sukumarau mahabalau |
pundarika visalaksau cirakrsnajinambarau || 17 ||
phalamulasinau dantau tapasau brahmacarinau |
putrau dasarathasyaitau bhratarau ramalaksmanau || 18 ||
saranyau sarvasattvanam sresthau sarvadhanusmatam |
raksah kulanihantarau trayetam no raghuttamau || 19 ||
attasajyadhanusavisusprsavaksayasuganisangasanginau |
raksanaya mama ramalaksmanavagratah pathi sadaiva gacchatam || 20 ||
sannaddhah kavaci khadgi capabanadharo yuva |
naschanmanoratho:’smakam ramah patu salaksmanah || 21 ||
ramo dasarathih suro laksmananucaro bali |
kakutthsah purusah purnah kausalyeyo raghuttamah || 22 ||
vedantavedyo yajnesah puranapurusottamah |
janakivallabhah sriman aprameya parakramah || 23 ||
ityetani japannityam madbhaktah sraddhayanvitah |
asvamedhadhikam punyam samprapnoti na samsayah || 24 ||
ramam durvadalasyamam padmaksam pitavasasam |
stuvanti namabhirdivyaih na te samsarino narah || 25 ||
ramam laksmanapurvajam raghuvaram sitapatim sundaram
kakutstham karunarnavam gunanidhim viprapriyam dharmikam |
rajendram satyasandham dasarathatanayam syamalam santamurtim
vande lokabhiramam raghukulatilakam raghavam ravanarim || 26 ||
ramaya ramabhadraya ramacandraya vedhase |
raghunathaya nathaya sitayah pataye namah || 27 ||
srirama rama raghunandana rama rama
srirama rama bharatagraja rama rama |
srirama rama ranakarkasa rama rama
srirama rama saranam bhava rama rama || 28 ||
sriramacandracaranau manasa smarami
sriramacandracaranau vacasa grnami |
sriramacandracaranau sirasa namami
sriramacandracaranau saranam prapadye || 29 ||
mata ramo matpita ramacandrah
svami ramo matsakha ramacandrah |
sarvasvam me ramacandro dayaluh
nanyam jane daivam jane na jane || 30 ||
daksine laksmano yasya vame tu janakatmaja |
purato marutiryasya tam vande raghunandanam || 31 ||
lokabhiramam ranarangadhiram
rajivanetram raghuvamsanatham |
karunyarupam karunakaram tam
sriramacandram saranam prapadye || 32 ||
manojavam marutatulyavegam
jitendriyam buddhimatam varistham |
vatatmajam vanarayuthamukhyam
sriramadutam saranam prapadye || 33 ||
kujantam rama rameti madhuram madhuraksaram |
aruhya kavitasakham vande valmikikokilam || 34 ||
apadamapahartaram dataram sarvasampadam |
lokabhiramam sriramam bhuyo bhuyo namamyaham || 35 ||
bharjanam bhavabijanamarjanam sukhasampadam |
tarjanam yamadutanam rama rameti garjanam || 36 ||
ramo rajamanih sada vijayate ramam ramesam bhaje
ramenabhihata nisacaracamu ramaya tasmai namah |
ramannasti parayanam parataram ramasya dasosmyaham
rame cittalayah sada bhavatu me bho rama mamuddhara || 37 ||
sri rama rama rameti rame rame manorame |
sahasranama tattulyam ramanama varanane || 38 ||
॥ iti shri rama raksa stotram sampoornam॥
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