Shri Ram Chalisa in Hindi
श्री राम चालीसा हिंदी में | Shri Ram Chalisa in Hindi
श्री राम चालीसा (Shri Ram Chalisa in Hindi) भगवान श्री राम की महिमा और उनकी कृपा की महत्ता को व्यक्त करने वाली एक भक्तिपूर्ण चालीसा है। यह चालीसा भगवान राम की महिमा का गान करती है और उनकी प्राप्ति के लिए भक्तों को प्रेरित करती है। यह चालीसा उनकी कृपा और सहायता के लिए भक्तों का आभास कराती है। भगवान राम के चरित्र को स्तुति के माध्यम से व्यक्त किया जाता है, जिससे भक्त उनके प्रति अपना आदर और श्रद्धा व्यक्त करते हैं।
यहां पवित्र श्रीराम चालीसा का पाठ दिया गया है, जिसका पाठ करने से भक्ति, शक्ति, और संतोष की प्राप्ति होती है। इस चालीसा का पाठ करने से मनुष्य को भगवान श्रीराम की कृपा मिलती है और उनके आदर्शों का पालन करने की शक्ति मिलती है।
राम चालीसा का पाठ करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है और वहाँ सुख-शांति का वातावरण बना रहता है। राम चालीसा का पाठ करने से हमारा मन और आत्मा शुद्ध होती है, जिससे हमारे विचार सकारात्मक होते हैं और हम अपने कर्तव्यों को सही ढंग से निभाते हैं।
बच्चों को राम चालीसा का पाठ करवाने से उनमें धैर्य, मर्यादा, समर्पण, और साहस की भावना उत्पन्न होती है। यह उन्हें सही मार्ग पर चलने की दिशा में मदद करता है और उन्हें जीवन में सफलता की ओर ले जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मंगलवार को भगवान श्रीराम संग हनुमान जी की पूजा और राम चालीसा का पाठ करने से वास्तव में अद्भुत प्रभाव होता है। यह साधक को सभी संकटों से मुक्ति प्राप्त करता है और उन्हें आत्मिक शांति और सफलता की प्राप्ति में मदद करता है।
यहां एक क्लिक में पढ़िए ~ रामायण मनका 108
॥ श्री राम चालीसा ॥
॥ चौपाई ॥
श्री रघुवीर भक्त हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ॥
निशिदिन ध्यान धेरै जो कोई। ता सम भक्त और नहि होई ॥1॥
ध्यान धरे शिवजी मन माहीं। ब्रह्म इन्द्र पार नहि पाहीं॥
दूत तुम्हार वीर हनुमाना। जासु प्रभाव तिहूं पुर जाना ॥2॥
तब भुज दण्ड प्रचण्ड कृपाला। रावण मारि सुरन प्रतिपाला॥
तुम अनाथ के नाथ गुंसाई। दीनन के हो सदा सहाई ॥3॥
ब्रह्मादिक तव पारन पावें। सदा ईश तुम्हरो यश गावें॥
चारिउ वेद भरत हैं साखी। तुम भक्तन की लज्जा राखीं ॥4॥
गुण गावत शारद मन माहीं। सुरपति ताको पार न पाहीं॥
नाम तुम्हार लेत जो कोई। ता सम धन्य और नहि होई ॥5॥
राम नाम है अपरम्पारा। चारिहु वेदन जाहि पुकारा ॥
गणपति नाम तुम्हारो लीन्हो। तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हो ॥6॥
शेष रटत नित नाम तुम्हारा। महि को भार शीश पर धारा ॥
फूल समान रहत सो भारा। पाव न कोऊ तुम्हरो पारा ॥7॥
भरत नाम तुम्हरो उर धारो। तासों कबहु न रण में हारो॥
नाम शक्षुहन हृदय प्रकाशा। सुमिरत होत शत्रु कर नाशा ॥8॥
लखन तुम्हारे आज्ञाकारी। सदा करत सन्तन रखवारी॥
ताते रण जीते नहिं कोई। युद्ध जुरे यमहूं किन होई ॥9॥
महालक्ष्मी धर अवतारा। सब विधि करत पाप को छारा ॥
सीता राम पुनीता गायो। भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो ॥10॥
घट सों प्रकट भई सो आई। जाको देखत चन्द्र लजाई ॥
सो तुमरे नित पांव पलोटत। नवो निद्धि चरणन में लोटत ॥11॥
सिदृधि अठारह मंगलकारी। सो तुम पर जावै बलिहारी ॥
औरहु जो अनेक प्रभुताई। सो सीतापति तुमहि बनाई ॥12॥
इच्छा ते कोटिन संसारा। रचत न लागत पल की बारा ॥
जो तुम्हे चरणन चित लावै। ताकी मुक्ति अवसि हो जावै ॥ 13 ॥
जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरूपा। नर्गुण ब्रह्म अखण्ड अनूपा ॥
सत्य सत्य जय सत्यव्रत स्वामी। सत्य सनातन अन्तर्यामी ॥14॥
यहां एक क्लिक में पढ़िए ~ अध्यात्म रामायण
सत्य भजन तुम्हरो जो गावै। सो निश्चय चारों फल पावै ॥
सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं। तुमने भक्तिहिं सब विधि दीन्हीं ॥15॥
सुनहु राम तुम तात हमारे। तुमहि भरत कुल पूज्य प्रचारे ॥
तुमहिं देव कुल देव हमारे। तुम गुरु देव प्राण के प्यारे ॥16॥
जो कुछ हो सो तुम ही राजा। जय जय जय प्रभु राखो लाजा ॥
राम आत्मा पोषण हारे। जय जय दशरथ राज दुलारे ॥17॥
ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरूपा। नमो नमो जय जगपति भूपा ॥
धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा। नाम तुम्हार हरत संतापा ॥18॥
सत्य शुद्ध देवन मुख गाया। बजी दुन्दुभी शंख बजाया ॥
सत्य सत्य तुम सत्य सनातन। तुम ही हो हमरे तन मन धन ॥19॥
याको पाठ करे जो कोई। ज्ञान प्रकट ताके उर होई ॥
आवागमन मिटै तिहि केरा। सत्य वचन माने शिर मेरा ॥20॥
और आस मन में जो होई। मनवांछित फल पावे सोई॥
तीनहुं काल ध्यान जो ल्यावै। तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै ॥ 21 ||
साग पत्र सो भोग लगावै। सो नर सकल सिद्धता पावै ॥
अन्त समय रघुबरपुर जाई। जहां जन्म हरि भक्त कहाई ॥22॥
श्री हरिदास कहै अरु गावै। सो बैकुण्ठ धाम को पावै ॥23॥
॥ दोहा ॥
सात दिवस जो नेम कर, पाठ करे चित लाय।
हरिदास हरि कृपा से, अवसि भक्ति को पाय ॥
राम चालीसा जो पढ़े, राम चरण चित लाय।
जो इच्छा मन में करै, सकल सिद्ध हो जाय ॥
।।इतिश्री प्रभु श्रीराम चालीसा सम्पूर्णं ।।
यह भी पढ़े
श्रीमद्भगवद्गीता प्रथम अध्याय