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Rin Mochan Mangal Stotra

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श्री ऋणमोचक मंगल स्तोत्र एवं अर्थ | Rin Mochan Mangal Stotra

ऋणमोचक मंगल स्तोत्र (Rin Mochan Mangal Stotra) एक प्रभावशाली स्तोत्र है, जो विशेष रूप से ऋण (कर्ज़) से मुक्ति और आर्थिक समृद्धि के लिए पाठ किया जाता है। यह स्तोत्र भगवान मंगल (मंगल ग्रह) की स्तुति करता है, जिन्हें ज्योतिष में साहस, पराक्रम, भूमि, ऋण और रक्त संबंधी मामलों का अधिपति माना जाता है।

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यदि कोई व्यक्ति कर्ज़ में अत्यधिक दबा हुआ हो और उसे आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा हो, तो इस स्तोत्र का नित्य पाठ अत्यंत लाभकारी होता है। जिन जातकों की कुंडली में मंगल ग्रह अशुभ फल दे रहा हो या मांगलिक दोष हो, उनके लिए यह स्तोत्र विशेष रूप से प्रभावी होता है। यह स्तोत्र साहस, शक्ति और आत्मविश्वास को बढ़ाता है, जिससे व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों में भी सफलता प्राप्त करता है।

मंगल ग्रह और उनकी महत्ता:

ज्योतिषशास्त्र में मंगल ग्रह को सेनापति का दर्जा प्राप्त है। इसे शक्ति, पराक्रम, आत्मविश्वास और भूमि-संपत्ति का कारक माना जाता है। जब किसी जातक की कुंडली में मंगल अशुभ स्थिति में होता है, तो वह व्यक्ति ऋण, विवाद, दुर्घटना, रक्त संबंधी रोग और मानसिक तनाव जैसी समस्याओं से घिर सकता है। विशेष रूप से जो लोग आर्थिक समस्याओं, कर्ज़ और व्यापारिक घाटे से परेशान होते हैं, उनके लिए यह स्तोत्र बहुत लाभकारी होता है।

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पाठ विधि और समय:

ऋणमोचक मंगल स्तोत्र (Rin Mochan Mangal Stotra) का पाठ मंगलवार के दिन विशेष रूप से किया जाता है, क्योंकि यह दिन स्वयं मंगल देव को समर्पित है। इस पाठ को सूर्योदय के समय स्नान करके लाल वस्त्र धारण कर, लाल आसन पर बैठकर करना चाहिए। साथ ही, हनुमान जी या मंगल देव के समक्ष घी का दीपक जलाकर, चंदन, लाल फूल और गुड़-चना अर्पित करके स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पाठ करना चाहिए।

स्तोत्र के पाठ से मिलने वाले लाभ:

यदि किसी व्यक्ति पर भारी कर्ज़ है और वह आर्थिक परेशानियों से जूझ रहा है, तो ऋणमोचक मंगल स्तोत्र (Rin Mochan Mangal Stotra) का पाठ अत्यंत लाभकारी होता है। जिनकी कुंडली में मंगल दोष है, वे इस स्तोत्र के माध्यम से शुभ फल प्राप्त कर सकते हैं। इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से करियर, व्यापार और नौकरी में सकारात्मक परिणाम मिलते हैं। ऋणमोचक मंगल स्तोत्र पढ़ने से व्यक्ति को आत्मिक शांति मिलती है, जिससे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। पारिवारिक जीवन में तनाव और क्लेश को दूर करने के लिए यह स्तोत्र अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है।

जो भी श्रद्धालु इस स्तोत्र का नियमपूर्वक पाठ करता है, उसे शीघ्र ही ऋणों से मुक्ति प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। ऋणमोचक मंगल स्तोत्र (Rin Mochan Mangal Stotra) विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी है जो कर्ज़ के बोझ से परेशान हैं और आर्थिक संकटों का सामना कर रहे हैं।

यहां एक क्लिक में पढ़ें ~ श्री भक्तमाल हिंदी में

 

श्री ऋणमोचक मंगल स्तोत्र

मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः।
स्थिरासनो महाकायः सर्वकर्मावरोधकः॥

Mangalo bhumiputrashcha runaharta dhanapradah।
Sthirasano mahakayah sarvakarmavarodhakah॥ ॥1॥

अर्थ: हे मंगल देव! शास्त्रों में आपके जो नाम बताए गए हैं, उनमें पहला नाम मंगल, दूसरा भूमिपुत्र, अर्थात पृथ्वी से उत्पन्न हुए, तीसरा ऋणहर्ता यानी कर्ज से मुक्ति दिलाने वाले, चौथा धनप्रद यानी धन देने वाले, पाँचवाँ स्थिरासन यानी जो अपने आसन पर स्थिर रहते हैं, छठा महाकाय यानी बड़े शरीर वाले, और सातवाँ नाम सर्वकामावरोधक यानी सभी प्रकार की बाधाओं को दूर करने वाले हैं।

लोहितो लोहिताङ्गश्च सामगानां कृपाकरः।
धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः॥

Lohito lohitangashcha samaganaan krupakarah।
Dharatmajah kujo bhaumo bhutido bhuminandanah॥ ॥2॥

अर्थ: हे मंगल देव! आपके नामों में आठवां नाम लोहित, नवां लोहितांग, दसवां सामगानां यानी सामवेद ब्राह्मणों पर कृपा दृष्टि रखने वाले, ग्यारहवां धरात्मज यानी पृथ्वी के गर्भ से उत्पन्न हुए, बारहवां कुज, तेरहवां भौम, चौदहवां भूतिद यानी ऐश्वर्य प्रदान करने वाले, और पंद्रहवां नाम भूमि नंदन यानी पृथ्वी को आनंद देने वाले हैं।

अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः।
वृष्टे कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः॥

Angarako yamashchaiv sarvarogapaharakah।
Vrushte karta’paharta ch sarvakamafalapradah॥ ॥3॥

अर्थ: हे मंगल देव! आपके नामों में सोलहवां नाम अंगारक, सत्रहवां यम, अठारवां सर्व रोग पहारक यानी सभी रोगों को दूर करने वाले, उन्नीसवां वृष्टिकर्ता यानी वर्षा कराने वाले, बीसवां वृष्टिहर्ता यानी अकाल लाने वाले और इक्कीसवां सर्वकाम फलप्रदा यानी सभी कामनाओं का फल देने वाले हैं।

यहां एक क्लिक में पढ़ें ~ श्री कनकधारा स्तोत्र

एतानि कुजनामानि नित्यं यः श्रद्धया पठेत्।
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात्॥

Etani kujanamani nityan yah shraddhaya pathet।
runan n jayate tasya dhanan shighramavapnuyat॥ ॥4॥

अर्थ: हे मंगल देव! जो व्यक्ति आपके इन इक्कीस नामों का सच्चे मन और विश्वास के साथ जाप करता है, उस पर कभी कर्ज का बोझ नहीं आता और उसे अपार धन की प्राप्ति होती है।

धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्ति-समप्रभम्।
कुमारं शक्तिहरतं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम्॥

Dharanigarbhasambhutan vidyutkanti-samaprabham।
Kumaran shaktiharatan ch mangalan pranamamyaham॥ ॥5॥

अर्थ: हे मंगल देव! आपकी उत्पत्ति पृथ्वी के गर्भ से हुई है, आपकी आभा आकाश में चमकने वाली बिजली के समान है। सभी प्रकार की शक्ति के धारणकर्ता कुमार मंगल देव को मैं नतमस्तक होकर प्रणाम करता हूँ।

स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत् पठनीयं सदा नृभिः।
न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्॥

Stotramangarakasyaitat pathaniyan sada nrubhiah।
N teshaan bhaumaja pida svalpa’pi bhavati kvachit॥ ॥6॥

अर्थ: हे मंगल देव! आपके मंगल स्तोत्र का पाठ मनुष्य को सच्ची श्रद्धा और आस्था के साथ करना चाहिए, जिससे मन के सभी विकार दूर हों। जो भी व्यक्ति इस मंगल स्तोत्र का पाठ करता है और दूसरों को सुनाता है, उसके सभी दुख और कष्ट मिट जाते हैं।

अङ्गारक! महाभान! भगवन्! भक्तवत्सल!
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय॥

Angaraka! Mahabhana! Bhagavan! Bhaktavatsala!
Tvaan namami mamasheshamrunamashu vinashaya॥7॥

अर्थ: हे अंगारक, अग्नि की ज्वाला से जलने वाले, महाभाग अर्थात पूजनीय, ऐश्वर्यशाली, भक्तों के प्रति वात्सल्य भाव रखने वाले! आपको हम नमन करते हैं। कृपा करके हमारे ऊपर से किसी भी प्रकार का ऋण समाप्त कर, हमें कर्ज से मुक्त कर दीजिए।

ऋणरोगादि-दारिद्रयं ये चाऽन्ये ह्यपमृत्यवः।
भय-क्लेश-मनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा॥

runarogadi-daridrayan ye cha’nye hyapamrutyavah।
Bhaya-klesha-manastapa nashyantu mam sarvada॥ ॥8॥

अर्थ: हे मंगल देव! यदि मेरे ऊपर किसी का भी कर्ज हो तो उसे समाप्त कर दें, किसी भी रोग या व्याधि को दूर कर दें। मेरी गरीबी को हटाकर अकाल मृत्यु के भय को समाप्त कर दें। किसी प्रकार का भय, क्लेश या मन का दुःख हो तो कृपया उसे भी सदा के लिए दूर कर दें।

अतिवक्र! दुराराध्य! भोगमुक्तजितात्मनः।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्॥

Ativakra! Duraradhya! Bhogamuktajitatmanah।
Tushto dadasi samrajyan rushto harasi tatkshanat॥ ॥9॥

अर्थ: हे मंगल देव! आपको प्रसन्न करना अत्यंत कठिन है, आप केवल दृढ़ संकल्प और श्रद्धा से प्रसन्न होते हैं। लेकिन जब आप किसी पर कृपा करते हैं, तो उसे सुख-समृद्धि से परिपूर्ण कर देते हैं। और जब आप नाराज होते हैं, तो उसकी हर तरह की सम्पन्नता को नष्ट कर सकते हैं।

विरिञ्च-श्क्र-विष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा।
तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः॥

Virianchishakravishnunaan manushyanaan tu ka katha ।
Ten tvan sarvasattven graharajo mahabalah ॥10॥

अर्थ: हे महाराज! जब आप किसी पर क्रोधित होते हैं, तो अपनी कृपा दृष्टि से उसे वंचित कर देते हैं। आपकी नाराजगी से ब्रह्मा, इन्द्र और विष्णु के साम्राज्य भी नष्ट हो सकते हैं, तो मुझ जैसे साधारण व्यक्ति की तो बात ही क्या है। आप सबसे शक्तिशाली और सबसे बड़े देव हैं।

पुत्रान् देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गताः।
ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः॥

Putran dehi dhanan dehi tvamasmi sharanan gataah।
runadaridrayaduahkhen shatrunaan ch bhayattatah॥ ॥11॥

अर्थ: हे भगवान! मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप मुझे संतान का वरदान दें। आपके द्वार पर आया हूँ, कृपा कर मेरी मनोकामना पूरी करें। मेरे ऊपर किसी का कर्ज न रहे, मुझे कभी किसी के सामने हाथ न फैलाना पड़े, मेरी गरीबी दूर हो और मेरे सभी कष्टों का नाश हो। मेरे शत्रुओं से भी मुझे मुक्त कराएं।

एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम्।
महतीं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा॥

Ebhirdvadashabhiah shlokairyah stauti ch dharasutam।
Mahatian shriyamapnoti hyaparo dhanado yuva॥ ॥12॥

अर्थ: जो व्यक्ति इन बारह श्लोकों वाले ऋणमोचक मंगल स्तोत्र से आपकी स्तुति करता है, उस पर आप प्रसन्न होकर उसे धन-धान्य प्रदान करते हैं। वह व्यक्ति कुबेर की तरह धन-संपत्ति का स्वामी बनता है और सदा यौवन से परिपूर्ण रहता है।

॥ इति श्री ऋणमोचक मङ्गलस्तोत्रम् सम्पूर्णम्॥

॥ it is shri runamochak mangalastotram sampurnam ॥

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