वाल्मीकि रामायण हिंदी में
हिंदू धर्म साहित्य के दो मुख्य महाकाव्य रामयण और महाभारत है। यह दोनों महाकाव्य रामायण और महाभारत को संस्कृत साहित्य का इतिहास माना जाता है, और हिन्दुओ का लोकप्रिय ग्रंथ है। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण (Ramayan in Hindi) महाकाव्य जो संस्कृत भाषा में लिखा गया है। रामायण को संस्कृत में रामायणम् कहते हे, इसका अर्थ राम + आयणम् जो श्री राम की जीवन गाथा का महाकाव्य है। रामायण में सात काण्ड है, और 24,000 श्लोक लिखे गये हैं। बाद में संस्कृत और भारतीय भाषा में महाकाव्य रामायण का बहोत ज्यादा सामर्थ्य रहा है।
गायत्री मंत्र में 24 अक्षर होते हैं इसलिए यह मान्यता है कि गायत्री मंत्र आधार मानकर रामायण में 24,000 श्लोक लिखे गये हैं। हर एक 1000 श्लोक के बाद गायत्री मंत्र के नये अक्षर से नया श्लोक शुरू होता है।
रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ॥
रामं रामानुजं सीतां भरतं भरतानुजम् ।
सुग्रीवं वायुसूनुं च प्रणमामि पुनः पुनः ॥
वेदवेद्ये परे पुंसि जाते दशरथात्मजे।
वेदः प्राचेतसादासीत् साक्षाद् रामायणात्मना ॥
वेद जिस परमतत्त्व का वर्णन करते हैं। वही श्री हरी नारायण श्री राम रूप से निरूपित है। श्री राम के रूप में जन्म होनेपर साक्षात् वेद ही श्री वाल्मीकिके मुखसे रामायण (Ramayan in Hindi) रूप में प्रकट हुए, ऐसी आस्तिकों की दीर्घकाल से मान्यता है। इसलिये महर्षि वाल्मीकि रामायण की वेद तुल्य ही प्रतिष्ठा है। इसलिए की महर्षि वाल्मीकि आदिकवि हैं, अत: विश्व के समस्त कवियों के गुरु हैं। उनका आदिकाव्य वाल्मीकि रामायण भूतलका प्रथम काव्य है। वह सभीके लिये पूज्य वस्तु है। भारतके लिये तो वह परम गौरवकी वस्तु है,और देशकी सच्ची बहुमूल्य राष्ट्रीय प्रदान करने के लिए है। इस नाते भी वह सबके लिये संग्रह, पठन, मनन एवं श्रवण करनेकी वस्तु है। इसका एक-एक अक्षर महा पाप नाश करनेवाला है।
यहां एक क्लिक में पढ़ें ~ रघुवंशम् महाकाव्य प्रथमः सर्गः
Table of Contents
Toggleपरिचय :-
रामायण (Ramayan in Hindi) एक संस्कृत महाकाव्य है जिसकी रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी। दोस्तों यह भारतीय साहित्य के दो विशाल महाकाव्यों में से एक है, जिसमें दूसरा महाकाव्य महाभारत है। हिंदू धर्म में रामायण का एक महत्वपूर्ण स्थान है जिसमें हम सबको रिश्तो के कर्तव्यों को समझाया गया है। रामायण महाकाव्य में एक आदर्श पिता, आदर्श पुत्र, आदर्श पत्नी, आदर्श भाई, आदर्श मित्र, आदर्श सेवक और आदर्श राजा को दिखाया गया है। इस महाकाव्य में भगवान विष्णु के रामावतार को दर्शाया गया है उनकी चर्चा की गई है। रामायण महाकाव्य में 24000 श्लोक और 500 उपखंड हैं जो कि 7 काण्ड में विभाजित हैं।
रामायण (Ramayan in Hindi) के 7 कांड हैं :-
1) बालकांड
2) अयोध्याकांड
3) अरण्यकांड
4) किष्किन्धाकाण्ड
5) सुंदरकांड
6) युद्धकांड
7) उत्तरकांड
यहां एक क्लिक में पढ़ें ~ रामोपासना अगस्त्य संहिता
रचनाकाल :-
रामायण (Ramayan in Hindi) का समय विद्वानों की मान्यता अनुसार त्रेतायुग माना जाता है। आदिशंकराचार्य और विद्वानों के मुताबिक भगवान विष्णु का राम अवतार श्वेतवाराह कल्प के सातवें वैवस्वत मन्वन्तर के चौबीसवें त्रेता युग में हुआ था। श्री राम का जीवन काल लगभग 1 करोड़ 83 लाख वर्ष पूर्व का है। इसके वर्णित प्रसंग में भुशुण्डि रामायण, पद्मपुराण, हरिवंश पुराण, वायु पुराण, संजीवनी रामायण और पुराणों से प्रमाण दिया जाता है।
महाकाव्य की ऐतिहासिक वृद्धि और संरचनागत परतों को जानने के लिए कई प्रयास किए गए हैं; 7 वीं से 4 वीं शताब्दी ई.पू में पाठ श्रेणी के शुरुआती चरण के लिए विभिन्न विद्वानों के अनुमान बाद के चरणों के साथ तीसरी शताब्दी सीई तक फैले हुए हैं।
यहां एक क्लिक में पढ़े ~ वाल्मीकि रामायण अंग्रेजी में
महर्षि वाल्मीकि परिचय :-
महर्षि वाल्मीकि को कुछ लोग निम्न जातिका बतलाते हैं। पर वाल्मीकि रामायण तथा अध्यात्म रामायण में इन्होंने स्वयं अपनेको प्रचेता का ओरस पुत्र कहा है। मनुस्मृति में प्रचेतसं वसिष्ठं च भृगुं नारदमेव च प्रचेताको वसिष्ठ, नारद, पुलस्त्य, कवि आदिका भाइ लिखा है। स्कन्द पुराण के वैशाख माहात्म्य में इन्हें जन्मान्तर का व्याध बतलाया है। इससे सिद्ध है कि जन्मान्तर में ये व्याध थे। व्याध-जन्मके पहले भी स्तम्भ नामके श्री वत्सगोत्रीय ब्राह्मण थे। व्याध-जन्ममें शङ्ख ऋषिके सत्सङ्ग से राम नाम के जप से ये दूसरे जन्म में ‘अग्निशर्मा’ (मतान्तरसे रत्नाकर) हुए। वहाँ भी व्याधों के सङ्गसे कुछ दिन निश्चित संस्कार वश व्याध-कर्म में लगे। फिर, सप्तर्षियों के सत्संग से मरा-मरा जप कर वल्मीक ( दीमक का लगाया हुआ मिट्टी का ढेर ) पड़ने से वाल्मीकि नाम से ख्यात हुए, और वाल्मीकि ने रामायण की रचना की। बंगला के कृत्तिवास रामायण, मानस, अध्यात्मरामा, आनन्द रामायण राज्य काण्ड भविष्य पुराण प्रतिसर्ग में भी यह कथा थोड़े घमाव-फिराव स्पष्ट है। गोस्वामी तुलसीदासजीने वस्तुतः यह कथा निराधार नहीं लिखी। इसलिए इन्हें नीच जातिका मानना सर्वथा भ्रम है।
यह भी पढ़े
श्री योगवाशिष्ठ महारामायण हिंदी में
Please wait while flipbook is loading. For more related info, FAQs and issues please refer to DearFlip WordPress Flipbook Plugin Help documentation.