नीति शतक हिंदी में
संस्कृत साहित्य में राजर्षि योगिन्द्र भर्तुहरि की तीन शतक “नीति शतक (Niti shatakam)”, “श्रृंगारशतक” और “वैराग्यशतक” त्रिवेणीगंगा की तीन धाराओं की तरह लोगों को पवित्र करने के लिए प्रवाहित होती हैं! आचार्य भर्तृहरि की कमनीय रचना नीतिशतकम् नीतिशास्त्र का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। यह ग्रन्थ इस विषय का प्रतिनीधि काव्य है। नीतिशतकम् में उदात्त गुणों का समावेश है जिनका अनुशीलन समग्र मानव समाज का परम मंगल साधक है। किं बहुना जीवन मूल्यों की शिक्षा देने वाला ऐसा ग्रन्थ विश्व भाषा साहित्य में उपलब्ध नहीं है।
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नीति- शतक (Niti shatakam) सचमुच ही एक अपूर्व ग्रन्थ है। हम जब कभी ध्यान के साथ उसका पारायण करने बैठते हैं, तभी ऐसा मालूम होता है, मानो संसार में जो कुछ भी महान् है, जो कुछ भी सुन्दर है और जो कुछ भी नवीन, निष्पाप, निर्मल और मनोहर है, वह सब एकत्र संकलन करके, जिस स्थान पर जिसका समावेश करने से उसकी सुन्दरता और निर्मलता और भी बढ़ाई जा सकती है, वह उसी स्थान पर उसी ढंग से बैठाया गया है। “नीति शतक” में यद्यपि सौ श्लोक हैं”, किन्तु इन सौ श्लोकों में जो कुछ भी कहा गया है, उसकी तुलना अन्य देशों के सौ नीति ग्रन्थ भी नहीं कर सकते।
संसार में रह कर, जीवन में जय पाने के लिये, नीतिमान बनने की नितान्त आवश्यकता है। नीति से हम, अकेले होने पर भी, अनन्त सेना को परास्त कर सकते हैं और एक स्थान पर बैठे बैठे समस्त भूमण्डल पर शासन कर सकते हैं। जो व्यक्ति जितना अच्छा नीतिज्ञ है, वह उतना ही दुर्जय है। सारांश यह, कि संसार की जटिल से जटिल समस्याओं का निराकरण एकमात्र नीति द्वारा ही हो सकता है। महात्मा शुक्र ने बहुत ही ठीक कहा है, व्याकरण से शब्द और अर्थ का ज्ञान होता है, न्याय और तर्कशास्त्र से जगत के पदार्थों का ज्ञान होता है और वेदान्त से संसार की असारता और देह की अनित्यता का ज्ञान होता है; किन्तु लौकिक व्यवहार में इन शास्त्रों से कुछ भी प्रयोजन नहीं निकलता। सांसारिक कार्य व्यवहार – निर्वाह करने और सुखपूर्वक जीवन यापन करने के लिए जिस चीज़ की आवश्यकता है, वह “नीतिशास्त्र” है । इस शास्त्र का ज्ञान महलों में रहने वाले राजा से लेकर कुटीर निवासी क्षुद्र मनुष्य तक के लिए समान भाव से होना ज़रूरी है। अतः कहना चाहिये कि नीति का अपूर्व माहात्म्य है।
संस्कृत साहित्य में प्रधानतः बिदुर नीति, भर्तृहरि नीति और चाणक्य नीति का विशेष आदर है। उनमें भी पण्डित लोग जितना आदर भर्तृहरि की नीति का करते हैं, उतना अन्य किसी की नीति का नहीं। इसी से हमने इसे अपूर्व नीतिग्रन्थ कहा है।
‘नीतिशतक’ (Niti shatakam) में कवि ने परोपकारिता, वीरता, साहस, उद्योग, उदारता जैसे उदान्त गुणों को ग्रहण करने के लिए आग्रह किया है, जिनको प्राप्त करने पर समस्त मानवता का कल्याण हो सकता है। कवि दुर्लभ मानव जीवन को सद्गुणों के उपार्जन से सार्थक बनाने के पक्ष में हैं। उनके विचारमें ‘जो व्यक्ति दुर्लभ मानव शरीर पाकर भी यदि सद्गुणों का संचय नहीं करता, तो वह उस मूर्ख के समान उपहासास्पद है जो वैदूर्य-मणि के बने हुए पात्र में चन्दन की लकडी से लहसुन पकाता है, अथवा जो सुवर्ण निर्मित हलसे अर्क (आक) की जड़ प्राप्त करने के निमित्त जमीन को जोतता है।” उसके विचार में इस संसार में निभने के लिए मनुष्य मे विविधता से परिपूर्ण दक्षता आवश्यक है।
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