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Navaratri – नवरात्रि

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Navaratri – नवरात्रि

नवरात्रि (Navaratri) में आदिशक्ति माँ दुर्गा के नौ स्वरूप की महिमा है निराली,
जानिए नौ देवियों के नाम, मंत्र और स्तोत्र

नवरात्रि (Navaratri) जिसका अर्थ होता है ‘नौ रातें’ देवी दुर्गा के नौ अवतारों की विशेष पूजा करने की विशेष रात्रि को नवरात्री कहते है। नवरात्रि (Navaratri) का त्यौहार साल में दो बार आता है। पहली नवरात्री विक्रम संवत के चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पहली तिथि पर आती है, और दूसरी नवरात्री आश्विन मास शुक्ल पक्ष में पहली तिथि पर आती है।

इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान,शक्ति के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दसवाँ दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है। नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों – महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली के नौ अवतारों की पूजा की जाती है। यह अवतारों के नाम क्रमशः इस प्रकार आता है, नन्दा देवी योगमाया, रक्तदंतिका, शाकम्भरी, दुर्गा, भीमा और भ्रामरी नवदुर्गा कहते हैं।

मार्कंडेय पुराण के 81वें अध्याय से 93 वें अध्याय तक को ‘ देवी माहत्म्य ‘ या ‘ चंडी देवी भागवत ‘ कहा जाता है। इसमें 700 श्लोक हैं। 700 श्लोकों के कारण यह ” श्री दुर्गा सप्तशती ” के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें शक्ति साधना का मात्र आह्वान ही नहीं किया गया है , अपितु तदर्थ प्रभावी संगठन-तंत्र की आवश्यकता का निरूपण भी बड़े सुग्राह्य रूप से हुआ है।

 

चैत्र नवरात्रि (Navaratri):

चैत्र नवरात्रि हिंदू धर्म के एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो भारत में हर साल चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम नवरात्रि से शुरू होता है। चैत्र नवरात्रि आमतौर पर मार्च के अंत या अप्रैल की शुरुआत में पड़ता है। यह नौ दिवसीय त्यौहार है जो चैत्र में बढ़ते चंद्रमा के पहले दिन से शुरू होता है, और यह भगवती देवी माँ दुर्गा के नौ रूपों का सम्मान करने के लिए मनाया जाता है।

चैत्र नवरात्रि के दौरान, भक्त देवी माँ का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रार्थना, उपवास और विभिन्न अनुष्ठान करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इन अनुष्ठानों को भक्ति और समर्पण के साथ करने से व्यक्ति आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर सकता है और नकारात्मक ऊर्जा से छुटकारा पा सकता है।

त्योहार हिंदू पौराणिक कथाओं में बहुत महत्व रखता है और पूरे भारत में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस अवधि के दौरान, देवी दुर्गा अपने भक्तों को आशीर्वाद देने और उन्हें बुराई और नकारात्मकता से बचाने के लिए स्वर्ग से उतरती हैं।

चैत्र नवरात्रि का समापन भगवान राम के जन्मोत्सव रामनवमी के साथ होता है, जो त्योहार के नौवें दिन पड़ता है। त्योहार आध्यात्मिक प्रतिबिंब, शुद्धिकरण और नवीकरण का समय है, और यह हिंदू संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

शारदीय नवरात्रि:

शारदीय नवरात्रि भी चैत्र नवरात्रि की तरह हिन्दू धर्म के प्रमुख पर्वों में से एक है, जिसे देवी दुर्गा की उपासना के लिए मनाया जाता है। यह पर्व शरद ऋतु में आता है, इसलिए इसे “शारदीय नवरात्रि” कहा जाता है। नवरात्रि का अर्थ है “नौ रातें”, और इन नौ दिनों में देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। ये नौ रूप हैं – शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री।

यह पर्व अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तक मनाया जाता है, जो आमतौर पर सितंबर या अक्टूबर में पड़ता है। इस अवधि को धार्मिक दृष्टि से बहुत शुभ माना जाता है और यह विजयादशमी या दशहरे के दिन समाप्त होती है। शारदीय नवरात्रि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दोनों दृष्टियों से अत्यधिक है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, क्योंकि देवी दुर्गा ने महिषासुर जैसे असुरों का वध कर संसार में शांति और धर्म की स्थापना की थी।

शारदीय नवरात्रि का सांस्कृतिक महत्व भी बहुत व्यापक है। इस दौरान विभिन्न क्षेत्रों में रामलीला, गरबा, डांडिया जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। यह समाज को एकजुट करने और धार्मिक भावना को प्रबल करने का एक महत्वपूर्ण अवसर होता है।

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माँ दुर्गा के 9 स्वरूपों:-

1) शैलपुत्री
नवरात्रि (Navaratri) के पहला दिन शैलपुत्री की पूजा अर्चना करके मनाया जाता है। माँ शैलपुत्री पहाड़ो के राजा हिमालय की पुत्री है। नवरात्री के प्रथम दिन भक्तो द्वारा माँ शैलपुत्री की पूजा करने से ऊर्जा प्राप्त होती है। माँ शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल-पुष्प से विख्यात है।

वन्दे वंछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् |
वृषारूढाम् शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ||

!! मंत्र !!
ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः ।
ॐ शं शैलपुत्री देव्यैः नमः ।

!! स्तोत्र !!
प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागरः तारणीम् ।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम् ॥
त्रिलोजननी त्वंहि परमानन्द प्रदीयमान् ॥
सौभाग्यरोग्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम् ॥
चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह विनाशिनीं ।
भुक्ति, मुक्ति दायिनीं शैलपुत्री प्रणमाम्यहम् ॥

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2) ब्रह्मचारिणी
नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना करके मनाया जाता है। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। साधक अपने मन को माँ ब्रह्मचारिणी के चरणों में लगाते हैं। भविष्य पुराण के अनुसार माँ ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में जप की माला और बाएँ हाथ में कमण्डल रहता है। माँ दुर्गाजी का ब्रह्मचारिणी दूसरा स्वरूप हे, यह स्वरूप भक्तों और उपासको को अनन्तफल देने वाला कहा है।

दधाना कर पद्माभ्यामक्ष माला कमण्डलु |
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ||

!! मंत्र !!
ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः ॥
ॐ ब्रां ब्रीं बौं ब्रह्मचारिणीय नमः ॥

!! स्तोत्र !!
तपश्चारिणीत्वंहितापत्रयनिवारिणीम् ।
ब्रह्मरूपधराब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम् ॥
नवचक्रभेदनी त्वंहिनवऐश्वर्यप्रदायनीम् ।
धनदासुखदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम् ॥
शंकरप्रियात्वंहिभुक्ति – मुक्ति दायिनी ।
शान्तिदामानदा, ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम् ॥

 

3) चंद्रघंटा
नवरात्रि के तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा की पूजा अर्चना करके मनाया जाता है। माँ दुर्गाजी की तीसरी शक्ति माँ चंद्रघंटा की पूजा का अत्यधिक महत्व है। माँ चंद्रघंटा परम शांतिदायक और कल्याणकारी स्वरूप है। माँ दुर्गाजी की तीसरी शक्ति के मस्तक में अर्धचंद्र है, इसी कारण से इन्हें माँ चंद्रघंटा कहा जाता है। इनकी आराधना करने से समस्त पाप और बाधाएँ नष्ट हो जाती हैं।

पिण्डजप्रवरारुढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता |
प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता ||

!! मंत्र !!
ऐं श्रीं शक्तयै नमः ॥
ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः ॥

!! स्तोत्र !!
आपदुद्धारिणी त्वंहि आद्या शाक्तिः शुभपराम् ।
अणिमादि सिद्धिदात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम् ॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टम् मंत्र स्वरूपिणीम् ।
धनदात्री, आनंददात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम् ॥
नानारूपधारिणी इच्छामयी ऐश्वर्यदायिनीम् ।
सौभाग्यारोग्य दायिनी चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम् ॥

 

4) कूष्माण्डा
नवरात्रि के चौथे दिन माँ कूष्माण्डा की पूजा अर्चना करके मनाया जाता है। माँ कूष्माण्डा की आठ भुजाएँ हैं, इसलिए ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी जग विख्यात हैं। इनकी उपासना करने से समस्त भक्तों के रोग-शोक मिट जाते हैं। मनुष्य सच्चे हृदय से माँ कूष्माण्डा के शरणागत हो जाये तो परम पद प्राप्त होता है।

सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥

!! मंत्र !!
ऐं ही दैव्यै नमः ।
ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः ।

!! स्तोत्र !!
दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशिनीम् ।
जयंदा धनदां कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम् ॥
जगन्माता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम् ।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम् ॥
त्रैलोक्यसुन्दरी त्वांहि दुःख शोक निवारिणीम् ।
परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम् ॥

5) स्कंदमाता
नवरात्रि के पांचवे दिन को माँ स्कंदमाता की पूजा अर्चना करके मनाया जाता है। स्कंदमाता की उपासना करने से मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं। इस स्वरूप को भगवान स्कंद की माता होने के कारण स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। स्कंदमाता की चार भुजाएँ हैं। शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि में पाँचवें दिन स्कंदमाता की पूजा करने का अधिक महत्व बताया गया है।

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदाऽस्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ॥

!! मंत्र !!
ॐ स्कन्दमात्रै नमः ।
ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः ।

!! स्तोत्र !!
नमामि स्कन्धमातास्कन्धधारिणीम् ।
समग्रतत्वसागरमपारपारगहराम् ॥
शिप्रभांसमुल्वलांस्फुरच्छशागशेखराम्।
ललाटरत्नभास्कराजगतप्रदीप्तभास्कराम् ॥
महेन्द्रकश्यपा चतांसनत्कुमारसंस्तुताम् ।
सुरासेरेन्द्रवन्दितांयथार्थ निर्मलादभुताम् ॥
मुमुक्षुमि वचिन्तितांविशेषतत्वमूचिताम् ।
नानालंकारभूषितांकृगेन्द्रवाहनाग्रताम् ॥
सुशुद्धतत्वातोषणांत्रिवेदमारभषणाम् ।
सुधामककौपकारिणी सुरेन्द्रवैरिघातिनीम् ॥
शुभां पुष्पमालिनीसुवर्णकल्पशाखिनीम् ।
तमोअन्कारयामिनीशिवस्वभावकामिनीम् ।।
सहस्त्रसूर्यराजिकांधनज्जयोग्रकारिकाम् ।
सुशुद्धकाल कन्दलांसुभृडकृन्दमज्जुलाम् ॥
प्रजायिनीप्रजावती नमामिमातरंसतीम् ।
स्वकर्मधारणेगतिंहरिप्रयच्छपार्वतीम् ॥
इनन्तशक्तिकान्तिदायशोथुमक्तिदाम् ।
पुनः पुनर्जगद्धितांनमाम्यहंसुरा चताम् ॥
ज्येश्वरित्रिलोचनेप्रसीददेवि पाहिमाम् ॥

 

6) कात्यायनी
नवरात्रि के छठवें दिन को माँ कात्यायनी की पूजा अर्चना करके मनाया जाता है। महर्षि कात्यायन के वहाँ माँ पार्वती ने पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इसलिए कात्यायनी नाम से विख्यात है। माँ कात्यायनी की उपासना करने से फल स्वरुप अद्भुत शक्ति का संचार होता है।

चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहन ।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी ॥

!! मंत्र !!
क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नमः ॥
ॐ देवी कात्यायन्यै नमः ॥
ॐ कात्यायिनी देव्ये नमः ॥
ॐ ह्रीं क्लीं कात्यायेने नमः ॥

!! स्तोत्र !!
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां ।
स्मेरमुखी शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोऽस्तुते ॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां ।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोऽस्तुते ॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा ।
परमशक्ति, परमभक्ति, कात्यायनसुते नमोऽस्तुते ॥

 

7) कालरात्रि
नवरात्रि के सातवें दिन को माँ कालरात्रि की पूजा अर्चना करके मनाया जाता है। माँ दुर्गा के कालरात्रि स्वरुप की उपासना करने से ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुल जाते है। माँ कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत भयानक है। कालरात्रि सदैव शुभ फल देने वाली माँ है। इसलिए इन्हे माँ शुभंकारी के नाम से विख्यात है।

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥

!! मंत्र !!
ॐ देवी कालरात्र्यै नमः ॥
ॐ ऐं ह्रीं क्रीं कालरात्रै नमः ॥
क्लीं ऐं श्री कालिकायै नमः ॥

!! स्तोत्र !!
हीं कालरात्रि श्रीं कराली च क्लीं कल्याणी कलावती ।
कालमाता कलिदर्पधनी कमदीश कुपान्विता ॥
कामबीजजपान्दा कमबीजस्वरूपिणी ।
कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी ॥
क्लीं ह्रीं श्रीं मन्त्रवर्णेन कालकण्टकघातिनी ।
कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा ।।

 

8) महागौरी
नवरात्रि के आठवें दिन को महागौरी की पूजा अर्चना करके मनाया जाता है। महागौरी का वर्ण पूर्णतः गौर और गौरता की उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। महागौरी की आयु 8 वर्ष मानी जाती है। माँ महागौरी का ध्यान, स्मरण, पूजन-आराधना करने से भक्तो को अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है।

श्वेते वृषे समारुढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥

!! मंत्र !!
ॐ देवी महागौर्यै नमः ॥
श्री क्ली ह्रीं वरदायै नमः ॥

!! स्तोत्र !!
सर्वसंकट हंत्रीत्वांहिधन ऐश्वर्य प्रदानीम् ।
ज्ञानदाचतुर्वेदमयी, महागौरीप्रणमाम्यहम् ॥
सुख शांति दात्री, धन धान्य प्रदायनीम् ।
डमरूवाघप्रिया अज्ञा महागौरीप्रणमाम्यहम् ॥
त्रैलोक्यमंगल त्वंहि तापत्रय हाहिणीम् ।
वददं चैतन्यमयी महागौरी प्रणमाम्यहम् ॥

 

9) सिद्धिदात्री
नवरात्रि के नौवें दिन को माँ सिद्धिदात्री की पूजा अर्चना करके मनाया जाता है। माँ दुर्गाजी की नौवीं शक्ति माँ सिद्धिदात्री सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ उपासना करने से सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व- ये आठ सिद्धियाँ हैं। सिद्धिदात्री माँ की उपासना पूर्ण होने के बाद सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।

सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमसुरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥

!! मंत्र !!
ह्रीं क्लीं ऐं सिध्दये नमः ॥
ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः ॥ !!

स्तोत्र !!
कञ्चनाभा शङ्खचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो ।
स्मेरमुखी शिवपत्नी सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते ॥
पटाम्बर परिधानां नानालङ्कार भूषिताम् ।
नलिस्थिताम् नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोऽस्तुते ॥
परमानन्दमयी देवी परब्रह्म परमात्मा ।
परमशक्ति, परमभक्ति, सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते ।
विश्वकर्ती, विश्वभर्ती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता ।
विश्व वार्चिता, विश्वातीता सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते ॥
भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी ।
भवसागर तारिणी सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते ॥
धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनीं ।
मोक्षदायिनी सिद्धिदायिनी सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते ॥

यहां एक क्लिक में पढ़ें ~ माँ दुर्गा की आरती हिंदी में

नवरात्रि त्यौहार मनाये जाने की कथा:-

रामयण में ब्रह्माजी ने भगवान श्री राम को रावण का वध करने के लिए चंडी देवी का विधि-विधान से पूजन करने को कहा था। श्री राम को चंडी पूजन और हवन के लिए 108 नीलकमल की वानर सेना द्वारा व्यवस्था की गई थी। यह सुनकर रावण ने भी अमर होने के लिए चंडी पाठ ब्राह्मणो द्वारा शुरू करवाया था। रावण ने अपनी मायावी शक्ति से भगवान श्री राम के पूजा स्थल से हवन सामग्री में से एक नीलकमल चुरा लिया। क्योकि श्री राम का संकल्प टूट जाये और देवी माँ रुष्ट जाएँ।

श्री राम को पता चला की हवन सामग्री में एक नीलकमल कम है, और तत्काल व्यवस्था करना असंभव है। तब श्री राम को स्मरण हुआ कि मुझे लोग ‘कमलनयन नवकंच लोचन’ कहते हैं, तो संकल्प पूरा करने के लिए एक नेत्र अर्पित कर देता हु। श्री राम जैसे ही नेत्र निकालने के लिए बाण हाथ में लिया तब देवी प्रकट हुई कहा मैं प्रसन्न हूँ और विजयश्री का आशीर्वाद देती हु।

लंका में रावण के यज्ञ में हनुमानजी ब्रह्मण का रूप लेकर सेवा करने लगे। हनुमानजी की निःस्वार्थ सेवा देखकर ब्राह्मणों प्रसन्न होकर वर माँगने को कहा। हनुमान ने कहा
की आप प्रसन्न हैं तो जिस मंत्र से यज्ञ कर रहे हैं, उस मंत्र का एक अक्षर मेरे कहने से बदल दीजिए। ब्रह्मणो ने तथास्तु कह दिया। हनुमानजी ने कहा इस मंत्र में जयादेवी… भूर्तिहरिणी में ‘ह’ के स्थान पर ‘क’ का उच्चारित करें, यह मेरी इच्छा है। भूर्तिहरिणी का अर्थ प्राणियों की पीड़ा हरने वाली देवी और ‘करिणी’ का अर्थ होता हे, प्राणियों को पीड़ित करने वाली देवी, जिससे देवी रुष्ट हो गईं और रावण का सर्वनाश कर दिया।

अन्य कथा:-

नवरात्री (Navaratri) से जुडी एक अन्य कथा के अनुसार माँ दुर्गा ने एक भैंस रूपी असुर महिषासुर का वध किया था। महिषासुर के एकाग्र ध्यान और तपश्या से प्रभावित होकर देवताओ ने उसे अजय होने का वरदान दिया था। वरदान देने के बाद देवताओ को चिंता हुई की वः वरदान का गलत उपयोग करेगा। महिषासुर ने नरक का विस्तार बढ़ा कर स्वर्ग के द्वार तक पंहुचा दिया और उसके इस कृत्य को देखकर देवता चिंतित हो गये थे। सूर्य, इन्द्र, अग्नि, वायु, चन्द्रमा, यम, वरुण आदि देवताओ का अधिकार भी महिषासुर ने छीन लिए था। महिषासुर के प्रकोप से सभी देवताओ को पृथ्वी पर विचरण करना पड़ा था।

देवताओ ने क्रोधित होकर महिषासुर का वध करने के लिए माँ दुर्गा का आह्वान किया की वे हमें महिषासुर दानव से हमारी रक्षा करे। देवताओ का यह दुःख देखकर माँ दुर्गा ने महिषासुर से युद्ध किया। माँ दुर्गा ने नौ स्वरुप लेकर यह युद्ध नौ दिनों तक चला और महिषासुर नामक राक्षस का वध कर दिया था। इसलिए माँ दुर्गा के इस नौ अवतरो की पूजा करके हर्षोल्लास के साथ यह नवरात्रि मानते है।

हिंदू धर्म में नवरात्रि का बहुत ही अधिक महत्त्व है। नवरात्री (Navaratri) में माँ दुर्गा के भक्त कठिन व्रत लेते हे और माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना करते है। माँ दुर्गा की इस नवरात्री में हमें बहुत सारी प्रेरणा मिलती है। नवरात्री में निस्वार्थ भाव से माँ दुर्गा के नौ स्वरुप की उपासना करने पर माँ दुर्गा प्रसन्न होती है।

नवरात्री का त्यौहार समस्त जीवो की सुख-समृद्धि की कामना करते हुए मनाया जाता है। जिस तरह श्री राम ने रावण नामक बुराई का अंत कर दिया उसी प्रकार मां दुर्गा ने महिषासुर नामक बुराई का अंत कर दिया।

 

Navaratri in English

Navratri (Navaratri) is the glory of the nine forms of Adishakti Maa Durga, which is unique.
Know the names, mantras and stotras

Navaratri which means ‘nine nights’ is the special night of special worship of the nine incarnations of Goddess Durga called Navaratri. The festival of Navratri comes twice a year. The first Navratri falls on the first Tithi of Shukla Paksha of Chaitra month of Vikram Samvat, and the second Navaratri falls on the first Tithi of Ashwin month of Shukla Paksha.

During these nine nights and ten days, nine forms of Shakti are worshipped. The tenth day is famous as Dussehra. The nine incarnations of three goddesses – Mahalakshmi, Mahasaraswati, and Mahakali are worshiped during the nine nights of Navratri. The names of these incarnations appear as follows: Nanda Devi, Yogmaya, Raktadantika, Shakambhari, Durga, Bhima, and Bhramari are called Navadurga.

Chapters 81 to 93 of Markandeya Purana are called ‘Devi Mahatmya’ or ‘Chandi Devi Bhagwat’. It has 700 verses. Due to 700 verses, it is famous as ‘Shri Durga Saptashati‘. In this, not only the call for Shakti Sadhna has been made, but the need for an effective organization system has also been explained in a very understandable manner.

Chaitra Navratri:-

Chaitra Navratri is a Hindu festival celebrated every year in India during the Hindu month of Chaitra, which typically falls in late March or early April. It is a nine-day festival that begins on the first day of the waxing moon in Chaitra, and it is celebrated to honor the nine forms of the Hindu goddess Durga.

During Chaitra Navratri, people offer prayers, fast, and perform various rituals to invoke the blessings of the divine mother. It is believed that by performing these rituals with devotion and dedication, one can attain spiritual enlightenment and rid oneself of negative energy.

The festival holds great significance in Hindu mythology and is celebrated across India with great enthusiasm and fervor. It is believed that during this period, the goddess Durga descends from heaven to bless her devotees and protect them from evil and negativity.

Chaitra Navratri concludes with Ram Navami, the birth anniversary of Lord Rama, which falls on the ninth day of the festival. The festival is a time for spiritual reflection, purification, and renewal, and is an important part of the Hindu culture and tradition.

 

9 Forms of Maa Durga:-

1) Shailputri
The first day of Navaratri is celebrated by worshiping Shailputri. Maa Shailputri is the daughter of Himalaya, the king of the mountains. On the first day of Navratri, devotees get energy by worshiping Maa Shailputri. Maa Shailputri is famous for having a trident in her right hand and a lotus flower in her left hand.

Vande Vanchitlabhai Chandradhakritshekharam 
Vrisharudham Shooldharan Shailputrin Yashaswinim 

|| Mantra ||
Om Devi Shailputryai Namah.
Om Shan Shailputri Devyaih Namah.

|| Stotra ||
Prathama Durga Tvamhi Bhavasagarah Taranim।
Dhana Aishwarya Dayini Shailaputri Pranamamyaham॥
Trilojanani Tvamhi Paramananda Pradiyaman।
Saubhagyarogya Dayini Shailaputri Pranamamyaham॥
Charachareshwari Tvamhi Mahamoha Vinashinim।
Mukti Bhukti Dayinim Shailaputri Pranamamyaham॥

 

2) Brahmacharini
The second day of Navaratri is celebrated by worshiping Mother Brahmacharini. Brahma means penance and Chiarini means one who conducts. Sadhaks put their mind at the feet of Mother Brahmacharini. According to the Bhavishya Purana, a rosary of chanting is held in the right hand of Mother Brahmacharini and a kamandal in the left hand. Brahmacharini is the second form of Goddess Durga, this form is said to give eternal fruit to the devotees and worshippers.

Padmabhyamaksha Mala Kamandalu by doing Dadhana.
Devi Prasidatu Mayi Brahmacharinyanuttama.

|| Mantra ||
Om Devi Brahmacharinya Namah ॥
Om Bram Brim Bau Brahmachariniya Namah ॥

|| Stotra ||
Tapashcharini Tvamhi Tapatraya Nivaranim।
Brahmarupadhara Brahmacharini Pranamamyaham॥
Shankarapriya Tvamhi Bhukti-Mukti Dayini।
Shantida Jnanada Brahmacharini Pranamamyaham॥

 

3) Chandraghanta
The third day of Navaratri is celebrated by worshiping Maa Chandraghanta. The worship of Maa Chandraghanta, the third power of Maa Durgaji, is of utmost importance. Maa Chandraghanta is the ultimate peaceful and benevolent form. There is a crescent moon in the head of the third power of Maa Durga, that is why she is called Maa Chandraghanta. Worshiping them destroys all sins and obstacles.

Pindjapravararuda chandakopastrakaryuta 
Prasadam Tanute Mahayam Chandraghanteti Vishruta.

|| Mantra ||
Om Shree Shaktaye Namah ॥
Om Devi Chandraghantaye Namah ॥

|| Stotra ||
Apaduddharini Tvamhi Adya Shaktih Shubhparam।
Animadi Siddhidatri Chandraghante Pranamamyaham॥
Chandramukhi Ishta Datri Ishtam Mantra Swarupinim।
Dhanadatri, Anandadatri Chandraghante Pranamamyaham॥
Nanarupadharini Ichchhamayi Aishwaryadayinim।
Saubhagyarogyadayini Chandraghante Pranamamyaham॥

 

4) Kushmanda
The fourth day of Navaratri is celebrated by worshiping Maa Kushmanda. Mother Kushmanda has eight arms, hence she is also known as Ashtabhuja Devi. Worshiping him removes the diseases and sorrows of all the devotees. If a person takes refuge in Mother Kushmanda with a sincere heart, then supreme status is attained.

Surasampornakalasham Rudhiraplutmev Ch.
In Dadhana Hastapadmabhayam Kushmanda Shubhadastu.

|| Mantra ||
Om Devi Kushmandayai Namah.

|| Stotra ||
Durgatinashini Tvamhi Daridradi Vinashanim।
Jayamda Dhanada Kushmande Pranamamyaham॥
Jagatamata Jagatakatri Jagadadhara Rupanim।
Charachareshwari Kushmande Pranamamyaham॥
Trailokyasundari Tvamhi Duhkha Shoka Nivarinim।
Paramanandamayi, Kushmande Pranamamyaham॥

 

5) Skandmata
The fifth day of Navaratri is celebrated by worshiping Mother Skandmata. Worshiping Skandmata opens the doors of salvation. This form is known as Skandmata because of being the mother of Lord Skanda. Skandmata has four arms. According to the scriptures, the importance of worshiping Skandmata on the fifth day of Navaratri has been told.

Thronegata Nityam Padmashritkaradvaya.
Good luck always Goddess Skandmata Yashaswini.

|| Mantra ||
Om Skandamatrai Namah.
Om devi Skanda Matayai Namah.

|| Stotra ||
Namami Skandamata Skandadharinim।
Samagratatvasagaram Paraparagaharam॥
Shivaprabha Samujvalam Sphuchchhashagashekharam।
Lalataratnabhaskaram Jagatpradipti Bhaskaram॥
Mahendrakashyaparchita Sanantakumara Samstutam।
Surasurendravandita Yatharthanirmaladbhutam॥
Atarkyarochiruvijam Vikara Doshavarjitam।
Mumukshubhirvichintitam Visheshatatvamuchitam॥
Nanalankara Bhushitam Mrigendravahanagrajam।
Sushuddhatatvatoshanam Trivedamara Bhushanam॥
Sudharmikaupakarini Surendra Vairighatinim।
Shubham Pushpamalinim Suvarnakalpashakhinim॥
Tamoandhakarayamini Shivasvabhavakaminim।
Sahasrasuryarajikam Dhanajjayogakarikam॥
Sushuddha Kala Kandala Subhridavrindamajjulam।
Prajayini Prajawati Namami Mataram Satim॥
Swakarmakarane Gatim Hariprayacha Parvatim।
Anantashakti Kantidam Yashoarthabhuktimuktidam॥
Punah Punarjagadditam Namamyaham Surarchitam।
Jayeshwari Trilochane Prasida Devi Pahimam॥

 

6) Katyayani
The sixth day of Navaratri is celebrated by worshiping Maa Katyayani. Mother Parvati was born there as a daughter to Maharishi Katyayan. Hence she is known by the name Katyayani. Worshiping Maa Katyayani results in the transmission of amazing power.

Chandrahasojjwalkara Shardulvaravahana.
Katyayani Shubham Dadyadevi Demonstration.

|| Mantra ||
Clean Shri Trinetrayai Namah ॥
Om Devi Katyayanyai Namah ॥
Om Katyayini Devi Namah ॥
Om Hree Klein Katyayene Namah ॥

|| Stotra ||
Kanchanabha Varabhayam Padmadhara Mukatojjavalam।
Smeramukhi Shivapatni Katyayanesute Namoastute॥
Patambara Paridhanam Nanalankara Bhushitam।
Simhasthitam, Padmahastam Katyayanasute Namoastute॥
Paramanandamayi Devi Parabrahma Paramatma।
Paramashakti, Paramabhakti, Katyayanasute Namoastute॥

 

7) Kaalratri
The seventh day of Navaratri is celebrated by worshiping Maa Kalratri. Worshiping the Kalratri form of Maa Durga opens the doors of all the accomplishments of the universe. The nature of Maa Kalratri is very terrible. Kaalratri is always the mother who gives auspicious results. That is why she is known as Maa Shubhankari.

Ekveni japakarnapoora nude kharasthita.
Lambosthi Karnikakarni TailabhyaktaSharini॥

|| Mantra ||
Om Devi Kalaratryai Namah ॥
Om Om Hree Kree Kalratrai Namah ॥
Clean a Shri Kalikayai Namah ॥

|| Stotra ||
Him Kalaratri Shrim Karali Cha Klim Kalyani Kalawati।
Kalamata Kalidarpadhni Kamadisha Kupanvita॥
Kamabijajapanda Kamabijaswarupini।
Kumatighni Kulinartinashini Kula Kamini॥
Klim Hrim Shrim Mantrvarnena Kalakantakaghatini।
Kripamayi Kripadhara Kripapara Kripagama॥

 

8) Mahagauri
The eighth day of Navaratri is celebrated by worshiping Mahagauri. The character of Mahagauri is completely like Gaur and Gaurata is given by the conch, the moon, and the flower of the Kunda. The age of Mahagauri is considered to be 8 years. By meditating, remembering, worshiping, and worshiping Maa Mahagauri, devotees get supernatural achievements.

Shweta Vrushe Samarudha Shvetambardhara Shuchih.
Mahagauri Shubham Dadyanmahadevapramodada.

|| Mantra ||
Om Devi Mahagaurya Namah ॥
Shri Klee Hree Vardayai Namah ॥

|| Stotra ||
Sarvasankata Hantri Tvamhi Dhana Aishwarya Pradayanim।
Jnanada Chaturvedamayi Mahagauri Pranamamyaham॥
Sukha Shantidatri Dhana Dhanya Pradayanim।
Damaruvadya Priya Adya Mahagauri Pranamamyaham॥
Trailokyamangala Tvamhi Tapatraya Harinim।
Vadadam Chaitanyamayi Mahagauri Pranamamyaham॥

 

9) Siddhidatri
The ninth day of Navaratri is celebrated by offering prayers to Maa Siddhidatri. Maa Siddhidatri, the ninth power of Maa Durga, is the one who bestows all kinds of siddhis. Worship with classical rituals and complete devotion leads to the attainment of all siddhis. According to the Markandeya Purana, Anima, Mahima, Garima, Laghima, Prapti, Prakamya, Ishitva and Vashitva are the eight siddhis. After completion of worship of Goddess Siddhidatri, all the wishes are fulfilled.

Siddhagandharvayakshadyairsurairamsurairpi.
Sevyamana always bhuyat siddhida siddhidayini.

|| Mantra ||
Hri Clean and Siddhaye Namah ॥
Om Devi Siddhidatryai Namah ॥

|| Stotra ||
Kanchanabha Shankhachakragadapadmadhara Mukatojvalo।
Smeramukhi Shivapatni Siddhidatri Namoastute॥
Patambara Paridhanam Nanalankara Bhushitam।
Nalisthitam Nalanarkshi Siddhidatri Namoastute॥
Paramanandamayi Devi Parabrahma Paramatma।
Paramashakti, Paramabhakti, Siddhidatri Namoastute॥
Vishvakarti, Vishvabharti, Vishvaharti, Vishvaprita।
Vishva Varchita, Vishvatita Siddhidatri Namoastute॥
Bhuktimuktikarini Bhaktakashtanivarini।
Bhavasagara Tarini Siddhidatri Namoastute॥
Dharmarthakama Pradayini Mahamoha Vinashinim।
Mokshadayini Siddhidayini Siddhidatri Namoastute॥

 

Story of celebrating Navaratri festival:-

in Ramayana, Lord Brahma had asked Lord Shri Ram to worship Chandi Devi according to the law to kill Ravana. Arrangements were made by the Vanar Sena of 108 Neelkamals for Chandi Puja and Havan to Shri Ram. Hearing this, Ravana had also started Chandi Path by Brahmins to become immortal. Ravana with his elusive power stole one of the Neelkamal from the havan material from the place of worship of Lord Shri Ram. Because the resolution of Shri Ram is broken and Mother Goddess gets angry.

Shri Ram came to know that there is one element in the Havan material.

The cost is low, and it is impossible to make immediate arrangements. Then Shri Ram remembered that people call me ‘Kamalnayan Navkancha Lochan’, so I offer one eye to fulfill the resolution. As soon as Shri Ram took the arrow in his hand to remove the eyes, then the Goddess appeared and said I am happy and give the blessings of Vijayshree.

In the Yagya of Ravana in Lanka, Hanumanji started serving in the form of Brahman. Seeing the selfless service of Hanumanji, the brahmins were pleased and asked them to ask for a boon. Hanuman said
If you are happy, then change one letter of the mantra with which you are performing the Yagya, at my request. The brahmins said aastu. Hanumanji said in this mantra Jayadevi… in Bhutiharini, instead of ‘H’, pronounce ‘K’, this is my wish. Bhutiharini means goddess who takes away the sufferings of the creatures and ‘Karini’ means the goddess who suffers the creatures, due to which the goddess got angry and annihilated Ravana.

Other stories:-

According to another legend related to Navaratri, Goddess Durga killed Mahishasura, a buffalo-like demon. Impressed by the concentrated meditation and penance of Mahishasura, the gods gave him the boon of being invincible. After giving the boon, the gods got worried that they would misuse the boon. Mahishasura extended the expansion of hell and reached the gates of heaven, and seeing this act of his, the gods were worried. Mahishasura also snatched the rights of gods like Sun, Indra, Agni, Vayu, Moon, Yama, Varun, etc. Due to the wrath of Mahishasura, all the gods had to roam the earth.

The gods got angry and called upon Goddess Durga to kill Mahishasura, that she should protect us from the demon Mahishasura. Seeing this sorrow of the gods, Mother Durga fought with Mahishasura. Maa Durga took nine forms, this war lasted for nine days and killed the demon named Mahishasur. That is why by worshiping these nine incarnations of Maa Durga, they celebrate this Navratri with gaiety.

Navratri has a lot of importance in Hinduism. During Navaratri, the devotees of Maa Durga observe a strict fast and worship the nine forms of Maa Durga. We get a lot of inspiration in this Navratri of Maa Durga. Maa Durga is pleased to worship the nine forms of Maa Durga selflessly during Navratri.

The festival of Navratri is celebrated by wishing for the happiness and prosperity of all beings. Just as Shri Ram put an end to the evil named Ravana, in the same way Mother Durga put an end to the evil named Mahishasura.

 

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