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Mahakavya – महाकाव्य

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Mahakavya – महाकाव्य

महाकाव्य (mahakavya) सभी प्राचीन देश की सभ्यता और संस्कृति को प्रगट करने का माध्यम रहा है। महाकाव्य (mahakavya) की रचना भारत में संस्कृत, हिंदी और अन्य कई भाषा में हुई है। महाकाव्यों में महर्षि वाल्मीकि रचित रामायण, महर्षि वेदव्यास रचित महाभारत, तुलसीदास रचित रामचरितमानस, आदि महाकाव्य प्रमुख हैं। महाकाव्य का अर्थ एक ऐसा काव्य जो अपने कथानक, नायकत्व, उदेश्य, और शैली से महान हो, उसे महाकाव्य कहा जाता है, और महाकाव्य का शाब्दिक अर्थ महान काव्य होता है।

महाकाव्य “काव्य” कला का एक महत्वपूर्ण रूप होता है और इसमें विचारों, भावनाओं, और कथाओं का उद्गारण कला होती है। इसमें अधिकतर भाषा, संस्कृति, और मानव जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को स्पष्ट करता है। महाकाव्यों के चरित्र, घटनाएँ, और छंद के मुख्य भूमिका होती है और ये आमतौर पर भाषा के उच्च स्तर का प्रतीक होते हैं।

महाकाव्य अधिकतर महान कवियों द्वारा रचे जाते हैं और वे समाज में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं, क्योंकि वे आम लोगों को आदर्श और मार्गदर्शन करने में मदद मिलती हैं। इसलिए, “महाकाव्य” एक प्रशंसा और महत्वपूर्ण साहित्यिक श्रेणी होती है जो सांस्कृतिक मूल्यों को प्रस्तुत करने का आधार बनती है।

ऋषिओ और आचार्यो ने काव्य की विशद व्याख्या की है। महर्षि वाल्मीक ऋषि द्वारा सर्व प्रथम अप्रत्यक्ष रूप से महाकव्य के लक्षणों को रामयण में प्रकट किया गया है। अग्नि पुराण में सर्गबन्धो महाकाव्य में इसकी परिभाषा दी गई है।

संस्कृत महाकाव्यों की उत्पत्ति:-

संस्कृत महाकाव्य (mahakavya) की झलक सर्वप्रथम हमें ऋग्वेद में मिलती है। ऋग्वेद में ऐसे कई आख्यान सूक्तों- इन्द्र, वरुण, विष्णु और उषा आदि के स्तुतिमंत्रों हैं जिनमें उनके रचयिता कवि की प्रतिमा का परिचय देते है, किन्तु संस्कृत साहित्य जिन्हें हम वास्तविक काव्यशैली कहते है, उसका पूर्ण परिपाक वैदिककाल मैं नहीं माना जा सकता। ब्राह्मण ग्रंथों में कुछ स्थलों पर और इतिहास पुराण में सुपर्णाध्यायः नामक आख्यान में काव्य की आभा स्पष्ट प्रतीत होती है। परन्तु वस्तुतः संस्कृत का आदि महाकाव्य वाल्मीकिकृत रामायण ही है, यही उस काव्यधारा का उद्गम स्थल है जो महाकवि भास, कालिदास से लेकर आज तक कविजन विभिन्न स्त्रोतों से संस्कृत काव्य की सिंचाई करते चले आ रहे हैं। आदिकाव्य की भांति वीरकाव्य महाभारत में भी काव्य शैली स्पष्ट परिलक्षित होती है।

भारतीय संस्कृति वेद को ही महाकाव्य काव्य की उत्पत्ति स्थल मानती रही है। वैदिक विद्वान् की मनोहर कल्पनाएँ ऋग्वेद के उषस् सूक्तों में से समस्त काव्यात्मक प्रकट हुई है। देवस्तुति और नाराशंसियों में काव्यात्मक रूप चमकता है। ऐतरेयब्राह्मण की सप्तम पंचिका के आख्यान और अष्टम पंचिका के ‘ऐन्दमहाभिषेक’के कई भाग में काव्य की सुन्दर छटा बखिरते हैं।

संस्कृत के महाकाव्य (mahakavya):-

रामायण (वाल्मीकि)
महाभारत (वेद व्यास)
बुद्धचरित (अश्वघोष)
भट्टिकाव्य (भट्टि)
कुमारसंभव (कालिदास)
रघुवंश (कालिदास)
कर्णभारम (भास)
शिशुपाल वध (माघ)
नैषधीय चरित (श्रीहर्ष)

पंचमहाकाव्य रघुवंश, कुमारसम्भव, कीरातार्जुनीयम्, शिशुपालवध और नैषधचरित को कहते है।

हिंदी के महाकाव्य:-

पृथ्वीराज रासो – (चंदबरदाई)
पद्मावत मलिक – (मुहम्मद जायसी)
रामचरितमानस – (तुलसीदास)
रामचंद्रिका – (आचार्य केशवदास)
साकेत – (मैथिलीशरण गुप्त)
प्रियप्रवास – (अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’)
कृष्णायन – (द्वारका प्रसाद मिश्र)
कामायनी – (जयशंकर प्रसाद)
उर्वशी – (रामधारी सिंह ‘दिनकर’)
एकलव्य – (रामकुमार वर्मा)
उर्मिला – (बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’)
नूरजहां, (विक्रमादित्य – गुरुभक्त सिंह)

महाकाव्य (mahakavya) के लक्षण :-

आचार्य भामह ने महाकाव्य (mahakavya) का सूत्रबद्ध लक्षण काव्यप्रकाश में प्रस्तुत किया है। आचार्यो में प्रसिद्ध साहित्यकार दण्डी, आचार्य रुद्रट और आचार्य विश्वनाथ ने अपने अपने ढंग से इसका विस्तार किया है। आचार्य विश्वनाथ का लक्षण निरूपण सभी पूर्ववर्ती मतों के अनुसार सारसंकलन के रूप में प्राप्त है।

महाकाव्य के प्रमुख लक्षणों को ऋषिओ और आचार्यो ने निर्धारित किये है। इसमें कथानक का कलवेर विविध रूपों और वर्णनों से समृद्ध और उसमे मानव जीवन का चित्र और सम्पूर्ण वैभव का विस्तृत वर्णन होता है। कथानक ऐतिहासिक होना चाहिए, और कथानक का विकास क्रमिक होता है। महाकाव्य के नायक का चरित्र भावनाओं पर पूर्ण नियंत्रण रखने वाले गुणों से सम्पन्न होता है। महाकाव्य में वीर रस, करुण रस, श्रृंगार रस आदि में से किसी एक रस प्रमुख होना चाहिए।

महाकाव्य के तत्व :-

भारतीय और पश्चिमी देशों को देखनेवालो ने महाकाव्य की तुलना करने पर यह स्पष्ट होता है, की दोनों में ही महाकाव्य के संदर्भ में एक ही गुण भव्यता और गरिमा पर बार-बार शब्दभेद से बल दिया है।

महाकाव्य कोई व्यक्ति की चेतना से प्रेरित न होकर राष्ट्र की चेतना से प्रेरित होता है। इसलिए महाकव्य के मूल तत्व में देशकाल सापेक्ष न होकर सार्वभौम होते हैं। इस आभाव से किसी भी देश और युग की महाकाव्य रचना नहीं बन सकती और जिनकी परंपरागत शास्त्रीय लक्षणों की बाधा होना, किसी रचना को महाकाव्य के गौरव से वंचित करना संभव नहीं होता।

भारतीय आचार्यो ने महाकाव्य का जिन लक्षणों का निरूपण किया, पश्चिमी देशों के आचार्यो ने शब्दभेद से उन्हीं से मिलती-जुलती विशेषताओं का उल्लेख भी किया है। महाकाव्य के मूल तत्व चार हे जो निम्नलिखित है।
1) कथावस्तु
2) चरित्र
3) विचारतत्व
4) भाषा

महाकाव्य की विशेषता:-

महाकाव्य में उदात्त कथानक, उदात्त उदेश्य, महान नायक, प्रकृति चित्रण, युग चित्रण, और रस भाव होता है।

महाकाव्य (mahakavya) का कथानक उदात्त, इतिहास सम्मत, विस्तृत और श्रेष्ठ होना चाहिए। महाकाव्य की अधिकतर भाग कल्पित घंटनाओ का होकर भी यथार्थ पर आधारित होता है। इसकी समस्त घटनाओं का वर्णन सुन्दर और सरल भाषा में होना चाहिए। महाकाव्य की प्रासंगिक कथाओ से मुख्य कथा का उभार होना चाहिए। कथा का विकास सर्गों, नाट्य-संधियों, और नाट्य संघ की योजनाओ से होना चाहिए।

कथानक का विस्तार कलवेर जीवन के विविध रूपों और वर्णनों से श्रेष्ठ होना चाहिए। इसका वर्णन प्राकृतिक, सामाजिक और राजीतिक क्षेत्रों के सम्बन्ध इस प्रकार होना चाहिए की मानव जीवन का सम्पूर्ण चित्र उसके वैभव, वैचित्र्य और विस्तार के साथ प्रस्तुत होता है।

महाकाव्य (mahakavya) में प्रकृति के उषा, रजनी, ऋतु, चंद्र, सूर्य, संध्या, तारे, आदि का वर्णन विस्तर से होना चाहिए। प्रकृति के रमणीय और भयंकर दोनों रूपों का वर्णन महाकाव्य में होता है। संस्कृत के रामायण, महाभारत, रघुवंस आदि महाकाव्य में प्रकृति के व्यापक और चित्रण किया गया है।

महाकाव्य में मुख्य कथा और प्रासंगिक कथा के माध्यम से युग की समस्या और प्रश्नो का गहरा चिंतन मिलता है। किसी भी महाकाव्य में सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक और सांस्कृतिक दशा का चित्रण हो, यह अपक्षा की जाती है।

महाकाव्य में रस योजना से ही पाठक को रचना सह्र्दय आनंद प्रदान करती है। इसलिए महाकाव्य में वीर रस, करुण रस, श्रृंगार रस आदि में से किसी एक रस प्रमुख होता हे, परंतु अन्य रसो का परिणाम भी होता है। महाकाव्य रामायण की बात की जाये तो उसमे शांत रस प्रमुख है, परन्तु इसके अतिरिक्त अन्य सभी रस परिपाक मिलते हे।

 

Mahakavya in English

The epic has been a medium to reveal the civilization and culture of all ancient countries. The epic has been composed in India in Sanskrit, Hindi, and many other languages. Among the epics, Ramayana composed by Maharishi Valmiki, Mahabharata composed by Maharishi Vedavyas, Ramcharitmanas by Tulsidas, etc. is prominent. The meaning of epic is a poem that is great in its plot, heroism, purpose, and style, it is called epic, and epic literally means great poetry.

The rishis and acharyas have given detailed interpretations of poetry. For the first time indirectly, the characteristics of Mahakavya were revealed in Ramayana by Maharishi Valmik Rishi. Its definition has been given in the Sargabandho epic in Agni Purana.

Origin of Sanskrit epics:-

We first get a glimpse of the Sanskrit epic in Rigveda. In the Rigveda, there are many such narrative hymns – Indra, Varuna, Vishnu, and Usha, etc., in which their authors introduce the image of the poet, but the Sanskrit literature which we call the original poetic style, its full maturity cannot be considered in the Vedic period. In some places in Brahmin texts and in the history of Purana, the aura of poetry is clearly visible in the story called Suparnadhyaya. But in fact, the original Sanskrit epic Valmiki is the Ramayana, this is the origin of that poetry stream, which has been irrigating Sanskrit poetry from various sources from Mahakavi Bhas, Kalidas till today. Like Adikavya, the poetic style is clearly reflected in Veerakavya Mahabharata too.

Indian culture has been considering the Vedas as the origin of epic poetry. The beautiful imaginations of the Vedic scholar have been manifested in all the poetic hymns of the Rigveda. The poetic form shines in the Devasti and Narasanshis. The narration of the seventh Panchika of Aitareyabrahman and the ‘EndaMahabhisheka’ of the eighth Panchika spreads a beautiful shade of poetry.

Sanskrit epics:-

Ramayana (Valmiki)
Mahabharata (Ved Vyasa)
Buddhacharita (Ashwaghosha)
Bhattikavya (Kiln)
Kumarasambhava (Kalidas)
Raghuvansh (Kalidas)
Karnabharam (Bhasa)
Shishupala Slaughter (Magh)
Naishadhi Charita (Sriharsha)

The five epics are called Raghuvansh, Kumarasambhava, Keeratarjuniyam, Shishupalavadha, and Naishadcharita.

Hindi epics:-

Prithviraj Raso – (Chandbardai)
Padmavat Malik – (Muhammad Jayasi)
Ramcharitmanas (Tulsidas)
Ramachandrika – (Acharya Keshavdas)
Saket – (Maithilisharan Gupta)
Priyapravas – (Ayodhya Singh Upadhyay ‘Hariudh’)
Krishnayan – (Dwarka Prasad Mishra)
Kamayani Jaishankar Prasad)
Urvashi – (Ramdhari Singh ‘Dinkar’)
Eklavya – (Ramkumar Verma)
Urmila – (Balkrishna Sharma ‘Naveen’)
Nur Jahan, (Vikramaditya – Gurubhakt Singh)

Characteristics of the epic:-

Acharya Bhamah has presented the formulaic features of the epic in Kavyaprakash. Famous litterateurs Dandi, Acharya Rudrat, and Acharya Vishwanath have expanded it in their own way. The characterization of Acharya Vishwanath is received in the form of a compilation according to all the earlier views.

The main features of the epic have been determined by the rishis and acharyas. , the plot of the story is rich in various forms and descriptions, and in it a picture of human life and a detailed description of all the splendor. The plot should be historical, and the development of the plot is gradual. The character of the hero of the epic is endowed with the qualities of having complete control over emotions. In the epic, anyone rasa should be prominent among Veer Rasa, Karun Rasa, Shringar Rasa, etc.

Elements of the epic:-

In comparing the epics of Indian and western countries, it is clear that both have repeatedly emphasized on the same quality, grandeur, and dignity in the context of the epic.

The epic is not inspired by the consciousness of an individual but is inspired by the consciousness of the nation. Therefore, in the basic element of the epic, the time period is not relative but universal. Due to this absence, no epic composition of any country and era can be made. It is not possible to deprive any composition of the glory of epic, being hindered by its traditional classical features.

The Indian masters have described the features of the epic, and the masters of western countries have also mentioned similar characteristics with words. The basic elements of the epic are four which are as follows.
1) Storyline
2) character
3) ideology
4) Language

Features of the epic:-

The epic has a lofty plot, lofty purpose, great hero, depiction of nature, depiction of the era, and rasa-bhava.

The plot of the epic should be sublime, historical, detailed, and sublime. Most of the epics are based on reality, despite being of imaginary events. All its events should be described in beautiful and simple language. The main story should emerge from the relevant stories of the epic. The development of the story should come from the plans of the sargas, theatrical-sandhis, and the theatrical associations.

The expansion of the plot should be superior to the various forms and descriptions of Kalver life. Its description should be in relation to the natural, social and political spheres in such a way that the whole picture of human life is presented with its splendor, splendor, and detail.

Usha, Rajni, Ritu, Moon, Surya, Sandhya, stars, etc. of nature should be described in detail in the epic. Both the beautiful and the fierce forms of nature are described in the epic. In Sanskrit epics like Ramayana, Mahabharata, Raghuvans, etc., nature has been extensively depicted.

In the epic, through the main story and the relevant story, there is a deep reflection of the problems and questions of the era. It is expected that any epic depicts the social, economic, political, and cultural conditions.

In the epic, the composition provides heartfelt joy to the reader only by the rasa scheme. Therefore, in the epic, any one of the rasa rasa, karuna rasa, shringar rasa, etc. is prominent, but other rasas also have consequences. Talking about the epic Ramayana, calm juice is prominent in it, but apart from this, all other juices are found ripe.

 

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