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Lingashtakam Stotram in Hindi

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Lingashtakam Stotram in Hindi

देवो के देव महादेव को प्रसन्न करने के लिए लिंगाष्टकम स्तोत्र (Lingashtakam Stotram) का पाठ जरूर करें:

श्री लिंगाष्टकम स्तोत्र (Lingashtakam Stotram) एक अत्यंत प्रसिद्ध और पवित्र स्तोत्र है, जो भगवान शिव के लिंग रूप की महिमा का वर्णन करता है। इसे संस्कृत भाषा में रचा गया है और यह भगवान शिव के अनन्य भक्तों द्वारा विशेष रूप से पूजा और आराधना के समय पाठ किया जाता है। लिंगाष्टकम में आठ श्लोक होते हैं, जो भगवान शिव के लिंग स्वरूप की अपार महिमा और महत्व का वर्णन करते हैं।

लिंगाष्टकम का पाठ भक्तों द्वारा शिवलिंग के समक्ष किया जाता है और इसे अत्यंत प्रभावशाली और पुण्यदायक माना जाता है। यह स्तोत्र शिव भक्तों द्वारा विशेष रूप से महाशिवरात्रि और प्रदोष व्रत के अवसर पर पढ़ा जाता है।

श्री लिंगाष्टकम स्तोत्र (Lingashtakam Stotram) पाठ से लाभ:

श्री लिंगाष्टकम स्तोत्र का पाठ करने से कई आध्यात्मिक और मानसिक लाभ प्राप्त होते हैं। यह पाठ भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त करने का माध्यम है। इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से पूर्व जन्मों के पापों का नाश होता है। भगवान शिव के प्रति भक्ति भाव को बढ़ाकर मोक्ष की प्राप्ति में सहायता मिलती है। लिंगाष्टकम स्तोत्र का पाठ व्यक्ति के भीतर दिव्य ज्ञान को जागृत करता है।

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श्री लिंगाष्टकम का पाठ करने से मन की शांति और स्थिरता मिलती है और नकारात्मक विचारों और ऊर्जा से मुक्ति मिलती है। इस स्तोत्र का पाठ करने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और व्यक्ति में आत्मविश्वास बढ़ता है। श्री लिंगाष्टकम स्तोत्र का नियमित पाठ करने से परिवार और समाज में समृद्धि और खुशहाली का वातावरण बनता है, और जीवन के हर क्षेत्र में सकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं और भगवान शिव की अनुकंपा बनी रहती है।

श्री लिंगाष्टकम स्तोत्र पाठ विधि

श्री लिंगाष्टकम एक प्रसिद्ध और पवित्र स्तोत्र है जो भगवान शिव के लिंग स्वरूप की महिमा का वर्णन करता है। इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ पढ़ने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। यहाँ श्री लिंगाष्टकम स्तोत्र के पाठ की विधि दी जा रही है:

श्री लिंगाष्टकम (Lingashtakam Stotram) स्तोत्र का पाठ प्रातःकाल या संध्या समय में स्नान करके पवित्र वस्त्र धारण करें। मन को शांत और एकाग्र करें। पूजा स्थल को स्वच्छ करें और एक साफ आसन बिछाएं। भगवान शिव के चित्र या शिवलिंग को पूजा स्थल पर स्थापित करें। पाठ के समय भगवान शिव के लिंग स्वरूप का ध्यान करना चाहिए और उनके चरणों में फूल, बेलपत्र, धूप-दीप आदि अर्पित करना चाहिए।

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चंदन या विभूति से तिलक लगाएं और आचमन करें। धूप और दीप जलाएं और भगवान शिव की आराधना करें। पाठ समाप्त होने के बाद भगवान को नैवेद्य अर्पित करें। भगवान शिव की आरती करें और उन्हें पुष्पांजलि अर्पित करें। इस प्रकार श्री लिंगाष्टकम् का पाठ विधिपूर्वक सम्पन्न होता है। नियमित रूप से इस स्तोत्र का पाठ करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

श्री लिंगाष्टकम् (Lingashtakam Stotram) का पाठ निम्नलिखित श्लोकों के साथ करें:

श्री लिंगाष्टकम स्तोत्र

ब्रह्ममुरारि-सुरार्चितलिङ्गम् निर्मलभासित शोभितलिङ्गम्।
जन्मज दुःख विनाशक लिङ्गम् तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥1॥

अर्थ:
ब्रह्मा, विष्णु और देवताओं द्वारा पूजित, जो निर्मल प्रकाश से शोभित है, जो जन्म और मृत्यु के सभी दुखों का नाश करने वाला है, ऐसे सदाशिवलिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।

देवमुनि-प्रवरार्चितलिङ्गम् कामदहन करुणाकरलिङ्गम्।
रावणदर्प विनाशनलिङ्गम् तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥2॥

अर्थ:
देवता और श्रेष्ठ मुनियों द्वारा पूजित, जो काम को जलाने वाला और करुणा का स्रोत है, जिसने रावण के गर्व का नाश किया, ऐसे सदाशिवलिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।

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सर्वसुगन्धि सुलेपितलिङ्गम् बुद्धिविवर्धन कारणलिङ्गम्।
सिद्धसुरासुर वन्दितलिङ्गम् तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥3॥

अर्थ:
जो सभी सुगंधित द्रव्यों से अर्चित है, जो बुद्धि को बढ़ाने का कारण है, जो सिद्ध, देवता और असुरों द्वारा वंदित है, ऐसे अविनाशी सदाशिवलिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।

कनकमहामणि भूषितलिङ्गम् फणिपतिवेष्टित शोभितलिङ्गम्।
दक्षसुयज्ञ विनाशनलिङ्गम् तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥4॥

अर्थ:
जो स्वर्ण और महान मणियों से भूषित है, जो सर्पों से वेष्टित होकर शोभायमान है,
जिसने दक्ष के यज्ञ का विनाश किया, ऐसे सदाशिवलिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।

कुङ्कुमचन्दन लेपितलिङ्गम् पङ्कजहार सुशोभितलिङ्गम्।
सञ्चित पाप विनाशनलिङ्गम् तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥5॥

अर्थ:
जो कुंकुम और चंदन से लेपित है, जो कमलमाल से सुशोभित है, जो संचित पापों का नाश करने वाला है, ऐसे सदाशिवलिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।

देवगणार्चित सेवितलिङ्गम् भवैर भक्तिभिरेव च लिङ्गम्।
दिनकर कोटि प्रभाकर लिङ्गम् तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥6॥

अर्थ:
जो देवताओं के गणों द्वारा पूजित और सेवित है, जो भक्तों की भक्ति द्वारा पूजित है, जो करोड़ों सूर्यों के प्रकाश के समान तेजस्वी है, ऐसे सदाशिवलिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।

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अष्टदलोपरिवेष्टितलिङ्गम् सर्वसमुद्भव कारणलिङ्गम्।
अष्टदरिद्र विनाशनलिङ्गम् तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥7॥

अर्थ:
जो अष्टदल कमल से परिवेष्टित है, जो सभी सृष्टियों का कारण है, जो अष्ट दरिद्रताओं का नाश करने वाला है, ऐसे सदाशिवलिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।

सुरगुरुसुरवर पूजितलिङ्गम् सुरविज्ञान भव कारणलिङ्गम्।
सर्वसमुद्भव दर्शनलिङ्गम् तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥8॥

अर्थ:
जो देवगुरु और श्रेष्ठ देवताओं द्वारा पूजित है, जो सुरविज्ञान और सृष्टि का कारण है,
जो सभी उत्पत्ति का दर्शन है, ऐसे सदाशिवलिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।

लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत् शिव सन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥9॥

अर्थ:
जो व्यक्ति इस पवित्र लिङ्गाष्टकम् को भगवान शिव के समीप पढ़ता है, वह शिवलोक को प्राप्त करता है और शिव के साथ आनंदित होता है।

इति श्रीलिंगाष्टकस्तोत्रं संपूर्णम् ॥

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