Kanakdhara Stotra
कनकधारा स्तोत्र (Kanakdhara Stotra): धन, समृद्धि और सौभाग्य प्रदान करने वाला दिव्य स्तोत्र
कनकधारा स्तोत्र (Kanakdhara Stotra) आदि शंकराचार्य जी द्वारा रचित एक अत्यंत प्रसिद्ध स्तोत्र है, यह स्तोत्र माँ लक्ष्मी की स्तुति है, जिसमें उनका आह्वान किया जाता है कि वे अपने भक्तों पर कृपा बरसाएँ। इसका उद्देश्य माँ लक्ष्मी का आह्वान कर उनकी कृपा प्राप्त करना है, जिससे जीवन में धन, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति हो। यह स्तोत्र कुल 18 श्लोकों का एक संग्रह है, जिसमें माँ लक्ष्मी के विभिन्न रूपों और गुणों का वर्णन किया गया है। इसमें शंकराचार्य जी ने माँ लक्ष्मी को करुणामयी, वात्सल्यमयी और कृपा की देवी के रूप में वर्णित किया है।
इस स्तोत्र का मुख्य उद्देश्य भक्तों की आर्थिक और मानसिक समस्याओं को दूर करना और उन्हें माँ लक्ष्मी की कृपा के माध्यम से जीवन में संतुलन और समृद्धि प्रदान करना है। इसका नियमित पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं और वह सुख-समृद्धि की दिशा में अग्रसर होता है। कनकधारा स्तोत्र का नाम ही “कनक” (सोना) और “धारा” (वर्षा) से लिया गया है, क्योंकि इसके पाठ से सोने की वर्षा होने की कथा प्रचलित है।
यहां एक क्लिक में पढ़ें ~ श्री ललितासहस्रनाम स्तॊत्रम्
कनकधारा स्तोत्र की रचना का कारण:
कनकधारा स्तोत्र (Kanakdhara Stotra) की रचना का पौराणिक और हृदयस्पर्शी प्रसंग हमारे समक्ष यह सिखाता है कि निःस्वार्थ भक्ति और दया का फल कितना महान हो सकता है।
एक बार आदि शंकराचार्य, जो उस समय मात्र बालक थे, भिक्षा मांगने हेतु एक निर्धन ब्राह्मण के घर पहुँचे। इतने तेजस्वी और दिव्य अतिथि को देखकर ब्राह्मण की पत्नी ने उनका स्वागत करना चाहा, लेकिन उनके पास भिक्षा देने के लिए कुछ भी नहीं था। अपनी निर्धनता और असमर्थता से लज्जित होकर वह बहुत दुःखी हुई। घर में खोजने पर उसे कुछ सूखे आंवले मिले, जो उसने श्रद्धा के साथ शंकराचार्य को अर्पित कर दिए।
शंकराचार्य ने उसकी इस निःस्वार्थ भावना और कठिन परिस्थिति में भी दान करने की प्रवृत्ति को देखा। वे उसकी करुण स्थिति से द्रवित हो उठे। उन्होंने तत्काल माँ लक्ष्मी की स्तुति करते हुए एक स्तोत्र की रचना की। इस स्तुति में उन्होंने महालक्ष्मी से प्रार्थना की कि वे उस ब्राह्मण परिवार की दरिद्रता दूर करें।
शंकराचार्य की प्रार्थना से प्रसन्न होकर महालक्ष्मी प्रकट हुईं और उनकी कृपा से उस घर में सोने की वर्षा होने लगी। उसी क्षण से यह स्तोत्र “कनकधारा स्तोत्र” (Kanakdhara Stotra) के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
कनकधारा स्तोत्र हमें यह शिक्षा देता है कि किसी भी परिस्थिति में सच्ची श्रद्धा और निःस्वार्थ सेवा का फल निश्चित रूप से मिलता है। इसके नियमित पाठ से जीवन में धन, सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
यहां एक क्लिक में पढ़ें ~ श्री महालक्ष्मी स्तोत्रम् हिंदी में
॥ श्री कनकधारा स्तोत्रम् ॥
अंगहरे पुलकभूषण माश्रयन्ती भृगांगनैव मुकुलाभरणं तमालम।
अंगीकृताखिल विभूतिरपांगलीला मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवताया:॥1॥
मुग्ध्या मुहुर्विदधती वदनै मुरारै: प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।
माला दृशोर्मधुकर विमहोत्पले या सा मै श्रियं दिशतु सागर सम्भवाया:॥2॥
विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्द हेतु रधिकं मधुविद्विषोपि।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धमिन्दोवरोदर सहोदरमिन्दिराय:॥3॥
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दम निमेषमनंगतन्त्रम्।
आकेकर स्थित कनी निकपक्ष्म नेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजंगरायांगनाया:॥4॥
बाह्यन्तरे मधुजित: श्रितकौस्तुभै या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति।
कामप्रदा भगवतो पि कटाक्षमाला कल्याण भावहतु मे कमलालयाया:॥5॥
कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव्।
मातु: समस्त जगतां महनीय मूर्तिभद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनाया:॥6॥
प्राप्तं पदं प्रथमत: किल यत्प्रभावान्मांगल्य भाजि: मधुमायनि मन्मथेन।
मध्यापतेत दिह मन्थर मीक्षणार्द्ध मन्दालसं च मकरालयकन्यकाया:॥7॥
दद्याद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम स्मिभकिंचन विहंग शिशौ विषण्ण।
दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण प्रणयिनी नयनाम्बुवाह:॥8॥
इष्टा विशिष्टमतयो पि यथा ययार्द्रदृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभंते।
दृष्टि: प्रहूष्टकमलोदर दीप्ति रिष्टां पुष्टि कृषीष्ट मम पुष्कर विष्टराया:॥9॥
गीर्देवतैति गरुड़ध्वज भामिनीति शाकम्भरीति शशिशेखर वल्लभेति।
सृष्टि स्थिति प्रलय केलिषु संस्थितायै तस्यै नमस्त्रि भुवनैक गुरोस्तरूण्यै ॥10॥
श्रुत्यै नमोस्तु शुभकर्मफल प्रसूत्यै रत्यै नमोस्तु रमणीय गुणार्णवायै।
शक्तयै नमोस्तु शतपात्र निकेतानायै पुष्टयै नमोस्तु पुरूषोत्तम वल्लभायै॥11॥
नमोस्तु नालीक निभाननायै नमोस्तु दुग्धौदधि जन्म भूत्यै ।
नमोस्तु सोमामृत सोदरायै नमोस्तु नारायण वल्लभायै॥12॥
सम्पतकराणि सकलेन्द्रिय नन्दानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरूहाक्षि।
त्व द्वंदनानि दुरिता हरणाद्यतानि मामेव मातर निशं कलयन्तु नान्यम्॥13॥
यत्कटाक्षसमुपासना विधि: सेवकस्य कलार्थ सम्पद:।
संतनोति वचनांगमानसंसत्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे॥14॥
सरसिजनिलये सरोज हस्ते धवलमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्॥15॥
दग्धिस्तिमि: कनकुंभमुखा व सृष्टिस्वर्वाहिनी विमलचारू जल प्लुतांगीम।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष लोकाधिनाथ गृहिणी ममृताब्धिपुत्रीम्॥16॥
कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूरतरां गतैरपाड़ंगै:।
अवलोकय माम किंचनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयाया : ॥17॥
स्तुवन्ति ये स्तुतिभिर भूमिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते बुधभाविताया:॥18॥
इति श्री शंकराचार्य विरचित कनकधारा स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
यहां एक क्लिक में पढ़ें ~ नवरात्रि में माँ दुर्गा के 9 स्वरूपों
श्री कनकधारा स्तोत्रम् (Kanakdhara Stotra) का हिन्दी में अनुवाद
जैसे भ्रमरी अधखिले कुसुमोंसे अलंकृत तमालतरुका आश्रय लेती है, उसी प्रकार जो श्रीहरिके रोमांचसे सुशोभित श्रीअंगोंपर निरन्तर पड़ती रहती है तथा जिसमें सम्पूर्ण ऐश्वर्यका निवास है, वह सम्पूर्ण मंगलोंकी अधिष्ठात्री देवी भगवती महालक्ष्मीकी कटाक्षलीला मेरे लिये मंगलदायिनी हो ॥१॥
जैसे भ्रमरी महान् कमलदलपर आती-जाती या मँडराती रहती है, उसी प्रकार जो मुरशत्रु श्रीहरिके मुखारविन्दकी ओर बारंबार प्रेमपूर्वक जाती और लज्जाके कारण लौट आती है, वह समुद्रकन्या लक्ष्मीकी मनोहर मुग्ध दृष्टिमाला मुझे धन-सम्पत्ति प्रदान करे ॥२॥
जो सम्पूर्ण देवताओंके अधिपति इन्द्रके पदका वैभव-विलास देनेमें समर्थ है, मुरारि श्रीहरिको भी अधिकाधिक आनन्द प्रदान करनेवाली हैं तथा जो नीलकमलके भीतरी भागके समान मनोहर जान पड़ती है, वह लक्ष्मीजीके अधखुले नयनोंकी दृष्टि क्षणभरके लिये मुझपर भी थोड़ी-सी अवश्य पड़े ॥३॥
शेषशायी भगवान् विष्णुकी धर्मपत्नी श्रीलक्ष्मीजीका वह नेत्र हमें ऐश्वर्य प्रदान करनेवाला हो, जिसकी पुतली तथा बरौनियाँ अनंगके वशीभूत (प्रेमपरवश) हो अधखुले, किंतु साथ ही निर्निमेष नयनोंसे देखनेवाले आनन्दकन्द श्रीमुकुन्दको अपने निकट पाकर कुछ तिरछी हो जाती हैं ॥४॥
जो भगवान् मधुसूदनके कौस्तुभमणिमण्डित वक्षःस्थलमें इन्द्रनीलमयी हारावली-सी सुशोभित होती है तथा उनके भी मनमें काम (प्रेम) का संचार करनेवाली है, वह कमलकुंजवासिनी कमलाकी कटाक्षमाला मेरा कल्याण करे ॥५॥
जैसे मेघोंकी घटामें बिजली चमकती है, उसी प्रकार जो कैटभशत्रु श्रीविष्णुके काली मेघमालाके समान श्यामसुन्दर वक्षःस्थलपर प्रकाशित होती हैं, जिन्होंने अपने आविर्भावसे भृगुवंशको आनन्दित किया है तथा जो समस्त लोकोंकी जननी हैं, उन भगवती लक्ष्मीकी पूजनीया मूर्ति मुझे कल्याण प्रदान करे ॥६॥
समुद्रकन्या कमलाकी वह मन्द, अलस, मन्थर और अर्धोन्मीलित दृष्टि, जिसके प्रभावसे कामदेवने मंगलमय भगवान् मधुसूदनके हृदयमें प्रथम बार स्थान प्राप्त किया था, यहाँ मुझपर पड़े ॥७॥
भगवान् नारायणकी प्रेयसी लक्ष्मीका नेत्ररूपी मेघ दयारूपी अनुकूल पवनसे प्रेरित हो दुष्कर्मरूपी घामको चिरकालके लिये दूर हटाकर विषादमें पड़े हुए मुझ दीनरूपी चातकपोतपर धनरूपी जलधाराकी वृष्टि करे ॥८॥
विशिष्ट बुद्धिवाले मनुष्य जिनके प्रीतिपात्र होकर उनकी दयादृष्टिके प्रभावसे स्वर्गपदको सहज ही प्राप्त कर लेते हैं, उन्हीं पद्मासना पद्माकी वह विकसित कमल-गर्भके समान कान्तिमती दृष्टि मुझे मनोवांछित पुष्टि प्रदान करे ॥९॥
जो सृष्टि-लीलाके समय वाग्देवता (ब्रह्मशक्ति) के रूपमें स्थित होती हैं, पालन-लीला करते समय भगवान् गरुडध्वजकी सुन्दरी पत्नी लक्ष्मी (या वैष्णवी शक्ति) – के रूपमें विराजमान होती हैं तथा प्रलय-लीलाके कालमें शाकम्भरी (भगवती दुर्गा) अथवा चन्द्रशेखरवल्लभा पार्वती (रुद्रशक्ति) – के रूपमें अवस्थित होती हैं, उन त्रिभुवनके एकमात्र गुरु भगवान् नारायणकी नित्ययौवना प्रेयसी श्रीलक्ष्मीजीको नमस्कार है ॥१०॥
मातः ! शुभ कर्मोंका फल देनेवाली श्रुतिके रूपमें आपको प्रणाम है। रमणीय गुणोंकी सिन्धुरूप रतिके रूपमें आपको नमस्कार है। कमलवनमें निवास करनेवाली शक्तिस्वरूपा लक्ष्मीको नमस्कार है तथा पुरुषोत्तमप्रिया पुष्टिको नमस्कार है ॥११॥
कमलवदना कमलाको नमस्कार है। क्षीरसिन्धुसम्भूता श्रीदेवीको नमस्कार है। चन्द्रमा और सुधाकी सगी बहिनको नमस्कार है। भगवान् नारायणकी वल्लभाको नमस्कार है ॥१२॥
कमलसदृश नेत्रोंवाली माननीया माँ! आपके चरणों में की हुई वन्दना सम्पत्ति प्रदान करनेवाली, सम्पूर्ण इन्द्रियोंको आनन्द देनेवाली, साम्राज्य देनेमें समर्थ और सारे पापोंको हर लेनेके लिये सर्वथा उद्यत है। वह सदा मुझे ही अवलम्बन करे (मुझे ही आपकी चरणवन्दनाका शुभ अवसर सदा प्राप्त होता रहे ।) ॥१३॥
जिनके कृपाकटाक्षके लिये की हुई उपासना उपासकके लिये सम्पूर्ण मनोरथों और सम्पत्तियोंका विस्तार करती है, श्रीहरिकी हृदयेश्वरी उन्हीं आप लक्ष्मीदेवीका मैं मन, वाणी और शरीरसे भजन करता हूँ ॥१४॥
भगवति हरिप्रिये! तुम कमलवनमें निवास करनेवाली हो, तुम्हारे हाथों में लीलाकमल सुशोभित है। तुम अत्यन्त उज्ज्वल वस्त्र, गन्ध और माला आदिसे शोभा पा रही हो। तुम्हारी झाँकी बड़ी मनोरम है। त्रिभुवनका ऐश्वर्य प्रदान करनेवाली देवि! मुझपर प्रसन्न हो जाओ ॥१५॥
दिग्गजोंद्वारा सुवर्णकलशके मुखसे गिराये गये आकाशगंगाके निर्मल एवं मनोहर जलसे जिनके श्रीअंगोंका अभिषेक (स्नानकार्य) सम्पादित होता है, सम्पूर्ण लोकोंके अधीश्वर भगवान् विष्णुकी गृहिणी और क्षीरसागरकी पुत्री उन जगज्जननी लक्ष्मीको मैं प्रातःकाल प्रणाम करता हूँ ॥१६॥
कमलनयन केशवकी कमनीय कामिनी कमले! मैं अकिंचन (दीनहीन) मनुष्योंमें अग्रगण्य हूँ, अतएव तुम्हारी कृपाका स्वाभाविक पात्र हूँ। तुम उमड़ती हुई करुणाकी बाढ़की तरल तरंगोंके समान कटाक्षोंद्वारा मेरी ओर देखो ॥१७॥
जो लोग इन स्तुतियोंद्वारा प्रतिदिन वेदत्रयीस्वरूपा त्रिभुवनजननी भगवती लक्ष्मीकी स्तुति करते हैं, वे इस भूतलपर महान् गुणवान् और अत्यन्त सौभाग्यशाली होते हैं तथा विद्वान् पुरुष भी उनके मनोभावको जाननेके लिये उत्सुक रहते हैं ॥१८॥
इस प्रकार शंकराचार्य द्वारा रचित कनकधारा स्तोत्र पूर्ण हुआ।
Kanakdhara Stotra in English
angam hareh pulakabhusanamasrayanti
bhrnganganeva mukulabharanam tamalam ।
angikrtakhilavibhutirapangalila
mangalyadastu mama mangaladevatayah ॥ 1 ॥
mugdha muhurvidadhati vadane murareh
prematrapapranihitani gatagatani ।
mala drsormadhukariva mahotpale ya
sa me sriyam disatu sagarasambhavayah ॥ 2 ॥
Read here in one click ~ Mahalakshmi Ashtakam Lyrics in English
visvamarendrapadavibhramadanadaksam
anandaheturadhikam muravidvisopi ।
isannisidatu mayi ksanamiksanartham
indivarodarasahodaramindirayah ॥ 3 ॥
Ameelithaksha madhigamya mudha Mukundam
Anandakandamanimeshamananga thanthram ।
Akekara stiththa kaninika pashma nethram
Bhoothyai bhavanmama bhjangasayananganaya ॥ 4 ॥
Bahwanthare madhujitha srithakausthube ya
Haravaleeva nari neela mayi vibhathi ।
Kamapradha bhagavatho api kadaksha mala
Kalyanamavahathu me kamalalayaya ॥ 5 ॥
Kalambudhaalithorasi kaida bhare
Dharaadhare sphurathi yaa thadinganeva ।
Mathu samastha jagatham mahaneeya murthy
Badrani me dhisathu bhargava nandanaya ॥ 6 ॥
Praptham padam pradhamatha khalu yat prabhavath
Mangalyabhaji madhu madhini manamathena ।
Mayyapadetha mathara meekshanardham
Manthalasam cha makaralaya kanyakaya ॥ 7 ॥
Dhadyaddhayanu pavanopi dravinambhudaraam
Asminna kinchina vihanga sisou vishanne ।
Dhushkaramagarmmapaneeya chiraya dhooram
Narayana pranayinee nayanambhuvaha ॥ 8 ॥
Ishta visishtamathayopi yaya dhayardhra
Dhrishtya thravishta papadam sulabham labhanthe ।
Hrishtim prahrushta kamlodhara deepthirishtam
Pushtim krishishta mama pushkravishtaraya ॥ 9 ॥
girdevateti garuḍadhvajasundariti
sakambhariti sasisekharavallabheti ।
srstisthitipralayakelisu samsthitayai
tasyai namastribhuvanaikagurostarunyai ॥ 10 ॥
srutyai namo’stu subhakarmaphalaprasutyai
ratyai namo’stu ramaniyagunarnavayai ।
saktyai namo’stu satapatraniketanayai
pustyai namo’stu purusottamavallabhayai ॥ 11 ॥
namo’stu nalikanibhananayai
namo’stu dugdhodadhijanmabhumyai ।
namo’stu somamrtasodarayai
namo’stu narayanavallabhayai ॥ 12 ॥
sampatkarani sakalendriyanandanani
samrajyadanavibhavani saroruhaksi ।
tvadvandanani duritoddharanodyatani
mameva mataranisam kalayantu nanye ॥ 13 ॥
yatkataksasamupasanavidhih
sevakasya sakalarthasampadah ।
santanoti vachanangamanasaih
tvam murarihrdayesvarim bhaje ॥ 14 ॥
sarasijanilaye sarojahaste
dhavalatamamsukagandhamalyasobhe ।
bhagavati harivallabhe manojñe
tribhuvanabhutikari prasida mahyam ॥ 15 ॥
digghastibhih kanakakumbhamukhavasrsta
svarvahini vimalacharujalaplutangim ।
pratarnamami jagatam jananimasesa
lokadhinatha-grhinim-amrtabdhiputrim ॥ 16 ॥
kamale kamalaksavallabhe tvam
karunapuratarangitairapangaih ।
avalokaya mamakiñchananam
prathamam patramakrtrimam dayayah ॥ 17॥
stuvanti ye stutibhiramubhiranvaham
trayimayim tribhuvanamataram ramam ।
gunadhika gurutara-bhagya-bhagino [bhaginah]
bhavanti te bhuvi budhabhavitasayah ॥ 18 ॥
Iti Sri Shankaracharya virchit Kanakdhara Stotra sampoornam॥