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काकभुशुण्डि रामायण हिंदी में

काकभुशुण्डि रामायण (Kakbhushundi Ramayana) की प्राप्त पांडुलिपियों में तीन और नाम दिए गए हैं- आदि रामायण, ब्रह्म रामायण और भुशुंडी रामायण। ब्रह्मा ने ब्रह्मकल्प में समाधि की अवस्था में उसके द्वारा रामचरित का अवतरण किया, इसलिए आदि रामायण, परात्पर ब्रह्म ही राम के अवतार और अवतार चरित्र हैं। भुशुण्डि रामायण नाम का महत्व ब्रह्म रामायण के प्रकाशक होने से तथा भूसुण्डि को जिज्ञासा निवृत्ति के लिए बनाये जाने से प्रतिपादित किया गया है। इन तीनों में भुसुण्डी रामायण नाम अधिक प्रचलित है। इस नाम का उल्लेख ‘युगल सहस्रनाम’, ‘राम नवरत्न सार संग्रह’, ‘रामचरितमानस की निगमगामी टीका’ आदि में मिलता है।

 

यहां एक क्लिक में पढ़े ~ काकभुशुण्डि रामायण अंग्रेजी में

परिचय:

काकभुशुण्डि रामायण (Kakbhushundi Ramayana) में सम्पूर्ण राम कथा छत्तीस हजार (36000) श्लोको और चार खंड में विभाजित है। इसमें सर्वप्रथम पूर्वखण्ड उसके बाद दक्षिण, पश्चिम तथा उत्तरखण्ड आते हैं। पूर्वखण्ड में श्री राम के जन्म से लेकर युवराज होने तक का वृत्तांत किया गया है। पश्चिम खण्ड में विवाह और अयोध्या आगमन की कथा दी गई है। दक्षिण खण्ड में वनगमन से लेकर श्री राम का राज्याभिषेक तक की कथा है, और उत्तरखण्ड में राम के परिवार एवं प्रजा के साथ नित्यधाम यात्रा का वर्णन किया गया है। इनके अतिरिक्त भुशुण्डि रामायण में रामराज्य की सम्पन्नता, सीता वनवास, लक्ष्मण की तिरोधान लीला, दशरथ की तीर्थयात्रा, रावण की दिग्विजय यात्रा, सरयू जन्म कथा आदि कथाएँ प्रसंगवश क्रम से चारों खण्डों में मिलती हैं।

सभी रामायणों मे भुशुण्डि रामायण सर्वाधिक विशद है। इस ग्रन्थ के असाधारण विस्तार का यही मुख्य कारण है। पूर्व तथा दक्षिण खण्ड की भाँति ही पश्चिम और उत्तर खण्ड मे वर्णित रामकथा के विस्तार मे सहायक एक अन्य तत्व है। रामचरित तथा रामभक्ति से जुडे हुए प्रसंगो का समावेश और उनका सविस्तर निरूपण किया गया है, जो निम्नलिखित हैं।

१. रामावतार के कारणो का निर्देश
२. राम जन्मोपाख्यान
३. सीता – जन्मोपाख्यान
४. सरयू – उत्पत्ति कथा
५ सहजोपाख्यान
६. वैवस्वतोपाख्यान
७. शिवगीता
८. कालदमनोपाख्यान
९. रामगीता
१०. प्रमोदवन अथवा महाधामवर्णन

 

काकभुशुण्डि रामायण (Kakbhushundi Ramayana) की विशेषताएँ:-

काकभुशुण्डि रामायण (Kakbhushundi Ramayana) वाल्मीकि रामायण के बाद की रचना और प्राप्त रामायणों में सबसे प्राचीन है। पुस्तक प्राप्त न होने के कारण उसका सत्य या मूल तत्त्वों की छान–बीन करना सम्भव हुआ और अनेक छोटी-बड़ी रामायणों की तरह भुसुण्डी रामायण भी काल्पनिक रामायणों में गिनी जाने लगी। आचार्यों, रामचरितमानस के भाष्यकारों तथा अध्यात्म रामायण एवं मानस के प्रमुख सूत्रों के शोधार्थियों की कृतियों में इस ग्रंथ की चर्चा निरन्तर होती रही है। भुशुण्डी रामायण की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

(1) श्रीराम जन्म मुहूर्त तथा रामनवमी पर्व मनाने का विधिपूर्वक वर्णन- पूर्वखण्ड 1012 में श्रीरामजन्म के मास, पक्ष, तिथि और नक्षत्र वर्णन सहित अभिजित नामक योग का भी उल्लेख मिलता है।

(2) काकभुशुण्डि रामायण में महत्त्वपूर्ण घटना क्रम का तिथिवार वर्णन, सेतु निर्माण, सेतु पारकर लंका पहुँचना, अंगद का दूत रूप में लंका आगमन, मेघनाद वध, राम-रावण युद्ध, रावण वध, विभीषण राज्याभिषेक, राम का अयोध्याप्रस्थान आदि का विस्तारपूर्वक वर्णन प्रस्तुत किया गया है।

(3) वाल्मीकि रामायण में श्री राम के बालचरित्र का अद्भुत वर्णन और बाललीलाओं का वर्णन बहुत संक्षिप्त है। परन्तु भुशुण्डी रामायण में यह प्रसंग अपेक्षाकृत विस्तृत तथा रोचक वर्णन किया गया है। जिसमे कुमारों की रावण से रक्षा करने के लिए राजा दशरथ द्वारा सरयू नदी के पार गोप प्रदेश में भेजा जाता है।

(4) काकभुशुण्डि रामायण के अध्याय 44 से 59 के पूर्वखण्ड में रामगीता का वर्णन है। रामगीता में भगवान श्री राम द्वारा गोपियों को दिये गये भक्ति ज्ञानोपदेश का वर्णन किया गया है। रामगीता के उपदेशों से गोपियों आँखे खुल गई और उनकी चिन्ता दूर हो गयी। साथ ही भुशुण्डि रामायण में श्रीरामचन्द्रजी, सीताजी, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न तथा सरयूनदी के सहस्र नामों का वर्णन भी मिलता है।

(6)काकभुशुण्डि रामायण में ‘ पादुकाराज्य’ का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। भरत श्रीराम की पादुकाओं को लाकर सिंहासन पर रखदिया और स्वयं नन्दिग्राम में तपोमय जीवन बीता रहे हैं। इस बीच भरत राज्य संचालन का समस्त कार्य पादुकाओं का आदेश लेकर ही करते है।

 

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