Garga Samhita श्री गर्ग संहिता
श्री गर्ग संहिता (Garga Samhita) हिंदू धर्म में एक पवित्र ग्रंथ है, जो विशेष रूप से पौराणिक शैली से संबंधित है। इसका श्रेय ऋषि गर्ग को दिया जाता है, जो हिंदू पौराणिक कथाओं में एक प्रतिष्ठित ऋषि थे और ज्योतिष, खगोल विज्ञान और वेदों के गहन ज्ञान के लिए जाने जाते थे।
श्री गर्ग संहिता (Garga Samhita) मुख्य रूप से भगवान कृष्ण के जीवन और लीलाओं पर केंद्रित है, जो हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं और महाकाव्य महाभारत में एक अधिपति हैं। इसमें कृष्ण के बचपन, युवावस्था और वयस्क जीवन से संबंधित संवाद और प्रवचन और विभिन्न कहानियाँ, शिक्षाएँ शामिल हैं, जो भक्तों को उनके दिव्य स्वभाव और शिक्षाओं के बारे में गहन जानकारी प्रदान करती हैं। श्री गर्ग संहिता में कृष्ण की लीलाओं का व्यापक वर्णन मुख्य है, जिसमें उनके बचपन के कारनामे, भक्तों के साथ बातचीत, और राधा और गोपियों के साथ वृन्दावन में दिव्य रासलीला (लीला) शामिल हैं।
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कई पौराणिक ग्रंथों की तरह, गर्ग संहिता (Garga Samhita) में भक्ति का स्वर है और इसे भक्ति (भक्ति) परंपरा के अनुयायियों द्वारा पवित्र माना जाता है। यह भगवान कृष्ण के प्रति भक्तों के प्रेम और भक्ति पर जोर देता है। गर्ग संहिता की विभिन्न पांडुलिपियाँ और संस्करण मौजूद हैं, और उनमें सामग्री में कुछ भिन्नताएँ हो सकती हैं। यह पाठ संस्कृत में लिखा गया है, और वर्षों से विभिन्न भाषाओं में अनुवाद का प्रयास किया गया है।
श्री गर्ग संहिता (Garga Samhita) को विभिन्न खंडों या अध्यायों में विभाजित किया गया है, जिनमें से प्रत्येक कृष्ण के जीवन और शिक्षाओं के विभिन्न पहलुओं से संबंधित है। यह हिंदू धर्म के भीतर विष्णु परंपरा के अनुयायियों, वैष्णवों द्वारा पूजनीय है, और अक्सर भारत और उसके बाहर के मंदिरों और घरों में इसका पाठ, अध्ययन और सम्मान किया जाता है।
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श्रीगर्ग संहिता (Garga Samhita) यदुकुलके महान् आचार्य महामुनि श्रीगर्गकी रचना है। यह सारी संहिता अत्यन्त मधुर श्रीकृष्णलीला से परिपूर्ण है। श्रीराधाकी दिव्य माधुर्यभावमिश्रित लीलाओंका इसमें विशद वर्णन है। श्रीमद्भागवत में जो कुछ सूत्ररूपमें कहा गया है, गर्ग संहितायें वही विशद वृत्तिरूपमें वर्णित है। एक प्रकारसे यह श्रीमद्भागवतोक्त श्रीकृष्णलीलाका महाभाष्य है। श्रीमद्भागवतमें भगवान् श्रीकृष्णकी पूर्णताके सम्बन्धमें महर्षि व्यासने ‘कृष्णस्तु भगवान् स्वयम्’ – इतना ही कहा है, महामुनि गर्गाचार्यने –(Garga Samhita)
यस्मिन् सर्वाणि तेजांसि विलीयन्ते स्वतेजसि ।
तं वदन्ति परे साक्षात् परिपूर्णतमं स्वयम् ।।
– कहकर श्रीकृष्णमें समस्त भागवत-तेजोंके प्रवेशका वर्णन करके श्रीकृष्णकी परिपूर्णतमताका वर्णन किया है।
श्रीकृष्ण की मधुरलीला की रचना हुई है दिव्य ‘रस’के द्वारा; उस रसका रासमें प्रकाश हुआ है। श्रीमद्भागवत में उस रासके केवल एक बारका वर्णन पाँच अध्यायोंमें किया गया है; किंतु इस गर्ग-संहितामें वृन्दावनखण्डमें, अश्वमेधखण्डके प्रभासमिलनके समय और उसी अश्वमेधखण्डके दिग्विजयके अनन्तर लौटते समय-यों तीन बार कई अध्यायोंमें उसका बड़ा सुन्दर वर्णन है। परम प्रेमस्वरूपा, श्रीकृष्णसे नित्य अभिन्नस्वरूपा शक्ति श्रीराधाजीके दिव्य आकर्षणसे श्रीमथुरानाथ एवं श्रीद्वारकाधीश श्रीकृष्णने बार-बार गोकुलमें पधारकर नित्यरासेश्वरी, नित्यनिकुञ्जेश्वरीके साथ महारासकी दिव्य लीला की है- इसका विशद वर्णन है। इसके माधुर्यखण्डमें विभिन्न गोपियोंके पूर्वजन्मोंका बड़ा ही सुन्दर वर्णन है। और भी बहुत-सी नयी-नयी कथाएँ हैं।(Garga Samhita)
यह संहिता भक्त-भावुकोंके लिये परम समादरकी वस्तु है; क्योंकि इसमें श्रीमद्भागवतके गूढ तत्त्वोंका स्पष्ट रूपमें उल्लेख है। आशा है ‘कल्याण’ के पाठकगण इससे विशेष लाभ उठायेंगे।
श्री गर्ग-संहिता
।। श्रीहरिः ॥
ॐ दामोदर हृषीकेश वासुदेव नमोऽस्तु ते
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गर्ग संहिता गोलोक खण्ड अध्याय छ: से अध्याय दस में कालनेमिके अंशसे उत्पन्न कंसके महान् बल-पराक्रम और दिग्विजयका वर्णन, कंसकी दिग्विजय - शम्बर, व्योमासुर, बाणासुर, वत्सासुर, कालयवन तथा देवताओं की पराजय वर्णन, सुचन्द्र और कलावतीके पूर्व-पुण्यका वर्णन...
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श्री गर्ग संहिता में गोलोकखण्ड के ग्यारहवाँ अध्याय में भगवान का वसुदेव-देवकी में आवेश; देवताओंद्वारा उनका स्तवन; आविर्भावकाल; अवतार-विग्रह की झाँकी;आदि का वर्णन किया गया हे। बारहवाँ अध्याय में श्रीकृष्ण-जन्मोत्सवकी धूम; गोप-गोपियोंका उपायन लेकर....
यहां पढ़े गर्ग संहिता गोलोक खण्ड ग्यारहवाँ अध्याय से पंद्रहवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में गोलोक खण्ड के सोलहवें अध्याय में भाण्डीर-वनमें नन्दजीके द्वारा श्रीराधाजीकी स्तुति; श्रीराधा और श्रीकृष्णका ब्रह्माजीके द्वारा विवाह ब्रह्माजीके द्वारा श्रीकृष्णका स्तवन तथा नव-दम्पतिकी मधुर लीलाओ का वर्णन है। सत्रहवाँ अध्याय में श्रीकृष्णकी बाल-लीलामें दधि-चोरीका वर्णन, अठारहवाँ अध्याय में नन्द, उपनन्द और...
यहां पढ़े गर्ग संहिता गोलोक खण्ड सोलहवाँ अध्याय से बीसवाँ अध्याय
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श्री गर्ग संहिता में वृन्दावनखण्ड के अध्याय छः में अघासुर का उद्धार और उसके पूर्व जन्म का परिचय दिया गया है। अध्याय सात में ब्रह्माजी के द्वारा गौओं, गोवत्सों एवं गोप-बालकों का हरण का वर्णन किया है। अध्याय आठ में ब्रह्माजी के द्वारा भगवान श्री कृष्ण के सर्वव्यापी विश्वात्मा स्वरूप का दर्शन वर्णन है।
यहां पढ़े श्री गर्ग संहिता वृन्दावनखण्ड अध्याय छः अध्याय दस तक
श्री गर्ग संहिता में वृन्दावनखण्ड के ग्यारहवां अध्याय से पंद्रहवाँ अध्याय में धेनुकासुरका उद्धार, श्री कृष्ण द्वारा कालिया दमन तथा दावानल-पान का वर्णन, मुनिवर वेदशिरा और अश्वशिराका परस्पर के शाप से क्रमशः कालियनाग और काकभुशुण्ड होना तथा शेषनाग का भूमण्डल को धारण...
यहां पढ़े श्री गर्ग संहिता वृन्दावनखण्ड ग्यारहवां अध्याय से पंद्रहवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में वृन्दावनखण्ड के सोलहवें अध्याय से बीसवां अध्याय में तुलसीका माहात्म्य, श्रीराधाद्वारा तुलसी-सेवन-व्रतका अनुष्ठान तथा दिव्य तुलसीदेवीका प्रत्यक्ष प्रकट हो श्रीराधाको वरदान देना, श्रीकृष्णका गोपदेवीके रूपसे वृषभानु भवनमें जाकर श्रीराधासे मिलना...
यहां पढ़े श्री गर्ग संहिता वृन्दावनखण्ड के सोलहवें अध्याय से बीसवां अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में वृन्दावनखण्ड के इक्कीसवाँ अध्याय से छब्बीसवां अध्याय में गोपाङ्गनाओ के साथ श्रीकृष्ण का वन-विहार, रास-क्रीड़ा; मानवती गोपियों को छोड़कर श्रीराधा के साथ एकान्त-विहार तथा मानिनी श्रीराधा को भी छोड़कर उनका अन्तर्धान होना...
यहां पढ़े श्री गर्ग संहिता वृन्दावनखण्ड के इक्कीसवाँ अध्याय से छब्बीसवां तक
यहाँ पढ़े श्री गर्ग संहिता के गिरिराजखण्ड पहले अध्याय से पांचवे अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता के गिरिराजखण्ड छठे अध्याय से ग्यारहवाँ अध्याय में गोपोंका वृषभानुवरके वैभवकी प्रशंसा करके नन्दनन्दनकी भगवत्ताका परीक्षण करनेके लिये उन्हें प्रेरित करना और वृषभानुवरका कन्याके विवाहके लिये वरको देनेके निमित्त बहुमूल्य एवं बहुसंख्यक मौक्तिक-हार...
यहाँ पढ़े श्री गर्ग संहिता के गिरिराजखण्ड छठे अध्याय से ग्यारहवाँ अध्याय तक
यहा पढ़े श्री गर्ग संहिता के माधुर्यखण्ड में पहले अध्याय से पाँचवे तक
श्री गर्ग संहिता के माधुर्यखण्ड छठे अध्याय से ग्यारहवाँ अध्याय में अयोध्यापुरवासिनी स्त्रियोंका राजा विमलके यहाँ पुत्रीरूपसे उत्पन्न होना, राजा विमलका संदेश पाकर भगवान् श्रीकृष्णका उन्हें दर्शन और मोक्ष प्रदान करना तथा उनकी राजकुमारियोंको साथ लेकर व्रजमण्डलमें लौटना...
यहां पढ़े श्री गर्ग संहिता के माधुर्यखण्ड छठे अध्याय से ग्यारहवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता के माधुर्यखण्ड बारहवाँ अध्याय से अठारहवाँ अध्याय में दिव्यादिव्य, त्रिगुणवृत्तिमयी भूतल-गोपियोंका वर्णन तथा श्रीराधासहित गोपियों की श्रीकृष्ण के साथ होली का वर्णन, देवियों के रूप में गोपियाँ, कौरव-सेनासे पीड़ित रंगोजि गोपका कंसकी सहायतासे व्रजमण्डलकी सीमापर निवास तथा उसकी पुत्रीरूपमें...
यहां पढ़े श्री गर्ग संहिता के माधुर्यखण्ड बारहवाँ अध्याय से अठारहवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में माधुर्यखण्ड के अन्तर्गत श्री सौभरि और मांधाता के संवादमें ‘श्री यमुना सहस्रनाम का वर्णन’ कहा गया है। श्री यमुनासहस्रनाम में यमुना के हजार नामों का संग्रह है, जो उनकी महिमा, गुण, और महत्त्व को बताते हैं।...
यहां पढ़े श्री गर्ग संहिता में माधुर्यखण्ड के उन्नीसवाँ अध्याय श्री यमुना सहस्रनाम
श्री गर्ग संहिता के माधुर्यखण्ड बीसवाँ अध्याय से चौबीसवाँ अध्याय में बलदेवजी के हाथ से प्रलम्बासुर का वध तथा उस के पूर्वजन्म का परिचय, दावानल से गौओं और ग्वालों का छुटकारा तथा विप्रपत्नियों को श्री कृष्ण का दर्शन, श्री कृष्ण का नन्दराज को वरुणलोक से ले आना और गोप-गोपियों को वैकुण्ठधाम का दर्शन कराना...
यहां पढ़े श्री गर्ग संहिता में माधुर्यखण्ड के बीसवाँ अध्याय से चौबीसवां अध्याय तक
यहां पढ़े श्री गर्ग संहिता में श्रीमथुराखण्ड पहले अध्याय से पाँचवे तक
श्री गर्ग संहिता के श्रीमथुराखण्ड छठे अध्याय में सुदामा माली और कुब्जापर कृपा; धनुर्भङ्ग तथा मथुरा की स्त्रियों पर श्रीकृष्ण के मधुर-मोहन रूप का प्रभाव वर्णन, सातवाँ अध्याय में मल्ल-क्रीड़ा-महोत्सवकी तैयारी; रङ्गद्वारपर कुवलयापीड़का वध तथा श्रीकृष्ण और बलरामका चाणूर और मुष्टिकके साथ मल्लयुद्धमें प्रवृत्त होना।...
यहां पढ़े श्री गर्ग संहिता में श्रीमथुराखण्ड छठे अध्याय से दसवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता के श्रीमथुराखण्ड ग्यारहवें अध्याय में कुब्जा और कुवलयापीडके पूर्वजन्मगत वृत्तान्तका वर्णन कहा गया है। बारहवें अध्याय में चाणूर आदि मल्ल, कंसके छोटे भाइयों तथा पञ्चजन दैत्यके पूर्वजन्मगत वृत्तान्तका वर्णन दिया गया है। तेरहवां अध्याय में श्रीकृष्ण की आज्ञा से उद्भव का व्रज में जाना और श्रीदामा आदि...
यहां पढ़े श्री गर्ग संहिता में श्रीमथुराखण्ड ग्यारहवाँ अध्याय से पंद्रहवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता के श्रीमथुराखण्ड सोलहवें अध्याय में उद्धवद्वारा श्रीराधा तथा गोपीजनों को आश्वासन वर्णन दिया गया है। सत्रहवाँ अध्याय में श्रीकृष्ण को स्मरण करके श्रीराधा तथा गोपियोंके करुण उद्गार किया गया है। अठारहवाँ अध्याय में गोपियों के उद्गार तथा उनसे विदा लेकर उद्भव का मथुरा को लौटने का वर्णन...
यहां पढ़े श्री गर्ग संहिता में श्रीमथुराखण्ड सोलहवें अध्याय सेबीसवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता के श्रीमथुराखण्ड इक्कीसवाँ अध्याय में श्रीकृष्ण की द्रवरूप ताकि प्रसंग में नारदजी का उपाख्यान दिया गया है। बाईसवाँ अध्याय में नारद का अनेक लोकों में होते हुए गोलोक में पहुँचकर भगवान श्रीकृष्ण के समक्ष अपनी कलाका प्रदर्शन करना तथा श्रीकृष्ण का द्रवरूप होने का वर्णन है।...
यहां पढ़े श्री गर्ग संहिता में श्रीमथुराखण्ड इक्कीसवें अध्याय पच्चीसवाँ अध्याय तक
यहां पढ़िए गर्ग संहिता में द्वारकाखण्ड पहले अध्याय से पांचवे अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता के द्वारकाखण्ड छठे अध्याय में श्री कृष्ण द्वारा रुक्मिणी का अपहरण तथा यादव वीरों के साथ युद्धमें विपक्षी राजाओं की पराजय वर्णन है। सातवें अध्याय में श्री कृष्ण के हाथों से रुक्मीकी पराजय तथा द्वारका में रुक्मिणी और श्रीकृष्ण का विवाह होने का कहा गया है। आठवाँ अध्याय में श्री कृष्ण का सोलह हजार एक सौ आठ रानियों के साथ विवाह...
यहां पढ़िए गर्ग संहिता में द्वारकाखण्ड छठे अध्याय से दसवें अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता के द्वारकाखण्ड ग्यारहवाँ अध्याय में गज और ग्राह बने हुए मन्त्रियों का युद्ध और भगवान विष्णु के द्वारा उनका उद्धार करना। बारहवाँ अध्याय में महामुनि त्रित के शाप से कक्षीवान का शङ्खरूप होकर सरोवर में रहना और श्रीकृष्ण के द्वारा उसका उद्धार होना; शङ्खोद्धार-तीर्थ की महिमा का वर्णन कहा गया है...
यहां पढ़िए गर्ग संहिता में द्वारकाखण्ड ग्यारहवें अध्याय से पंद्रहवां अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता के द्वारकाखण्ड सोलहवाँ अध्याय में सिद्धाश्रम की महिमा के प्रसङ्ग में श्रीराधा और गोपाङ्गनाओं के साथ श्रीकृष्ण और उनकी सोलह हजार रानियों का समागम वर्णन है। सत्रहवाँ अध्याय में सिद्धाश्रम में श्रीराधा और श्रीकृष्ण का मिलन; श्रीकृष्ण की रानियों का श्रीराधा को अपने शिविर में बुलाकर उनका सत्कार करना तथा...
यहां पढ़िए गर्ग संहिता में द्वारकाखण्ड सोलहवें अध्याय से बाईसवां अध्याय तक
यहां पढ़िए गर्ग संहिता विश्वजीतखण्ड पहले अध्याय से पांचवे अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में विश्वजीतखण्ड के छठे अध्याय में प्रद्युम्न का मरुधन्व देश के राजा गयको हराकर मालवनरेश तथा माहिष्मती पुरी के राजा से बिना युद्ध किये ही भेंट प्राप्त करने का वर्णन है। सातवें अध्याय में गुजरात नरेश ऋष्यपर विजय प्राप्त करके यादव सेना का चेदिदेश के स्वामी दमघोष के यहाँ जाना; राजाका यादवों से...
यहां पढ़िए गर्ग संहिता में विश्वजीतखण्ड छठे अध्याय से दसवें अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में विश्वजीतखण्ड के ग्यारहवाँ अध्याय में दन्तवक्र की पराजय तथा करूष देश पर यादव सेना का विजय वर्णन है। बारहवाँ अध्याय में उशीनर आदि देशोंपर प्रद्युम्नकी विजय तथा उनकी जिज्ञासापर मुनिवर अगस्त्यद्वारा तत्त्वज्ञानका प्रतिपादन कहा गया है। तेरहवाँ अध्याय में शाल्व आदि देशों तथा द्विविद वानरपर...
यहां पढ़िए श्री गर्ग संहिता में विश्वजीतखण्ड ग्यारहवें अध्याय से पंद्रहवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में विश्वजीतखण्ड के सोलहवाँ अध्याय में मिथिला के राजा धृतिद्वारा ब्रह्मचारी के रूप में पधारे हुए प्रद्युम्न का पूजन; उन दोनों का शुभ संवाद; प्रद्युम्न का राजा को प्रत्यक्ष दर्शन दे, उनसे पूजित हो शिविर में जाने का वर्णन कहा गया है। सत्रहवाँ अध्याय में मगध देश पर यादवों की विजय तथा मगधराज जरासंध की पराजय...
यहां पढ़िए श्री गर्ग संहिता में विश्वजीतखण्ड सोलहवें अध्याय से बीसवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में विश्वजीतखण्ड के इक्कीसवाँ अध्याय में कौरव तथा यादव वीरों का घमासान युद्ध; बलराम और श्रीकृष्ण का प्रकट होकर उनमें मेल कराने का वर्णन है। बाईसवाँ अध्याय में अर्जुनसहित प्रद्युम्न का कालयवन पुत्र चण्ड को जीतकर भारतवर्ष के बाहर पूर्वोत्तर दिशा की ओर प्रस्थान करने का वर्णन कहा गया है। तेईसवाँ अध्याय में यादव सेना का बाणासुर...
यहां पढ़िए श्री गर्ग संहिता में विश्वजीतखण्ड इक्कीसवें अध्याय से पचीसवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में विश्वजीतखण्ड के छब्बीसवाँ अध्याय में किम्पुरुषवर्ष के रङ्गवल्लीपुर में किम्पुरुषों द्वारा हरि चरित्र का गान; वहाँ के राजा द्वारा भेंट पाकर यादव-सेनाका आगे जाना; मार्ग में अजगर रूप धारी शापभ्रष्ट गन्धर्व का उद्धार; वसन्ततिलका पुरीके राजा शृङ्गार-तिलक को पराजित करके प्रद्युम्न का हरिवर्ष के लिये...
यहां पढ़िए श्री गर्ग संहिता में विश्वजीतखण्ड छब्बीसवें अध्याय से तीसवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में विश्वजीतखण्ड के इकतीसवाँ अध्याय में रम्यकवर्ष में मन्मथशालिनी पुरी के लोगों द्वारा श्री कृष्णलीला का गान; प्रजापति व्यति संवत्सर द्वारा प्रद्युम्न का पूजन; कामवन में प्रद्युम्न का अपने कामदेव स्वरूप में विलय होने का वर्णन किया गया है। बत्तीसवाँ अध्याय में भद्राश्ववर्षमें भद्रश्रवाके द्वारा प्रद्युम्नका पूजन...
यहां पढ़िए श्री गर्ग संहिता में विश्वजीतखण्ड इकतीसवें अध्याय से पैंतीसवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में विश्वजीतखण्ड के छत्तीसवाँ अध्याय में दीप्तिमान्द्वारा महानाभ का वध वर्णन है। सैंतीसवाँ अध्याय में श्रीकृष्ण पुत्र भानु के हाथ से हरिश्मश्रु दैत्य का वध कहा गया है। अड़तीसवाँ अध्याय में प्रद्युम्न और शकुनि के घोर युद्ध का वर्णन है। उनतालीसवाँ अध्याय में शकुनि के मायामय अस्त्रों का प्रद्युम्न द्वारा निवारण तथा उनके...
यहां पढ़िए श्री गर्ग संहिता में विश्वजीतखण्ड छत्तीसवें अध्याय से चालीसवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में विश्वजीतखण्ड के इकतालीसवाँ अध्याय में शकुनि का घोर युद्ध, सात बार मारे जानेपर भी उसका भूमि के स्पर्श से पुनः जी उठना; अन्तमें भगवान श्रीकृष्ण द्वारा युक्ति पूर्वक उसका वध का वर्णन है। बयालीसवाँ अध्याय में श्रीकृष्ण का यादवों के साथ चन्द्रावतीपुरी में जाकर शकुनि पुत्र को वहाँका राज्य देना तथा शकुनि आदिके पूर्व जन्मोंका...
यहां पढ़िए श्री गर्ग संहिता में विश्वजीतखण्ड इकतालीसवें अध्याय से पैंतालीसवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में विश्वजीतखण्ड के छियालीसवाँ अध्याय में यादवों और गन्धर्वोका युद्ध, बलभद्रजीका प्राकट्य, उनके द्वारा गन्धर्वसेनाका संहार, गन्धर्वराजकी पराजय, वसन्तमालती नगरी का हलद्वारा कर्षण; गन्धर्वराजका भेंट लेकर शरणमें आना और उनपर बलरामजी की कृपा वर्णन है। सैंतालीसवाँ अध्याय में यादव सेना के साथ शक्रसखका युद्ध...
यहां पढ़िए श्री गर्ग संहिता में विश्वजीतखण्ड छियालीसवें अध्याय से पचासवाँ अध्याय तक
यहां पढ़िए गर्ग संहिता में श्रीबलभद्रखण्ड के पहले अध्याय से छठे अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में श्रीबलभद्रखण्ड के सातवें अध्याय में श्रीराम-कृष्ण की मथुरा-लीला का वर्णन कहा है। आठवां अध्याय में श्री राम-कृष्ण की द्वारका-लीला का वर्णन है। नवाँ अध्याय में श्री बलरामजी की रासलीला का वर्णन कहा गया है। दसवाँ अध्याय में श्रीबलभद्रजी की पूजा-पद्धति और पटल कहा है। ग्यारहवां अध्याय में श्री बलराम स्तोत्र...
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श्री गर्ग संहिता में श्री विज्ञानखंड के छठे अध्याय में मन्दिर निर्माण तथा विग्रह प्रतिष्ठा एवं पूजा की विधि का वर्णन किया गया है। सातवाँ अध्याय में नित्यकर्म और पूजा-विधि का वर्णन कहा है। आठवाँ अध्याय में पूजा-विधि का वर्णन है। नवाँ अध्याय में पूजोपचार तथा पूजन प्रकार का वर्णन और दसवाँ अध्याय में परमात्मा...
यहां पढ़िए श्री गर्ग संहिता के श्री विज्ञानखंड में छठे अध्याय से दसवाँ अध्याय तक
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श्री गर्ग संहिता में अश्वमेधखण्ड के छठा अध्याय में श्रीकृष्ण के अनेक चरित्रों का संक्षेप से वर्णन कहा है। सातवाँ अध्याय में देवर्षि नारद का ब्रह्मलोक से आगमन; राजा उग्रसेन द्वारा उनका सत्कार; देवर्षि द्वारा अश्वमेध यज्ञ की महत्ता का वर्णन; श्रीकृष्ण की अनुमति एवं नारदजी द्वारा अश्वमेध यज्ञकी विधिका...
यहां पढ़िए श्री गर्ग संहिता के अश्वमेधखण्ड में छठे अध्याय से दसवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में अश्वमेधखण्ड के ग्यारहवें अध्याय में ऋत्विजोंका वरण-पूजन; श्यामकर्ण अश्वका आनयन और अर्चन; ब्राह्मणोंको दक्षिणादान; अश्वके भालदेशमें बँधे हुए स्वर्णपत्रपर गर्गजीके द्वारा उग्रसेनके बल-पराक्रमका उल्लेख तथा अनिरुद्धको अश्वकी रक्षाके लिये आदेश देना का वर्णन है। बारहवाँ अध्याय में अश्वमोचन तथा उसकी रक्षाके लिये...
यहां पढ़िए श्री गर्ग संहिता के अश्वमेधखण्ड में ग्यारहवें अध्याय से पंद्रहवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में अश्वमेधखण्ड के सोलहवाँ अध्याय में चम्पावतीपुरीके राजाद्वारा अश्वका पकड़ा जाना; यादवोंके साथ हेमाङ्गदके सैनिकोंका घोर युद्ध; अनिरुद्ध और श्रीकृष्ण पुत्रों के शौर्यसे पराजित राजा का उनकी शरण में आनाका वर्णन किया गया है। सत्रहवाँ अध्याय में स्त्री-राज्यपर विजय और वहाँ की कुमारी रानी सुरूपा का अनिरुद्ध की...
यहां पढ़िए श्री गर्ग संहिता के अश्वमेधखण्ड में सोलहवें अध्याय से बीसवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में अश्वमेधखण्ड के इक्कीसवाँ अध्याय में भद्रावतीपुरी तथा राजा यौवनाश्वपर अनिरुद्ध की विजय का वर्णन कहा गया है। बाईसवाँ अध्याय में यज्ञ के घोड़े का अवन्तीपुरी में जाना और वहाँ अवन्तीनरेश की ओर से सेना सहित यादवों का पूर्ण सत्कार होना कहा गया है। तेईसवाँ अध्याय अनिरुद्धके पूछनेपर सान्दीपनिद्वारा श्रीकृष्ण तत्त्वका...
यहां पढ़िए श्री गर्ग संहिता के अश्वमेधखण्ड में इक्कीसवें अध्याय से पचीसवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में अश्वमेधखण्ड के छब्बीसवाँ अध्याय में नारदजीके मुखसे बल्वलके निवासस्थानका पता पाकर यादवोंका अनेक तीर्थोंमें स्नान-दान करते हुए कपिलाश्रमतक जाना और वहाँ कपिल मुनिको प्रणाम करके सागर के तटपर सेना का पड़ाव डालने का वर्णन है। सत्ताईसवाँ अध्याय में यादवों द्वारा समुद्र पर बाणमय सेतु का निर्माण...
यहां पढ़िए श्री गर्ग संहिता के अश्वमेधखण्ड में छब्बीसवें अध्याय से तीसवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में अश्वमेधखण्ड के इकतीसवाँ अध्याय में वृकद्वारा सिंहका और साम्बद्वारा कुशाम्बका वध वर्णन है। बत्तीसवाँ अध्याय में मयको बल्वलका समझाना; बल्वल की युद्धघोषणा; समस्त दैत्यों का युद्ध के लिये निर्गमन; विलम्ब के कारण सैन्यपाल के पुत्र का वध तथा दुःखी सैन्यपाल को मन्त्रिपुत्रों का विवेकपूर्वक धैर्य...
यहां पढ़िए श्री गर्ग संहिता के अश्वमेधखण्ड में इकतीसवें अध्याय से पैंतीसवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में अश्वमेधखण्ड के छत्तीसवाँ अध्याय में श्रीकृष्ण पुत्र सुनन्दन द्वारा दैत्य पुत्र कुनन्दन का वध का वर्णन है। सैंतीसवाँ अध्याय में भगवान शिव का अपने गणों के साथ बल्वल की ओर से युद्धस्थल में आना और शिवगणों तथा यादवों का घोर युद्धः दीप्तिमान का शिवगणों को मार भगाना और अनिरुद्ध का भैरव को...
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श्री गर्ग संहिता में अश्वमेधखण्ड के इकतालीसवाँ अध्याय में श्रीराधा और श्रीकृष्ण का मिलन वर्णन कहा गया है। बयालीसवाँ अध्याय में रासक्रीडा के प्रसङ्ग में श्रीवृन्दावन, यमुना-पुलिन, वंशीवट, निकुञ्जभवन आदि की शोभा का वर्णन; गोपसुन्दरियों, श्यामसुन्दर तथा श्रीराधा की छबिका चिन्तन कहा है। तैंतालीसवाँ अध्याय में श्रीकृष्ण का श्रीराधा...
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श्री गर्ग संहिता में अश्वमेधखण्ड के छियालीसवाँ अध्याय में श्रीकृष्ण के आगमन से गोपियों को उल्लास; श्रीहरि के वेणुगीत की चर्चा से श्रीराधा की मूर्च्छा का निवारण; श्रीहरि का श्रीराधा आदि गोपसुन्दरियों के साथ वन-विहार, स्थल-विहार, जल-विहार, पर्वत-विहार और रासक्रीडा का वर्णन है। सैंतालीसवाँ अध्याय में श्रीकृष्ण सहित यादवों का व्रजवासियों...
यहां पढ़िए श्री गर्ग संहिता के अश्वमेधखण्ड में छियालीसवें अध्याय से पचासवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में अश्वमेधखण्ड के इक्यावनवाँ अध्याय में यादवों का द्वैतवन में राजा युधिष्ठिर से मिलकर घोड़े के पीछे-पीछे अन्यान्य देशों में जाना तथा अश्वका कौन्तलपुर में प्रवेश करने का वर्णन है। बावनवाँ अध्याय में श्यामकर्ण अश्वका कौन्तलपुर में जाना और भक्तराज चन्द्रहास का बहुत सी भेंट-सामग्री के साथ अश्व को अनिरुद्ध की...
यहां पढ़िए श्री गर्ग संहिता के अश्वमेधखण्ड में इक्यावनवें अध्याय से अट्ठावनवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में अश्वमेधखण्ड के उनसठवाँ अध्याय में गर्गाचार्य के द्वारा राजा उग्रसेन के प्रति भगवान श्रीकृष्ण के सहस्त्रनामों का वर्णन कहा गया है। साठवाँ अध्याय में कौरवों के संहार, पाण्डवों के स्वर्गगमन तथा यादवों के संहार आदि का संक्षिप्त वृत्तान्तः श्रीराधा तथा व्रजवासियों सहित भगवान श्रीकृष्ण का गोलोक धाम में गमन...
यहां पढ़िए श्री गर्ग संहिता के अश्वमेधखण्ड में उनसठवें अध्याय से बासठवाँ अध्याय तक
यहां पढ़िए ~ श्री गर्ग संहिता माहात्म्य
Madhurya kand ke baad ke adhyay kahan hai