Garg Samhita Mahatmya
॥ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥
Garg Samhita Mahatmya | गर्ग संहिता माहात्म्य
श्री गर्ग संहिता माहात्म्य (Garg Samhita Mahatmya) के पहला अध्याय में गर्ग संहिता के प्राकट्य का उपक्रम कहा गया है। दूसरा अध्याय में नारदजी की प्रेरणा से गर्ग द्वारा संहिता की रचना; संतान के लिये दुःखी राजा प्रतिबाहु के पास महर्षि शाण्डिल्य का आगमन वर्णन है। तीसरा अध्याय में राजा प्रतिबाहु के प्रति महर्षि शाण्डिल्य द्वारा गर्ग संहिता के माहात्म्य और श्रवण-विधिका वर्णन और चौथा अध्याय में शाण्डिल्य मुनि का राजा प्रतिबाहु को गर्ग संहिता सुनाना; श्रीकृष्ण का प्रकट होकर राजा आदि को वरदान देना; राजा को पुत्र की प्राप्ति और संहिता का माहात्म्य कहा गया है।
यहां पढ़ें ~ गर्ग संहिता गोलोक खंड पहले अध्याय से पांचवा अध्याय तक
पहला अध्याय
गर्गसंहिता के प्राकट्य का उपक्रम
जो श्रीकृष्ण को ही देवता (आराध्य) मानने वाले वृष्णिवंशियों के आचार्य तथा कवियोंमें सर्वश्रेष्ठ हैं, उन महात्मा श्रीमान् गर्गजीको नित्य बारंबार नमस्कार है॥ १॥
शौनकजी बोले- ब्रह्मन् ! मैंने आपके मुखसे पुराणोंका उत्तम-से-उत्तम माहात्म्य विस्तारपूर्वक सुना है, वह श्रोत्रेन्द्रियके सुखकी वृद्धि करनेवाला है। अब गर्गमुनिकी संहिताका जो साररूप माहात्म्य है, उसका प्रयत्नपूर्वक विचार करके मुझसे वर्णन कीजिये। अहो! जिसमें श्रीराधा माधवकी महिमाका विविध प्रकारसे वर्णन किया गया है, वह गर्गमुनिकी भगवल्लीला सम्बन्धिनी संहिता धन्य है॥ २-४॥
सूतजी कहते हैं- अहो शौनक ! इस माहात्म्यको मैंने नारदजीसे सुना है। इसे सम्मोहन-तन्त्रमें शिवजीने पार्वतीसे वर्णन किया था। कैलास पर्वतके निर्मल शिखरपर, जहाँ अलकनन्दाके तटपर अक्षयवट विद्यमान है, उसकी छायामें शंकरजी नित्य विराजते हैं। एक समयकी बात है, सम्पूर्ण मङ्गलोंकी अधिष्ठात्री देवी गिरिजाने प्रसन्नतापूर्वक भगवान् शंकरसे अपनी मनभावनी बात पूछी, जिसे वहाँ उपस्थित सिद्धगण भी सुन रहे थे ॥५-७॥
पार्वतीने पूछा- नाथ! जिसका आप इस प्रकार ध्यान करते रहते हैं, उसके उत्कृष्ट चरित्र तथा जन्म- कर्मके रहस्यका मेरे समक्ष वर्णन कीजिये। कष्टहारी शंकर ! पूर्वकालमें मैंने साक्षात् आपके मुखसे श्रीमान् गोपालदेवके सहस्त्रनामको सुना है। अब मुझे उनकी कथा सुनाइये ॥ ८-९ ॥(Garg Samhita Mahatmya)
महादेवजी बोले- सर्वमङ्गले ! राधापति परमात्मा गोपालकृष्णकी कथा गर्गसंहितामें सुनी जाती है ॥ १० ॥
पार्वतीने पूछा- शंकर पुराण और संहिताएँ तो अनेक हैं, परंतु आप उन सबका परित्याग करके गर्ग- संहिताकी ही प्रशंसा करते हैं, उसमें भगवान की किस लीलाका वर्णन है, उसे विस्तारपूर्वक बतलाइये। पूर्वकालमें किसके द्वारा प्रेरित होकर गर्गमुनिने इस संहिताकी रचना की थी? देव! इसके श्रवणसे कौन- सा पुण्य होता है तथा किस फलकी प्राप्ति होती है? प्राचीनकालमें किन-किन लोगोंने इसका श्रवण किया है? प्रभो! यह सब मुझे बताइये ॥ ११-१३॥
सूतजी कहते हैं- अपनी प्रिया पार्वतीका ऐसा कथन सुनकर भगवान् महेश्वरका चित्त प्रसन्न हो गया। उस समय वे सभामें विराजमान थे। वहीं उन्होंने गर्गद्वारा रचित कथाका स्मरण करके उत्तर देना आरम्भ किया ॥ १४ ॥
महादेवजी बोले- देवि ! राधा माधवका तथा गर्गसंहिताका भी विस्तृत माहात्म्य प्रयत्नपूर्वक श्रवण करो। यह पापोंका नाश करनेवाला है। जिस समय भगवान् श्रीकृष्ण भूतलपर अवतीर्ण होनेका विचार कर रहे थे, उसी अवसरपर ब्रह्माके प्रार्थना करनेपर उन्होंने पहले-पहल राधासे अपने चरित्रका वर्णन किया था। तदनन्तर गोलोकमें शेषजीने (कथा- श्रवणके लिये) प्रार्थना की। तब भगवान्ने प्रसन्नता- पूर्वक पुनः अपनी सम्पूर्ण कथा उनके सम्मुख कह सुनायी। तत्पश्चात् शेषजीने ब्रह्माको और ब्रह्माने धर्मको यह संहिता प्रदान की। सर्वमङ्गले ! फिर अपने पुत्र नर-नारायणद्वारा आग्रहपूर्ण प्रार्थना किये जानेपर धर्मने एकान्तमें उनको इस अमृतस्वरूपिणी कथाका पान कराया था। पुनः नारायणने धर्मके मुखसे जिस कृष्ण-चरित्रका श्रवण किया था, उसे सेवापरायण नारदसे कहा। तदनन्तर प्रार्थना किये जानेपर नारदने नारायणके मुखसे प्राप्त हुई सारी-की- सारी श्रीकृष्णसंहिता गर्गाचार्यको कह सुनायी। यों श्रीहरिकी भक्तिसे सराबोर परम ज्ञानको सुनकर गर्गजीने महात्मा नारदका पूजन किया। पर्वतनन्दिनि ! तब नारदने भूत-भविष्य वर्तमान- तीनों कालोंके ज्ञाता गर्गसे यों कहा ॥ १५-२२ ॥
नारदजी बोले- गर्गजी। मैंने तुम्हें संक्षेपसे श्रीहरिकी यशोगाथा सुनायी है। यह वैष्णवोंके लिये परम प्रिय है। अब तुम इसका विस्तारपूर्वक वर्णन करो। विभो ! तुम ऐसे परम अद्भुत शास्त्रकी रचना करो, जो सबकी कामनाओंको पूर्ण करनेवाला, निरन्तर कृष्णभक्तिकी वृद्धि करनेवाला तथा मुझे परम प्रिय लगे। विप्रेन्द्र ! मेरी आज्ञा मानकर कृष्णद्वैपायन व्यासने श्रीमद्भागवतकी रचना की, जो समस्त शास्त्रोंमें परम श्रेष्ठ है। ब्रह्मन् ! जिस प्रकार मैं भागवतकी रक्षा करता हूँ, उसी तरह तुम्हारे द्वारा रचित शास्त्रको राजा बहुलाश्वको सुनाऊँगा ॥ २३-२६ ॥
इस प्रकार श्रीसम्मोहन-तन्त्रमें पार्वती शंकर-संवादमें ‘श्रीगर्गसंहिताका माहात्म्य’
विषयक प्रथम अध्याय पूरा हुआ ॥१॥
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दूसरा अध्याय
नारदजीकी प्रेरणासे गर्गद्वारा संहिताकी रचना; संतानके लिये दुःखी राजा
प्रतिबाहुके पास महर्षि शाण्डिल्यका आगमन
महादेवजीने कहा- देवर्षि नारदका कथन सुनकर महामुनि गर्गाचार्य विनयसे झुककर हँसते हुए यों कहने लगे ॥ १॥
गर्गजी बोले- ब्रह्मन् ! आपकी कही हुई बात यद्यपि सब तरहसे अत्यन्त कठिन है- यह स्पष्ट है, तथापि यदि आप कृपा करेंगे तो मैं उसका पालन करूँगा ॥ २ ॥
सर्वमङ्गले! यों कहे जानेपर भगवान् नारद हर्षातिरेकसे अपनी वीणा बजाते और गाते हुए ब्रह्मलोकमें चले गये। तदनन्तर गर्गाचलपर जाकर कविश्रेष्ठ गर्गने इस महान् अद्भुत शास्त्रकी रचना की। इसमें देवर्षि नारद और राजा बहुलाश्वके संवादका निरूपण हुआ है। यह श्रीकृष्णके विभिन्न विचित्र चरित्रोंसे परिपूर्ण तथा सुधा-सदृश स्वादिष्ट बारह हजार श्लोकोंसे सुशोभित है। गर्गजीने श्रीकृष्णके जिस महान् चरित्रको गुरुके मुखसे सुना था, अथवा स्वयं अपनी आँखों देखा था, वह सारा-का-सारा चरित्र इस संहितामें सजा दिया है। वह कथा ‘श्रीगर्गसंहिता’ नामसे प्रचलित हुई। यह कृष्णभक्ति प्रदान करने- वाली है। इसके श्रवणमात्रसे सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं॥ ३-७ ॥(Garg Samhita Mahatmya)
इस विषयमें एक प्राचीन इतिहासका वर्णन किया जाता है, जिसके सुनते ही सम्पूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं। वज्रके पुत्र राजा प्रतिबाहु हुए, जो प्रजा पालनमें तत्पर रहते थे। उस राजाकी प्यारी पत्नीका नाम मालिनी देवी था। राजा प्रतिबाहु पत्नीके साथ कृष्णपुरी मथुरामें रहते थे। उन्होंने संतानकी प्राप्तिके लिये विधानपूर्वक बहुत- सा यत्न किया। राजाने सुपात्र ब्राह्मणोंको बछड़े-सहित बहुत-सी गायोंका दान दिया तथा प्रयत्नपूर्वक भरपूर दक्षिणाओंसे युक्त अनेकों यज्ञोंका अनुष्ठान किया। भोजन और धनद्वारा गुरुओं, ब्राह्मणों और देवताओंका पूजन किया, तथापि पुत्रकी उत्पत्ति न हुई। तब राजा चिन्तासे व्याकुल हो गये। वे दोनों पति-पत्नी नित्य चिन्ता और शोकमें डूबे रहते थे। इनके पितर (तर्पणमें) दिये हुए जलको कुछ गरम-सा पान करते थे। ‘इस राजाके पश्चात् जो हमलोगोंको तर्पणद्वारा तृप्त करेगा- ऐसा कोई दिखायी नहीं पड़ रहा है। इस राजाके भाई-बन्धु, मित्र, अमात्य, सुहृद् तथा हाथी, घोड़े और पैदल सैनिक किसीको भी इस बातकी कोई चिन्ता नहीं है।’- इस बातको याद करके राजाके पितृगण अत्यन्त दुःखी हो जाते थे। इधर राजा प्रतिबाहुके मनमें निरन्तर निराशा छायी रहती थी ॥८-१५॥
(वे सोचते रहते थे कि) ‘पुत्रहीन मनुष्यका जन्म निष्फल है। जिसके पुत्र नहीं है, उसका घर सूना-सा लगता है और मन सदा दुःखाभिभूत रहता है। पुत्रके बिना मनुष्य देवता, मनुष्य और पितरोंके ऋणसे उऋण नहीं हो सकता। इसलिये बुद्धिमान् मनुष्यको चाहिये कि वह सभी प्रकारके उपायोंका आश्रय लेकर पुत्र उत्पन्न करे। उसीकी भूतलपर कीर्ति होती है और परलोकमें उसे शुभगति प्राप्त होती है। जिन पुण्यशाली पुरुषोंके घरमें पुत्रका जन्म होता है, उनके भवनमें आयु, आरोग्य और सम्पत्ति सदा बनी रहती है।’ राजा अपने मनमें यों लगातार सोचा करते थे, जिससे उन्हें शान्ति नहीं मिलती थी। अपने सिरके बालोंको श्वेत हुआ देखकर वे रात-दिन शोकमें निमग्न रहते थे ॥ १६-२० ॥
एक समय मुनीश्वर शाण्डिल्य स्वेच्छापूर्वक विचरते हुए प्रतिबाहुसे मिलनेके लिये उनकी राजधानी मधुपुरी (मथुरा) में आये। उन्हें देखकर राजा सहसा अपने सिंहासनसे उठ पड़े और उन्हें आसन आदि देकर सम्मानित किया। पुनः मधुपर्क आदि निवेदन करके हर्षपूर्वक उनका पूजन किया। राजाको उदासीन देखकर महर्षिको परम विस्मय हुआ। तत्पश्चात् मुनीश्वरने स्वस्तिवाचनपूर्वक राजाका अभिनन्दन करके उनसे राज्यके सातों अङ्गोंके विषयमें कुशल पूछी। तब्ब नृपश्रेष्ठ प्रतिबाहु अपनी कुशल निवेदन करनेके लिये बोले ॥२१-२४ ॥
राजाने कहा- ब्रह्मन् ! पूर्वजन्मार्जित दोषके कारण इस समय मुझे जो दुःख प्राप्त है, अपने उस कष्टके विषयमें मैं क्या कहूँ? भला, आप-जैसे ऋषियोंके लिये क्या अज्ञात है? मुझे अपने राष्ट्र तथा नगरमें कुछ भी सुख दृष्टिगोचर नहीं हो रहा है। मैं क्या करूँ ? कहाँ जाऊँ? किस प्रकार मुझे पुत्रकी प्राप्ति हो। ‘राजाके बाद जो हमारी रक्षा करे-ऐसा हमलोग किसीको नहीं देख रहे हैं।’ इस बातको स्मरण करके मेरी सारी प्रजा दुःखी है। ब्रह्मन् ! आप तो साक्षात् दिव्यदर्शी हैं; अतः मुझे ऐसा उपाय बतलाइये, जिससे मुझे वंशप्रवर्त्तक दीर्घायु पुत्रकी प्राप्ति हो जाय ॥ २५-२८॥(Garg Samhita Mahatmya)
महादेवजी बोले- देवि ! उस दुःखी राजाके इस वचनको सुनकर मुनिवर्य शाण्डिल्य राजाके दुःखको शान्त करते हुए से बोले ॥ २९ ॥
इस प्रकार श्रीसम्मोहन-तन्त्रमें पार्वती शंकर-संवादमें ‘गर्गसंहिताका माहात्म्य’
विषयक दूसरा अध्याय पूरा हुआ ॥ २॥
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तीसरा अध्याय
राजा प्रतिबाहु के प्रति महर्षि शाण्डिल्य द्वारा गर्गसंहिता के माहात्म्य और श्रवण-विधिका वर्णन
शाण्डिल्यने कहा- राजन् ! पहले भी तो तुम बहुत-से उपाय कर चुके हो, परंतु उनके परिणामस्वरूप एक भी कुलदीपक पुत्र उत्पन्न नहीं हुआ। इसलिये अब तुम पत्नीके साथ शुद्ध-हृदय होकर विधिपूर्वक ‘गर्ग- संहिता’ का श्रवण करो। राजन् ! यह संहिता धन, पुत्र और मुक्ति प्रदान करनेवाली है। यद्यपि यह एक छोटा-सा उपाय है, तथापि कलियुगमें जो मनुष्य इस संहिताका श्रवण करते हैं, उन्हें भगवान् विष्णु पुत्र, सुख आदि सब प्रकारकी सुख-सम्पत्ति दे देते हैं॥१-३ ॥
नरेश ! गर्गमुनिकी इस संहिताके नवाह पारायणरूप यज्ञसे मनुष्य सद्यः पावन हो जाते हैं। उन्हें इस लोकमें परम सुखकी प्राप्ति होती है तथा मृत्युके पश्चात् वे गोलोकपुरीमें चले जाते हैं। इस कथाको सुननेसे रोगग्रस्त मनुष्य रोग-समूहोंसे, भयभीत भयसे और बन्धनग्रस्त बन्धनसे मुक्त हो जाता है। निर्धनको धन-धान्यकी प्राप्ति हो जाती है तथा मूर्ख शीघ्र ही पण्डित हो जाता है। इस कथाके श्रवणसे ब्राह्मण विद्वान्, क्षत्रिय विजयी, वैश्य खजानेका स्वामी तथा शूद्र पापरहित हो जाता है। यद्यपि यह संहिता स्त्री- पुरुषोंके लिये अत्यन्त दुर्लभ है, तथापि इसे सुनकर मनुष्य सफलमनोरथ हो जाता है। जो निष्कारण अर्थात् कामनारहित होकर भक्तिपूर्वक मुनिवर गर्गद्वारा रचित इस सम्पूर्ण संहिताको सुनता है, वह सम्पूर्ण विघ्नोंपर विजय पाकर देवताओंको भी पराजित करके श्रेष्ठ गोलोकधामको चला जाता है॥४-७ ॥(Garg Samhita Mahatmya)
राजन् ! गर्गसंहिताकी प्रबन्ध कल्पना परम दुर्लभ है। यह भूतलपर सहस्रों जन्मोंके पुण्यसे उपलब्ध होती है। श्रीगर्गसंहिताके श्रवणके लिये दिनोंका कोई नियम नहीं है। इसे सर्वदा सुननेका विधान है। इसका श्रवण कलियुगमें भुक्ति और मुक्ति प्रदान करनेवाला है। समय क्षणभङ्गुर है; पता नहीं कल क्या हो जाय; इसलिये संहिता-श्रवणके लिये नौ दिनका नियम बतलाया गया है। भूपाल। श्रोताको चाहिये कि वह ज्ञानपूर्वक ब्रह्मचर्यका पालन करते हुए एक बार एक अन्नका या हविष्यान्नका भोजन करे अथवा फलाहार करे। उसे विधानके अनुसार मिष्टान्न, गेहूँ अथवा जौकी पूड़ी, सेंधा नमक, कंद, दही और दूधका भोजन करना चाहिये। नृपश्रेष्ठ ! विष्णुभगवान के अर्पित किये हुए भोजनको ही प्रसादरूपमें खाना चाहिये। बिना भगवान का भोग लगाये आहार नहीं ग्रहण करना चाहिये। श्रद्धापूर्वक कथा सुननी चाहिये; क्योंकि यह कथा-श्रवण सम्पूर्ण कामनाओंको पूर्ण करनेवाला है। बुद्धिमान् श्रोताको चाहिये कि वह पृथ्वीपर शयन करे और क्रोध तथा लोभको छोड़ दे। इस प्रकार गुरुके श्रीमुखसे कथा सुनकर वह सम्पूर्ण मनोवाञ्छित फल प्राप्त कर लेता है। जो गुरु-भक्तिसे रहित, नास्तिक, पापी, विष्णुभक्तिसे रहित, श्रद्धाशून्य तथा दुष्ट हैं, उन्हें कथाका फल नहीं मिलता ॥ ८-१५॥
विद्वान् श्रोताको चाहिये कि वह अपने परिचित ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र- सभीको बुलाकर शुभ मुहूर्तमें अपने घरपर कथाको आरम्भ कराये। भक्तिपूर्वक केलेके खंभोंसे मण्डपका निर्माण करे। सबसे पहले पञ्चपल्लवसहित जलसे भरा हुआ कलश स्थापित करे। फिर पहले-पहल गणेशकी पूजा करके तत्पश्चात् नवग्रहोंकी पूजा करे। तदनन्तर पुस्तककी पूजा करके विधिपूर्वक वक्त्ताकी पूजा करे और उन्हें सुवर्णकी दक्षिणा दे। असमर्थ होनेपर चाँदीकी भी दक्षिणा दी जा सकती है। पुनः कलशपर श्रीफल रखकर मिष्टान्न निवेदन करना चाहिये। तत्पश्चात् भक्तिपूर्वक तुलसीदलोंद्वारा भलीभाँति पूजन करके आरती उतारनी चाहिये। राजन्। कथासमाप्तिके दिन श्रोताकी प्रदक्षिणा करनी चाहिये ॥ १६-२० ॥
जो परस्त्रीगामी, धूर्त, वकवादी, शिवकी निन्दा करनेवाला, विष्णु-भक्तिसे रहित और क्रोधी हो, उसे ‘वक्ता’ नहीं बनाना चाहिये। जो वाद-विवाद करने वाला, निन्दक, मूर्ख, कथामें विघ्न डालनेवाला और सबको दुःख देनेवाला हो, वह ‘श्रोता’ निन्दनीय कहा गया है। जो गुरु-सेवापरायण, विष्णुभक्त और कथाके अर्थको समझनेवाला है तथा कथा सुननेमें जिसका मन लगता है, वह श्रोता श्रेष्ठ कहा जाता है। जो शुद्ध, आचार्य-कुलमें उत्पन्न, श्रीकृष्णका भक्त, बहुत-से शास्त्रोंका जानकार, सदा सम्पूर्ण मनुष्योंपर दया करने वाला और शङ्काओंका उचित समाधान करनेवाला हो, वह उत्तम वक्ता कहा गया है॥ २१-२४॥(Garg Samhita Mahatmya)
द्वादशाक्षर मन्त्रके जपद्वारा कथाके विघ्नोंका निवारण करनेके लिये यथाशक्ति अन्यान्य ब्राह्मणोंका भी वरण कराना चाहिये। विद्वान् वक्ताको तीन प्रहर (९ घंटे) तक उच्च स्वरसे कथा बाँचनी चाहिये। कथाके बीचमें दो बार विश्राम लेना उचित है। उस समय लघुशङ्का आदिसे निवृत्त होकर जलसे हाथ-पैर धोकर पवित्र हो ले। साथ ही कुल्ला करके मुख-शुद्धि भी कर लेनी चाहिये। राजन्। नवें दिनकी पूजा-विधि विज्ञानखण्डमें बतलायी गयी है। उस दिन उत्तम बुद्धिसम्पन्न श्रोता पुष्प, नैवेद्य और चन्दनसे पुस्तककी पूजा करके पुनः सोना, चाँदी, वाहन, दक्षिणा, वस्त्र, आभूषण और गन्ध आदिसे वक्ताका पूजन करे। नरेश! तत्पश्चात् यथाशक्ति नौ सहस्र या नौ सौ या निन्यानबे अथवा नौ ब्राह्मणोंको निमन्त्रित करके खीरका भोजन कराये। तब कथाके फलकी प्राप्ति होती है। कथा-विश्रामके समय विष्णु-भक्तिसम्पन्न स्त्री-पुरुषोंके साथ भगवन्नाम-कीर्तन भी करना चाहिये। उस समय झाँझ, शङ्ख, मृदङ्ग आदि बाजोंके साथ-साथ बीच-बीचमें जय-जयकारके शब्द भी बोलने चाहिये। जो श्रोता श्रीगर्गसंहिताकी पुस्तकको सोनेके सिंहासनपर स्थापित करके उसे वक्ताको दान कर देता है, वह मरनेपर श्रीहरिको प्राप्त करता है। राजन् ! इस प्रकार मैंने तुम्हें गर्गसंहिताका माहात्म्य बतला दिया, अब और क्या सुनना चाहते हो? अरे, इस संहिताके श्रवणसे ही भुक्ति और मुक्तिकी प्राप्ति देखी जाती है॥ २५-३४॥
इस प्रकार श्रीसम्मोहन तन्त्रमें पार्वती शंकर संवादमें ‘श्रीगर्गसंहिताके माहात्म्य तथा श्रवणविधिका वर्णन’
नामक तीसरा अध्याय पूरा हुआ ॥ ३ ॥
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चौथा अध्याय
शाण्डिल्य मुनि का राजा प्रतिबाहु को गर्ग संहिता सुनाना; श्रीकृष्ण का प्रकट
होकर राजा आदि को वरदान देना; राजा को पुत्र की प्राप्ति
और संहिता का माहात्म्य
महादेवजी बोले- प्रिये! मुनीश्वर शाण्डिल्यका यह कथन सुनकर राजाको बड़ी प्रसन्नता हुई। उसने विनयावनत होकर प्रार्थना की ‘मुने। मैं आपके शरणागत हूँ। आप शीघ्र ही मुझे श्रीहरिकी कथा सुनाइये और पुत्रवान् बनाइये ॥ १ ॥
राजाकी प्रार्थना सुनकर मुनिवर शाण्डिल्यने श्रीयमुनाजीके तटपर मण्डपका निर्माण करके सुखदायक कथा-पारायणका आयोजन किया। उसे सुनकर सभी मथुरावासी वहाँ आये। महान् ऐश्वर्य शाली यादवेन्द्र श्रीप्रतिबाहुने कथारम्भ तथा कथा समाप्तिके दिन ब्राह्मणोंको उत्तम भोजन कराया तथा बहुत-सा धन दान दिया। तत्पश्चात् राजाने मुनिवर शाण्डिल्यका भलीभाँति पूजन करके उन्हें रथ, अश्व, द्रव्यराशि, गौ, हाथी और ढेर के ढेर रत्न दक्षिणामें दिये। सर्वमङ्गले। तब शाण्डिल्यने मेरे द्वारा कहे हुए श्रीमान् गोपालकृष्ण के सहस्रनाम का पाठ किया, जो सम्पूर्ण दोषोंको हर लेनेवाला है। कथा समाप्त होनेपर शाण्डिल्य की प्रेरणासे राजेन्द्र प्रतिबाहुने भक्तिपूर्वक व्रजेश्वर श्रीमान् मदनमोहनका ध्यान किया। तब श्रीकृष्ण अपनी प्रेयसी राधा तथा पार्षदोंके साथ वहाँ प्रकट हो गये। उन साँवरे-सलोनेके हाथमें वंशी और बेंत शोभा पा रहे थे। उनकी छटा करोड़ों कामदेवोंको मोहमें डालनेवाली थी। उन्हें सम्मुख उपस्थित देखकर महर्षि शाण्डिल्य, राजा तथा समस्त श्रोताओंके साथ तुरंत ही उनके चरणोंमें लोट पड़े और पुनः विधि-पूर्वक स्तुति करने लगे ॥ २-७॥(Garg Samhita Mahatmya)
शाण्डिल्य बोले- प्रभो! आप वैकुण्ठपुरीमें सदा लीलामें तत्पर रहनेवाले हैं। आपका स्वरूप परम मनोहर है। देवगण सदा आपको नमस्कार करते हैं। आप परम श्रेष्ठ हैं। गोपालनकी लीलामें आपकी विशेष अभिरुचि रहती है-ऐसे आपका मैं भजन करता हूँ। साथ ही आप गोलोकाधिपतिको मैं नमस्कार २ करता हूँ ॥८॥
प्रतिबाहु बोले- गोलोकनाथ! आप गिरिराज गोवर्धनके स्वामी हैं। परमेश्वर! आप वृन्दावनके अधीश्वर तथा नित्य विहारकी लीलाएँ करनेवाले हैं। राधापते ! व्रजाङ्गनाएँ आपकी कीर्तिका गान करती रहती हैं। गोविन्द ! आप गोकुलके पालक हैं। निश्वय ही आपकी जय हो ॥९॥
रानी बोली- राधेश! आप वृन्दावनके स्वामी तथा पुरुषोत्तम हैं। माधव। आप भक्तोंको सुख देने- वाले हैं! मैं आपकी शरण ग्रहण करती हूँ ॥१०॥
समस्त श्रोताओंने कहा- हे जगन्नाथ! हम- लोगोंका अपराध क्षमा कीजिये। श्रीनाथ! राजाको सुपुत्र तथा हमलोगोंको अपने चरणोंकी भक्ति प्रदान कीजिये ॥ ११ ॥
महादेवजीने कहा- देवि ! भक्तवत्सल भगवान इस प्रकार अपनी स्तुति सुनकर उन सभी प्रणतजनोंके प्रति मेघके समान गम्भीर वाणीसे बोले ॥ १२ ॥
श्रीभगवान्ने कहा- मुनिवर शाण्डिल्य! तुम राजा तथा सभी लोगोंके साथ मेरी बात सुनो-‘ तुम- लोगोंका कथन सफल होगा।’ ब्रह्मन् ! इस संहिताके रचयिता गर्गमुनि हैं, इसी कारण यह ‘गर्गसंहिता’ नामसे प्रसिद्ध है। यह सम्पूर्ण दोषोंको हरनेवाली, पुण्यस्वरूपा और चतुर्वर्ग-धर्म, अर्थ, काम, मोक्षके फलको देनेवाली है। कलियुगमें जो-जो मनुष्य जिस-जिस मनोरथकी अभिलाषा करते हैं, श्रीगर्गाचार्यकी यह गर्गसंहिता सभीकी उन-उन कामनाओंको पूर्ण करती है’ ॥ १३-१५॥
शिवजीने कहा- देवि! ऐसा कहकर माधव राधाके साथ अन्तर्धान हो गये। उस समय शाण्डिल्य मुनिको तथा राजा आदि सभी श्रोताओंको परम आनन्द प्राप्त हुआ। प्रिये! तदनन्तर मुनिवर शाण्डिल्यने दक्षिणामें प्राप्त हुए धनको मथुरावासी ब्राह्मणोंमें बाँट दिया। फिर राजाको आश्वासन देकर वे भी अन्तर्हित हो गये ॥ १६-१७ ॥(Garg Samhita Mahatmya)
तत्पश्चात् रानीने राजाके समागमसे सुन्दर गर्भ धारण किया। प्रसवकाल आनेपर पुण्यकर्मके फलस्वरूप गुणवान् पुत्र उत्पन्न हुआ। उस समय राजाको महान् हर्ष प्राप्त हुआ। उन्होंने कुमारके जन्मके उपलक्षमें ब्राह्मणोंको गौ, पृथ्वी, सुवर्ण, वस्त्र, हाथी, घोड़े आदि दान दिये और ज्यौतिषियोंसे परामर्श करके अपने पुत्रका ‘सुबाहु’ नाम रखा। इस प्रकार नृपश्रेष्ठ प्रतिबाहु सफलमनौरथ हो गये। राजा प्रतिबाहुने श्रीगर्गसंहिताका श्रवण करके इस लोकमें सम्पूर्ण सुखोंका उपभोग किया और अन्तकाल आनेपर वे गोलोकधामको चले गये, जहाँ पहुँचना योगियोंके लिये भी दुर्लभ है। श्रीगर्गसंहिता स्त्री, पुत्र, धन, सवारी, कीर्ति, घर, राज्य, सुख और मोक्ष प्रदान करनेवाली है। मुनीश्वरो। इस प्रकार भगवान् शंकरने पार्वतीदेवीसे सारी कथा कहकर जब विराम लिया, तब पार्वतीने पुनः उनसे कहा ॥ १८-२३ ॥
पार्वतीजी बोलीं- नाथ! जिसमें माधवका अद्भुत चरित्र सुननेको मिलता है, उस श्रीगर्गसंहिताकी कथा मुझे बतलाइये। यह सुनकर भगवान् शंकरने हर्षपूर्वक अपनी प्रिया पार्वतीसे गर्गसंहिताकी सारी कथा कह सुनायी। पुनः साक्षात् शंकरने आगे कहा- ‘सर्वमङ्गले! तुम मेरी यह बात सुनो गङ्गातटसे अर्ध योजन (चार मील) की दूरीपर बिल्वकेश वनमें जो सिद्धपीठ है, वहाँ कलियुग आनेपर गोकुलवासी वैष्णवोंके मुखसे श्रीमद्भागवत आदि संहिताओंकी कथा तुम्हें बारंबार सुननेको मिलेगी ॥ २६-२७ ॥
सूतजी कहते हैं- शौनक! इस प्रकार महादेवजीके मुखसे इस महान् अद्भुत इतिहासको सुनकर भगवान की वैष्णवी माया पार्वती परम प्रसन्न हुई। मुने! उन्होंने बारंबार श्रीहरिकी कथा सुननेकी इच्छासे कलियुगके प्रारम्भमें अपनेको बिल्वकेश वनमें प्रकट करनेका निश्चय किया। इसी कारण वे लक्ष्मीका रूप धारण करके ‘सर्वमङ्गला’ नामसे वहाँ गङ्गाके दक्षिण तटपर प्रकट होंगी। मुने। श्रीगर्ग- संहिताका जो माहात्म्य मैंने कहा है, इसे जो सुनता है अथवा पढ़ता है, वह पाप और दुःखोंसे मुक्त हो जाता है॥ २८-३१॥
इस प्रकार श्रीसम्मोहन-तन्त्रमें पार्वती शंकर-संवादमें ‘श्रीगर्गसंहिता-माहात्म्यविषयक’
चौथा अध्याय पूरा हुआ ॥ ४॥