श्री भक्तमाल हिंदी में
श्री भक्तमाल (Bhaktamal) भारतीय भक्तिकाव्य और संत साहित्य का एक प्रसिद्ध ग्रंथ है, जिसकी रचना आचार्य नाभादास जी ने लगभग 16वीं शताब्दी में की थी। आचार्य नाभादास जी एक प्रसिद्ध वैष्णव संत थे, जो रामानंदी परंपरा से जुड़े हुए थे। उनका जन्म 1539 ईस्वी में हुआ था। वे महान संत आचार्य अग्रदास जी के शिष्य थे और अपने गुरु के आशीर्वाद से उन्होंने भक्ति पर आधारित यह अद्वितीय ग्रंथ रचा।
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श्री भक्तमाल (Bhaktamal) ग्रंथ भारतीय संतों, भक्तों, साधकों और उनके जीवन की महान कथाओं को एकत्रित करता है। यह न केवल भक्ति की गाथा है, बल्कि भारतीय संत परंपरा का अद्भुत संकलन है। यह ग्रंथ बताता है कि भक्ति ईश्वर तक पहुँचने का सरल और सीधा मार्ग है।
गोस्वामी नाभादास जी का जन्म अवध क्षेत्र (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। वे गोस्वामी तुलसीदास जी के समकालीन थे और उनके प्रति गहरी श्रद्धा रखते थे। नाभादास जी वल्लभ संप्रदाय के अनुयायी थे और भक्ति के मार्ग को जनसामान्य तक पहुँचाने के उद्देश्य से उन्होंने भक्तमाल की रचना की। इस ग्रंथ का उद्देश्य भक्ति और संतों की महिमा का बखान करना है। इसमें भक्ति को जीवन की सर्वोच्च साधना के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
भक्तमाल (Bhaktamal) मुख्यत वैष्णव भक्ति परंपरा से संबंधित है और इसमें भक्ति के विभिन्न रूपों और संतों के उदाहरणों के माध्यम से भक्ति मार्ग का महत्व समझाया गया है। श्री भक्तमाल अवधी भाषा में दोहों और चौपाइयों के रूप में लिखा गया है। इसमें लगभग 200 से अधिक संतों का वर्णन किया गया है, इसमें उन संतों और भक्तों की महिमा का वर्णन किया गया है, जिन्होंने अपने जीवन को भक्ति में समर्पित किया। जिनमें तुलसीदास, मीराबाई, सूरदास, और नामदेव जैसे भक्तों की कथाएं शामिल हैं। इसमें लगभग 700-750 छंद हैं, जिनमें संतों और भक्तों की महिमा का वर्णन है।
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यह ग्रंथ भक्ति मार्ग पर चलने वाले संतों की प्रेरणादायक कहानियों और उनके अद्भुत गुणों का वर्णन करता है। इसे अवधी भाषा में लिखा गया है, जिससे यह सभी वर्गों के लोगों के लिए सुगम और लोकप्रिय बना। भक्तमाल में भक्ति को मोक्ष प्राप्ति का सर्वोत्तम मार्ग बताया गया है। यह संतों के जीवन और उनके योगदान का प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है। यह ग्रंथ न केवल ऐतिहासिक महत्व का है, बल्कि साधकों और भक्तों के लिए मार्गदर्शक भी है। इसमें निहित संतों की गाथाएँ जीवन में भक्ति और धर्म को स्थापित करने की प्रेरणा देती हैं।
श्री भक्तमाल (Bhaktamal) में वर्णित भक्ति कथाओं में भक्ति के विभिन्न रूपों जैसे नवधा, प्रेमलक्षण, त्याग, तपस्या, बलिदान, सदाचार, सत्य, अहिंसा, क्षमा, दया, समानता और दुख, सख्य और अन्य दिव्य भावनाओं और करुणा का ज्ञान शामिल है। अपने भक्तों के लिए भगवान का, भक्तिमय प्रेम, दया, सुलभता, शिष्टाचार आदि कल्याणकारी गुणों का सुन्दर वर्णन किया गया है। महापुरुषों के जीवन का अध्ययन करने से मनुष्य को अपनी गलतियों का एहसास होता है और भवातवी से बाहर निकलकर वास्तविक सुख प्राप्त करने की प्रेरणा मिलती है।
चरित्रों को हृदयंगम करने से मनुष्य के सभी दोष, जैसे विषय-सुख की लालसा, बुरे कर्मों की प्रवृत्ति, अन्याय से धन कमाने की प्रवृत्ति आदि जड़ से समाप्त हो जाते हैं। भक्तमाला पाठ के अध्ययन से वे सभी लाभ प्राप्त होते हैं तथापि इस पाठ का विशिष्ट उपहार अहंकार का नाश अर्थात दुख की प्राप्ति है। इसमें वर्णित कथाओं को प्रेमपूर्वक पढ़ने और सुनने से अहंकार धीरे-धीरे नष्ट हो जाता है और भक्तों के हृदय का उत्कृष्ट दुःख पाठक के हृदय में संचारित होने लगता है, जिसके परिणामस्वरूप उसे भक्ति के राज्य में प्रवेश मिलता है।
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