अष्टाङ्गहृदयम् हिंदी में
“अष्टाङ्गहृदयम्” (Astanga Hrdayam in hindi) आयुर्वेद का एक प्रसिद्ध ग्रंथ है, जिसे महर्षि वाग्भट द्वारा रचित माना जाता है। यह ग्रंथ आयुर्वेद के आठ अंगों (अष्टाङ्ग) का सार प्रस्तुत करता है और संहिता-शैली में लिखा गया है। यह आयुर्वेद के तीन महान ग्रंथों (बृहत्त्रयी) में से एक है, अन्य दो हैं – चरकसंहिता और सुश्रुतसंहिता। महर्षि वाग्भट आयुर्वेद के प्रख्यात आचार्य थे, जिन्होंने चिकित्सा विज्ञान को सुव्यवस्थित एवं व्यापक रूप में प्रस्तुत किया। वे वाग्भट संप्रदाय के संस्थापक थे और बौद्ध दर्शन से प्रभावित थे। इनका काल लगभग 6वीं-7वीं शताब्दी ईस्वी माना जाता है।
इस ग्रंथ को संक्षिप्त, सरल एवं सारगर्भित शैली में लिखा गया है। इसमें आयुर्वेद के सभी आठ अंगों का समावेश किया गया है-
1) कायचिकित्सा (आंतरिक चिकित्सा)
2) बालरोग (कुमारभृत्य)
3) भूतविद्या (तंत्र एवं मानसिक रोगों की चिकित्सा)
4) शल्यतंत्र (सर्जरी)
5) शालाक्यतंत्र (नेत्र, कर्ण, नासिका, कंठ चिकित्सा)
6) अगदतंत्र (विषचिकित्सा)
7) रसायनतंत्र (पुनर्यौवन और दीर्घायु)
8) वाजीकरणतंत्र (प्रजनन शक्ति बढ़ाने की विद्या)
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Toggleअष्टाङ्गहृदयम् (Astanga Hrdayam in hindi) की विशेषताएँ:
यह गद्य एवं पद्य मिश्रित शैली में लिखा गया है, जिससे इसे याद रखना आसान होता है। इसमें आयुर्वेद के मूल सिद्धांतों को वैज्ञानिक एवं व्यावहारिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया गया है। चिकित्सा के विभिन्न पहलुओं को सूत्रबद्ध कर सरल भाषा में समझाया गया है। यह ग्रंथ चिकित्सा की केवल संकल्पना तक सीमित न रहकर, आहार, दिनचर्या, ऋतुचर्या, नाड़ी परीक्षण, रोगों की पहचान एवं औषधियों के उपयोग को भी स्पष्ट करता है।
अष्टाङ्गहृदयम् (Astanga Hrdayam in hindi) को अत्यंत संक्षिप्त, सुबोध एवं सारगर्भित शैली में लिखा गया है। इसमें गद्य और पद्य का मिश्रण है, जिससे इसे याद रखना और समझना आसान हो जाता है। इसके श्लोक सरल एवं लयबद्ध हैं, जो इसके अध्ययन को सुगम बनाते हैं। वाग्भट ने इसमें चिकित्सा विज्ञान के मूलभूत सिद्धांतों को सूत्ररूप में प्रस्तुत किया है। जिससे यह न केवल विद्वानों और चिकित्सकों के लिए उपयोगी है, बल्कि साधारण व्यक्ति भी इससे लाभ उठा सकता है।
अष्टाङ्गहृदयम् एक अनमोल आयुर्वेदिक ग्रंथ है, जो केवल चिकित्सा तक सीमित नहीं, बल्कि स्वस्थ जीवन के संपूर्ण मार्गदर्शन का कार्य करता है। इसकी विशेषताएँ इसे न केवल आयुर्वेद के विद्वानों के लिए उपयोगी बनाती हैं, बल्कि सामान्य जन भी इससे अपने जीवन को स्वस्थ और संतुलित बना सकता है। महर्षि वाग्भट द्वारा दी गई यह आयुर्वेदिक धरोहर आज भी अत्यंत प्रासंगिक एवं प्रभावी सिद्ध होती है।
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अष्टाङ्गहृदयम् का महत्व:
अष्टाङ्गहृदयम् में आयुर्वेद के सभी महत्वपूर्ण सिद्धांतों को संक्षिप्त और सुबोध भाषा में प्रस्तुत किया गया है। इसमें शरीर की संरचना, दोष-धातु-मल का संतुलन, रोगों के कारण, उनके लक्षण, निदान और उपचार की विधियों का वर्णन किया गया है। यह ग्रंथ चरकसंहिता और सुश्रुतसंहिता की तुलना में अधिक व्यवस्थित और सुगम है। इसमें त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) का विस्तृत अध्ययन किया गया है, जो रोगों के मूल कारणों को समझने में सहायक होता है।
यद्यपि यह ग्रंथ प्राचीन काल में लिखा गया था, फिर भी इसकी चिकित्सा विधियाँ आज भी आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में आधारभूत भूमिका निभाती हैं। वर्तमान समय में आयुर्वेद चिकित्सा में प्रयोग होने वाले औषधीय पौधों, जड़ी-बूटियों, और पंचकर्म चिकित्सा का आधार अष्टाङ्गहृदयम् में ही मिलता है। इस ग्रंथ में उल्लेखित सिद्धांतों का उपयोग आधुनिक हर्बल चिकित्सा, प्राकृतिक चिकित्सा, और समग्र स्वास्थ्य देखभाल (Holistic Healthcare) में भी किया जाता है।
अष्टाङ्गहृदयम् (Astanga Hrdayam in hindi) एक अमूल्य आयुर्वेदिक ग्रंथ है, जो आज भी प्रासंगिक है। इसका महत्व केवल चिकित्सा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह स्वस्थ जीवनशैली, मानसिक शांति, रोगों से बचाव, और संपूर्ण स्वास्थ्य का मार्गदर्शन करता है। आयुर्वेद में इसकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है, और यह आज भी आयुर्वेद के विद्यार्थियों, चिकित्सकों और सामान्य जनमानस के लिए एक मार्गदर्शक ग्रंथ बना हुआ है।
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