अगस्त्य संहिता हिंदी में
सप्तर्षियों में से एक महर्षि अगस्त्य एक वैदिक ॠषि माने जाते है, और वशिष्ठ ऋषि के बड़े भाई है। वेदो और पुराणों में अगस्त्य ऋषि की महानता की चर्चा कई बार की गई है। महर्षि अगस्त्य द्वारा रचित ‘अगस्त्य संहिता’ (Agastya Samhita) में हर प्रकार का ज्ञान एकत्र किया गया है। महर्षि अगस्त्य ने जिज्ञासु सुतीक्ष्ण को मोक्षमार्ग का जो उपदेश दिया, उसी का नाम अगस्त्य संहिता है।
‘अगस्त्य संहिता’ (Agastya Samhita) रामोपासना का प्राचीन एवं महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ माना जाता है। अगस्त्य संहिता का हेमाद्रि के ‘चतुर्वर्ग चिन्तामणि’ से लेकर वर्तमान काल के शास्त्र और ग्रन्थों में उल्लेख हुआ है। अगस्त्य संहिता’ में 32 अध्याय और ग्रन्थ अध्याय का समापक वाक्य समाप्ति की घोषणा भी करता है। अगस्त्य संहिता की प्राचीनता पर बहुत चर्चा और शोध हुई है, और इसे सही प्रमाण पाया गया है। इस ग्रंथ में विमान विद्या, बैटरी से सोना या चांदी पर पॉलिश चढ़ाना, अलौकिक विद्युत उत्पादन करने वाला सूत्र आदि मिलता है। विद्युत उत्पादन करने वाला सूत्र जो निम्नलिखित श्लोक है।
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संस्थाप्य मृण्मये पात्रे ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्।
छादयेच्छिखिग्रीवेन चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥
दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:।
संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्॥
अर्थ:
एक मिट्टी का बरतन लें, उसमें ताँबा का पटिया (Copper Sheet) डालें तथा शिखिग्रीवा अर्थात कॉपर सल्फेट (Copper sulphate) डालें, फिर बीच में गीली आरी की धूल (wet saw dust) लगाएं, ऊपर पारा (mercury) तथा दस्त लोष्ट (Zinc) डालें, फिर तारों को मिलाएंगे तो उससे मित्रावरुणशक्ति अर्थात बिजली (Electricity) उत्पन्न होगी।
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गरुड़ पुराण के तीन खंडों में से अगस्त्य संहिता (Agastya Samhita) का नाम प्रथम है, यह रत्नों के अध्ययन से संबंधित है। दूसरी बृहस्पति संहिता और तीसरी धन्वंतरि संहिता यह चिकित्सा, न्यायशास्त्र और भौतिक विज्ञान का अवलोकन करती है। अगस्त्य संहिता का कई पाण्डुलिपि में 33वाँ अध्याय भी मिलता है, जिसमें सभी देवी-देवताओ की एकत्र की पूजा की प्रणाली बताई गई है। अगस्त्य संहिता’ की अनेक पाण्डुलिपियाँ सम्पूर्णानन्द विश्वविद्यालय में प्राप्त हो जाती हैं। सनातन धर्म के रक्षक कई विद्वानों ने इस अगस्त्य संहिता के श्लोक का प्रमाण दिया है।
अगस्त्य संहिता में भगवान श्रीराम के मन्त्रयन्त्र, न्यास, मुद्रा, कुण्ड, हवन, पूजा, उपदेशावली आदि स्पस्ट रूप से कही गयी है और अन्त में लक्ष्मण और हनुमान जी के सिद्ध मन्त्रों भी शामिल है।
सम्पायक: पं. भवनाथ झा
आमुख लेखन: आचार्य किशोर कुणाल
प्रकाशक: महावीर मंदिर प्रकाशन
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