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आदि गुरु शंकराचार्य

इस उपन्यास में शंकराचार्य (Adi Shankaracharya) के जीवन में घटी घटनाएं और जनकल्याण के कार्य-पुनः हिन्दू धर्म की स्थापना, प्रसिद्ध मन्दिर देवालयों की प्रतिष्ठा उन्होंने किस प्रकार की, इस विषय पर लिखा गया है। उनकी रचनाएं भी आधुनिक संसार के लिए चमत्कारपूर्ण हैं।जर्मनी के प्रसिद्ध दार्शनिक संस्कृत विद्वान ‘डॉक्टर पाल डायसन’ जब शंकराचार्य लिखित ब्रह्मसूत्रों के ‘शंकर भाष्य’ को संस्कृत से जर्मन भाषा में अनुवाद करने लगे तो उन्हें वह ग्रन्थ तीस-तीस बार पढ़ना पड़ा, तब ब्रह्मसूत्रों के शंकर भाष्य का अनुवाद जर्मन भाषा में कर सके।

पूज्य शंकराचार्य (Adi Shankaracharya) की अलौकिक प्रतिभा, तत्त्वज्ञान, चरित्रबल, लोक-कल्याण के लिए छोटी-सी आयु में ही राष्ट्र के प्रति सारा जीवन समर्पित करना : देवअंश शंकर का ही साहसकार्य था। विभिन्न धर्मों की पाखण्छ भरी प्रथाओं के भ्रमजाल को तोड़कर उन्होंने हिंदू धर्म को, सनातन वैदिक आदर्श को प्रतिष्ठित करने के लिए भारत की चारों दिशाओं में चार मठ स्थापित किये। चारों वेदों की मठों में प्रतिष्ठा की। अद्वैत वेदांत शंकराचार्य के प्रभाव से ही भारत में स्थिर रहा। सनातन वैदिक धर्म को जो उन्होंने रूप दिया कालप्रभाव से वह धूमिल हो सकता है, नष्ट नहीं हो सकता।

उन्होंने ‘तत्त्वमसि’ तू ही उसका स्वरूप है कहकर जीवात्मा और ब्रह्म की एकता को दर्शाया- ‘आत्मवत् सर्व भूतेषु’ सभी आत्माओं में मेरा रूप है, मेरे से दूसरा भिन्न नहीं।
‘मैं भी ब्रह्म, पड़ोसी भी ब्रह्म, जब सभी ब्रह्म हैं फिर शत्रु कौन? किससे द्वेष?’ शंकराचार्य का यही उपदेश भारत क्या सारे विश्व को शान्ति का सन्देश देता है। इस उपन्यास में दिग्विजयी, महान शंकराचार्य की कुछ शिक्षाप्रद अलौकिक, जन- कल्याणकारी घटनाओं का उल्लेख करने का साहस किया गया है। आशा है पाठक समाज-सुधारक क्रांति संदेश देने वाले, महान मानव के विषय में पढ़कर कुछ ग्रहण करने का यत्न करेंगे।

कई विद्वान महात्माओं ने पूज्य शंकराचार्य (Adi Shankaracharya) के जीवन विषय पर लिखा है। उन रचनाओं से इस उपन्यास में सहायता ली गयी है। इनके जन्म-मृत्यु के विषय में अधिक मतभेद है। सात सी अठासी ई. को वैशाख मास की शुक्ल पंचमी को जन्म लेकर, शंकराचार्य बत्तीस वर्ष की आयु में परमधाम सिधारे।

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