अध्यात्म रामायण हिंदी में
‘अध्यात्म रामायण’ (Adhyatma Ramayana) महर्षि वेदव्यास की रचना है। रचना क्रममें प्रथम वाल्मीकि रामायण और बादमें वेदव्यास के पुराण आते हैं। वेदव्यास ने महाभारत में भी वाल्मीकि एवं उनके आदि-काव्य रामायण दोनों का वर्णन किया है। ‘ब्रह्मांड पुराण में’ तीनों का संक्षिप्त सार दिया गया है। ‘अध्यात्म रामायण’ में ‘सत्-चित्-आनन्द’ तीनोंका घनीभूत रूपमें वर्णन है। ‘कृष्णास्तु प्रज्ञानघन एव।’ भगवान् सम्पूर्ण रूपसे सच्चिदानन्द घन हैं।
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श्री अध्यात्म रामायण (Adhyatma Ramayana) कोई नवीन ग्रन्थ नहीं है, जिसके विषय में कुछ विशेष कहने की आवश्यकता है। यह परम पवित्र गाथा भगवान शिव शंकर ने आदिशक्ति माता पार्वती को सुनाई थी। अध्यात्म रामायण ब्रह्मांड पुराण के उत्तर खण्ड के अन्तर्गत माना जाता है। इसलिए अध्यात्म रामायण के रचयिता महर्षि वेदव्यासजी को ही माना जाता है।
अध्यात्म रामायण में परमरसायन रामचरित का वर्णन करते-करते पद-पदपर प्रसंग उठाकर भक्ति, ज्ञान, उपासना, नीति और सदाचार-सम्बन्धी दिव्य उपदेश दिये गये हैं।विविध विषयोंका विवरण रहनेपर भी इसमें सर्वोच्चता अध्यात्मतत्व के विवेचन की ही है। इसीलिये यह ‘अध्यात्म रामायण’ कहलाता है। उपदेश भाग के सिवा इसका कथाभाग भी कुछ कम महत्वका नहीं है। भगवान श्रीराम मूर्तिमान अध्यात्मतत्त्व हैं, उनके परमपावन चरित्र की महिमा का कहाँतक वर्णन किया जाय ?
श्री रामचरितमानस की कथा जितनी अध्यात्म रामायण से मिलती-जुलती है उतनी और किसी से नहीं मिलती। इससे स्पष्ट प्रतीत होता है कि श्री गौस्वामी तुलसीदासजी ने भी इसीका प्रामाण्य सबसे अधिक स्वीकार किया है।
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