Navgrah Stotra
नवग्रह स्तोत्र (Navgrah Stotra): ग्रहों की कृपा प्राप्ति के लिए शक्तिशाली स्तुति
नवग्रह स्तोत्र (Navgrah Stotra) एक प्राचीन वैदिक स्तोत्र है, जो नवग्रहों (सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु) की स्तुति और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए रचा गया है। नवग्रह, वैदिक ज्योतिष में, जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रभाव डालने वाले मुख्य ग्रह माने जाते हैं। नवग्रहों को हमारे जीवन में सुख-दुःख, समृद्धि, और कष्टों के कारण के रूप में देखा जाता है। नवग्रह स्तोत्र का पाठ करके नवग्रहों की कृपा प्राप्त की जाती है और उनके अशुभ प्रभाव को कम किया जाता है।
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यह स्तोत्र व्यक्ति के जीवन में शांति, समृद्धि और संतुलन लाने में सहायक होता है। इसे विशेष रूप से ग्रह दोषों को दूर करने और शुभ फलों की प्राप्ति के लिए पढ़ा जाता है। नवग्रह स्तोत्र का श्रेय महर्षि वेदव्यास को दिया जाता है। इसका प्रत्येक श्लोक सरल और सारगर्भित है, जो हर ग्रह की महिमा और उसके प्रभाव का वर्णन करता है।
नवग्रहों (Navgrah Stotra) का महत्व:
हिंदू ज्योतिष में, नवग्रहों को मानव जीवन पर गहरा प्रभाव डालने वाले मुख्य कारक माना गया है। इन्हें ग्रह नक्षत्रों की शक्तियों के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। हर ग्रह हमारे जीवन के विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करता है:
- सूर्य: आत्मा, शक्ति, और नेतृत्व का प्रतीक।
- चंद्र: मन, भावनाएं, और मानसिक संतुलन का प्रतिनिधि।
- मंगल: ऊर्जा, साहस, और शक्ति का द्योतक।
- बुध: बुद्धिमत्ता, संवाद, और व्यावसायिक कुशलता का प्रतीक।
- गुरु (बृहस्पति): ज्ञान, शिक्षा, और धन का प्रदाता।
- शुक्र: प्रेम, सौंदर्य, और कला का प्रतीक।
- शनि: कर्म, अनुशासन, और धैर्य का प्रतीक।
- राहु : राहु एक छायाग्रह है, जो भ्रम, विकृति, और अनिश्चितता का प्रतीक है।
- केतु: एक छायाग्रह है, जो कर्मों के फल और आध्यात्मिक प्रगति को प्रभावित करते हैं।
नवग्रहों की स्थिति और उनके आपसी रिश्ते व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करते हैं। इन ग्रहों के अच्छे या बुरे प्रभावों का सामना करने के लिए उपयुक्त पूजा, व्रत, और उपाय किए जाते हैं। इनके सही संतुलन से जीवन में सुख-समृद्धि, शांति और सफलता मिल सकती है।
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नवग्रह स्तोत्र का उद्देश्य:
नवग्रह स्तोत्र (Navgrah Stotra) का मुख्य उद्देश्य नवग्रहों की कृपा प्राप्त कर उनके अशुभ प्रभावों को कम करना और जीवन में शांति, समृद्धि, और संतुलन लाना है। यह स्तोत्र हमारे जीवन पर ग्रहों के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों को समझते हुए, उनका समाधान और शुभ फलों की प्राप्ति सुनिश्चित करता है। ग्रहों को हमारे कर्म और भाग्य का कारक माना जाता है। नवग्रह स्तोत्र का नियमित पाठ व्यक्ति के कर्मों को शुद्ध करता है और भाग्य को मजबूत बनाता है।
यह स्तोत्र ग्रह दोषों, जैसे शनि की साढ़ेसाती, राहु-केतु के अशुभ प्रभाव, या अन्य ग्रहों की विपरीत स्थिति से उत्पन्न कष्टों को शांत करता है। नवग्रह स्तोत्र का पाठ करके व्यक्ति ग्रहों की शुभ ऊर्जा को आकर्षित कर सकता है, जिससे जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता मिलती है। नवग्रह स्तोत्र न केवल ग्रहों के अशुभ प्रभाव को समाप्त करता है, बल्कि उनकी सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाकर व्यक्ति को आध्यात्मिक शांति और मानसिक स्थिरता के साथ-साथ जीवन के हर क्षेत्र में सफल बनाता है।
नवग्रह स्तोत्र पाठ करने का समय और विधि:
नवग्रह स्तोत्र का पाठ ज्योतिषीय समस्याओं को हल करने और ग्रहों की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इसे विधि-विधान और नियमितता के साथ पढ़ने पर इसके प्रभाव अधिक शुभ और सकारात्मक होते हैं। नवग्रह स्तोत्र (Navgrah Stotra) का पाठ सुबह के समय, स्नान और शुद्धता के बाद करना अत्यधिक लाभकारी होता है। यदि सुबह पाठ न कर सकें, तो सूर्यास्त के समय इसे पढ़ना भी शुभ माना जाता है।
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पाठ से पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें, शांत और पवित्र स्थान का चयन करें। पूजा स्थल पर घी का दीपक जलाएं नवग्रह यंत्र, माला, या ग्रह विशेष की मूर्ति के समक्ष बैठकर पाठ करें। पाठ शुरू करने से पहले अपनी मनोकामना को मन में धारण करें और नवग्रहों की कृपा प्राप्ति का संकल्प लें।
॥ नवग्रह स्तोत्र ॥
जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम् ।
तमोरिसर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ॥ सूर्य ॥
अर्थ:
हे सूर्य देव जपा के फूल की तरह आपकी कान्ति है, कश्यप से आप उत्पन्न हुए हैं, अन्धकार आपका शत्रु है, आप सब पापों को नष्ट कर देते हैं, आपको मैं प्रणाम करता हूं।
दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव-संभवम् ।
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुटभूषणम् ॥ चंद्रमा ॥
अर्थ:
हे चंद्र देव दही, शंख व हिम के समान आपकी दीप्ति है, आपकी उत्पत्ति क्षीर-समुद्र से है, आप हमेशा शिवजी के मुकुट पर अलंकार की तरह विराजमान रहते हैं, मैं आपको प्रणाम करता हूं।
धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कांति समप्रभम् ।
कुमारं शक्तिहस्तं च मंगलं प्रणमाम्यहम् ॥ मंगल ॥
अर्थ:
मंगल देव आपकी उत्पत्ति पृथ्वी के उदर से हुई है, विद्युत्पुंज के समान आपकी प्रभा है, आप अपने हाथों में शक्ति धारण किये रहते हैं, आपको मैं प्रणाम करता हूं।
प्रियंगुकलिकाश्यामं रूपेणाप्रतिमं बुधम् ।
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम् ॥ बुध ॥
अर्थ:
हे बुध देव प्रियंगु की कली की तरह आपका श्याम वर्ण है, आपके रूप की कोई उपमा नहीं है। उन सौम्य और गुणों से युक्त बुध को मैं प्रणाम करता हूं।
देवानांच ऋषीणांच गुरुं कांचनसन्निभम् ।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम् ॥ बृहस्पति ॥
अर्थ:
हे बृहस्पति देव आप देवताओं और ऋषियों के गुरु हैं, कंचन के समान आपकी प्रभा है, जो बुद्धि के अखण्ड भण्डार और तीनों लोकों के प्रभु हैं, मैं आपको प्रणाम करता हूं।
हिमकुंद मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम् ।
सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम् ॥ शुक्र ॥
अर्थ:
हे शुक्र देव तुषार, कुन्द और मृणाल के समान आपकी आभा है, आप ज्ञान के भंडार हैं, दैत्यों के परम गुरु हैं, आप सब शास्त्रों के अद्वितीय वक्ता हैं। मैं आपको प्रणाम करता हूं।
नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् ।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम् ॥ शनि ॥
अर्थ:
हे शनि देव नीले अंजन (स्याही) के समान आपकी दीप्ति है, आप सूर्य भगवान् के पुत्र और यमराज के बड़े भाई हैं, सूर्य की छाया से आपकी उत्पत्ति हुई है, मैं आपको प्रणाम करता हूं।
अर्धकायं महावीर्यं चंद्रादित्य विमर्दनम् ।
सिंहिकागर्भसंभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम् ॥ राहु ॥
अर्थ:
हे राहु देव आप आधे शरीर वाले हैं, सिंहिका के गर्भ से आपकी उत्पत्ति हुई है, आपको मैं प्रणाम करता हूं।
पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रह मस्तकम् ।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम् ॥ केतु ॥
अर्थ:
हे केतु देव पलाश के फूल की तरह आपकी लाल दीप्ति है, आप समस्त तारकाओं में श्रेष्ठ हैं, जो स्वयं रौद्र रूप और रौद्रात्मक हैं, मैं आपको प्रणाम करता हूं।
इतिव्यासमुखोद्गीतं यः पठेत् सुसमाहितः ।
दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्नशांतिर्भविष्यति ॥
अर्थ:
व्यास जी के मुख से निकले हुए इस स्तोत्र का जो सावधानीपूर्वक दिन या रात्रि के समय पाठ करता है, उसकी सारी विघ्न बाधायें शान्त हो जाती हैं।
नरनारी नृपाणांच भवेत् दुःस्वप्ननाशनम् ।
ऐश्वर्यमतुलं तेषां आरोग्यं पुष्टिवर्धनम् ॥
अर्थ:
संसार के साधारण स्त्री, पुरूष और राजाओं के भी दुःस्वप्नजन्य दोष दूर हो जाते हैं, इसका पाठ करने वालों को अतुलनीय ऐश्वर्य तथा आरोग्य प्राप्त होता है और पुष्टि की वृद्धि होती है।
ग्रहनक्षत्रजाः पीडास्तस्कराग्निसमुद्भवाः ।
ताः सर्वाःप्रशमं यान्ति व्यासोब्रूते न संशयः ॥
अर्थ:
किसी भी ग्रह, नक्षत्र, चोर तथा अग्नि से जायमान पीड़ायें शान्त हो जाती हैं, इस प्रकार स्वयं ऋषि व्यासजी कहते हैं। इसलिये इसमें कोई संशय नहीं करना चाहिये।
इतिश्री व्यासविरचितम् । आदित्यादि नवग्रहस्तोत्रं संपूर्णम् ॥
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