Pushpanjali Mantra
संपूर्ण पुष्पांजलि मंत्र – Sampurna Pushpanjali Mantra
पुष्पांजलि मंत्र (Pushpanjali Mantra) संस्कृत में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र स्तोत्र है जो प्रायः हिंदू धार्मिक समारोहों के अंत में पुष्पांजलि अर्पित करते समय गाया जाता है। यह स्तोत्र ऋग्वेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद से लिए गए मंत्रों का एक संग्रह है, और इसका उद्देश्य ईश्वर को कृतज्ञता प्रकट करना, उनकी स्तुति करना और पूजा-अर्चना का समापन करना है।
पुष्पांजलि मंत्र को गाने का मुख्य उद्देश्य यह है कि इसे सुनने और गाने वाले के मन में श्रद्धा और भक्ति का भाव उत्पन्न हो। यह मंत्र ब्रह्मांड की दिव्यता, प्रकृति की महानता और जीवन की सुंदरता का गुणगान करता है। यह एक पवित्र ध्वनि या वाक्यांश है, जिसे दिव्यता और ऊर्जा का आह्वान करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसका अर्थ है पुष्पों की अंजलि या फूलों की भेंट, जो श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक है।
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पुष्पांजलि मंत्र किसी भी धार्मिक अनुष्ठान का समापन करने के लिए उपयोग किया जाता है। यज्ञ की पूर्णाहुति के समय यह मंत्र गाया जाता है। और गणपति पूजा, दुर्गा पूजा, और अन्य बड़े धार्मिक अवसरों पर पुष्पांजलि मंत्र का पाठ किया जाता है। पुष्पांजलि मंत्र हमें यह सिखाती है कि प्रकृति और ब्रह्मांड की हर वस्तु पूजनीय है। यह हमें समर्पण, कृतज्ञता और अहंकार त्याग की भावना को अपनाने के लिए प्रेरित करता है।
पुष्पांजलि मंत्र (Pushpanjali Mantra) धार्मिक अनुष्ठानों को पूर्णता प्रदान करती है। यह समर्पण और कृतज्ञता का प्रतीक है, जिससे पूजा में संपूर्णता का भाव उत्पन्न होता है। जब पुष्प देवताओं के चरणों में अर्पित किए जाते हैं, तो वह न केवल बाह्य क्रिया होती है, बल्कि भक्त की आंतरिक भक्ति और विश्वास का प्रतीक होती है। यह प्रक्रिया भक्त को अपने भीतर की दिव्यता को पहचानने और उसे प्रकट करने का अवसर देती है।
मंत्रोच्चारण और पुष्पांजलि अर्पित करने से वातावरण सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है। यह न केवल मनुष्य के मन को शांत करता है, बल्कि आसपास के पर्यावरण को भी शुद्ध करता है। पुष्पांजलि अर्पित करते समय भक्त को जो संतोष और प्रसन्नता प्राप्त होती है, वह अलौकिक होती है। यह व्यक्ति को आंतरिक आनंद प्रदान करती है, जो भौतिक सुखों से परे है।
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पुष्पांजलि मंत्र हिंदू धर्म की एक पवित्र और महत्वपूर्ण परंपरा है। इसका उच्चारण हमें ईश्वर के करीब ले जाता है और हमारे जीवन में भक्ति और आध्यात्मिकता को बढ़ावा देता है। यह केवल एक मंत्र नहीं है, बल्कि एक अनुभव है, जो मन और आत्मा को शुद्ध करता है। पुष्पांजलि मंत्र की प्रक्रिया हमें यह सिखाती है कि भक्ति केवल एक व्यक्तिगत क्रिया नहीं है, बल्कि यह सामूहिक आध्यात्मिकता और समाज के साथ जुड़ने का भी माध्यम है।
॥ अथ पुष्पांजलि मंत्र॥
प्रथम: Pushpanjali Mantra
ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तनि धर्माणि प्रथमान्यासन् ।
ते ह नाकं महिमानः सचंत यत्र पूर्वे साध्याः संति देवाः ॥
इस पुष्पांजलि मंत्र का अर्थ है कि देवताओं ने यज्ञ के द्वारा प्रजापति की आराधना की। यज्ञ और उसकी संबंधित उपासनाएं प्राचीन काल की धार्मिक परंपराओं का महत्वपूर्ण अंग थीं। प्राचीन काल में देवता स्वर्गलोक में निवास करते थे, और यज्ञ के कर्मों द्वारा साधक महानता प्राप्त कर, स्वर्गलोक में स्थान प्राप्त करते थे।
द्वितीय: Pushpanjali Mantra
ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने।
नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे।
स मस कामान् काम कामाय महां।
कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु कुबेराय वैश्रवणाय।
महाराजाय नमः ।
इस पुष्पांजलि मंत्र का अर्थ है हम राजाधिराज वैश्रवण का वंदन करते हैं, जो हमारे जीवन में अनुकूलता लाते हैं। उनकी कृपा हमें कामनाओं के अधिपति कुबेर के रूप में प्राप्त हो, ताकि वे हमारी सभी इच्छाओं की पूर्ति करें।
तृतीयः Pushpanjali Mantra
ॐ स्वस्ति, साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं
पारमेष्ट्यं राज्यं महाराज्यमाधिपत्यमयं ।
समन्तपर्यायीस्यात् सार्वभौमः सार्वायुषः आन्तादापरार्धात् ।
पृथीव्यै समुद्रपर्यंताया एकराळ इति ॥
इस पुष्पांजलि मंत्र का अर्थ है हम कामना करते हैं कि हमारा राज्य सबके कल्याण का स्रोत बने। यह राज्य हर प्रकार की समृद्धि और संसाधनों से भरा हो। यहां लोककल्याण सर्वोपरि हो, और राज्य में आसक्ति तथा लोभ का कोई स्थान न हो। हमारा शासन उस महानतम साम्राज्य पर हो, जो सभी सीमाओं तक सुरक्षित रहे। समुद्र तक विस्तारित धरती पर हमारा दीर्घकालिक और एकीकृत राज्य स्थापित हो, और यह राज्य सृष्टि की समाप्ति तक सुरक्षित और स्थिर बना रहे।
चतुर्थ: Pushpanjali Mantra
ॐ तदप्येषः श्लोकोभिगीतो।
मरुतः परिवेष्टारो मरुतस्यावसन् गृहे।
आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवाः सभासद इति ॥
इस पुष्पांजलि मंत्र का अर्थ है इस श्लोक में वर्णन किया गया है कि हम अविक्षित के पुत्र मरुती के माध्यम से इस राज्य को प्राप्त करें, जो राज्यसभा के सभी सदस्यों से घिरा हुआ है। यही हमारी इच्छा और प्रार्थना है।
॥ मंत्रपुष्पांजली समर्पयामि ॥
यहां एक क्लिक में पढ़ें ~ हिंदू धर्म के सोलह संस्कार
- हरिः ॐ एक दंताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दंतीप्रचोदयात् ।
- हरिः ॐ नारायण विद्महे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्।
- हरिः ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्त्यै च धीमहि । तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्।
- हरिः ॐ नंद नन्दनाय विद्महे यशोदा नंदनाय धीमहि। तन्नो कृष्णः प्रचोदयात्।
- हरिः ॐ भास्कराय विद्महे दिवाकराय धीमहि । तन्नो सूर्यः प्रचोदयात् ।
- हरि ॐ अंजनी सुताय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि। तन्नो हनुमत प्रचोदयात् ।
- हरि ॐ चतुर्मुखाय विद्महे हंसारुढ़ाय धीमहि। तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात्।
- हरिः ॐ परमहंसाय विद्महे महाहंसाय धीमहि । तन्नो हंसः प्रचोदयात्।
- हरिः ॐ श्री तुलस्यै विद्महे विष्णुप्रियायै च धीमहि । तन्नो वृन्दा प्रचोदयात् ।
- हरिः ॐ वृषभानुजायै च विद्महे कृष्णप्रियायै च धीमहि । तन्नो राधा प्रचोदयात् ।
- हरिः ॐ वृषभानुजायै च विद्महे कृष्णप्रियायै च धीमहि । तन्नो राधा प्रचोदयात् ।
- हरिः ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि । तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ।
ॐ सेवन्तिका बकुल चम्पक पाटलाब्जै,
पुन्नाग जाति करवीर रसाल पुष्पैः बिल्व प्रवाल ।
तुलसीदल मंजरीभिस्त्वां पूजयामि जगदीश्वर मे प्रसीद ॥
मंदार माला कुलितालकायै कपालमालांकित शेखराय
दिगम्बरायै च दिगम्बराय नमः शिवायै च नमः शिवाय.
ॐ नाना सुगन्धि पुष्पाणि यथा कालो भवानी च,
पुष्पान्जलिर्मया दत्त ग्रहाण परमेश्वर ।
यह मंत्र पुष्पांजलि देवताओं के प्रति श्रद्धा और समर्पण की धार्मिक अभिव्यक्ति है, जिसका प्रयोग पूजा में पुष्प अर्पित करते समय किया जाता है।
यहां पढ़ें ~ रामोपासना अगस्त्य संहिता
Pushpanjali Mantra In English
pratham:
om yagyen yagyamayajant devaastani dharmaani prathamanyaasan
॥te ha naakan mahimaan: sachant yatr poorve saadhya: santi deva: ॥
dviteey:
om raajaadhiraajaay prasahay sahine ॥
namo vayan vaishravanaay koormahe ॥
sa maas kaamaan kaam kaamaay mahyan ॥
kaameshrvaro vaishravano dadaatu kuberaay vaishravanaay ॥
mahaaraajaay nam: ॥
trteey:
om svasti saamraajyan bhoojyan svaraajyan
vairaajyan paarameshtyan raajyan
mahaaraajyamaadhipatyamayan ॥
samantaparyaayasyaat sarvabhaumah
sarvaayushah antadaaparaardhaat ॥
prthivyai samudraparyantaya ekaraal iti ॥
chautha:
om tadapyeshah shlokobhigeeto ॥
marutah poorveshtaaro marutasyaavaasan grhe ॥
avikshitasy kaamaprervishvedevaah paathak iti ॥
॥ mantrapushpaanjali samarpayaami ॥
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श्रीमद्भगवद्गीता प्रथम अध्याय