Tantroktam Devi Suktam
तांत्रोक्तम् देवी सूक्तम् (Tantroktam Devi Suktam) के माध्यम से देवी से ज्ञान, शक्ति और भक्ति की प्राप्ति का आग्रह।
तांत्रोक्तम् देवी सूक्तम् (Tantroktam Devi Suktam) एक महत्त्वपूर्ण वैदिक स्तोत्र है, जिसमें देवी महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती की महिमा का वर्णन है। इस सूक्त का पाठ तंत्र ग्रंथों से लिया गया है और इसमें देवी को शक्ति के विभिन्न रूपों में देखा गया है, जो संसार की रक्षा, पोषण और संहार करने वाली शक्ति का प्रतीक हैं। इसे ‘दुर्गासप्तशती’ के पाँचवे अध्याय के अंतर्गत तांत्रिक विधियों के साथ जोड़ा गया है, जो देवी माहात्म्य का हिस्सा है।
यह स्तोत्र देवी भगवती के विभिन्न रूपों का गुणगान करने के लिए देवताओं द्वारा गाया गया था, ताकि वे उन्हें प्रसन्न कर सकें और उनकी कृपा प्राप्त कर सकें। यह सूक्त दुर्गा सप्तशती के पांचवे अध्याय के 9वें से 82वें श्लोक तक दिया गया है।
तांत्रोक्तम् देवी सूक्तम् (Tantroktam Devi Suktam) में देवी को भगवती, महाशक्ति, और काली के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है, जो संपूर्ण जगत की उत्पत्ति, स्थिति और संहार की अधिष्ठात्री हैं। इस सूक्त में देवी के प्रति श्रद्धा और उनके पराक्रम का विस्तार से वर्णन किया गया है। इसे सुनने और पाठ करने से मनुष्य को अपने जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार अनुभव होता है और नकारात्मक शक्तियों का शमन होता है।
तांत्रोक्तम् देवी सूक्तम् (Tantroktam Devi Suktam) के श्लोक देवी के हर रूप की स्तुति करते हैं और यह बतलाते हैं कि वह संपूर्ण सृष्टि में व्याप्त हैं। यह सूक्त भक्तों में आत्मविश्वास, शौर्य और साहस का संचार करता है और जीवन में आने वाली विपत्तियों से रक्षा करने की प्रेरणा देता है।
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अथ तांत्रोक्तम् देवी सूक्तम्
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम् ॥१॥
अर्थ:
देवी को नमस्कार है, महादेवी शिवा को सर्वदा नमस्कार है। प्रकृति एवं भद्रा को प्रणाम है। जगदम्बा को नियमपूर्वक नमस्कार है। १।
रौद्रायै नमो नित्यायै गौर्यै धात्र्यै नमो नमः ।
ज्योत्स्ना यै चेन्दुरुपिण्यै सुखायै सततं नमः ॥२॥
अर्थ:
रौद्रा को नमस्कार है, नित्या, गौरी एवं धात्री को बारम्बार नमस्कार है। ज्योत्स्नामयी, चन्द्ररूपिणी एवं सुखस्वरूपा देवी को सतत प्रणाम है।२।
कल्याण्यै प्रणतां वृध्दै सिध्दयै कुर्मो नमो नमः ।
नैऋत्यै भूभृतां लक्ष्म्यै शर्वाण्यै ते नमो नमः ॥३॥
अर्थ:
शरणागतों का कल्याण करने वाली वृद्धि एवं सिद्धिरूपा देवी को बारम्बार नमस्कार है। नैऋती (राक्षसों की लक्ष्मी) राजाओं की लक्ष्मी तथा शर्वाणी (शिवपत्नी) -स्वरूपा आप जगदम्बा को बारम्बार नमस्कार है।३।
दुर्गायै दुर्गपारायै सारायै सर्वकारिण्यै ।
ख्यातै तथैव कृष्णायै धूम्रायै सततं नमः ॥४॥
अर्थ:
दुर्गा, दुर्गपारा (दुर्गम संकट से बाहर निकलने वाली), सारा (सबकी आधारभूता), सर्वकारिणी, ख्याति, कृष्णा और धूम्रादेवी को सर्वदा नमस्कार है।४।
अतिसौम्यातिरौद्रायै नतास्तस्यै नमो नमः ।
नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै कृत्यै नमो नमः ॥५॥
अर्थ:
अत्यंत सौम्य तथा अत्यंत रौद्र रूपा देवी को [मैं] नमस्कार करता हूँ, उन्हें हमारा बारम्बार प्रणाम है, जगत की आधारभूता कृति देवी को बारम्बार नमस्कार है ।५।
या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शाध्दिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥६॥
अर्थ:
जो देवी सभी प्राणियों में विष्णुमाया के रूप में कही जाती हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है।६।
या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥७॥
अर्थ:
जो देवी सभी प्राणियों में चेतना कहलाती हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है।७।
या देवी सर्वभूतेषु बुध्दिरुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥८॥
अर्थ:
जो देवी सभी प्राणियों में बुद्धि रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है।८।
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या देवी सर्वभूतेषु निद्रारुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥९॥
अर्थ:
जो देवी सभी प्राणियों में निद्रा रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है।९।
या देवी सर्वभूतेषु क्षुधारुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥१०॥
अर्थ:
जो देवी सभी प्राणियों में क्षुधा (भूख ) रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है।१०।
या देवी सर्वभूतेषु छायारुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥११॥
अर्थ:
जो देवी सभी प्राणियों में छाया रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है।११।(Tantroktam Devi Suktam)
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥१२॥
अर्थ:
जो देवी सभी प्राणियों में शक्ति रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है।१२।
या देवी सर्वभूतेषु तृष्णारुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥१३॥
अर्थ:
जो देवी सभी प्राणियों में तृष्णा (प्यास) रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है।१३।
या देवी सर्वभूतेषु क्षान्तिरुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥१४॥
अर्थ:
जो देवी सभी प्राणियों में क्षान्ति (क्षमा) रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है।१४।
या देवी सर्वभूतेषु जातिरुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥१५॥
अर्थ:
जो देवी सभी प्राणियों में जाति रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है।१५।
या देवी सर्वभूतेषु लज्जारुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥१६॥
अर्थ:
जो देवी सभी प्राणियों में लज्जा रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है।१६।
या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥१७॥
अर्थ:
जो देवी सभी प्राणियों में शान्ति रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है।१७।
या देवी सर्वभूतेषु श्रध्दारुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥१८॥
अर्थ:
जो देवी सभी प्राणियों में श्रद्धा रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है।१८।
या देवी सर्वभूतेषु कान्तिरुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥१९॥
अर्थ:
जो देवी सभी प्राणियों में कान्ति (प्रकाश) रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है।१९।
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥२०॥
अर्थ:
जो देवी सभी प्राणियों में लक्ष्मी रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है।२०।
या देवी सर्वभूतेषु वृत्तिरुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥२१॥
अर्थ:
जो देवी सभी प्राणियों में वृत्ति (स्वभाव) रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है।२१।
या देवी सर्वभूतेषु स्मृतिरुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥२२॥
अर्थ:
जो देवी सभी प्राणियों में स्मृति रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है।२२।
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या देवी सर्वभूतेषु दयारुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥२३॥
अर्थ:
जो देवी सभी प्राणियों में दया रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है।२३।
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥२४॥
अर्थ:
जो देवी सभी प्राणियों में तुष्टि रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है।२४।
या देवी सर्वभूतेषु मातृरुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥२५॥
अर्थ:
जो देवी सभी प्राणियों में माता रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है।२५।
या देवी सर्वभूतेषु भ्रांतिरुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥२६॥
अर्थ:
जो देवी सभी प्राणियों में भ्रान्ति रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है।२६।
इंद्रियाणामधिष्ठात्री भूतानं चाखिलेषु या ।
भूतेषु सततं तस्यै व्याप्तिदेव्यै नमो नमः ॥२७॥
अर्थ:
जो जीवों के इन्द्रिय वर्ग की अधिष्ठात्री देवी एवं सब प्राणियों में सदा व्याप्त रहने वाली हैं, उन व्याप्ति देवी को बारम्बार नमस्कार है।२७।
चितिरुपेण या कृत्सनमेद्वयाप्य स्थिता जगत् ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥२८॥
अर्थ:
जो देवी चैतन्य रूप से सम्पूर्ण जगत को व्याप्त करके स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है।२८।
स्तुता सुरैः पूर्वमभीष्टसंश्रयात्तथा सुरेन्द्रेण दिनेषु सेविता ।
करोतु सा नः शुभहेतुरीश्वरी शुभानि भद्राण्याभिहन्तु चापदः ॥२९॥
अर्थ:
पूर्वकाल में अपने अभीष्ट की प्राप्ति होने से देवताओं ने जिनकी स्तुति की तथा देवराज इंद्र ने बहुत दिनों तक जिनकी सेवा की, वह कल्याण की साधनभूता ईश्वरी हमारा कल्याण और मंगल करे तथा सभी आपत्तियों का सर्वनाश करें।२९।
या सांप्रतं चोध्दतदैत्यतापितैरस्माभिरीशा च सुरैर्नमस्यते ।
या च तत्क्षणमेव हन्ति नः सर्वापदो भक्ति विनम्रमूर्तिभिः ॥३०॥
अर्थ:
उद्दंड दैत्यों से सताये हुए हम सभी जिन परमेश्वरी को इस समय नमस्कार करते हैंतथा जो भक्ति से विनम्र पुरुषों द्वारा स्मरण की जाने पर तत्काल ही सम्पूर्ण विपत्तियों का नाश कर देती हैं, वे जगदम्बा हमारा संकट दूर करें ॥३०॥
इति तन्त्रोक्तं देवी सूक्तं संपूर्णम् ॥