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Krishna Janmashtami Festival

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Krishna Janmashtami Festival

श्री कृष्ण जन्माष्टमी क्यों और कैसे मनाते हैं , जानें श्री कृष्ण जन्म कथा, और अनुष्ठान

मानव जीवन सबसे सुंदर और सर्वोत्तम होता है। मानव जीवन की खुशियों का प्रभाव वास्तव में अद्वितीय है, और इस संदर्भ में, ऐसा कहा जाता है कि भगवान भी इस खुशी को अनुभव करने के लिए समय-समय पर धरती पर अवतरित होते रहे हैं। ग्रंथो और पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने भी समय-समय पर मानव रूप में इस धरती के सुखों को भोगा है। भगवान श्री विष्णु का ही एक अवतार श्रीकृष्ण श्रावण मास के कृष्णपक्ष अष्टमी को जन्म हुआ। जिसे श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami) के रूप पूरे भारत वर्ष में विशेष महत्व है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव सारे भारतवर्ष में बड़े ही उत्साह एवं श्रद्धा के साथ पीढ़ियों से मनाया जाता है।

(भगवान कृष्ण के जन्म का महीना अमांत कैलेंडर के अनुसार श्रावण और पूर्णिमांत कैलेंडर के अनुसार भाद्रपद है।)

पुराणों के अनुसार द्वापर युग के अंतिम चरण में श्रावण माह के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को मध्य रात्रि रोहिणी नक्षत्र में देवकी व श्रीवसुदेव के पुत्र रूप में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। इसी कारण शास्त्रों में श्रावण कृष्ण अष्टमी के दिन अर्द्धरात्रि में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami) मनाने का उल्लेख मिलता है। जन्माष्टमी हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है क्योंकि इसी दिन सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु श्रीकृष्ण के रूप में अवतरित हुए थे। इस दिन सभी साधक अपने आराध्य के जन्म की खुशी में व्रत रखते हैं और कृष्ण की महिमा का गुणगान करते हैं।

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मंदिरों और घरों में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्तियों को नए वस्त्र, आभूषण और फूलों से सजाया जाता है। मंदिरों में रंगोली बनाई जाती हैं, जो भगवान श्रीकृष्ण के जीवन की विभिन्न घटनाओं को दर्शाती हैं। इन चित्र में उनके जन्म, बाल लीलाएं, माखन चोरी और गोवर्धन पर्वत उठाने जैसी घटनाएं शामिल होती हैं। कृष्ण जन्माष्टमी पर रासलीला का आयोजन विशेष रूप से किया जाता है। रासलीला एक प्रकार का नृत्य-नाटक है जिसमें श्रीकृष्ण और गोपियों की लीलाओं को प्रस्तुत किया जाता है। यह नृत्य-नाटक भगवान श्रीकृष्ण की प्रेम और भक्ति को दर्शाता है।

श्री कृष्ण जन्म कथा:

स्कंद पुराण के अनुसार मथुरा का राजा उग्रसेन थे, जिसके दो संतान थे कंस और देवकी। कंस ने अपने पिता उग्रसेन को बंदी बनाकर स्वयं मथुरा का शासन संभाल लिया। वह अत्याचारी और अधर्मी राजा बन गया। देवकी का विवाह वसुदेव के साथ हुआ। विवाह के समय कंस ने देवकी और वसुदेव को स्वयं रथ में बिठाकर उनके ससुराल पहुंचाने का निर्णय लिया।

कंस जब देवकी और वसुदेव को रथ में बिठाकर जा रहा था तब रास्ते में आकाशवाणी हुई कि “हे कंस, जिस बहन को तुम इतने प्रेम से ले जा रहे हो, उसका आठवां पुत्र तेरा वध करेगा।” यह सुनकर कंस ने देवकी और वसुदेव को मारने का प्रयास किया, परंतु वसुदेव ने कंस को समझाया और वादा किया कि वे अपनी सभी संतानों को कंस के हवाले कर देंगे। कंस ने दोनों को कारागार में डाल दिया और उनकी संतानों को एक-एक कर मार डाला।

जब देवकी के गर्भ से आठवां पुत्र जन्म लेने वाला था, तब देवकी और वसुदेव गहन चिंता में थे। श्रावण माह की अष्टमी तिथि की आधी रात को भगवान विष्णु ने स्वयं श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया। उनके जन्म के समय जेल के सभी पहरेदार गहरी नींद में सो गए और वसुदेव के बंधन स्वतः खुल गए। कारागार के दरवाजे भी खुल गए और वसुदेव ने नवजात श्रीकृष्ण को टोकरी में रखा और यमुना नदी पार कर गोकुल पहुंचा।

त्यौहार कैसे मनाया जाता है?

हिंदू धर्म जन्माष्टमी का त्यौहार उपवास, कृष्ण की पूजा और आधी रात तक जागकर मनाते हैं, ऐसा माना जाता है कि इसी दिन कृष्ण का जन्म हुआ था। मंदिरों और घरों में झूलों और पालने में कृष्ण के बचपन की तस्वीरें रखी जाती हैं। आधी रात को, भक्त भक्ति गीतों और नृत्य के लिए एकत्रित होते हैं। कुछ मंदिरों में हिंदू धार्मिक ग्रंथ भगवद गीता का पाठ भी किया जाता है।

राज्य के विभिन्न हिस्सों में आयोजित रंग-बिरंगे जुलूसों में हज़ारों बच्चे हिस्सा लेते हैं। बच्चे भगवान कृष्ण और गोपिकाओं की तरह सजते हैं, उनके जीवन के विभिन्न चरणों को दर्शाते हुए चमकीले वस्त्र और अलंकृत सिर की पोशाक पहनते हैं। जुलूस में पारंपरिक ताल-संगीत और नृत्य होता है। भगवान कृष्ण के जीवन के चरणों को दिखाने वाली सजावटी झांकियाँ एक शानदार दृश्य प्रस्तुत करती हैं।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami) अनुष्ठान:

भगवान कृष्ण के भक्त मथुरा, जहाँ उनका जन्म हुआ था, यमुना नदी , जिसके पार उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुँचाया गया था, और गोकुल उनके बचपन के दृश्य, भगवान, अन्य प्रतिभागियों और जंगल के जानवरों और पक्षियों की छोटी छवियों का उपयोग करके उनके जन्म की घटनाओं का स्मरण करते हैं।

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यह पवित्र दिन भारत के विभिन्न भागों में विभिन्न प्रकार की स्थानीय परंपराओं और अनुष्ठानों के अनुसार मनाया जाता है। देश भर में श्री कृष्ण जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami) मनाने वाले लोग इस दिन आधी रात तक उपवास रखते हैं। उनके जन्म के प्रतीक के रूप में, भगवान की मूर्ति को एक छोटे से पालने में रखा जाता है और प्रार्थना की जाती है। इस दिन भजन और भगवद गीता का पाठ किया जाता है।

उत्तर प्रदेश में इस दिन बड़ी संख्या में भक्तगण पवित्र नगरों मथुरा और वृंदावन में कृष्ण मंदिरों में दर्शन के लिए आते हैं। महाराष्ट्र में दही हांडी का आयोजन स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर पर किया जाता है। इसमें मानव पिरामिड बनाकर छाछ से भरी मिट्टी की हांडी को तोड़ा जाता है। गुजरात में, यह दिन द्वारकाधीश मंदिर में धूमधाम और गौरव के साथ मनाया जाता है, जो द्वारका शहर में स्थित है, जहाँ माना जाता है कि कृष्ण ने अपना राज्य स्थापित किया था लोग दही हांडी जैसी परंपरा के साथ त्योहार मनाते हैं , जिसे माखन हांडी कहा जाता है।

पूर्वी भारत में, जन्माष्टमी के बाद अगले दिन नंद उत्सव मनाया जाता है, जिसमें पूरे दिन उपवास रखा जाता है और आधी रात को भगवान को विभिन्न प्रकार की मिठाइयों का भोग लगाया जाता है, इस प्रकार उनके जन्म का उत्सव मनाया जाता है। दक्षिण भारत में महिलाएं अपने घरों को आटे से बने छोटे-छोटे पैरों के निशानों से सजाती हैं, जो मक्खन चुराते हुए बालक कृष्ण के जीवन को दर्शाते हैं।

पूजा विधि व समय:

श्री कृष्ण जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami) भारत के सबसे प्रमुख और पवित्र त्योहारों में से एक है। यह भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भक्तजन उपवास रखते हैं, भजन-कीर्तन करते हैं और श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना करते हैं। यहाँ पर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की पूजा विधि और समय की जानकारी दी गई है:

पूजा स्थान को साफ-सुथरा करें और भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या तस्वीर को उचित स्थान पर रखें। पूजा स्थल को फूलों से सजाएं। श्रीकृष्ण की मूर्ति को पंचामृत और गंगा जल से स्नान कराएं। इसके बाद उन्हें साफ पानी से स्नान कराएं और नए वस्त्र पहनाएं। भगवान को नैवेद्य (भोग) अर्पित करें। यह नैवेद्य दूध, मक्खन, मिठाई, फल आदि हो सकते हैं।

मध्यरात्रि को जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था, उनकी मूर्ति या झूले में रखी तस्वीर को झूलाएं और जन्मोत्सव मनाएं।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। जन्माष्टमी की पूजा का समय मध्यरात्रि का होता है, क्योंकि श्रीकृष्ण का जन्म रात्रि के समय हुआ था। अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र इनका संयोग होने पर पूजा का विशेष महत्व होता है।

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लोग यह भी पूछते हैं

जन्माष्टमी एक महत्वपूर्ण हिन्दू त्यौहार है जो भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण को विष्णु के आठवें अवतार के रूप में माना जाता है और उनका जन्म भारतीय पंचांग के अनुसार श्रावण मास की अष्टमी तिथि को हुआ था।
जन्माष्टमी का उत्सव दही हांडी खेलकर, गीत गाकर, नृत्य करके, भगवान कृष्ण के पसंदीदा व्यंजन तैयार करके मनाया जाता है। लोग कृष्ण की मूर्ति की पूजा करते हैं और ऐसा मानते हैं मानो भगवान कृष्ण ने अभी-अभी उनके घर जन्म लिया हो।
धर्मसिंधु के अनुसार, जन्माष्टमी पारणा या व्रत तोड़ने की रस्म तीन खास समय पर की जा सकती है: अष्टमी तिथि के समापन पर, निशिता काल मुहूर्त की समाप्ति पर, या रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि दोनों के अपना कार्य पूरा करने के बाद अगले सूर्योदय के आगमन पर।
भगवान विष्णु के दिव्य अवतार भगवान श्रीकृष्ण श्रावण माह के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को मध्य रात्रि रोहिणी नक्षत्र में जन्म हुआ था।
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