Garga Samhita Madhuryakhand Chapter 19
॥ श्रीहरिः ॥
ॐ दामोदर हृषीकेश वासुदेव नमोऽस्तु ते
श्रीसरस्वत्यै नमः
Garga Samhita Madhuryakhand Chapter 19 |
श्री गर्ग संहिता के माधुर्यखण्ड अध्याय 19
श्री गर्ग संहिता (Madhuryakhand Chapter 19) में माधुर्यखण्ड के अन्तर्गत श्री सौभरि और मांधाता के संवादमें ‘श्री यमुना सहस्रनाम का वर्णन’ कहा गया है। श्री यमुनासहस्रनाम में यमुना के हजार नामों का संग्रह है, जो उनकी महिमा, गुण, और महत्त्व को बताते हैं।
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उन्नीसवाँ अध्याय
यमुना-सहस्त्रनाम
मांधाता बोले- मनुष्यश्रेष्ठ ! यमुनाजीका सहस्रनाम समस्त सिद्धियोंकी प्राप्ति करानेवाला उत्तम साधन है, आप मुझे उसका उपदेश कीजिये; क्योंकि आप सर्वज्ञ और निरामय (रोग-शोकसे रहित) हैं ॥ १ ॥
सौभरिने कहा- मांधाता नरेश ! मैं तुमसे ‘कालिन्दी सहस्रनाम’ का वर्णन करता हूँ। वह समस्त सिद्धियोंकी प्राप्ति करानेवाला, दिव्य तथा श्रीकृष्णको वशीभूत करनेवाला है॥ २॥
विनियोग
ॐ अस्य श्रीकालिन्दीसहस्त्रनामस्तोत्रमन्त्रस्य सौभरिऋषिः, श्रीयमुना देवता, अनुष्टुप्छन्दः, माया- बीजमिति कीलकम्, रमाबीजमिति शक्तिः, श्रीकलिन्दनन्दिनीप्रसाद सिद्धयर्थे जपे विनियोगः । – उक्त वाक्य पढ़कर सहस्त्रनाम पाठके लिये विनियोगका जल छोड़े।(Madhuryakhand Chapter 19)
ध्यान
श्यामामम्भोजनेत्रां सघनघनरुचिं रत्नमञ्जीरकूजत् काञ्चीकेयूरयुक्तां कनकमणिमये बिभ्रतिं कुण्डले द्वे। भ्राजच्छ्रीनीलवस्त्रस्फुरदिभजचलद्धारभारां मनोज्ञां ध्याये मार्तण्डपुत्रीं तनुकिरणचयोद्दीप्तदीपाभिरामाम् ॥ ३॥
जो श्यामा (श्यामवर्णा एवं षोडश वर्षकी अवस्थावाली) हैं, जिनके नेत्र प्रफुल्ल कमल-दलकी शोभाको छीने लेते हैं, घनीभूत मेघके समान जिनकी नील कान्ति है, जो रनोंद्वारा निर्मित बजते हुए नूपुर और झनकारती हुई करधनी एवं केयूर आदि आभूषणोंसे युक्त हैं तथा कानोंमें सुवर्ण एवं मणिनिर्मित दो कुण्डल धारण करती हैं, दीप्तिमती नीली साड़ीपर चमकते हुए गजमौक्तिकके चञ्चल हारका भार वहन करनेसे अत्यन्त मनोहर जान पड़ती हैं, शरीरसे छिटकती हुई किरणोंकी राशिसे उद्दीप्त होनेके कारण जिनकी प्रज्वलित दीपमालाके समान शोभा हो रही है, उन सूर्यनन्दिनी यमुनाजीका मैं ध्यान करता हूँ॥ ३ ॥
यमुना सहस्त्रनाम
१. ॐ कालिन्दी सच्चिदानन्दस्वरूपा कलिन्दगिरिनन्दिनी, २. यमुना-यमकी बहिन, ३. कृष्णा-कृष्णवर्णा, ४. कृष्णरूपा कृष्णस्वरूपा अथवा कृष्णरूपवाली, ५. सनातनी नित्या, ६. कृष्णवामांससम्भूता – श्रीकृष्णके बायें कंधेसे प्रकट हुई, ७. परमानन्दरूपिणी परमानन्दमयी ॥ ४॥
८. गोलोकवासिनी गोलोकधाममें निवास करनेवाली, ९. श्यामा श्यामवर्णा अथवा षोडश वर्षकी अवस्थावाली, १०. वृन्दावनविनोदिनी- वृन्दावनमें मनोरञ्जन करनेवाली, ११. राधासखी- श्रीराधाकी सहचरी, १२. रासलीला रासमण्डलमें लीलापरायणा अथवा रासलीलास्वरूपा, १३. रास- मण्डलमण्डिनी-रासमण्डलको अलंकृत करनेवाली ॥ ५ ॥
१४. निकुञ्जवासिनी निकुञ्जमें निवास करने- वाली, १५. वल्ली-लतास्वरूपा, १६. रङ्गवल्ली रासरङ्गस्थलीमें वल्लीके समान शोभा पानेवाली अथवा रङ्गवल्ली नामकी राधा-सखी गोपीसे अभिन्नस्वरूपा, १७. मनोहरा मनको हर लेनेवाली, १८. श्रीः- लक्ष्मीस्वरूपा, १९. रासमण्डलीभूता-रासमण्डल स्वरूपा अथवा मण्डलाकार होकर रासमण्डलको अलंकृत करनेवाली, २०. यूथीभूता अपनी सहचरियोंके यूथसे संयुक्त, २१. हरिप्रिया श्रीकृष्णकी प्यारी ॥ ६ ॥
२२. गोलोकतटिनी-गोलोकधामकी नदी, २३. दिव्या दिव्यस्वरूपा, २४. निकुञ्जतलवासिनी निकुञ्जके भीतर निवास करनेवाली, २५. दीघां-बहुत लंबे परिमाणकी, २६. ऊर्मिवेगगम्भीरा तरंगोंके वेगसे युक्त एवं गहरी, २७. पुष्पपल्लववाहिनी फूलों और पल्लवोंको बहानेवाली ॥ ७ ॥
वाली, २८. घनश्यामा मेघके समान श्याम कान्ति- २९. मेघमाला-घनमालास्वरूपा, ३०. बलाका-बकपङ्क्ति स्वरूपा, ३१. पद्ममालिनी- कमलोंकी मालासे अलंकृत, ३२. परिपूर्णतमा परिपूर्णतम भगवत्स्वरूपा, ३३. पूर्णा पूर्णस्वरूपा, ३४. पूर्णब्रह्मप्रिया पूर्णब्रह्म श्रीकृष्णकी प्रेयसी, ३५. परा पराशक्तिस्वरूपा ॥ ८ ॥
३६. महावेगवती-बड़े वेगवाली, ३७. साक्षा न्त्रिकुञ्जद्वारनिर्गता-साक्षात् निकुञ्जके द्वारसे निकली हुई, ३८. महानदी विशाल सरिता, ३९. मन्दगति मन्दगतिसे बहनेवाली, ४०. विरजावेगभेदिनी- गोलोकधामकी विरजा नदीके वेगका भेदन करने- वाली ॥ ९ ॥(Madhuryakhand Chapter 19)
४१. अनेकब्रह्माण्डगता अनेकानेक ब्रह्माण्डोंमें
व्यात, ४२. ब्रह्मद्रवसमाकुला-ब्रह्मद्रवस्वरूपा गङ्गाजीसे मिली हुई, ४३. गङ्गामिश्रा गङ्गाके जलसे मिश्रित जलवाली, ४४. निर्मलाभा-निर्मल आभावाली, ४५. निर्मला सब प्रकारके मलोंसे रहित, ४६. सरितांवरा नदियोंमें श्रेष्ठ ॥ १०॥
४७. रत्रबद्धोभयतटी दोनों किनारोंकी तट- भूमिमें रत्नसे आबद्ध, ४८. हंसपद्यादिसंकुला-हंसादि पक्षियों और कमल आदि पुष्पोंसे व्याप्त, ४९. नदी- अव्यक्त शब्द, कलकल नाद करनेवाली, ५०. निर्मल पानीया स्वच्छ जलवाली, ५१. सर्वब्रह्माण्डपावनी- समस्त ब्रह्माण्डोंको पवित्र करनेवाली ॥ ११ ॥
५२. वैकुण्ठपरिखीभूता-वैकुण्ठधामको चारों ओरसे घेरकर परिखा (खाईं) के समान सुशोभित, ५३. परिखा-खाईस्वरूपा, ५४. पापहारिणी- पापोंका नाश करनेवाली, ५५. ब्रह्मलोकगता-ब्रह्म- लोकमें पहुँची हुई, ५६. ब्राह्मी ब्रह्मशक्तिस्वरूपा, ५७. स्वर्गा स्वर्गलोकस्वरूपा, ५८. स्वर्गनिवासिनी- स्वर्गलोकमें वास करनेवाली ॥ १२ ॥
५९. उल्लसन्ती तरङ्गोंद्वारा ऊपरकी ओर उठनेवाली, ६०. प्रोत्पतन्ती जोर-जोरसे उछलने- वाली, ६१. मेरुमाला मेरुपर्वतको मालाकी भाँति अलंकृत करनेवाली, ६२. महोज्ज्वला अत्यन्त प्रकाशमाना, ६३. श्रीगङ्गाम्भः शिखरिणी गङ्गाजीके जलको शिखरका रूप देनेवाली, ६४. गण्डशैल- विभेदिनी गण्डशैलोंका भेदन करनेवाली ॥ १३ ॥
६५. देशान् पुनन्ती देशोंको पवित्र करनेवाली, ६६. गच्छन्ती गतिशीला, ६७. वहन्ती प्रवहमाना, ६८. भूमिमध्यगा-धरतीके भीतर प्रवेश करनेवाली, ६९. मार्तण्डतनूजा-सूर्यपूत्री, ७०. पुण्या-पुण्य- प्रदा, ७१९. कलिन्दगिरिनन्दिनी कलिन्द पर्वतसे निकली हुई ॥ १४ ॥
७२. यमस्वसा यमराजकी बहन, ७३. मन्द- हासा-मन्द मन्द मुसकरानेवाली, ७४. सुद्विजा- सुन्दर दाँतोंवाली, ७५. रचिताम्बरा धरतीके लिये आच्छादनवस्त्रके रूपमें निर्मित, ७६. नीलाम्बरा- नील वस्त्र धारण करनेवाली, ७७. पद्ममुखी- कमलवदना, ७८. चरन्ती विचरनेवाली, ७९. चारुदर्शना मनोहर दृष्टिवाली अथवा देखनेमें मनोहर ॥ १५ ॥
८०. रम्भोरू-कदलीके खंभे जैसे ऊरुद्वय धारण करनेवाली, ८१. पद्मनयना कमललोचना, ८२. माधवी माधवप्रिया, ८४. ८३. प्रमदा-यौवनशालिनी, उत्तमा-उत्तम, ८५. तपश्चरन्ती श्रीकृष्ण- प्राप्तिके लिये तपस्या करनेवाली, ८६. सुश्रोणी सुन्दर नितम्बको धारण करनेवाली, ८७. कूजन्नूपुरमेखला- बजते हुए नूपुरों और करधनीसे सुशोभित ॥ १६ ॥(Madhuryakhand Chapter 19)
८८. जलस्थिता-पानीमें निवास करनेवाली, ८९. श्यामलाङ्गी श्यामल अङ्गवाली, ९०. खाण्डवाभा- खाण्डववनकी शोभा, ९१. विहारिणी विहारशीला, ९२. गाण्डीविभाषिणी अपनी तपस्याका उद्देश्य बतानेके लिये गाण्डीवधारी अर्जुनसे वार्तालाप करने- वाली, ९३. वन्या बढ़े हुए प्रवाहवाली, ९४. श्रीकृष्णं वरमिच्छती श्रीकृष्णको पति बनानेकी इच्छावाली ॥ १७ ॥
९५. द्वारकागमना द्वारकामें आगमन करने- वाली, ९६. राज्ञी रानी, ९७. पट्टराज्ञी पटरानी, ९८. परंगता परमात्माको प्राप्त, ९९. महाराज्ञी-महारानी, १००. रत्नभूषा रत्ननिर्मित आभूषणोंसे विभूषित, १०१. गोमती-गौओंके समुदायसे युक्त अथवा गोमती नदीस्वरूपा, विचरनेवाली ॥ १८ ॥
१०२. तीरचारिणी तटपर १०३. स्वकीया श्रीकृष्णकी अपनी विवाहिता पत्नी, १०४. सुखा सुखस्वरूपा, १०५. स्वार्था अपने अभीष्ट अर्थको प्रात, १०६. स्वभक्तकार्य- साधिनी-अपने भक्तोंका कार्य सिद्ध करनेवाली, १०७. नवलाङ्गा-नूतन अङ्गवाली, १०८. अबला स्त्रीरूपा, १०९. मुग्धा भोली-भाली अथवा मुग्धा नायिका, ११०. वराङ्गा-सुन्दर अङ्गवाली, १११. वामलोचना बाँके नयनोंवाली ॥ १९ ॥
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११२. अजातयौवना-अप्राप्त यौवना, ११३. अदीना-दीनतारहित एवं उदारस्वरूपा, ११४. प्रभा प्रभास्वरूपा, ११५. कान्तिः कान्तिस्वरूपा, ११६. द्युतिः द्युतिस्वरूपा, ११७. छविः छविस्वरूपा, ११८. सुशोभा सुन्दर शोभावाली, १९९. परमा उत्कृष्टस्वरूपा, १२०. कीर्तिः कीर्तिस्वरूपा, १२१. कुशला-चतुरा, १२२. अज्ञातयौवना अपने यौवनके आरम्भको न जाननेवाली ॥ २० ॥
१२३. नवोढा नवविवाहिता नायिका, १२४. मध्यगा मुग्धा और प्रगल्भाके बीचकी अवस्थावाली, १२५. मध्या मध्या नायिका, १२६. प्रौडिः- प्रौढतासे युक्त, १२७. प्रौढा-प्रौढस्वरूपा, १२८. प्रगल्भका- प्रगल्भानायिका, १२९. धीरा धीरस्वभावा, १३०. अधीरा-भगवद्दर्शनके लिये अधीर रहनेवाली, १३१. धैर्यधरा धैर्यधारिणी, १३२. ज्येष्ठा ज्येष्ठ अवस्थावाली, १३३. श्रेष्ठा गुणोंसे श्रेष्ठ, १३४. कुलाङ्गना-कुलवधू ॥ २१ ॥
१३५. क्षणप्रभा-विद्युत्के समान कान्तिमती, १३६. चञ्चला वेगशालिनी, १३७. अर्चा- पूजनीया, १३८. विद्युत्-विद्योतमाना, १३९. सौदामनी-विद्युत्स्वरूपा, १४०. तडित् घनश्यामके अङ्कमें विद्युल्लेखा-सी शोभमाना, १४१. स्वाधीन- पतिका स्नेह और सद्व्यवहारसे पतिको वशमें रखने- वाली, १४२. लक्ष्मी लक्ष्मीस्वरूपा, १४३. पुष्टा पुष्ट अङ्गङ्गेवाली अथवा अनुग्रहमयी, १४४. स्वाधीनभर्तृका- स्वाधीनपतिका ॥ २२ ॥(Madhuryakhand Chapter 19)
१४५. कलहान्तरिता-प्रेम-कलहके कारण कभी-कभी प्रियतमके वियोगका कष्ट सहन करनेवाली नायिका, १४६. भीरुः भीरु स्वभाववाली, १४७. इच्छा-प्रियतमकी कामनाका विषय अथवा अभिलाषारूपिणी, १४८. प्रोत्कण्ठिता-प्रियके दर्शन या मिलनके लिये उत्सुक रहनेवाली १४९. आकुला-प्रेम-परिपूर्ण अथवा प्रियतमकी सेवाके कार्यमें व्यस्त, १५०. कशिपुस्था शय्यापर विराजित रहनेवाली, १५१. दिव्यशय्या श्यामसुन्दरके लिये दिव्य शय्या प्रस्तुत करनेवाली, १५२. गोविन्दहृत- मानसा गोविन्दने जिनके मनको हर लिया है, ऐसी ॥ २३ ॥
१५३. १५४. अखण्डशोभाढया अविकल शोभासे सम्पन्न, खण्डिता खण्डिता-नायिकास्वरूपा, १५५. विप्रलब्धा-विप्रलब्धा-नायिका-स्वरूपा, १५६. अभिसारिका प्रियतम श्रीकृष्णसे मिलनेके लिये संकेत-स्थानपर जानेवाली, १५७. विरहार्ता- प्रियतमके विरहकी अनुभूतिसे पीड़ित, १५८. विरहिणी-वियोगिनी, १५९. नारी-नरावतार श्रीकृष्णकी भार्या, १६०. प्रोषितभर्तृका जिसका पति परदेशमें गया हो, ऐसी नायिका स्वरूपा ॥ २४ ॥
१६१. मानिनी मानवती, १६२. मानदा मान देनेवाली, १६३. प्राज्ञा विदुषी, १६४. मन्दारवन- वासिनी कल्पवृक्षके काननमें निवास करनेवाली, १६५. झंकारिणी-चलते-फिरते या नृत्य करते समय आभूषणोंकी झंकार फैलानेवाली, १६६. झणत्कारी- झणत्कार या सिञ्जन-ध्वनि करनेवाली, १६७. रणन्मञ्जीरनूपुरा बजते हुए नूपुर और मञ्जीर धारण करनेवाली ॥ २५ ॥
नीलमणिमयी १६८. मेखला-वृन्दावनकी करधनीके समान सुशोभित, १६९. अमेखला साधारण अवस्थामें मेखलासे रहित, १७०. काञ्ची ‘काञ्ची’ नामक आभूषणस्वरूपा, १७१. अकाञ्चनी काशनरहित, १७२. काञ्चनामयी-सुवर्णस्वरूपा, १७३. कञ्झुकी कशुकधारिणी, १७४. कञ्चकमणिः – कञ्च कमणिस्वरूपा, १७५. श्रीकण्ठा शोभायुक्त कण्ठवाली, १७६. आळया- (श्रीकृष्ण- रूप) सम्पत्तिशालिनी, १७७. महामणिः= महामणिस्वरूपा अथवा बहुमूल्य मणि धारण करनेवाली ॥ २६ ॥
१७८. श्रीह्मरिणी-श्रीहारधारिणी, १७९. पद्मारा कमलोंकी मालासे अलंकृत, १८०. मुक्ता नित्यमुक्त, १८१. मुक्तफलार्चिता-मुक्ताफलोंसे पूजित, १८२. रत्नकङ्कणकेयूरा रत्ननिर्मित कंगन और केयूर (भुजबंद) धारण करनेवाली, १८३. स्फुरदङ्गुलिभूषणा-जिनकी अङ्गुलियोंके उद्भासित हो रहे हैं, ऐसी ॥ २७ ॥
१८४. दर्पणा दर्पणस्वरूपा, १८५. दर्पणी- भूता-अपने जलकी निर्मलताके कारण दर्पणका काम देनेवाली, १८६. दुष्टदर्पविनाशिनी दुष्टोंके घमंडको चूर करनेवाली, १८७. कम्बुग्रीवा शङ्खके समान सुन्दर कण्ठवाली, १८८. कम्बुधरा-शङ्खनिर्मित आभूषण धारण करनेवाली, १८९. ग्रैवेयकविराजिता – कण्ठभूषणसे सुशोभित ॥ २८ ॥
१९०. ताटङ्किनी’ ताटङ्क (तरकी)’ नामक आभूषणविशेषको धारण करनेवाली, १९१. दन्तथरा दन्तधारिणी, १९२. हेमकुण्डलमण्डिता काञ्चन- निर्मित कुण्डलोंसे अलंकृत, १९३. शिखाभूषा- अपनी चोटीको विभूषित करनेवाली, १९४. भाल- पुष्या ललाट देशमें पुष्पमय शृङ्गार धारण करनेवाली, १९५. नासामौक्तिकशोभिता-नाकमें मोतीकी बुलाकसे शोभित ॥ २९ ॥
१९६. मणिभूमिगता मणिमयी भूमिपर विचरने-वाली, १९७. देवी दिव्यस्वरूपा, १९८. रैवताद्रि- विहारिणी-श्रीकृष्णकी पटरानीके रूपमें रैवतक पर्वतपर विहार करनेवाली, १९९. वृन्दावनगता- वृन्दावनमें विद्यमाना, २००. वृन्दा वृन्दावनकी अधिष्ठातृ देवी-स्वरूपा, २०१. वृन्दारण्यनिवासिनी- वृन्दावनमें निवास करनेवाली ॥ ३० ॥
२०२. वृन्दावनलता-वृन्दावनकी लताओंके साथ तादात्म्यको प्राप्त हुई, २०३. माध्वी मकरन्द- स्वरूपा, २०४. वृन्दारण्यविभूषणा-वृन्दावनको विभूषित करनेवाली, २०५. सौन्दर्यलहरी लक्ष्मीः- सुन्दरताकी तरङ्गोंसे युक्त लक्ष्मीस्वरूपा, २०६. मथुरातीर्थवासिनी मथुरापुरीरूप तीर्थमें निवास करनेवाली ॥ ३१ ॥
२०७. विश्रान्तवासिनी’ विश्रान्त’ तीर्थ (विश्रामघाट) में वास करनेवाली, २०८. काम्या कमनीया, २०९. रम्या रमणीया, २१०. गोकुल- बासिनी गोकुलमें निवास करनेवाली, २११. रमणस्थलशोभाळ्या-रमणस्थलीकी शोभा बढ़ाने- वाली, २१२. महावनमहानदी ‘महावन’ नामक वनमें प्रवाहित होनेवाली महती नदी ॥ ३२ ॥(Madhuryakhand Chapter 19)
२१३. प्रणता भक्तजनोंद्वारा वन्दिता, २१४. प्रोन्नता अत्यन्त उत्कृष्ट गोलोकधाममें स्थित अथवा ऊँची लहरोंके कारण उन्नत, २१५. पुष्टा प्रेमानुग्रहसे परिपुष्ट, २१६. भारती भारतवर्षकी नदी, २१७. भरतार्चिता भरतके द्वारा पूजित, २१८. तीर्थ- राजगतिः तीर्थराज प्रयागकी आश्रयभूता, २१९. गोत्रा गौओंका त्राण करनेवाली अथवा गिरिस्वरूपा, गङ्गासागरसंगमा गङ्गा तथा सागरसे २२०. संगत ॥ ३३ ॥
२२१. सप्ताब्धिभेदिनी सात समुद्रोंका भेदन करनेवाली, २२२. लोला लोल लहरोंवाली, २२३. बलात्सप्तद्वीपगता-बलपूर्वक सातों द्वीपोंमें जाने- वाली, २२४. लुठन्ती-धरतीपर लोटनेवाली, २२५. शैलभिद्यन्ती पर्वतोंका भेदन करनेवाली, २२६. स्फुरन्ती स्फुरणशीला अथवा अपनी दिव्य प्रभा बिखेरनेवाली, २२७. वेगवत्तरा-अतिशय वेग- शालिनी ॥ ३४ ॥
२२८. काञ्चनी स्वर्णमयी, २२९. काञ्चनी- भूमिः गोलोककी स्वर्णमयी भूमिपर प्रवाहित होनेवाली, २३०. काञ्चनीभूमिभाविता-स्वर्णमयी भूमिपर प्रकट, २३१. लोकदृष्टि जगत्को दिव्य- दृष्टि प्रदान करनेवाली, २३२. लोकलीला-लोकमें लीला करनेवाली, २३३. लोकालोकाचलार्चिता- लोकालोकपर्वतपर पूजित होनेवाली ॥ ३५ ॥
२३४. शैलोद्गता कलिन्दपर्वतसे निकली हुई, २३५. स्वर्गगता मन्दाकिनीरूपसे स्वर्गमें गयी हुई, २३६. स्वर्गार्चा स्वर्गमें अर्चित होनेवाली, २३७. स्वर्गपूजिता स्वर्गलोकमें पूजित, २३८. वृन्दावनी- वृन्दावनकी अधिष्ठातृस्वरूपा देवी, २३९. वनाध्यक्षा-वनकी स्वामिनी, २४०. रक्षा रक्षिता या रक्षारूपा २४१. कक्षा-वृन्दावनके लिये मेखलारूपा, २४२. तटीपटी तटभूमिको वस्त्रकी भाँति ढकने- वाली ॥ ३६ ॥
२४३. असिकुण्डगता असिकुण्डमें प्राप्त, २४४. कच्छा कछारकी भूमिस्वरूपा, २४५. स्वच्छन्दा- स्वच्छन्दगामिनी, २४६. उच्छलिता (वेगसे) उछलने वाली, २४७. आदिजा आदिभूत श्रीकृष्णके वामांससे उद्भूत (अथवा ‘अद्रिजा’ पाठ माना जाय तो पर्वतसे उत्पन्न हुई), २४८. कुहरस्था सरस्वती- रूपसे भूछिद्रमें अथवा भोगवतीरूपसे पाताल-विवरमें स्थित, २४९. रथ-प्रस्था श्रीकृष्णकी पटरानीके रूपमें रथपर यात्रा करनेवाली, २५०. प्रस्था प्रस्थानशीला, २५१. शान्ततरा-परम शान्तिमयी, २५२. आतुरा-श्रीकृष्णदर्शनके लिये आतुर रहने- वाली ॥ ३७ ॥
२५३. अम्बुच्छटा जलकी छटासे शोभित, २५४. शीकराभा कुहरोंसे सुशोभित होनेवाली, २५५. दर्दुरा-मेढकोंका आश्रय, अथवा बादलके समान श्याम कान्तिवाली, २५६. दार्दुरीधरा-अपने जलके कल-कल नादसे दादुरोंकी-सी ध्वनि धारण करनेवाली, २५७. पापाङ्कुशा पापोंको नष्ट करनेके लिये अङ्कुशस्वरूपा, २५८. पापसिंही पापरूपी गजराजको नष्ट करनेके लिये सिंहीके तुल्य, २५९. पापद्रुमकुठारिणी-पापरूपी वृक्षका उच्छेद करनेके लिये कुठाररूपा ॥ ३८ ॥
२६०. पुण्यसंघा पुण्यसमुदायरूपा, २६१. पुण्यकीर्तिः पवित्र कीर्तिवाली अथवा जिनका कीर्तन पुण्य प्रदान करनेवाला है, ऐसी, २६२. पुण्यदा- पुण्यदायिनी, २६३. पुण्यवर्द्धिनी-अपने दर्शनसे पुण्यकी वृद्धि करनेवाली, २६४. मधुवननदी- मधुवनमें बहनेवाली नदी, २६५. मुख्या एक प्रधान नदी, २६६. अतुला तुलनारहित, २६७. ताल- वनस्थिता-तालवनमें स्थित रहनेवाली ॥ ३९ ॥(Madhuryakhand Chapter 19)
२६८. कुमुद्वननदी-कुमुदवनकी नदी, २६९. कुब्जा टेढ़ी-मेढ़ी, २७०. कुमुदा भगवती दुर्गा- स्वरूपा, २७१. अम्भोजवर्द्धिनी-अपने जलमें कमलोंको बढ़ानेवाली, २७२. पूवरूपा-संसार- सागरसे पार होनेके लिये नौकास्वरूपा, २७३. वेगवती-वेगशालिनी, २७४. सिंहसर्पादिवाहिनी- अपने जलकी धारामें सिंहों तथा सर्पादि जन्तुओंको बहा ले जानेवाली ॥ ४० ॥
२७५. बहुली-बहुलरूपवाली, २७६. बहुदा- बहुत देनेवाली, २७७. बड़ी भूम (ब्रह्म) स्वरूपा, २७८. बहुला-गोरूपा, २७९. वनवन्दिता-वनों- द्वारा वन्दित, २८०. राधाकुण्डकला अपनी कलासे राधाकुण्डमें स्थित, २८१. आराध्या आराधनके योग्य, २८२. कृष्णकुण्डजलाश्रिता कृष्णकुण्डके जलमें निवास करनेवाली ॥ ४१ ॥
२८३. ललिताकुण्डगा ललिताकुण्डमें व्यास, २८४. घण्टा घण्टा-ध्वनिके सदृश अनुरणनात्मक शब्द करनेवाली, २८५. विशाखा विशाखा-सखी- स्वरूपा, २८६. कुण्डमण्डिता कुण्डों (हृदों) से सुशोभित, २८७. गोविन्दकुण्डनिलया-गोविन्द- कुण्डमें निवास करनेवाली, २८८. गोपकुण्ड- तरंगिणी-गोपकुण्डमें तरंगित होनेवाली ॥ ४२ ॥
२८९. श्रीगङ्गा-श्रीगङ्गास्वरूपा, २९०. मानसी- गङ्गा-मानसी-गङ्गास्वरूपा, २९१. कुसुमाम्बर- भाविनी पुष्पमय वस्त्रसे सुशोभित अथवा कुसुम- सरोवरके अवकाशमें प्रकट होनेवाली, २९२. गोवर्द्धिनी-गोवर्धननाथकी शक्ति अथवा गौओंकी वृद्धि करनेवाली, २९३. गोधनाढ्या गोधनसे सम्पन्न, २९४. मयूरवरवर्णिनी-मोरोंके समान सुन्दर वर्णवाली ॥ ४३ ॥
२९५. सारसी सरोवरोंकी जल सम्पत्ति अथवा सारस पक्षियोंकी आश्रयभूता, २९६. नीलकण्ठाभा नीलकण्ठ या मयूरकी-सी आभावाली, २९७. कूजत्कोकिलपोतकी-जहाँ कोकिलकुमारियोंके कल-कूजन होते रहते हैं, ऐसी, २९८. गिरिराज- प्रसूः- गिरिराज हिमालयके कलिन्दपर्वतसे प्रकट, २९९. भूरिः बहुवैभवशालिनी, ३००. आतपत्रा तटपर रहनेवाले लोगोंकी धूपके कष्टसे रक्षा करने- वाली, ३०१. आतपत्रिणी-पटरानीके रूपमें छत्र धारण करनेवाली ॥ ४४ ॥
३०२. गोवर्द्धनाङ्कगा-गोवर्धनगिरिकी गोदमें विराजमान, ३०३. गोदन्ती हरतालके समान रंगवाले केसर आदिसे आमोदित, ३०४. दिव्यौषधिनिधिः- दिव्य ओषधियोंकी निधि, ३०५. सृतिः सद्गतिकी राह, ३०६. पारदी भवसागरसे पार कर देनेवाली दिव्य शक्ति, ३०७. पारदमयी पारदस्वरूपा, ३०८. नारदी-नार अर्थात् जल प्रदान करनेवाली, ३०९. शारदी-शरत्कालीन शोभारूपा, ३१०. भृतिः भरण पोषणका साधन बनी हुई ॥ ४५ ॥
३११. श्रीकृष्णचरणाङ्कस्था भगवान् श्रीकृष्णके चरणोंके अङ्कमें विराजित, ३१२. अकामा लौकिक कामनाओंसे रहित (अथवा ‘कामा’ कामस्वरूपा), ३१३. कामवनाञ्चिता कामवनमें पूजित, ३१४. कामाटवी कामवनरूपा, ३१५. नन्दिनी सबको आनन्दित करनेवाली, ३१६. नन्दग्राममही नन्द- ग्रामस्थित भूमिरूपा, ३१७. धरा-पृथ्वीरूपा ॥ ४६ ॥
३१८. बृहत्सानुद्युतिप्रोता-‘बृहत्सानु’ पर्वतके शिखरकी शोभासे संयुक्त, ३१९. नन्दीश्वरसमन्विता नन्दगाँवके नन्दीश्वरगिरिसे समन्विता, ३२०. काकली कोयलोंकी कुहू-ध्वनिरूपमें स्थित, ३२१. कोकिलमयी कोयलसे व्याप्ता, ३२२. भाण्डीर- कुशकौशला भाण्डीरवनमें कुशोत्पाटनके कौशलसे युक्त ॥ ४७ ॥
३२३. लोहार्गलप्रदा श्रीकृष्णके लिये अपने प्रेमके द्वारा लोहकी अर्गला लगा देनेवाली, ३२४ कारा- (श्रीकृष्णको अपने प्रेमके द्वारा रोके रखनेके लिये) कारारूपा, ३२५. काश्मीरवसना केसरके रंगमें रंगे हुए वस्त्र धारण करनेवाली, ३२६. वृता श्रीकृष्णके द्वारा स्वीकृता, ३२७. बर्हिषदी-बर्हिषदी- पुरीरूपा, ३२८. शोणपुरी शोणपुरीरूपा, ३२९. शूरक्षेत्रपुराधिका शूरक्षेत्रपुरसे भी अधिक माहात्म्य- वाली ॥ ४८ ॥
३३०. नानाभरणशोभाढ्या विविध प्रकारके आभूषणोंकी शोभासे सम्पन्न, ३३१. नानावर्ण- समन्विता नाना प्रकारके रंगोंसे युक्त, ३३२. नानानारीकदम्बाढ्या-नाना प्रकारकी स्त्रियोंके समुदायसे युक्त, ३३३. नानारङ्गमहीरुहा-तटवर्ती विविध रंगके वृक्षोंसे सुशोभित ॥ ४९ ॥
३३४. नानालोकगता नाना लोकोंमें पहुँची हुई, ३३५. अभ्यर्चिः जिनकी तेजोराशि सब ओर फैली हुई है, ऐसी, ३३६. नानाजलसमन्विता-नाना नदियोंके मिले हुए जलसे युक्त, ३३७. स्त्रीरत्त्रम् = स्त्रियोंमें रत्नस्वरूपा, ३३८. रत्ननिलया-रत्ननिर्मित गृहमें निवास करनेवाली, ३३९. ललना श्रीकृष्ण- कामिनी, ३४०. रत्नरञ्जिनी रत्नोंके द्वारा विविध रंगोंका प्रकाश फैलानेवाली ॥ ५० ॥
३४१. रङ्गिणी रङ्गस्थलमें रासके रंगमें रँगी बाहुल्यसे रहनेवाली, ३४२. रङ्गभूमाढ्या रंगके युक्त, ३४३. रङ्गा-हर्षयुक्ता अथवा रङ्गानाम्नी नदीस्वरूपा, ३४४. रङ्गमहीरुहा रंगीन वृक्षोंसे युक्त, ३४५. राजविद्या विद्याओंकी स्वामिनी, राजगुह्याः गुह्य वस्तुओंमें सबसे श्रेष्ठ, ३४७. जगत्कीर्ति-जगत्के लिये कीर्तिमयी अथवा कीर्तनीया, ३४८. घना सघन प्रेमयुक्ता अथवा श्रीकृष्णके वंशीवादनके समय हिमवत् घनीभूत हो जानेवाली, ३४९. अघना-प्रवहणशीला ॥ ५१ ॥(Madhuryakhand Chapter 19)
३५०. विलोलघण्टा चञ्चल घंटाके समान नाद करनेवाली, ३५१. कृष्णाङ्गा-कृष्णके समान अङ्ग- वाली अथवा श्यामाङ्गी, ३५२. कृष्णदेहसमुद्भवा श्रीकृष्णके शरीरसे उत्पन्न, ३५३. नीलपङ्कजवर्णाभा नील कमलके समान वर्ण एवं आभासे युक्त, ३५४. नीलपङ्कजहारिणी-नील कमलकी माला धारण – करनेवाली ॥ ५२ ॥
३५५. नीलाभा-नील कान्तिमती, ३५६. नील- पद्माढ्या-नील कमलोंकी सम्पदासे भरी पूरी, ३५७. नीलाम्भोरुहवासिनी नील कमलमें निवास करने- वाली, ३५८. नागवल्ली-ताम्बूललतास्वरूपा, ३५९. नागपुरी नागोंकी नगरी (अर्थात् कालिय आदि नागोंकी निवासभूमि), ३६०. नागवल्ली- दलार्चिता-ताम्बूलपत्रसे पूजित ॥ ५३ ॥
३६१. ताम्बूलचर्चिता ताम्बूलसे रञ्जित, ३६२. चर्चा कस्तूरी-चन्दनादि आलेपमयी, ३६३. मकरन्द- मनोहरा कमलादिके मकरन्दसे मनको हर लेनेवाली, ३६४. सकेशरा केसरवती, ३६५. केशरिणी- केसर धारण करनेवाली, ३६६. केशपाशाभि- शोभिता केशपाशद्वारा सब ओरसे सुशोभित ॥ ५४ ॥
३६७. कज्जलाभा-काजलकी-सी काली आभावाली, ३६८. कञ्जलाक्ता नेत्रोंमें काजलकी शोभासे युक्त अथवा काजलकी रैंगी हुई, ३६९. कञ्जली कजलीके समान काली, ३७०. कलिताञ्जना नेत्रोंमें अञ्जन धारण करनेवाली, ३७१. अलक्तचरणा चरणोंमें महावरका रंग लगानेवाली, ३७२. ताम्रा ताम्रवर्णा, ३७३. लाला लालनीया, ३७४. ताम्रीकृताम्बरा ताँबेके समान लाल रंगके वस्त्र धारण करनेवाली ॥ ५५ ॥
३७५. सिन्दूरिता सीमन्तमें सिन्दूर धारण करने- वाली, ३७६. अलिप्तवाणी जिसकी वाणी किसी दोषसे लिप्त नहीं होती, ऐसी, ३७७. सुश्री उत्तम शोभासे युक्त, ३७८. श्रीखण्डमण्डिता चन्दनसे अलंकृत, ३७९. पाटीरपङ्कवसना-चन्दन-पङ्कमय वस्त्र धारण करनेवाली, ३८०. जटामांसी जटा- मांसीके रूपमें स्थित, ३८१. स्त्रगम्बरा-पुष्प- मालाओंको वस्त्ररूपमें धारण करनेवाली ॥ ५६ ॥
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३८२. आगरी-आगर (अमावास्या) के समान (कृष्ण) वर्णवाली, ३८३. अगुरुगन्धाक्ता अगुरुकी गन्धसे अभिषिक्त, ३८४. तगराश्रितमारुता जिसकी हवामें तगरकी सुगन्ध समायी हुई है, ऐसी, ३८५. सुगन्धितैलरुचिरा-सुगन्धित तैल (इत्र आदि) से मनोहर, ३८६. कुन्तलालिः जिनकी अलकोंपर (सुगन्धसे आकृष्ट) भ्रमर मँडराते रहते हैं, ऐसी, ३८७. सकुन्तला कुन्तल-राशिसे युक्त ॥ ५७ ॥
३८८. शकुन्तला शकुन्तों- पक्षियोंका स्वागत करनेवाली, ३८९. अपांसुला-पतिव्रता, ३९०. ३८८. शकुन्तला शकुन्तों – पक्षियोंका स्वागत करनेवाली, ३८९. अपांसुला-पतिव्रता, ३९०. पातिव्रत्यपरायणा-पातिव्रतधर्मके पालनमें तत्पर, ३९१. सूर्यप्रभा सूर्यके समान उद्भासित होनेवाली, ३९२. सूर्यकन्या-सूर्यकी पुत्री, ३९३. सूर्यदेह- समुद्भवा सूर्यके शरीरसे उत्पन्ना ॥ ५८ ॥
३९४. कोटिसूर्यप्रतीकाशा-करोड़ों सूर्योके समान तेजस्विनी, ३९५. सूर्यजा सूर्यपुत्री, ३९६. सूर्यनन्दिनी सूर्यदेवको आनन्द प्रदान करनेवाली, ३९७. संज्ञा सम्यक् ज्ञानस्वरूपा, ३९८. संज्ञासुता- संज्ञाकी पुत्री, ३९९. स्वेच्छा स्वाधीना, ४००. असंज्ञा (प्रियतमके प्रेममें) बेसुध हो जानेवाली, ४०१. संज्ञा-चेतनारूपा, प्रदान करनेवाली ॥ ५९ ॥
४०३. संज्ञापुत्री-संज्ञाकी बेटी, ४०४. स्फुरच्छाया उद्भासित कान्तिवाली, ४०५. तपती- तापकारिणी- (सौतेली बहिन) तपतीको ताप देने- वाली, ४०६. सावर्ज्यानुभवा श्रीकृष्णके साथ वर्ण- सादृश्यका अनुभव करनेवाली, ४०७. देवी-देव- कन्या, ४०८. वडवा वडवारूपा, ४०९. सौख्य- दायिनी सौख्य प्रदान करनेवाली ॥ ६० ॥
४१०. शनैश्चरानुजा-शनैश्चरकी छोटी बहिन, चन्द्रवंश- ४११. कीला-ज्वालामयी, ४१२. विवर्द्धिनी-चन्द्रवंशकी वृद्धि करनेवाली, ४१३. चन्द्रवंशवधूः- चन्द्रवंशकी बहू, ४१४. चन्द्रा- आह्लाद प्रदान करनेवाली, ४१५. चन्द्रावलि- सहायिनी चन्द्रावली सखीकी सहायता करने- वाली ॥ ६१ ॥
४१६. चन्द्रावती-चन्द्रावतीस्वरूपा, चन्द्र लेखा-चन्द्रलेखास्वरूपा, ४१७. ४१८. चन्द्रकान्ता = चन्द्रमाके समान कान्तिमती, ४१९. अनुगा-(सदा) प्रियतमका अनुगमन करनेवाली, ४२०. अंशुका= ४२१. भैरवी-भैरवप्रिया, उज्ज्वल-वस्त्रधारिणी, ४२२. पिङ्गलाशङ्की – सूर्यके पारिपार्श्वक पिङ्गलसे आशङ्कित होनेवाली, ४२३. लीलावती-भाँति-भौतिकी लीला करनेवाली, ४२४. आगरीमयी- अगरकी सुगन्धसे व्याप्त ॥ ६२ ॥(Madhuryakhand Chapter 19)
४२५. धनश्री धनलक्ष्मी या रागिनीविशेष, ४२६. देवगान्धारी रागिनीविशेष, ४२७. स्वर्मणिः= स्वर्गलोककी मणि, ४२८. गुणवर्द्धिनी गुणोंकी वृद्धि करनेवाली, ४२९. व्रजमल्ला व्रजमण्डलमें मल्ल- स्वरूपा, ४३०. बन्धकारी विरोधियोंको बन्धनमें डालनेवाली, ४३१. विचित्रा विचित्र रूप और शक्तिसे सम्पन्न, ४३२. जयकारिणी विजय प्राप्त करानेवाली ॥ ६३ ॥
४३३. गान्धारी, ४३४. मञ्जरी, ४३५. टोडी, ४३६. गुर्जरी, ४३७. आशावरी, ४३८. जया, ४३९. कर्णाटी गान्धारीसे लेकर कर्णाटीतक विशेष रागिनियोंके नाम हैं। ये समस्त रागिनियाँ यमुनाजीसे अभिन्न हैं, ४४०. रागिणी रागिनीस्वरूपा, ४४९. गौरी-गौरी नामकी रागिनी, ४४२. वैराटी रागिनीविशेष, ४४३. गौरवाटिका-रागिनी-विशेष अथवा गौरतेजः-स्वरूपा उद्यानरूपिणी ॥ ६४ ॥
४४४. चतुश्चन्द्रा, ४४५. कलाहेरी, ४४६. तैलङ्गी, ४४७. विजयावती, ४४८. ताली- चतुश्चन्द्रासे लेकर तालीतक राग-रागिनियाँ और तालके नाम हैं, ४४९. तलस्वरा ताली बजाकर स्वरकी सूचना देनेवाली, ४५०. गाना गानस्वरूपा, ४५१. क्रियामात्रप्रकाशिनी तालके क्रियामात्रको प्रकाशित करनेवाली ॥ ६५ ॥
४५२. वैशाखी, ४५३. चञ्चला, ४५४. चारुः, ४५५. माचारी, ४५६. घूघटी, ४५७. घटा, ४५८. वैरागरी, ४५९. सोरटी, ४६०. ईशा, ४६१. ४६२. जलधारिका- वैशाखीसे कैदारी, लेकर जलधारिकापर्यन्त सभी नामविशेष रागिनी आदिके सूचक हैं ॥ ६६ ॥
४६३. कामाकरश्री, ४६४. कल्याणी, ४६५. गौडकल्याणमिश्रिता, ४६६. रामसंजीविनी, ४६७. हेला, ४६८. मन्दारी, ४६९. कामरूपिणी- ये सब भी विशेष प्रकारकी रागिनियाँ हैं॥ ६७ ॥
४७०. सारङ्गी, ४७१. मारुती, ४७२. होढा, ४७३. सागरी, ४७४. कामवादिनी, ४७५. वैभासी, ४७६. मङ्गला ये भी रागिनियोंके ही नाम हैं। ४७७. चान्द्री रासपूर्णिमाकी चाँदनीस्वरूपा, रासमण्डलमण्डना-रासमण्डलको मण्डित ४७८. करनेवाली ॥ ६८ ॥
४७९. कामधेनुः कामधेनुकी भाँति व्यक्तिकी मनोवाञ्छित कामनाको पूर्ण करनेवाली, ४८०. कामलता = कामना पूर्ण करनेवाली कल्पलतास्वरूपा, ४८१. कामदा-अभीष्ट मनोरथ देनेवाली, ४८२. कमनीयका कमनीया, ४८३. कल्पवृक्षस्थली – कल्पवृक्षोंकी स्थानभूता, ४८४. स्थूला स्थूल- रूपिणी, ४८५. क्षुधा बुभुक्षास्वरूपिणी, ४८६. सौधनिवासिनी महलमें रहनेवाली ॥ ६९ ॥
४८७. गोलोकवासिनी गोलोकधाममें निवास करनेवाली, ४८८. सुभ्रूः सुन्दर भौंहोंवाली, ४८९. यष्टिभृत्-छड़ी धारण करनेवाली, ४९०. द्वार- पालिका द्वाररक्षिका, ४९१. शृङ्गारप्रकरा = शृङ्गार- साधन-सामग्री-समुदायरूपा, ४९२. शृङ्गा-मन्मथो- द्भेदस्वरूपा, ४९३. स्वच्छा विमलस्वरूपा, ४९४. शय्योपकारिका-प्रिया-प्रियतमके लिये शय्या सुसज्जित करनेमें उपकारिणी ॥ ७० ॥
४९५. पार्षदा-श्रीराधा-कृष्णकी पार्षदस्वरूपा, ४९६. सुसखीसेव्या-सुन्दर सखियोंद्वारा सेवनीया, श्रीवृन्दावनपालिका – श्रीवृन्दावनकी ४९७. रक्षा करनेवाली, ४९८. निकुञ्जभृत्-निकुञ्जका पोषण करनेवाली, ४९९. कुञ्जपुञ्ज-कुञ्जसमुदायस्वरूपा, ५००. गुञ्जभरणभूषिता गुञ्जाके आभूषणोंसे विभूषित ॥ ७१ ॥
५०१. निकुञ्जवासिनी निकुञ्जमें निवास करने- वाली, ५०२. प्रोष्या प्रवासिनी, ५०३. गोवर्द्धन- तटीभवा-गोवर्धनकी उपत्यकामें मानसी गङ्गाके रूपमें प्रकट, ५०४. विशाखा विशाखासखीस्वरूपा, ५०५. ललिता-ललिता-सखीस्वरूपा अथवा लालित्यशालिनी, ५०६. रामाश्रीकृष्णरमणी, ५०७. नीरुजा-रोगरहित, ५०८. मधुमाधवी मधुमासकी माधवी लतारूपिणी ॥ ७२ ॥
५०९. एका अद्वितीया, ५१०. नैकसखी – अनेक सखियोंवाली, ५११. शुक्रा-शुद्धस्वरूपा, ५१२. सखीमध्या-सखियोंके मध्यमें विराजमान, ५१३. महामनाः- विशालहृदया, ५१४. श्रुतिरूपा गोपीरूपमें श्रुतिस्वरूपा, ५१५. ऋषिरूपा-ऋषि- स्वरूपा गोपी, ५१६. मैथिलाः गोपीरूपमें उत्पन्न मिथिलावासिनी स्त्रियाँ, ५१७. कौशलाः स्त्रियः = गोपीरूपमें उत्पन्न कौशलवासिनी स्त्रियाँ ॥ ७३ ॥
५१८. अयोध्यापुरवासिन्यः गोपीरूपमें उत्पन्न अयोध्या नगरकी स्त्रियाँ, ५१९. यज्ञसीताः- यज्ञ- सीतास्वरूपा गोपियाँ, ५२०. पुलिन्दकाः- गोपी- भावको प्राप्त पुलिन्द-कन्याएँ, ५२१. रमावैकुण्ठ- वासिन्यः लक्ष्मीजीके वैकुण्ठमें निवास करनेवाली स्त्रियाँ (जो गोपीरूपको प्राप्त हुई थीं), ५२२. श्वेत- द्वीपसखीजनाः – श्वेतद्वीप निवासिनी सखियाँ ॥ ७४ ॥
वास ५२३. ऊर्ध्ववैकुण्ठवासिन्यः ऊर्ध्ववैकुण्ठमें करनेवाली सखियाँ, ५२४. दिव्याजित- पदाश्रिताः दिव्य अजित पदके आश्रित सखियाँ, ५२५. श्रीलोकाचलवासिन्यः श्रीलोकाचलमें निवास करनेवाली सखियाँ, ५२६. सागरोद्भवाः श्रीसख्यः – समुद्रसे उत्पन्न श्रीलक्ष्मीजीकी सखियाँ ॥ ७५ ॥
५२७. दिव्याः दिव्यरूपा गोपियाँ, ५२८. अदिव्याः = मानवरूपिणी गोपियाँ, ५२९. दिव्याङ्गाः – दिव्य अङ्गङ्गेवाली, ५३१. ५३०. व्याप्ताः सर्वव्यापिनी, वृत्तिस्वरूपा, त्रिगुणवृत्तयः – त्रिगुणात्मक ५३२. भूमिगोप्यः – भूतलपर उत्पन्न गोपियाँ, ५३३. देवनार्यः – देवाङ्गनास्वरूपा गोपियाँ, ५३४. लताः = लतारूपिणी गोपियाँ, ५३५. ओषधिवीरुधः = ओषधि एवं लता-झाड़ी आदिस्वरूपा गोपाङ्गनाएँ ॥ ७६ ॥
५३६. जालंधर्यः गोपीभावको प्राप्त जालंधरी स्त्रियाँ, ५३७. सिन्धुसुताः समुद्रकन्याएँ, ५३८. पृथुबर्हिष्मतीभवाः- राजा पृथुकी बर्हिष्मतीपुरीमें होनेवाली स्त्रियाँ, जो गोपीभावको प्राप्त हुई थीं, ५३९. दिव्याम्बराः-दिव्यवस्त्रधारिणी गोपियाँ, ५४०. अप्सरसः गोपीभावको प्राप्त अप्सराएँ, ५४१. सौतलाः = सुतललोकवासिनी असुराङ्गनाएँ, जिन्हें गोपीभावकी प्राप्ति हुई थी, ५४२. नागकन्यकाः – नागकन्यास्वरूपा गोपियाँ ॥ ७७ ॥(Madhuryakhand Chapter 19)
५४३. परं धाम परमधामस्वरूपा, ५४४. परं ब्रह्म परब्रह्मस्वरूपा, ५४५. पौरुषा-पुरुषार्थस्वरूपा, ५४६. प्रकृतिः परा-पराप्रकृतिस्वरूपा, ५४७. तटस्था-तटस्थाशक्तिस्वरूपा, ५४८ गुणभूः- गुणोंकी जन्मभूमि, ५४९. गीता सबके द्वारा जिसका यशोगान होता हो, वह, अथवा भगवद्गीतास्वरूपा ५५० गुणागुणमयी गुणागुणस्वरूपा ५५१ गुणा-दिव्यगुणात्मिका ॥ ७८ ॥
५५२. चिद्धना-चिदानन्दघनस्वरूपा, ५५३. सदसन्माला-सदसत्-समूहात्मिका, ५५४. दृष्टिः- ज्ञानस्वरूपा अथवा दर्शनस्वरूपा, ५५५. दृश्या दृश्यस्वरूपा, ५५६. गुणाकरी-गुणोंकी निधिरूपा, ५५७. महत्तत्त्वम्-समष्टि बुद्धिरूपा, अहंकारः – अहंकारस्वरूपा, ५५९. ५५८. मनः- मनः – स्वरूपा, ५६०. बुद्धिः बुद्धिरूपा, ५६१. प्रचेतना- प्रकृष्ट चेतनास्वरूपा ॥ ७९ ॥
५६२. चेतोः – चित्तरूपा, ५६३. वृत्तिः- व्यवहार-स्वरूपा ५६४. स्वान्तरात्मा-निजान्तरात्मस्वरूपा, ५६५. चतुर्थी जाग्रत्, स्वप्न और सुषुप्तिसे अतीत तुरीयावस्थारूपा, ५६६. चतुरक्षरा प्रणवके चार अक्षर-अकार, उकार, मकार और अर्धमात्रा- ये जिसके स्वरूप हैं, वह, ५६७. चतुर्व्यहा वासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्न और अनिरुद्ध – ये चार व्यूह जिसके स्वरूप हैं, वह, ५६८. चतुर्मूर्तिः एकपदी, द्विपदी, त्रिपदी और चतुष्पदी- इन चार मूर्तियोंवाली गायत्री अथवा चतुर्व्यहस्वरूपा, ५६९. व्योम आकाशरूपा, ५७०. वायुः = वायुरूपा, ५७१. अदः दृश्य प्रपञ्चके रूपमें स्थित, ५७२. जलम् जलस्वरूपा ॥ ८० ॥
५७३. मही-पृथ्वीरूपा, ५७४. शब्दः शब्द- स्वरूपा, ५७५. रसः रसस्वरूपा, ५७६. गन्धः = गन्धस्वरूपा, ५७७. स्पर्शः – स्पर्शस्वरूपा, ५७८. रूपम् रूपस्वरूपा, ५७९. अनेकधा-नाना रूप- वाली, ५८०. कर्मेन्द्रियम्-कर्मेन्द्रियस्वरूपा, ५८१. कर्ममयी कर्मस्वरूपा, ५८२. ज्ञानम्-ज्ञानमयी, ५८३. ज्ञानेन्द्रियम्-ज्ञानेन्द्रियस्वरूपा, ५८४. द्विधा- प्रकृति-पुरुषरूप दो शरीरवाली अथवा ज्ञानेन्द्रिय- कर्मेन्द्रिय-भेदसे द्विविध इन्द्रियरूपा ॥ ८१ ॥
५८५. त्रिधा-क्षर, अक्षर और पुरुषोत्तम- त्रिविध रूपवाली अथवा अध्यात्म, अधिभूत, अधिदैव-भेदसे त्रिविध रूपवाली, ५८६. अधि- भूतम्-भौतिक सृष्टिमें व्याप्त, ५८७. अध्यात्मम् = अध्यात्मस्वरूपा, ५८८. अधिदैवम्-आधिदैविक- रूपवाली, ५८९. अधिष्ठितम्-सर्वरूपोंमें अधिष्ठित, ५९१. क्रियाशक्तिः- ५९०. ज्ञानशक्तिः- ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति, ५९२. सर्वदेवाधिदेवता समस्त देवताओंकी अधिदेवी ॥ ८२ ॥
५९३. तत्त्वसंघा तत्त्वसमूहरूपा, ५९४. विराण्- मूर्तिः = विराट्स्वरूपा, ५९५. धारणा धारणाशक्ति, ५९६. धारणामयी-धारणाशक्तिरूपा, ५९७. श्रुतिः- वेदरूपा, ५९८. स्मृतिः = धर्मशास्त्ररूपा, ५९९. वेदमूर्तिः वेदात्मिका, ६००. संहिता संहितास्वरूपा, ६०१. गर्गसंहिता गर्गसंहितारूपा ॥ ८३ ॥
६०२. पाराशरी-पाराशरसंहिता (विष्णुपुराण) रूपा ६०३. सृष्टिः-सृष्टिरूपा अथवा पाराशरी- रचनारूपा, ६०४. पारहंसी-परमहंस-विद्यारूपा अथवा परमहंससंहिता, ६०५. विधातृका-विधातृ- स्वरूपा अथवा ब्रह्मसंहिता, ६०६. याज्ञवल्की याज्ञवल्क्यस्मृतिरूपा, ६०७. भागवती-भगवान्की शक्ति अथवा वैष्णवागमरूपा, ६०८. श्रीमद्भाग- वतार्चिता-श्रीमद्भागवतके द्वारा पूजित-प्रशंसित ॥ ८४ ॥
६०९. रामायणमयी वाल्मीकि रामायण अथवा प्राचेतससंहिता अथवा रामचरितस्वरूपा, ६१०. रम्या रमणीया, ६११. पुराणपुरुषप्रिया-पुराणपुरुष श्रीकृष्णकी प्रिया, ६१२. पुराणमूर्त्तिः पुराणस्वरूपा, ६१३. पुण्याङ्गा-पुण्यशरीरवाली, ६१४. शास्त्र- मूर्तिः = शास्त्रस्वरूपा, ६१५. महोन्त्रता-परम उन्नत ॥ ८५ ॥
६१६. मनीषा बुद्धिरूपा, ६१७. धिषणा-प्रज्ञा- रूपा, ६१८. बुद्धिः मेधारूपा, ६१९. वाणी- वाग्देवता, ६२०. धीः- बुद्धिरूपा, ६२१. शेमुषी- बुद्धिरूपा, ६२२. मतिः- निश्चयरूपा, ६२३. गायत्री- गायत्रीमन्त्रस्वरूपा, ६२४. वेदसावित्री-वेदोक्त गायत्री, ६२५. ब्रह्माणी-ब्रह्मशक्ति, ६२६. ब्रह्म- लक्षणा वेदमन्त्रोंद्वारा लक्षित होनेवाली ॥ ८६ ॥
६२७. दुर्गा दुर्गम्या अथवा दुर्गादेवी, ६२८. अपर्णा तपस्विनी पार्वती, ६२९. सती दक्षकन्या सती, ६३०. सत्या सत्यस्वरूपा अथवा सत्यभामा, ६३१. पार्वती गिरिराज हिमालयकी पुत्री, ६३२. चण्डिका-असुरसंहारिणी शक्ति, ६३३. अम्बिका- जगन्माता, ६३४. आर्या = श्रेष्ठस्वरूपा, दाक्षायणी-दक्षप्रजापतिकी कन्या, ६३५. ६३६. दाक्षी- दक्षपुत्री, ६३७. दक्षयज्ञविघातिनी दक्ष-यज्ञ- विध्वंसमें कारणभूता ॥ ८७ ॥
६३८. पुलोमजा-पुलोम दानवकी पुत्री शची- स्वरूपा, ६३९. शची इन्द्रपली, ६४०. इन्द्राणी – शची, ६४१. देवी-प्रकाशमाना, ६४२. देववरार्पिता देवेश्वर इन्द्रको अर्पित, ६४३. वायुना धारिणी वायुके द्वारा धारण करनेवाली अथवा वयुना-ज्ञानस्वरूपा और धारिणी-धारणशक्ति, ६४४. धन्या-धन्यवादके योग्य, ६४५. वायवी वायुशक्ति, ६४६. वायुवेगगा= वायुवेगसे चलनेवाली ॥ ८८ ॥(Madhuryakhand Chapter 19)
६४७. यमानुजा-यमकी छोटी बहिन, ६४८. संयमनी-संयमनशक्ति अथवा संयमनीपुरी, ६४९. संज्ञा सूर्यप्रिया संज्ञास्वरूपा, ६५०. छाया = संज्ञाकी छायाभूता सवर्णा, ६५१. स्फुरद्युतिः = उद्दीप्त कान्तिवाली, ६५२. रत्नवेदी-रत्नवेदिकारूपा, ६५३. रत्नवृन्दा रत्नसमूहरूपा, ६५४. तारा = तारामण्डलरूपा, ६५५. तरणिमण्डला सूर्यमण्डल स्वरूपा ॥ ८९ ॥
६५६. रुचिः प्रभा, ६५७. शान्तिः शान्ति- रूपा, ६५८. क्षमा-तितिक्षामयी अथवा पृथ्वी, ६५९. शोभा छविमयी, ६६०. दया करुणामयी, ६६१. दक्षा-कुशला या चतुरा, ६६२. द्युतिः = कान्तिमयी, ६६३. त्रपा लज्जा, ६६४. तलतुष्टिः = ताली बजानेसे तुष्ट होनेवाली, ६६५. विभा-प्रभा, ६६६. पुष्टिः-पुष्टिरूपा, ६६७. संतुष्टिः- संतोषमयी, ६६८. पुष्टभावना-सुदृढ़ भावनावाली ॥ ९० ॥
६६९. चतुर्भुजा चार भुजाएँ धारण करनेवाली (लक्ष्मी), ६७०. चारुनेत्रा सुन्दर नेत्रवाली, ६७१. द्विभुजा-दो बाहुवाली (कालिन्दी या श्रीराधा), ६७२. अष्टभुजा आठ भुजावाली (सरस्वती), ६७३. अबला बलका प्रदर्शन न करनेवाली, ६७४. शङ्खहस्ता-हाथमें शङ्ख धारण करनेवाली (वैष्णवी मूर्ति), ६७५. पद्महस्ता-हाथमें कमल धारण करनेवाली (लक्ष्मी), ६७६. चक्रहस्ता-हाथमें चक्र धारण करनेवाली वैष्णवी मूर्ति, ६७७. गदाधरा-गदा धारण करनेवाली ॥ ९१ ॥
६७८. निषङ्गधारिणी-तरकस धारण करनेवाली, ६७९. चर्मखड्गपाणिः- हाथमें ढाल-तलवार लेने- वाली, ६८०. धनुर्धरा-धनुष धारण करनेवाली, ६८१. धनुष्टंकारिणी (दुर्गाके रूपमें) धनुषका टंकार करनेवाली, ६८३. ६८२. योद्धी-युद्ध करनेवाली, उद्भट दैत्योद्भटविनाशिनी दैत्यसेनाके योद्धाओंका विनाश करनेवाली ॥ ९२ ॥
६८४. रथस्था रथपर बैठनेवाली, ६८५. गरुडा- रूढा गरुडपर आरूढ़ होनेवाली, ६८६. श्रीकृष्ण- हृदयस्थिता-श्रीकृष्णके हृदयरूपी सिंहासनपर आसीन, ६८७. वंशीधरा कृष्णरूपसे वंशी धारण करनेवाली, ६८८. कृष्णवेषा श्रीकृष्णका वेष धारण करनेवाली, ६८९. स्त्रग्विणी-पुष्पोंके हारोंसे अलंकृत, ६९०. वनमालिनी वनमाला धारण करनेवाली ॥ ९३ ॥
६९१. किरीटधारिणी मस्तकपर किरीट धारण करनेवाली, ६९२. याना-यानस्वरूपा, ६९३. मन्द- मन्दगतिः- धीरे-धीरे चलनेवाली, ६९४. गतिः- सद्गतिस्वरूपा अथवा गमनशक्तिरूपा, ६९५. चन्द्र- कोटिप्रतीकाशा-कोटिचन्द्रतुल्या, ६९६. तन्वी कृशाङ्गी, ६९७. कोमलविग्रहा-मृदुल शरीर वाली ॥ ९४ ॥
६९८. भैष्मी भीष्मपुत्री रुक्मिणीरूपा, ६९९. भीष्मसुता-राजा भीष्मककी पुत्री रुक्मिणी, ७००. अभीमा-अभयंकर-सौम्यरूपवाली, ७०१. रुक्मिणी श्रीकृष्णकी प्रमुख पटरानी, ७०२. रुक्मरूपिणी-सुनहले रूपवाली, ७०३. सत्यभामा- सत्राजित्की पुत्री, श्रीकृष्णप्रिया, ७०४. जाम्बवती- जाम्बवान्द्वारा पोषित एवं उन्हींसे प्राप्त दिव्यरूपा पटरानी, ७०५. सत्या ‘सत्या’ नामवाली श्रीकृष्णकी पटरानी, ७०६. भद्रा’ भद्रा’ नामवाली पटरानी, ७०७. सुदक्षिणा परम उदारस्वरूपा श्रीकृष्णकी पटरानी ॥ ९५ ॥
७०८. मित्रविन्दा ‘मित्रविन्दा’ नामवाली पटरानी, ७०९. सखी-राधारानीकी सखी, ७१०. वृन्दा-वृन्दावनकी अधिदेवी, ७११. वृन्दारण्यध्वजोर्ध्वगा वृन्दावनकी ध्वजतुल्या-ऊर्ध्वगामिनी, ७१२. शृङ्गारकारिणी = शृङ्गार करनेवाली, ७१३. शृङ्गा शृङ्गस्वरूपा, ७१४. शृङ्गभूः- शिखरभूमि, ७१५. शृङ्गदा शिखरपर स्थान देनेवाली, ७१६. खगा-आकाशचारिणी ॥ ९६ ॥
७१७. तितिक्षा क्षमा, ७१८. ईक्षा ईक्षणस्वरूपा, ७१९. स्मृतिः स्मरण शक्ति, ७२०. स्पर्धा-स्पर्धा- रूपा, ७२१. स्पृहा-अभिलाषा, ७२२. श्रद्धा आस्तिक्य-बुद्धिस्वरूपा, ७२३. स्वनिर्वृतिः = निजानन्दस्वरूपा, ७२४. ईशा ईशनकर्जी, ७२५. तृष्णा – कामना, ७२६. भिदा-भेदस्वरूपा, ७२७. प्रीतिः- प्रेम या प्रसन्नता, ७२८. हिंसा-हिंसावृत्तिरूपा, ७२९. बाञ्च्चा-याचनारूपा, ७३०. कुमा कान्तिरूपा अथवा अकुमा- कुमरहिता, ७३१. कृषिः कृषि (वार्ताका एक भेद) ॥ ९७ ॥
७३२. आशा-आशारूपिणी, ७३३. निद्रा निद्राकी अधिष्ठात्री या निद्रारूपा, ७३४. योगनिद्रा योगनिद्रा, जिसका आश्रय लेकर भगवान् विष्णु चार मासतक शयन करते हैं, ७३५. योगिनी योगिनीरूपा, ७३६. योगदा योगदायिनी, ७३७. युगायुग-स्वरूपा, ७३८. निष्ठा- परमगति, आश्रयशक्ति अथवा आधारस्वरूपा, ७३९. प्रतिष्ठा- प्रतिष्ठास्वरूपा, आश्रय अथवा अवलम्ब, ७४०. शमितिः – शमन-स्वरूपा, ७४१. सत्त्वप्रकृतिः- सत्त्वगुणमयी प्रकृतिवाली, ७४२. उत्तमा उत्कृष्टस्वरूपा ॥ ९८ ॥
७४३. तमः प्रकृतिदुर्मर्षी तमोगुणमय स्वभावको दुःखसे सहन करनेवाली, ७४४. रजः प्रकृतिः = रजोगुणप्रधान प्रकृतिरूपा, ७४५. आनतिः सब ओरसे नमनशीला, ७४६. क्रिया-क्रियाशक्ति, ७४७. अक्रिया-निष्क्रिय, ७४८. कृतिः- प्रयत्नरूपा, ७४९. ग्लानिः- ग्लानिरूपिणी, ७५० सात्त्विकी सत्त्व-प्रधाना शक्ति, ७५१.आध्यात्मिकी आध्यात्मिक शक्ति, ७५२. वृषा-धर्मस्वरूपा ॥ ९९ ॥
७५३. सेवा-सेवारूपिणी, ७५४. शिखा- नदियोंकी शिखाभूता, ७५५. मणिः मणि-रत्न-स्वरूपा, ७५६. वृद्धिः-अभ्युदयकी हेतुभूता, ७५७. आहूतिः = आह्वानस्वरूपा, ७५८. सुमतिः = सद्बुद्धिस्वरूपिणी, ७५९. द्युः = द्युलोकरूपिणी, ७६०. भूः पृथ्वीरूपा, ७६१. रज्जुर्द्विदाम्नी दो तटोंवाली, ७६२. षड्वर्गा षड्वर्गरूपिणी, ७६३. संहिता वेदरूपिणी, ७६४. सौख्यदायिनी – सर्वसुखदा ॥ १०० ॥(Madhuryakhand Chapter 19)
७६५. मुक्तिः – मुक्तिरूपा, ७६६. प्रोक्तिः श्रेष्ठवाणी- रूपा, ७६७. देशभाषा देशीयभाषा, ७६८. प्रकृतिः = प्रकृतिरूपा, ७६९. पिङ्गलोद्भवा पिङ्गला नाड़ीसे उत्पन्न, ७७०. नागभाषा-नागोंकी भाषाको जाननेवाली अथवा नागोंसे भाषण करनेवाली, ७७१. नागभूषा नागोंसे भूषित, ७७२. नागरी नागरी अर्थात् चतुरा, ७७३. नगरी नगरस्वरूपा, ७७४. नगा वृक्ष अथवा गिरिरूपा ॥ १०१ ॥
७७५. नौः नाव, ७७६. नौका नाव, ७७७. भवनौः = संसारसागरसे पार उतारनेवाली नौका, ७७८. भाव्या-मनमें भावना (ध्यान) करनेयोग्य, ७७९. भवसागरसेतुका – भवसागरसे पार जानेके लिये सेतुरूपा, ७८०. मनोमयी मनः स्वरूपा, ७८१ दारुमयी-काष्ठकी बनी, ७८२. सैकती-सिकतासे पूर्ण, ७८३, सिकतामयी- वालुकासे परिपूर्ण या वालुकामयी ॥ १०२ ॥
७८४. लेख्या-चित्रमयी, ७८५. लेप्या-मिट्टीकी प्रतिमा, ७८६. मणिमयी मणिनिर्मित प्रतिमा, ७८७. प्रतिमा हेमनिर्मिता सोनेकी बनी प्रतिमा, ७८८. शैली-शिलामयी प्रतिमा, ७८९. शैलभवा=पर्वतसे प्रकट प्रतिमा, ७९०, शीला शीलयुक्ता अथवा शीलस्वरूपा, ७९१. शीकराभा जलकणों अथवा जलकी फुहारोंसे शोभित, ७९२. चला चलस्वरूपा, ७९३. अचला-अचलस्वरूपा ॥ १०३ ॥
७९४. अस्थिता अस्थिर, ७९५. सुस्थिता- सुस्थिर, ७९६. तूली-तूलिका, ७९७. वैदिकी वेदोक्त पद्धति, ७९८. तान्त्रिकी-तन्त्रोक्त पद्धति, ७९९. विधिः – विधिवाक्यस्वरूपा, ८००. संध्या-रात और दिनकी संधिवेला, ८०१. संध्याभ्रवसना-संध्या- कालिक बादल या आकाशकी भाँति लाल वस्त्रवाली, ८०२. वेदसंधिः वेदमन्त्रोंमें संधि (संहिता) स्वरूपा, ८०३. सुधामयी-अमृतमयी ॥ १०४ ॥
८०४. सायंतनी सायंकालिकी शोभा, ८०५. शिखा ज्वालामयी, ८०६. अवेध्या अभेदनीया, ८०७. सूक्ष्मा सूक्ष्मस्वरूपा ८०८. जीवकला-जीवरूप भगवत्कला, ८०९. कृतिः कृतिरूपा, ८१०. आत्मभूता-सबकी आत्मस्वरूपा, ८११. भाविता ध्यान या भावनाकी विषयभूता, ८१२. अण्वी सूक्ष्मस्वरूपा, ८१३. प्रह्वी-विनयशीला, ८१४. कमलकर्णिका-हृदय- कमलकी कर्णिकामें ध्येया ॥ १०५ ॥
८१५. नीराजनी-आरती, ८१९६. महाविद्या- तत्त्वसाक्षात्कार करानेवाली महावाक्यबोधात्मिका महाविद्या, अथवा ब्रह्मविद्यारूपा महाविद्या, ८१७. कंदली-सुखकी अङ्करस्वरूपा, ८१८. कार्यसाधनी= भक्तजनोंके अभीष्ट कार्यको सिद्ध करनेवाली, ८१९. पूजा अर्चना, ८२०. प्रतिष्ठा स्थापना, ८२१. विपुला- विपुलस्वरूपा, ८२२. पुनन्ती पवित्र करनेवाली, ८२३. पारलौकिकी परलोकके लिये हितकारिणी ॥ १०६ ॥
८२४. शुक्कशुक्तिः = श्वेत सीपी या सितुहीकी उपलब्धिका स्थान, ८२५. मौक्तिका-मुक्तास्वरूपा, ८२६. प्रतीतिः = प्रतीतिस्वरूपा, ८२७. परमेश्वरी परमेश्वरप्रिया, ८२८. विरजा निर्मला, ८२९. उष्णिक् वैदिक छन्द-विशेष, ८३०. विराड् – विराट्-रूपा, ८३१. वेणी त्रिवेणीरूपा, ८३२. वेणुका- वंशीरूपिणी, ८३३. वेणुनादिनी वेणुनाद करनेवाली-बाँसुरीकी तान छेड़नेवाली ॥ १०७ ॥
८३४. आवर्तिनी भँवरोंसे युक्ता ८३५. वार्तिकदा वार्तिकदायिनी, ८३६. वार्ता कृषि, गोरक्षा और वाणिज्यके भेदसे त्रिविध वार्ता, ८३७. वृत्तिः = जीविकारूपा, ८३८. विमानगा विमानपर यात्रा करने- वाली, ८३९. रासाढ्या रासजनित सुखसे सम्पन्न, ८४०. रासिनी रासपरायणा, ८४१. रासा रासस्वरूपा, ८४२. रासमण्डलवर्तिनी-रासमण्डलमें वर्तमान ॥ १०८ ॥
८४३. गोपगोपीश्वरी-गोपों तथा गोपाङ्गनाओंकी आराध्या ईश्वरी, ८४४. गोपी गोपीरूपा, ८४५. गोपी- गोपालवन्दिता गोपियों और ग्वालोंसे वन्दित, ८४६. गोचारिणी-अपने तटपर गौओंको चरनेके लिये स्थान और सुविधा देनेवाली, ८४७. गोपनदी गोपोंकी नदी, ८४८. गोपानन्दप्रदायिनी गोपोंको आनन्द प्रदान करनेवाली ॥ १०९ ॥(Madhuryakhand Chapter 19)
८४९. पशव्यदा-पशुओंके लिये हितकर घास प्रदान करनेवाली, ८५०. गोपसेव्या गोपोंके द्वारा सेवनीया, ८५१. कोटिशो गोगणावृता करोड़ों गौओंके समुदायसे घिरी हुई, ८५२. गोपानुगा गोपगण जिनका अनुगमन करते हैं या गोप जिनके सेवक हैं, ऐसी, ८५३. गोपवती-गोपोंसे युक्त, ८५४. गोविन्दपदपादुका- गोविन्द-चरणोंकी पादुकास्वरूपा ॥ ११० ॥
८५५. वृषभानुसुता-वृषभानुनन्दिनी राधासे अभिन्न, ८५६. राधा-श्रीकृष्णकी आराध्या राधा-स्वरूपा, ८५७. श्रीकृष्णवशकारिणी – श्रीकृष्णको वशमें कर लेनेवाली, ८५८. कृष्णप्राणाधिका श्रीकृष्णको प्राणोंसे भी बढ़कर प्रिय, ८५९. शश्वद्रसिका नित्यरसिका ८६०. रसिकेश्वरी – रसिकोंकी ईश्वरी ॥ १११ ॥
८६१. अवटोदा-अवटोदा नामकी नदी, ८६२. ताम्रपर्णी-ताम्रपर्णी नामकी नदी, ८६३. कृतमाला – इसी नामवाली नदी, ८६४. विहायसी विहायसी नदी, ८६५. कृष्णा कृष्णा नदी, ८६६. वेणी वेणी नामकी नदी, ८६७. भीमरथी भीमा नामकी नदी, ८६८. तापी तपती नामकी नदी ८६९. रेवा-नर्मदा, ८७०. महापगा-विशाल नदी, अथवा महानदी नामकी नदी ॥ ११२ ॥(Madhuryakhand Chapter 19)
८७१. वैयासकी-वैयासकी (व्यास) नदी, ८७२. कावेरी-कावेरी नदी, ८७३. तुङ्गभद्रा तुङ्गभद्रा नामकी नदी, ८७४. सरस्वती सरस्वती नदी, ८७५. चन्द्रभागा चिनाब नदी, ८७६. वेत्रवती बेतवा नदी, ८७७. ऋषिकुल्या इसी नामकी नदी, ८७८. ककुद्मिनी ककुद्मिनी नदी ॥ ११३ ॥
८७९. गौतमी गोदावरी, ८८०. कौशिकी-कोसी नदी, ८८१. सिन्धुः सिन्धु नदी, ८८२. बाण- गङ्गा-अर्जुनके बाणसे प्रकट हुई पातालगङ्गा, ८८३. अतिसिद्धिदा अत्यन्त सिद्धि प्रदान करनेवाली, ८८४. गोदावरी-गौतमी, ८८५. रत्नमाला नदी, ८८६. गङ्गा गङ्गा नदी, ८८७. मन्दाकिनी आकाश-गङ्गा, ८८८. बला-बला नामकी नदी ॥ ११४॥
८८९. स्वर्णदी स्वर्गलोककी नदी गङ्गा, ८९०. जाह्नवी-जहुनन्दिनी गङ्गा, ८९१. वेला वेला नदी, ८९२. वैष्णवी विष्णुकुल्या, ८९३. मङ्गलालया मङ्गलका आवास, ८९४. बाला-बाला नदी, ८९५. विष्णुपदी-गङ्गा, ८९६. सिन्धुसागरसंगता गङ्गासागर-संगम- स्वरूपा ॥ ११४ ॥
८९७. गङ्गासागरशोभाड्या गङ्गा और सागरके संगमकी शोभासे सम्पन्न, ८९८. सामुद्री समुद्रप्रिया, ८९९. रत्नदा रत्न प्रदान करनेवाली, ९००. धुनी- नदीरूपा, ९०१. भागीरथी राजा भगीरथके द्वारा लायी गयी गङ्गा, ९०२. स्वर्धनीभूः गङ्गाके प्राकट्य- की भूमि, ९०३. श्रीवामनपदच्युता श्रीवामनके चरणोंसे च्युत हुई ॥ ११६ ॥
९०४. लक्ष्मीः लक्ष्मीस्वरूपा, ९०५. रमा पद्मा, ९०६. रमणीया रमणीयतासे युक्त, ९०७. भार्गवी-भृगुपुत्री, ९०८. विष्णुवल्लभा भगवान् विष्णुकी प्रिया, ९०९. सीता सीतास्वरूपा, ९१०. अर्चिः = अग्नि ज्वालारूपिणी, ९११. जानकी-जनक-नन्दिनी, ९१२. माता-जगज्जननी, ९१३. कलङ्क-रहिता निष्कलङ्का, ९१४. कला-भगवत्कला-स्वरूपा ॥ ११७ ॥
९१५. कृष्णपादाब्जसम्भूता- श्रीकृष्णके चरणारविन्दों- से प्रकट हुई, ९१६. सर्वा-सर्वस्वरूपा, ९१७. त्रिपथगामिनी त्रिपथगा गङ्गा, ९१८. धरा-धरणी- स्वरूपा, ९१९. विश्वम्भरा विश्वका भरण-पोषण ९२१. करनेवाली, ९२०. अनन्ता अन्तरहिता, भूमिः- आधारभूमिस्वरूपा, ९२२. धात्री धाय, ९२३. क्षमामयी क्षमास्वरूपा ॥ ११८ ॥(Madhuryakhand Chapter 19)
९२४. स्थिरा स्थिरस्वरूपा, ९२५. धरित्री धारण करनेवाली, ९२६. धरणी लोकधारणी पृथ्वी, ९२७. उर्वी-भूमि, ९२८. शेषफणस्थिता शेषनागके फणोंपर रहनेवाली, ९२९. अयोध्या जिसके साथ युद्ध न किया जा सके, ऐसी अजेय पुरी, ९३०. राघवपुरी राघवेन्द्रकी नगरी, ९३१. कौशिकी-कुशिकवंशजा, रघुवंशजा-रघुकुलमें उत्पन्न होनेवाली ॥ ११९ ॥
९३३. मथुरा-मथुरा-नगरी, ९३४. माथुरी मथुरा- मण्डलमें प्रकट, ९३५. पन्था मार्गस्वरूपा, ९३६. यादवी यदुवंशियोंकी नगरी, ९३७. ध्रुवपूजिता-ध्रुवसे प्रशंसित, ९३८. मयायुः- मयासुरको आयु प्रदान करने- वाली, ९३९. बिल्वनीलोदा-बिल्वके समान नील रंगके जलवाली, ९४०. गङ्गाद्वारविनिर्गता-हरद्वारसे निकली हुई ॥ १२० ॥
९४१. कुशावर्तमयी-कुशावर्तनामक तीर्थस्वरूपा, ९४२. धौव्या-ध्रुवत्वसे युक्त, ९४३. ध्रुवमण्डलमध्यगा ध्रुवमण्डलके बीचसे निकली हुई, ९४४. काशी-वाराणसी, ९४५. शिवपुरी-शिवकी नगरी, ९४६. शेषा-शेषस्वरूपा, ९४७. विन्ध्या विन्ध्यस्वरूपा, ९४८. वाराणसी काशी, ९४९. शिवा-शिवास्वरूपा ॥ १२१ ॥
९५०. अवन्तिका-मालव प्रदेशकी राजधानी और महाकालकी नगरी, ९५१. देवपुरी देवनगरी, ९५२. प्रोज्ज्वला प्रकृष्ट शोभासे सम्पन्न, ९५३. उज्जयिनी उज्जैन, ९५४. जिता-जितस्वरूपा, ९५५. द्वारावती द्वारकापुरी, ९५६. द्वारकामा द्वारकी कामनावाली, ९५७. कुशभूता-कुशके प्रकट होनेका स्थान, ९५८. कुशस्थली-कुशोंकी उत्पत्ति-स्थली द्वारका ॥ १२२ ॥(Madhuryakhand Chapter 19)
९५९. महापुरी-महानगरी, ९६०. सप्तपुरी-सप्त- पुरीस्वरूपा, ९६१. नन्दिग्रामस्थलस्थिता नन्दिग्रामके स्थलमें स्थित सरयू अथवा यमुना, ९६२. शालग्राम- शिलादित्या-शालग्रामशिलाकी उत्पत्तिका स्थान गण्डकी नदी, ९६३. सम्भलग्राममध्यगा सम्भल ग्रामके मध्यमें गयी हुई ॥ १२३ ॥
९६४. वंशगोपालिनी वंशगोपाल-मन्त्रसे युक्त, ९६५. क्षिप्ता क्षिप्तस्वरूपा, ९६६. हरिमन्दिरवर्तिनी- भगवान्के मन्दिरमें विद्यमान, ९६७. बर्हिष्मती बर्हिष्मती नामकी नगरी, ९६८. हस्तिपुरी हस्तिनापुरनगरी, ९६९. शक्रप्रस्थनिवासिनी इन्द्रप्रस्थ (देहली) में निवास करनेवाली ॥ १२४ ॥
९७०. दाडिमी दाड़िमफलस्वरूपा, ९७१. सैन्धवी-सिन्धुप्रिया, ९७२. जम्बूः = जम्बूनदीरूपा, ९७३. पौष्करी पुष्करद्वीपसे सम्बन्ध रखनेवाली, ९७४. पुष्करप्रसूः पुष्करकी उत्पत्तिका स्थान, तीर्थमें ९७५. उत्पलावर्तगमना उत्पलावर्त जानेवाली, ९७६. नैमिषी नैमिषारण्यवासिनी ॥ १२५ ॥
९७७. अनिमिषादृता देवपूजिता, ९७८. कुरुजाङ्गलभूः कुरुजाङ्गलदेशमें प्रकट, ९७९. काली कृष्णवर्णा अथवा काली गङ्गा, ९८०. हैमवती-हिमालयसे उत्पन्न, ९८१. आर्बुदी आबूमें प्रकट, ९८२. बुधा-विदुषी, ९८३. शूकरक्षेत्र-विदिता शूकरक्षेत्रमें प्रसिद्ध, ९८४. श्वेतवाराह-धारिता-श्वेतवाराहके द्वारा धारित ॥ १२६ ॥
९८५. सर्वतीर्थमयी सर्वतीर्थस्वरूपा ९८६. तीर्था-तीर्थभूता, ९८७. तीर्थानां तीर्थकारिणी- तीर्थोंको तीर्थ बनानेवाली, ९८८. हारिणी सर्वदोषाणाम्-सब दोषोंको हर लेनेवाली, ९८९. दायिनी सर्वसम्पदाम्-सब सम्पत्तियोंको देनेवाली ॥ १२७ ॥
९९०. वर्धिनी तेजसाम्-तेजको बढ़ानेवाली, ९९१. साक्षात् प्रत्यक्ष प्रकट, ९९२. गर्भवास निकृन्तनी- माताके गर्भमें वास करनेके कष्टका उच्छेद करनेवाली, ९९३. गोलोकधाम गोलोककी प्रकाश-रूपा, ९९४. धनिनी धनसे सम्पन्न, ९९५. निकुञ्ज-निजमञ्जरी- निकुञ्जमें अपनी मञ्जरियोंके साथ रहनेवाली ॥ १२८ ॥
९९६. सर्वोत्तमा सबसे उत्तम, ९९७. सर्वपुण्या- सर्वाधिक पुण्यशालिनी, ९९८. सर्वसौन्दर्यशृङ्खला – सम्पूर्ण सुन्दरताको बाँध रखनेवाली, ९९९, सर्वतीर्थोपरिगता सब तीर्थोंके ऊपर पहुँची हुई, १०००. सर्वतीर्थाधिदेवता सम्पूर्ण तीर्थोंकी अधिदेवी ॥ १२९ ॥
कालिन्दीके सहस्त्रनामका वर्णन कीर्ति देनेवाला तथा उत्तम कामपूरक है। यह बड़े-बड़े पापोंको हर लेता, पुण्य देता और आयुको बढ़ानेवाला श्रेष्ठ साधन है। रातमें एक बार इसका पाठ कर ले तो चोरोंसे भय नहीं होता। रास्तेमें दो बार पढ़ ले तो डाकू और लुटेरोंसे कहीं भय नहीं होता। द्विजको चाहिये कि वह द्वितीयासे पूर्णिमातक प्रतिदिन कालिन्दी देवीका ध्यान करके भक्तिभावसे दस बार इस सहस्त्रनामका पाठ करे; ऐसा करनेसे यदि रोगी हो तो रोगसे छूट जाता है, कैदमें पड़ा हो तो वहाँके बन्धनसे मुक्त हो जाता है, गर्भिणी नारी हो तो वह पुत्र पैदा करती है और विद्यार्थी हो तो वह पण्डित होता है। मोहन, स्तम्भन, वशीकरण, उच्चाटन, मारण, शोषण, दीपन, उन्मादन, तापन, निधिदर्शन आदि जो-जो वस्तु मनुष्य मनमें चाहता है, उस उसको वह प्राप्त कर लेता है। १३०-१३५ ॥
इसके पाठसे ब्राह्मण ब्रह्मतेजसे सम्पन्न होता है, क्षत्रिय पृथ्वीका आधिपत्य प्राप्त करता है, वैश्य खजानेका मालिक होता है और शूद्र इसको सुनकर निर्मल-शुद्ध हो जाता है॥ १३६ ॥
जो पूजाकालमें प्रतिदिन भक्तिभावसे इसका पाठ करता है, वह जलसे अलिप्त रहनेवाले कमलपत्रकी भाँति पापोंसे कभी लिप्त नहीं होता ॥ १३७ ॥(Madhuryakhand Chapter 19)
जो लोग एक वर्षतक पटल और पद्धतिकी विधिका पालन करके प्रतिदिन इस सहस्रनामका सौ बार पाठ करते हैं और उसके बाद स्तोत्र और कवच पढ़ते हैं, वे सातों द्वीपोंसे युक्त पृथिवीका राज्य प्राप्त कर लेंगे, इसमें संशय नहीं है। जो यमुनाजीमें भक्तिभाव रखकर निष्कामभावसे इसका पाठ करता है, वह पुण्यात्मा धर्म-अर्थ-काम- इस त्रिवर्गको पाकर इस जीवनमें ही जीवन्मुक्त हो जाता है। जो इस प्रसङ्गका पाठ करता है, वह निकुञ्जलीलासे ललित, मनोहर तथा कालिन्दीतटके लता-समुदायोंसे विलसित वृन्दावनके मतवाले भ्रमरोंसे अनुनादित गोलोकधाममें पहुँच जाता है॥ १३८-१४१ ॥
इस प्रकार श्रीगर्गसंहितामें माधुर्यखण्डके अन्तर्गत श्रीसौभरि और मांधाताके संवादमें ‘यमुना-सहस्त्रनामका वर्णन’ नामक उन्नीसवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥१९॥
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