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Mahalakshmi Stotram lyrics in Hindi

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Mahalakshmi Stotram lyrics in Hindi

श्री महालक्ष्मी स्तोत्रम् हिंदी में

Mahalakshmi Stotram lyrics in Hindi

हिंदू पंचांग में सप्ताह के सात दिन होते हे, यह सात दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित होता है। इस प्रकार शुक्रवार का दिन महालक्ष्मी को समर्पित हे, और इस दिन महालक्ष्मी की पूजा करने का विधान शास्त्रों में कहा गया है। महालक्ष्मी की विधिवत पूजा करके महालक्ष्मी चालीसा, महालक्ष्मी स्तोत्र (Mahalakshmi Stotram) का पाठ करना चाहिए।

पुराणों और शास्त्रों के अनुसार महालक्ष्मी स्तोत्र (Mahalakshmi Stotram) की रचना स्वयं इंद्र देव ने मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए की थी। शास्त्र कहता हे की महालक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करने से देवी महालक्ष्मी बहोत जल्द प्रसन्न होती है। यह पाठ करने से मनुष्य की हर मनोकामना मां लक्ष्मी पूर्ण कर देती है।

श्री महालक्ष्मी स्तोत्र एक बहुत ही दिव्य स्तोत्र है। महालक्ष्मी स्तोत्र अधिक प्रभावशाली है। महालक्ष्मी स्तोत्र के पाठ करने से जीवन मे कभी निर्धनता कभी नहीं आएगी, धन की प्राप्ति होगी, श्री महालक्ष्मी स्तोत्र का पाठ प्रतिदिन जाप करने से उसका प्रभाव तुरंत दिखाय देता हे।

 

देवराज इंद्र द्वारा रचित महालक्ष्मी स्त्रोत्र की कथा :

स्वर्ग के राजा इंद्र देव अपने वाहन ऐरावत पर जा रहे थे। तभी इन्द्र देव के सामने महर्षि दुर्वासा ऋषि रास्ते में मिले, और दुर्वासा ऋषिने इन्द्र देव को निकालकर माला भेट की। इंद्र देव ने इस माला को दुर्वासा ऋषि के सामने ऐरावत हाथी को पहना दिया। ऐरावत हाथी ने इस माला की तीव्र गंध से परेशान होकर दुर्वासा ऋषि के सामने पृथ्वी पर फेंक दी। यह देख दुर्वासा ऋषि ने क्रोध वश इंद्र देव को शाप दिया की हे इंद्र जिस घमंड से तूने मेरी माला का अनादर किया हे, यह माला महालक्ष्मी का धाम थी। इसलिए हे इंद्र तुम्हारे राज्य की लक्ष्मी तुरंत ही अदृश्य हो जाएगी।

दुर्वासा के शाप के कारण तुरंत राज्यलक्ष्मी समुद्र में प्रविष्ट हो गई। देवी-देवताओ महालक्ष्मी की प्रार्थना करने लगे तब माँ लक्ष्मी प्रकट हुई और देवी-देवता, ऋषिओ आदि ने महालक्ष्मी का अभिषेक किया। इस समय इंद्र देव ने महालक्ष्मी स्त्रोत्र बोलकर माँ लक्ष्मी की स्तुति की थी।

 

यहां एक क्लिक में पढ़ें ~ गायत्री मंत्र का हिंदी में अर्थ

।।अथ इंद्रकृत महालक्ष्मी अष्टकम ( महालक्ष्मी स्तोत्रम् )।।

 

नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोस्तुते ।।१।।

अर्थात
मैं महालक्ष्मी की पूजा करता हूं, जो महामाया का प्रतीक है और जिनकी पूजा सभी देवता करते हैं। मैं महालक्ष्मी का ध्यान करता हूं जो अपने हाथों में शंख, चक्र और गदा लिए हुए है।

 

नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयङ्करि।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते ।।२।।

अर्थात
देवराज इंद्र बोले: पक्षीराज गरुड़ जिनका वाहन है, भयानक से भयानक दानव भी जिनके भय से कांपते है| सभी पापो को हरने वाली देवी महालक्ष्मी आपको नमस्कार हैं।

 

सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयङ्करि।
सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते ।।३।।

अर्थात
देवराज इंद्र बोले: मैं उन देवी की पूजा करता हूं जो सब जानने वाली है और सभी वर देने वाली है, वह सभी दुष्टो का नाश करती है। सभी दुखो को हरने वाली देवी महालक्ष्मी आपको नमस्कार हैं।

 

सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भक्तिमुक्तिप्रदायिनी।
मन्त्रमूर्ते सदा देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते ।।४।।

अर्थात
देवराज इंद्र बोले: हे आद्यशक्ति देवी महेश्वरी महालक्ष्मी, आप शुरु व् अंत रहित है। आप योग से उत्पन्न हुई और आप ही योग की रक्षा करने वाली है| देवी महालक्ष्मी आपको नमस्कार हैं।

 

आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोस्तुते ।।५।।

अर्थात
हे देवि ! हे आदि-अंतरहित आदिशक्ते ! हे महेश्वरि ! हे योग से प्रकट हुई भगवति महालक्ष्मी ! तुम्हें नमस्कार है।

 

स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्ति महोदरे।
महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते ।।६।।

अर्थात
महालक्ष्मी आप जीवन की स्थूल और सूक्ष्म दोनों ही अभिव्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करती है। आप एक महान शक्ति है और आप का स्वरुप दुष्टो के लिए महारौद्र है| सभी पापो को हरने वाली देवी महालक्ष्मी आपको नमस्कार हैं।

 

पद्मासनस्थिते देवि परब्रम्हस्वरूपिणी।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोस्तुते ।।७।।

अर्थात
हे परब्रम्हास्वरूपिणि देवी आप कमल पर विराजमान है| परमेश्वरि आप इस संपूर्ण ब्रह्मांड की माता हैं देवी महालक्ष्मी आपको नमस्कार हैं।

 

श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोस्तुते ।।८।।

अर्थात
हे देवी महालक्ष्मी, आप अनेको आभूषणों से सुशोभित है और श्वेत वस्त्र धारण किए है। आप इस संपूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त है और इस संपूर्ण ब्रह्मांड की माता हैं देवी महालक्ष्मी आपको नमस्कार हैं।

 

फलश्रुति: –

महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रम् यः पठेद्भक्तिमान्नरः ।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा ॥ ९ ॥

अर्थात
जो भी व्यक्ति इस महालक्ष्मी अष्टकम स्तोत्र का पाठ भक्तिभाव से करते है उन्हें सर्वसिद्धि प्राप्त होंगी और उनकी समस्त इच्छाएं सदैव पूरी होंगी।

 

एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम् ।
द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वितः ॥ १० ॥

अर्थात
महालक्ष्मी अष्टकम का प्रतिदिन एक बार पाठ करने से भक्तो के महापापो विनाश हो जाता हैं। प्रतिदिन प्रातः व् संध्या काल यह पाठ करने से भक्तो धन और धान्य की प्राप्ति होती है।

 

त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम् ।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा ॥ ११ ॥

अर्थात
प्रतिदिन प्रातः दोपहर व् संध्या काल यह पाठ करने से भक्तो के शक्तिशाली दुश्मनों का नाश होता है और उनसे माता महालक्ष्मी सदैव प्रसन्न रहती है तथा उनके वरदान स्वरुप भक्तो के सभी कार्य शुभ होंते है।

 

इति श्री महालक्ष्म्यष्टकम् सम्पूर्णम्

 

यहां एक क्लिक में पढ़ें ~ श्री गणेश स्तोत्र हिंदी में

 

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