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100 Kauravas and 5 pandav Name in Hindi

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100 Kauravas and 5 pandav Name in Hindi

 

100 कौरवों और 5 पांडव के नाम और जन्म से जुडी कथा।

100 कौरवों (100 Kauravas Name in Hindi) के नाम क्या थे? आप सभी ने महाभारत की कथा सुनी ही होगी या टीवी सिरियल में देखि होगी, महाभारत में 100 कौरव (100 Kauravas Name in Hindi) और पांच पांडवो के बिच महायुद्ध हुआ था। इस युद्ध में धर्म की यानि पांडवो की जित हुई थी। यह सब आप सभी ने सुना भी होगा और टीवी पर देखा भी होगा। आप सब को पांच पांडवो के नाम का पता होगा। लेकिन सौ कौरवो के नाम की जानकारी कुछ लोग तक ही सिमित होगी। ये दो भाई दुर्योधन और दुःशासन का नाम सभी ने सुना ही होगा परंतु बाकि के 98 भाई के नाम नहीं सुने होंगे, नाही जानते होंगे। आज हम इस पोस्ट के माध्यम से 100 कौरवो और 5 पांडव के नाम और जन्म से जुडी कथा की जानकारी देने जा रहे है। महाभारत के अनुसार गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से हुआ था। जिससे गांधारी से 100 पुत्र और 1 पुत्री का जन्म हुआ था। धृतराष्ट्र की पुत्री का नाम दुःशला था। दुःशला का विवाह जयद्रत से हुआ था। धृतराष्ट्र के पुत्रो का नाम निम्नलिखित है।

 

100 कौरवों (100 Kauravas Name in Hindi) के नाम :-

1. दुर्योधन
2. दुशासन
3. दुसह्य
4. दुशल
5. जलसंध
6. सम
7. सह
8. विन्द
9. अनुविन्द
10. दुर्धुश
11. सुबाहु
12. दुश्प्रघर्शन
13. दुर्मर्षण
14. दुर्मुख
15. दुश्कर्ण
16. कर्ण
17. विविंशति
18. विकर्ण
19. शल
20. सत्व
21. सुलोचन
22. चित्र
23. उपचित्र
24. चित्राक्ष
25. चरुचित्र
26. शरासन
27. दुर्मुद
28. दुर्विगाह
29. विवित्सु
30. विकटानन
31. ऊर्णनाभ
32. सुनाभ
33. नन्द
34. उपनंद
35. चित्रबान
36. चित्रवर्मा
37. सुवर्मा
38. दुर्विमोचन
39. आयोबहु
40. महाबाहु
41. चित्रांग
42. चित्रकुंडल
43. भीमवेग
44. भीमबल
45. बलाकी
46. बलवर्धन
47. उग्रायुध
48. सुषेण
49. कुंडधार
50. महोदा
51. चित्रायुध
52. निशंकी
53. पाशी
54. वृन्दारक
55. दृढवर्मा
56. दृढक्षत्र
57. सोमकिर्ती
58. अनुदर
59. दृढसंध
60. जरासंध
61. सत्यसंध
62. सदह्सुवाक
63. उग्रश्रवा
64. उग्रसेन
65. सेनानी
66. दुष्ट्पराजय
67. अपराजित
68. कुंडशाई
69. विशालाक्ष
70. दुराधर
71. दृढहस्त
72. सुहस्त
73. बातवेग
74. सुवर्चा
75. आदित्याकेतु
76. ब्रह्याशी
77. नाग्दत्त
78. अग्रशायी
79. कवची
80. क्रथन
81. कुण्डी
82. उग्र
83. भीमरथ
84. वीरबाहू
85. अलोलुप
86. अभय
87. रौद्रकर्मा
88. दृढआश्रय
89. अनाधृश्य
90. कुंडभेदी
91. विरावी
92. प्रमथ
93. प्रमायी
94. दिर्घरोमा
95. दीर्घबाहु
96. महाबाहु
97. व्युधोरास्क
98. कनकध्वज
99. कुण्डाशी
100. विरजा

यहां एक क्लिक में पढ़ें- श्रीमद भागवत गीता का प्रथम अध्याय

महाभारत में धृतराष्ट के 100 पुत्रो के अलावा धृतराष्ट का एक दासी से युयत्सु नाम का पुत्र भी था।

कौरवो की संख्या 100 थी। जेष्ठ पुत्र दुर्योधन था, परंतु 100 कौरवो में सब से छोटे पुत्र का जन्म हुआ होगा तब दुर्योधन की उम्र कितनी होगी?

गांधारी की भक्ति और पतिव्रता धर्म का पालन करने से भगवान व्यास ऋषि प्रसन्न हुए। व्यास ऋषि ने गांधारी से कहा क्या चाहिए तुम्हे मागो, तब गांधारी ने 100 पुत्र की प्राप्ति हो ऐसा वरदान दीजिए। व्यास ऋषि ने गांधारी को 100 पुत्र होनेका वर दिया। व्यास जी के आशीर्वाद से गांधारी सौ पुत्रो की माता बानी।

गांधारी जब गर्भवती थी उस समय दो वर्ष तक बालक का जन्म नहीं रहा था। फिर गांधारी ने एक पत्थर का प्रहार कर के गर्भ का त्याग करना चाहा। गर्भ त्याग ने पर एक मृत मांसपिंड जन्म हुआ, यह सब व्यास ऋषि ने अपनी योगदृष्टि से जान लिया था। फिर व्यास ऋषि आये और उस मृत मांसपिंड पर जल छिड़का, और मांसपिंड के 101 टुकड़े करे हुए। व्यास ऋषि आज्ञा दी की इस मांसपिंड के टुकड़ो को घी से भरे हुए पात्र में रखदिया जाए। उस मांसपिंड के टुकड़ो में से 100 पुत्र और 1 कन्या का जन्म हुआ। इसलिए कौरवो की उम्र में कुछ घंटे का अंतर रहता है।

 

कौरव और पांडव में क्या संबंध थे ?

महाभारत में हस्तिनापुर नामक राज्य के राजा धृतराष्ट्र और गांधारी के पुत्र कौरवो थे। कौरवो की कुल संख्या 100 थी। धृतराष्ट्र के जेष्ट भाई पाण्डु के पांच पुत्र थे। जिन्हे हम पांच पांडव के नाम से जानते हे। पाण्डु हस्तिनापुर के पूर्व राजा थे।

 

5 पांडव के नाम :-

1. युधिष्ठिर
2. भीम
3. अर्जुन
4. सहदेव
5. नकुल

 

पांडवो का जन्म कैसे हुआ ?

महाभारत के अनुसार यह बात उस समय की है, जब हस्तिनापुर के राजा पाण्डु थे। पाण्डु का विवाह कुंती और माद्री से हुआ था। पाण्डु राजा शिकार के लिए अपनी दोनों पत्नीओ कुंती और माद्री के साथ वन में गए। पाण्डु को वन में एक हिरन का जोड़ा दिखाय दिया, जो मैथुनरत था। पाण्डु ने तुरंत अपने बाण से नर हिरन को मार दिया। वह हिरन असल में कींदम ऋषि थे। मरते हुए कींदम ऋषि ने पाण्डु को श्राप दिया की राजन तुमने मैथुन के समय बाण मारा है, तुम भी जब मैथुनरत होंगे इसी समय तेरी मृत्यु होगी। इस श्राप के कारन पाण्डु राजा बहुत दुखी होकर अपनी पत्निओ के साथ वन में रहने चले गए।

अमावस्या के दिन राजा पाण्डु ऋषि मुनियो से मिले जो ब्रह्माजी के दर्शन के लिए जा रहे थे। पाण्डु ने ऋषि मुनियो को कहा की में भी ब्रह्माजी के दर्शन करना चाहता हु, तो मुझे भी ले चलो। पाण्डु की यह बात सुनकर ऋषि मुनिओ ने कहा हे राजन, कोय भी निःसंतान मनुष्य को ब्रह्मलोक में प्रवेश नहीं है। इस लिए हे राजन आप हमारे साथ ब्रह्मलोक जाने की अपेक्षा न रखे।

ऋषिओ की यह बात सुनकर पाण्डु ने कुंती से कहा, मेरा जीवन व्यर्थ हे क्योकि में निःसंतान हु। तुम मेरी सहायता कर सकती हो ? कुंती ने कहा है राजन में आपकी सहायता कर सकती हु। हे आर्यपुत्र मुझे दुर्वासा ऋषि ने एक ऐसा मंत्र सिखाया प्रदान किया हे की जब भी यह मंत्र का जप करके किसी भी देवता का आवाह्वा करू तो उस देवता से पुत्र प्राप्ति कर सकती हु। आप आज्ञा दे में किस देवता का आवाह्वा करू। पाण्डु पहले धर्मराज का आवाह्वा करने को कहा। जिसके फलस्वरूप युधिष्ठिर का जन्म हुआ। इस तरह वायुदेव से भीम और इंद्रदेव से अर्जुन पुत्र रूप प्राप्त हुए। कुंती ने यह मंत्र माद्री को भी बताया और माद्री ने इस मंत्र से अश्विनी कुमारो का आवाह्वा किया तो नकुल और सहदेव का जन्म होआ।

 

कर्ण का जन्म कैसे हुआ ?

कुंती दुर्वासा ऋषि की सेवा बचपन से ही करती थी। जब कुंती बड़ी हो गई तब दुर्वासा ऋषि ने सेवा के फल स्वरुप कुंती को एक ऐसा मंत्र सिखाया की जब भी यह मंत्र का जप करके किसी भी देवता का आवाह्वा करेगी उस देवता प्रसन्न होंगे और उससे पुत्र प्राप्त कर सकती है। कुंती ने विवाह होने से पहले इस मंत्र की शक्ति देखने के लिए सूर्य देवका आवाह्वा किया, फलस्वरूप कर्ण का जन्म हुआ था।

 

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